आदिपुरुष फिल्म रिव्यू : नायक से बड़ा खलनायक
आदिपुरुष फिल्म सिनेमाघरों में लग चुकी है। थिएटर्स में पब्लिक के साथ एक सीट हनुमान जी के लिए भी छोड़ी गई है। अगर हनुमान जी गलती से भी ये फिल्म देखने चले आए, तो ओम राउत और मनोज मुंतशिर को बहुत कोसेंगे क्योंकि बहुत कठिन होता है, कठिन समय में भी सहज रहना। सरल बने रहना उससे भी दुष्कर है। राम कथा मनुष्य को सहज होना सिखाती है। ये यह भी सिखाती है कि तमाम धन संपत्ति, सुख, ऐश्वर्य आदि पाकर भी सरल बने रहना हो तो इसकी कुंजी कहां है। लेकिन, सिनेमा को अब सरलता की मुंडेर भी हासिल नहीं है। वह इसी मुंडेर पर बैठा कौआ बन चुका है, जिसे दादी बचपन में इस आस से दिन भर उड़ाया करती थीं कि शायद उसका कांव कांव करना किसी आने वाले की सूचना ही हो। निर्देशक ओम राउत की नई फिल्म आदिपुरुष भी मुंडेर पर से आने वाली ऐसी ही एक आवाज है। इंटरवल तक ही आदिपुरुष फिल्म सुंदरकांड पार कर जाती है और उसके बाद का लंका कांड अपने आप में किसी कांड से कम नहीं है।
नायक से बड़ा खलनायक?
सच बताऊं तो आदिपुरुष देखने के बाद कुछ कहते नहीं बन रहा। लेकिन एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि फिल्म प्रोडक्शन से जुड़े प्रमुख लोग अंतर्मन से रावण प्रेमी हैं। आप फिल्म देखेंगे तो कई बार लगेगा, जैसे मुख्य किरदार में रावण ही है।
रामायण के नायकों का इतना कमजोर चित्रण आपने कभी देखा तो क्या, सोचा तक न होगा। पूरी फिल्म में प्रभास की बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के हावभाव, आत्मविश्वास खोए हुए एक हताश, निराश व्यक्ति जैसे लगते हैं। लंका में वे किसी पस्त व्यक्ति की तरह रावण से लड़ते हैं। इस दौरान रावण उन्हें कई बार सहज ही उठाकर दूर फेंक देता है। लगता है, कि यदि ओम राउत, मनोज मुंतसिर और उनके अन्य साथी यदि किसी और देश में पैदा हुए होते तो शायद रावण के हाथों राघव को मरवा डालते। अतुलित बलशाली कहे जाने वाले हनुमानजी को भी कुंभकर्ण से पिटता देखना, नागवार गुजरता है।
टपोरी किस्म के डायलॉग
हनुमान मिलते हैं तो लक्ष्मण के साथ उनकी सस्ती चुटकुलेबाजी करते हैं। सबरी खुद राम से मिलने आती है और जब हनुमान पहली बार समुद्र लांघकर लंका जाते हैं तो रास्ते में उन्हें सुरसा मिलती है न लंकिनी। बाकी लंकादहन से पूर्व हनुमानजी और मेघनाथ के बीच टपोरी किस्म के डायलॉग्स तो सुर्खियों में हैं ही। मेघनाथ जब चुटकी बजाते हुए राम से कहता है कि ‘अपना तमाशा समेटो और सुबह होने से पहले निकल लो’ तो लगता है जैसे लेखक जानबूझकर हमारे आराध्य को कमतर दिखाना चाहता है। आदिपुरुष में लोगों ने पहली बार विभीषण की पत्नी को देखा। यही नहीं, शक्ति लगने के बाद वैद्य सुषेन का रोल भी उसी ने निभाया।
आदिपुरुष फिल्म में सोने की लंका?
हमेशा सुना है कि लंका सोने की थी, लेकिन आदिपुरुष में यह काले पत्थरों से निर्मित है। लंका में पूरा युद्ध रात के वक्त लड़ा जाता है, जबकि सब जानते हैं, कि प्राचीनकाल में सूर्यास्त होते ही युद्ध थम जाता था।
राम की पारंपरिक छवि नहीं
सिनेमाई छूट के सहारे पौराणिक कथाएं कहने का इतिहास भारत में भी सिनेमा जितना ही पुराना है। पहली राम कथा जब परदे पर उतरी तो राम और सीता दोनों के किरदार एक ही कलाकार ने निभाए। राम की सौम्यता की झलक वहीं से निकली। तेलुगू में बनी रामकथा में राम मूंछों के साथ नजर आए और अब तेलुगू के तथाकथित सुपर सितारे प्रभास जब अपनी नई फिल्म के साथ सिनेमाघरों तक पहुंचे हैं तो वह मूंछों वाले राम ही बने हैं। राम को जिस दिन राजा बनना था, उसका मुहूर्त नक्षत्रों की गणनाएं करके ही निकाला गया। गुरु वशिष्ठ जैसे ज्ञानी ने ये मुहूर्त निकाला लेकिन वही मुहूर्त राजा दशरथ के मरण और राम के वनवास का कारण बना। राम कथा ऐसी ही छोटी छोटी अनुभूतियों की कहानी है।
चरित्रों के स्वरूप की तो मैं बात ही नहीं कर रहा, क्योंकि सबसे पहली खामी जो इस फिल्म की लोगों को दिखेगी, वह है फिल्म में जानकी बनीं कृति सैनन। उनके चेहरे पर जो भी कृत्रिम प्रयोग हो चुके हैं, उन्होंने उनके चेहरे की सौम्यता हर ली है। होंठ और नाक उनके तीखे बनाए गए हैं। और, मिथिला की राजकुमारी के जिस सौंदर्य को देख राम पुष्प वाटिका में मोहित हुए, उसकी छटा तक कृति सैनन की सुंदरता में नजर नहीं आती। यही हाल प्रभास का है। हिंदी में शरद केलकर की आवाज पर रिवर्ब लगाकर वह राम जैसा आभास तो गए, पर उनके शरीर सौष्ठव में न राम जैसा ओज है, न राम जैसा तेज और न ही राम जैसा प्रताप। वह पूरी फिल्म में बाहुबली की तीसरा संस्करण ही ज्यादा नजर आए।
आदिपुरुष फिल्म नही एक एजेंडा?
रामायण के मूल कथानक के साथ खिलवाड़ करना सुनियोजित ढंग से एक एजेंडा फिक्स करने जैसा लगता है। एजेंडा जिनके फेवर में है, उन्होंने इसे पकड़ भी लिया है। यही वजह है कि वे सब कुछ देखने, समझने के बावजूद न सिर्फ खामोश हैं, बल्कि खुद को पर्दे के पीछे रखते हुए इस सनातन विरोधी फ़िल्म को प्रमोट भी कर रहे हैं।