आदिपुरुष : देखिये कैसा हैं भगवान श्री राम का व्यक्तित्व
आदिपुरुष श्री राम वह अविनाशी परमात्मा है जो सब का सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है। श्री राम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं।
भारत में श्री राम अत्यन्त पूजनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं तथा विश्व के कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं जैसे नेपाल, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया आदि। इन्हें पुरुषोत्तम शब्द से भी अलंकृत किया जाता है। भगवान श्री राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया, इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं।
वैदिक धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, श्रीराम की वन-कथा से जुड़े हुए हैं। श्री राम आदि काल से ही भारतीयों के मन में बसता आया है, और आज भी उनके हृदयों में इसका भाव निहित है। भारत में किसी व्यक्ति को नमस्कार करने के लिए राम राम,जय सियाराम जैसे शब्दों को प्रयोग में लिया जाता है। ये भारतीय संस्कृति के आधार हैं।
कौन है मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम
आदिपुरुष श्री राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा रघुकुल रीति सदा चलि आई प्राण जाई पर बचन न जाई की थी। रामायण के अनुसार भगवान राम महाराजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, माता सीता के पति व लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। हनुमान उनके परम भक्त है। लंका के राजा रावण का वध उन्होंने ही किया था। उनकी प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता तक का त्याग किया।
क्यों भगवान के रूप में पूजते है आदिपुरुष
श्रीराम को शास्त्रों में भगवान विष्णु का अवतार बताया गया है। हालांकि उन्होंने अयोध्या में राजा दशरथ के यहां एक आम इंसान के रूप में ही जन्म लिया था। अपने उच्च आदर्श, वचनबद्धता और कर्तव्यनिष्ठा के कारण वह मर्याद पुरषोत्तम कहलाए। इसलिए उन्हें भगवान आदिपुरुष के रूप में पूजा जाता है।
कैसा दिखता था भगवान श्री राम
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में बताया है कि, भगवान आदिपुरुष श्री राम का चेहरा एकदम चंद्रमा की तरह चमकीला, सौम्य, कोमल और सुंदर था। उनकी आंखे कमल की भांति खबसूरत और बड़ी थी। उनकी नाक उनके चेहरे की तरह ही लंबी और सुडौल थी। उनके होठों का रंग सूर्य के रंग की तरह लाल था और उनके दोनों होठ समान थे। भगवान राम की लंबाई छह फीट के करीब थी।
श्री राम जन्म
रामायण में वर्णन के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ के पुत्रेश्टी यज्ञ (पुत्र प्राप्ती यज्ञ) के फलस्वरूप उनके पुत्रों का जन्म हुआ। श्रीराम जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। पुराणों में श्री राम के जन्म के बारे में स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि श्री राम का जन्म वर्तमान भारत के अयोध्या नामक नगर में हुआ था। अयोध्या, जो कि भगवान राम के पूर्वजों की ही राजधानी थी। रामचन्द्र के पूर्वज रघु थे।
हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम जयंती या राम नवमी का पर्व मनाया जाता हैं। कुछ हिंदू ग्रंथों में, भगवान राम के बारे में कहा गया है कि वे त्रेता युग या द्वापर युग में रहते थे कि उनके लेखकों का अनुमान लगभग 5,000 ईसा पूर्व था। कुछ अन्य शोधकर्ता श्री राम को कुरु और वृष्णि नेताओं की पुन: सूचियों के आधार पर 1250 ईसा पूर्व, के आसपास रहने के लिए अधिक उपयुक्त स्थान देते थे।
बचपन
मर्यादा में नटखटपन नहीं हुआ करता हैं, अतः जिनकी छवि मर्यादा पुरुषोत्तम की हो, तो उनके बाल्यावस्था का नटखटपन कविताओं में पिरोना कठिन कार्य है। यही कारण है की श्री राम के बाल्यावस्था का वर्णन वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड में अधिक नहीं है। भगवान राम बचपन से ही शान्त स्वभाव के वीर पुरूष थे। उन्होंने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया था। इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है।
शिक्षा
धर्म के मार्ग पर चलने वाले आदिपुरुष ने अपने तीनों भाइयों के साथ गुरू वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त की। किशोरावस्था में गुरु विश्वामित्र उन्हें वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को समाप्त करने के लिए साथ ले गये। श्री राम के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी इस कार्य में उनके साथ थे।
जीवनसाथी
कालांतर में विश्वामित्रजी की तपोभूमि राक्षसों से आक्रांत हो गई। कई राक्षस विश्वामित्रजी की तपोभूमि में निवास करने लगी थी तब विश्वामित्रजी के निर्देशन पर प्रभु श्री राम के द्वारा वहीं पर उन राक्षसों का वध हुआ। इस दौरान ही गुरु विश्वामित्र उन्हे ले गये। वहां के विदेह राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक स्वयंवर समारोह आयोजित किया था। जहां भगवान शिव का एक धनुष था जिसकी प्रत्यंचा चढ़ाने वाले शूरवीर से सीता जी का विवाह किया जाना था। बहुत सारे राजा महाराजा उस समारोह में पधारे थे।
जब बहुत से राजा प्रयत्न करने के बाद भी धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर उसे उठा तक नहीं सके, तब विश्वामित्र जी की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष उठा कर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयत्न किया। उनकी प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयत्न में वह महान धनुष घोर ध्वनि करते हुए टूट गया। महर्षि परशुराम ने जब इस घोर ध्वनि को सुना तो वे वहां आ गये और अपने गुरू (शिव) का धनुष टूटने पर रोष व्यक्त करने लगे। इस प्रकार माता सीता का विवाह प्रभु श्री राम से हुआ और परशुराम सहित समस्त लोगों ने आशीर्वाद दिया।
राज्याभिषेक
लोग राम को बहुत चाहते थे। उनकी मृदुल, जनसेवायुक्त भावना और न्यायप्रियता के कारण उनकी विशेष लोकप्रियता थी। राजा दशरथ वानप्रस्थ की ओर अग्रसर हो रहे थे। अत: उन्होंने राज्यभार राम को सौंपने का सोचा। जनता में भी सुखद लहर दौड़ गई की उनके प्रिय राजा, उनके प्रिय राजकुमार को राजा नियुक्त करने वाले हैं। उस समय राम के अन्य दो भाई भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेेय गए हुए थे। लेकिन रानी कैकेयी की दासी मन्थरा ने कैकेयी को बहकाया कि राजा तुम्हारे साथ गलत कर रहें है। तुम राजा की प्रिय रानी हो तो तुम्हारी संतान को राजा बनना चाहिए पर राजा दशरथ राम को राजा बनाना चाहते हैं। इस प्रकार भगवान राम अयोध्या का राजपाट छोड़कर वन में चले गए।
वनवास
श्री राम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और श्री राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए भगवान राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदाहरण देते हुए पति के साथ वन (वनवास) जाना उचित समझा। भाई लक्ष्मण ने भी श्री राम के साथ चौदह वर्ष वन में बिताए।
भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आए। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। जब श्री राम वनवासी थे तभी उनकी पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने श्रीराम के सारे कार्य पूरे कराये।
रावण का वध
श्री राम ने हनुमान, सुग्रीव आदि वानर जाति के महापुरुषों की सहायता से माता सीता को ढूंंढा। समुद्र में पुल बना कर लंका पहुँचे तथा रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता जी को वापस ले कर आये। रामायण में सीता के खोज में सीलोन या लंका या श्रीलंका जाने के लिए 48 किलोमीटर लम्बे 3 किलोमीटर चोड़े पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको रामसेतु कहते हैं। माता सीता को को पुनः प्राप्त करने के लिए राम ने हनुमान, विभीषण और वानर सेना की सहायता से रावण के सभी बंधु-बांधवों और उसके वंशजों को पराजित किया तथा लौटते समय विभीषण को लंका का राजा बनाकर अच्छे शासक बनने के लिए मार्गदर्शन किया।
अयोध्या वापसी
राम ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। राम, सीता, लक्षमण और कुछ वानर जन पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर प्रस्थान किये। श्री राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा।
रामराज्य
लोग आदिपुरुष श्री राम को बहुत चाहते थे। उनकी मृदुल, जनसेवायुक्त भावना और न्यायप्रियता के कारण उनकी विशेष लोकप्रियता थी। उनके राज में सभी खुशहाल जीवन जिये। उनका राज्य न्यायप्रिय और खुशहाल माना जाता था। इसलिए भारत में जब भी सुराज (अच्छे राज) की बात होती है तो रामराज या रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है।
दैहिक त्याग
जब रामचन्द्र जी का जीवन पूर्ण हो गया, तब वे यमराज की सहमति से सरयू नदी के तट पर गुप्तार घाट में देह त्याग कर पुनः बैकुंठ धाम में विष्णु रूप में विराजमान हो गये।
श्री राम के सोलह गुण, जो आदर्श पुरुष में होने चाहिए
वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के सत्रह गुण बताए गए हैं, जो लोगों में नेतृत्व क्षमता बढ़ाने व किसी भी क्षेत्र में अगुवाई करने के अहम सूत्र हैं। वाल्मीकि जी ने नारद जी से प्रश्न किया कि सम्प्रति इस लोक में ऐसा कौन मनुष्य है जो गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी और दृढ़व्रत होने के साथ साथ सदाचार से युक्त हो। जो सब प्राणियों का हितकारक हो, साथ ही विद्वान, समर्थ और प्रियदर्शन हो। उत्तर में नारद जी कहते हैं कि इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न श्री राम में ये सभी गुण हैं।
- गुणवान्
- वीर्यवान् (वीर)
- धर्मज्ञ (धर्म को जानने वाला)
- कृतज्ञ (दूसरों द्वारा किये हुए अच्छे कार्य को न भूलने वाला)
- सत्यवाक्य (सत्य बोलने वाला)
- दृढव्रत (दृढ व्रती)
- चरित्रवान्
- सर्वभूतहित (सभी प्राणियों के हित करने वाला)
- विद्वान्
- समर्थ
- सदैक प्रियदर्शन ( सदा प्रियदर्शी )
- आत्मवान् (धैर्यवान)
- जितक्रोध (जिसने क्रोध को जीत लिया हो)
- द्युतिमान् (कान्तियुक्त )
- अनसूयक (ईर्ष्या को दूर रखने वाला)
- बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे (जिसके रुष्ट होने पर युद्ध में देवता भी भयभीत हो जाते हैं)
आदिपुरुष श्री राम के जीवनकाल से संबंधित रचना
ऋषि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। लेखक गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की थी। इन दोनों के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी रामायण की रचनाएँ हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। दक्षिण के क्रांतिकारी पेरियार रामास्वामी व ललई सिंह यादव की रामायण भी मान्यताप्राप्त है।
संक्षेप में रामायण कथा
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान राम, विष्णु के मानव अवतार थे। इस अवतार का उद्देश्य मृत्युलोक में मानवजाति को आदर्श जीवन के लिये मार्गदर्शन देना था। अन्ततः श्रीराम ने राक्षसों के राजा रावण का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना की। रामायण में सात काण्ड हैं – बालकाण्ड, अयोध्यकाण्ड, अरण्यकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, लङ्काकाण्ड और उत्तरकाण्ड।
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आदिपुरुष का मतलब क्या होता है?
आदि मतलब सबसे पहला ऐसे में आदिपुरुष का मतलब हुआ सबसे पहला आदमी। हालांकि, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसका दूसरा अर्थ परमेश्वर भी होता है।
राम राम कहने से क्या फायदा होता है?
राम-राम से मिलता है एक माला जाप का पुण्य क्योंकि जब भी हम किसी मंत्र का माला से जाप करते हैं, तो 108 बार करते हैं क्योंकि एक माला में 108 मनके होते हैं। 108 की संख्या को बेहद शुभ माना गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि राम-राम कह देने भर से 108 का योग बन जाता है। यानी राम-राम साथ बोलना ही एक माला के समान माना गया है।
कैकेयी ने राम के लिए 14 वर्ष का वनवास ही क्यों माँगा 13 या 15 वर्ष क्यों नहीं?
कैकयी ने राम के लिए 10, 12 या 13 नहीं बल्कि 14 साल के वनवास पर भेजा था क्योंकि वह इससे जुड़े प्रशासनिक नियम जानती थीं। त्रेतायुग में उस समय यह नियम था कि यदि कोई राजा अपनी गद्दी को 14 साल तक छोड़ देता है तो वह राजा बनने का अधिकार खो देता है। यही वजह रही कि कैकयी ने राम के लिए पूरे 14 वर्ष का वनवास मांगा।
राम जी की कितनी पत्नियां थी?
आदिपुरुष भगवान राम ने केवल एक शादी की थी, और उनकी अर्धागनी माता सीता थी।