आज अनेक पन्थों , सम्प्रदायों तथा मतों को मानने वाले अपनी पूजा या उपासना के विधि – विधानों को धर्म नाम से पुकारते हैं जैसे हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिक्ख धर्म, पारसी, यहूदी , इस्लाम और ईसाई धर्म । मूलतः ये सब उपासना के मार्ग है । धर्म तो एक व्यापक , सनातन और सत्कर्त्तव्यों के व्यवहार का रूप है । इसीलिए ‘रिलीजन’, ‘मजहब’, पन्थ या सम्प्रदाय शब्द से वह परिभाषित नहीं हो सकता ।
धर्म क्या है, धर्म किसे कहते हैं, मजहब क्या है,
धर्म की परिभाषा करते हुए , हम कह सकते हैं कि जीव मात्र के कल्याण भाव से सत्य पर आधारित किया गया व्यवहार ही धर्म है । कहा भी गया है ” धारणाद्धर्म इत्याहुर्धर्मो धारयति प्रजाः – अर्थात् जिन शाश्वत सत्य नियमों को धारण करते हैं , उन्हें धर्म कहा गया है तथा धर्म से ही प्रजा की धारणा होती है । संक्षेप में कह सकते हैं कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के साथ ऐसा व्यवहार करे जिससे सब का कल्याण हो , समाज के रूप में स्वाभाविक विकास क्रम चलता रहे तथा सृष्टि का प्रवाह ईश्वरेच्छानुसार चल सके ; वही धर्म है । पूजा – पाठ , मन्दिर , गुरुद्वारे , मठ , मस्जिद और गिरजाघरों की प्रार्थनाएँ भगवान की उपासना के विभिन्न मार्ग हैं , धर्म नहीं है ।
जिस व्यवहार से इस लोक में अभ्युदय ( उन्नति – कल्याण ) तथा परलोक में भी कल्याण हो अर्थात् आत्मा की उन्नति इतनी हो कि वह ‘ परम ‘ बन जाये , वही धर्म है ।
मनु ने धर्म के दस लक्षण कौन – कौन से बताए है।
“धृतिः क्षमादमोऽस्तेयम् शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ।।
अर्थात् धृति ( धैर्य ) क्षमा , दम ( बुरी इच्छाओं का दमन ) अस्तेय ( चोरी न करना ) , शौच ( शरीर , मन की स्वच्छता ) इन्द्रिय निग्रह , धी ( विवेक ) विद्या , सत्य और क्रोध न करना ही धर्म के दस लक्षण हैं )
धर्म का ज्ञान एवं व्यवहार कहाँ से सीखते हैं ?
धर्म का ज्ञान एंव व्यवहार वेदों, धर्मग्रन्थों, ज्ञानी पुरुषों के श्रेष्ठ आचरण, धर्म गुरुओं की वाणी, सत्संग एवं आदर्श व्यवहार से सीखते हैं।
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हिन्दु धर्म –
हिन्दु विश्व का एक मात्र ऐसा धर्म है जो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा प्रवर्तित नहीं है । यह अनेक मतों एवं सम्प्रदायों में विभक्त होने पर भी अपनी सहिष्णुता, आत्मसात क्षमता एवं विश्वबन्धुत्व भावना के कारण असंख्य ऋषियों , मुनियों , दार्शनिको के ज्ञान, एवम् अनुभूतियों से निरन्तर समृद्ध होता हुआ प्राचीनतम वैदिक काल से अद्यावधि जीवित है । इसी से यह सनातन भी कहा जाता है।
इसकी प्रमुख विशेषताओं में
- आस्तिकता,
- एकेश्वरवाद ,
- त्रिदेवों ( सृजन – ब्रम्हा, पोषण – विष्णु, विनाश – शंकर ) की प्रधानता,
- शक्ति पूजा ,
- पुरूषार्थ चतुष्टय ( अर्थ , धर्म , काम , मोक्ष ) कर्मवाद एवं पुर्नजन्म में विश्वास,
- अवतारवाद ,
- मुर्ति पूजा ,
- नैतिकता एवं सदाचार पर बल ,
- सहिष्णुता एवं विश्वबंधुत्व ,
- वर्णाश्रम व्यवस्था ( चार जाति एवं ब्रम्हचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ , सन्यास नामक चार आश्रम ) आदि हैं ।
इस धर्म के मुख्यत: तीन सम्प्रदाय है –
- वैष्णव
- शैव
- शाक्त
धार्मिक ग्रंथ – हिन्दु धर्म का प्रमुख ग्रंथ वेद है जिसमें संहिता , ब्राम्हण, अरण्यक एवं उपनिषद सम्मिलित है । इसके अतिरिक्त कल्पसूत्र , स्मृतियाँ ( प्रमुख मनुस्मृति ) , रामायण , महाभारत , तिरूकुरल , पुराण , निबंध ग्रंथ तथा रामचरित मानस आदि प्रमुख है।
वेद चार हैं – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामदेव , अथर्वेद।
हिन्दू कौन ?
हिन्दू एक जीवन शैली है । हमारे इस चिन्तन को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी वर्ष 1995 में अपने एक निर्णय में पुष्ट किया है । ‘ धर्म ‘ शब्द न तो अंग्रेजी के रिलीजन शब्द का पर्याय है और न संप्रदाय (कम्यून) का। यह मानवीय मूल्यों का व्यवहार दर्शन है । भारत में वैष्णव सम्प्रदाय , शाक्त सम्प्रदाय , शैव सम्प्रदाय इत्यादि विद्यमान हैं । वे भी कम्यून का पर्याय नहीं हैं । हिन्दू जीवन की इस शैली की संकल्पना इन उद्धरणों में मिलती है :
आसिन्धु- (सिन्धु ) पर्यन्ता यस्य भारत भूमिका ।
पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः ॥
अर्थात सिन्धु के उद्गम से समुद्र पर्यन्त जो भारत भूमि है उसे जो पितृ – भूमि तथा पुण्य – भूमि मानता है , वह हिन्दू कहलाता है ।
हिन्दुर्दुष्टो न भवति नानार्यों न विदूषकः ।
सद्धर्म -पालको विद्वान् श्रौतधर्मपरायणः ।।
अर्थात हिन्दू न दुर्जन होता है , न अनार्य होता है और न ही निन्दक होता है । वह सद्धर्म का पालन करने वाला, विद्वान और श्रौत – धर्म में निरत होता है।
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जैन धर्म –
जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में प्रथम ऋषभदेव थे । एवं अंतिम कुण्ड ग्राम ( वैशाली – मुजफ्फरपुर ) के राजपरिवार में 599 ई.पू. में जन्में महावीर थे जिनका निर्वाण 527 ई.पू. में पावापुरी ( राजगृह पटना ) में हुआ था ।
- श्वेताम्बर एवं दिगम्बर इनके दो पंथ है।
- अहिंसा , सत्य , अस्तेय , अपरिग्रह , ब्रम्हचर्य , पांच सिद्धांत है ।
- सम्यक् ज्ञान , सम्यक दर्शन , सम्यक् चरित्र , इसके त्रिरत्न हैं।
- द्वादश अंग , उपांग दस प्रकीर्ण घट छेदसूत्र , चार मूल सूत्र , विविध साहित्य एवं धर्म ग्रंथ है ।
यह वेदों की प्रमाणिकता एवं उपनिषद् के ब्रम्हवाद में विश्वास नहीं करते जबकि आत्मा के अमरत्व तथा सभी पदार्थों में जीवन को मानते हैं । इन्होंने वैदिक कर्मकाण्ड का विरोध किया है ।
बौद्ध धर्म –
563 ई . में लुम्बिनी (कपिलवस्तु) में जन्में गौतम बुद्ध इसके प्रवर्तक जिन्हें बोधगया (गया) में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । 483 ई . पू . में कुशी नगर (देवरिया) में इनको निर्वाण (मृत्यु) प्राप्त हुआ ।
बौद्ध धर्म के चार सत्य
- जीवन दु : ख है
- दु : ख का कारण इच्छा एवं पुनर्जन्म का कारण असंतुष्ट इच्छा है
- इच्छा की समाप्ति सर्वोच्च कल्याण है।
- इसकी समाप्ति का मार्ग अष्टांग है ।
- सम्यक् दृष्टि , सम्यक् संकल्प ,सम्यक् वचन , सम्यक् कर्म , सम्यक् आजीव , सम्यक् व्यायाम प्रयत्न ) , सम्यक् स्मृति , सम्यक् समाधि बौद्ध धर्म के आष्टांग है ।
- इसकी विशेषता में वर्ग जनित भेदभाव को अस्वीकारना , लोकभाषा का प्रयोग , कर्म की प्रधानता प्रमुख है ।
- महायान एवं हीनयान दो पंथ है तथा
- जातक एवं त्रिपिटक प्रमुख ग्रंथ है ।
यह वैदिक कर्मकाण्ड विरोधी थे। वेदों की प्रामाणिकता को नहीं मानते थे। अहिंसा एवं परिवर्तनशीलता के समर्थक थे ।
कन्फ्यूशियस –
551 ई.पू. में चीन के लू – प्रान्त में जन्मा कन्फ्यूशियस एक महान दार्शनिक , समाज सुधारक एवं धर्मनेता था । इसके विचारों की चीन की जनता ने धर्म के रूप में अपनाया जो कि पांच कालजयी ग्रंथ में संकलित है ।
- शिष्टाचार , परोपकार , सद्व्यवहार , दूसरों का सम्मान करना , गलती स्वीकारना आदि इस धर्म के प्रमुख तत्व हैं ।
कन्फ्यूशियस की मृत्यु 479 ई.पू. में हुई थी ।
पारसी –
इस का उदय ईरान में 800 ई.पू. के आसपास हुआ था एवं इसके प्रवर्तक जरथुस्त्र थे जिनके उपदेश जेदावेस्ता नामक ग्रंथ में संकलित है।
- आत्मा का अमरत्व एवं कर्म के अनुसार फल इसके दो सिद्धान्त हैं।
- आडम्बर एवं अंधविश्वासों से दूर रहना, चरित्र निर्माण करना, सत्य के प्रति आस्था , अग्नि सूर्य की उपासना प्रमुख उपदेश है ।
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यहूदी –
इस के प्रवर्तक मूसा थे। जो कि 1300 ई.पू. में यहूदियों को मिस्र से फिलीस्तीन लाए। वास्तव में यहूदी प्राचीन काल में मेसोपोटामिया (ईरान) में रहते थे जो बाद में फिलिस्तीन गये एवं 1700 ई.पू. में मिस्र चले गये थे। बाईबिल का पूर्वार्द्ध (ओल्ड टेस्टामेंट) इससे संबंधित है।
- यह एकेश्वरवाद कर्मवाद एवं मसीहाबाद में विश्वास करते हैं ।
- एपो कूफा इनकी धर्म पुस्तक है ।
ईसाई –
इसके संस्थापक जीसस क्राईस्ट थे। जिनका जन्म जेरूसलम के पास बेथलहम में हुआ था । बाईबिल इनका प्रमुख ग्रंथ है पर ईसा उत्तरार्द्ध ( न्यू टेस्टामेंट ) इनसे सम्बन्धित है जो यहूदी धर्म (ओल्ड टेस्टामेंट) का संशोधित रूप है ।
- ईश्वर में अटूट विश्वास एवं चारित्रिक तथा कल्याणकारी गुणों का विकास इसके दो आधार तत्व हैं ।
- कैथोलिक ( परम्परावादी एवं पोप में श्रद्धा रखने वाले ) एवं प्रोटेस्टेंट ( प्रगतिशील एवं आत्म शुद्धि पर बल देने वाले ) इसके दो सम्प्रदाय है ।
प्रोटेस्टेंट शब्द का प्रयोग प्रथमत: मार्टिन लूथर एवं उसके चर्च विरोधी सहयोगियों के लिए किया गया था ।
इस्लाम धर्म-
इस के प्रवर्तक मुहम्मद साहब थे। जिन्होंने तत्कालीन अरब निवासियों को अंधविश्वास एवं धार्मिक आडंबरों से मुक्त करने का संकल्प लिया था । इनका जन्म मक्का में हुआ था एवं 622 ई. में इन्हें रूढ़िवादियों के उग्र विरोध के कारण मदीना जाना पड़ा , फलत: मक्का एवं मदीना इस्लाम धर्म के दो पवित्र तीर्थ स्थल बने ।
- पवित्र धर्म ग्रंथ कुरान शरीफ अल्लाह से मु . साहब को प्राप्त अल्लाह का संदेश है ।
- इस्लाम कर्म एवं आचरण प्रधान धर्म है जो (एकेश्वरवाद) में विश्वास रखता है।
- कल्मा , नमाज , रोजा , जकात , हज इनके पांच पुण्य कर्म हैं ।
यह मनुष्य की समानता एवं भाई – चारे पर आधारित है एवं मूर्ति पूजा का विरोध करता है ।
सिक्ख धर्म –
1469 ई . में तलवंडी (वर्तमान में ननकाना साहिब , पाकिस्तान में) जन्में गुरू नानक को आदि गुरू मानकर उनकी सिखों एवं उपदेशों का पालन करने वाले ही सिक्ख कहलाते हैं । जिनके दसवें एवं अन्तिम गुरू गोविंद सिंह थे । गुरू अंगद ने 16 वीं सदी में गुरूमुखीलिपि चलायी , गुरू अमरदास ने लंगर ( सामूहिक रसोई ) प्रथा शुरू किया , गुरू रामदास ने रामदास पुर ( वर्तमान अमृतसर ) बसाया एवं गुरू अर्जुन देव ने स्वर्ण मंदिर निर्माण कराया एवं 1604 में आदि ग्रंथ लिखा जिसमें गुरू नानक की शिक्षाएँ हैं । यही ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहिब के नाम से जाना जाता है । गुरू गोविंद सिंह ने सिक्खों को खालसा नाम दिया एवं केश , कंघा , कच्छा , कृपाण कड़ा धारण करने की प्रथा शुरू की ।
- यह धर्म एकेश्वरवाद में विश्वास करता है और
- जाति – प्रथा , छुआ – छूत , अन्धविश्वास एवं कर्मकांड , मद्यपान तथा धुम्रपान का विरोध करता है।
- करूणा , संतोष , संयम , ईमान , प्रेम , सहिष्णुता , सत्कर्म , भक्ति आदि इस धर्म के प्रमुख अंग है
गुरू हरगोविंद ने इसे सैनिक जाति बनाया एवं इस्लाम स्वीकार न करने पर गुरू तेगबहादुर की हत्या औरंगजेब ने 1675 ई. में करा दी।
धर्मो के पूजा स्थल और उनके ग्रंथ
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