सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद : भारतीय न्यायपालिका की नींव
  • Post author:
  • Post last modified:December 26, 2024

 सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद: भारतीय न्यायपालिका की नींव

भारतीय संविधान में सुप्रीम कोर्ट के और उससे संबंधित अनुच्छेद 124 से 147 तक हैं। ये अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट की संरचना, कार्य, न्यायाधीशों की नियुक्ति, उनके वेतन, भत्ते, कार्यकाल, और उनके पद के निर्वहन से संबंधित विभिन्न नियमों को स्पष्ट करते है।

भारतीय संविधान में सुप्रीम कोर्ट से संबंधित अनुच्छेदों का उल्लेख मुख्यतः अनुच्छेद 124 से अनुच्छेद 147 तक किया गया है। नीचे प्रमुख अनुच्छेदों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद सूची

सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद

अनुच्छेद 124

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 124 भारत में सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के गठन और उसकी संरचना से संबंधित है। इसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. सुप्रीम कोर्ट का गठन:
    अनुच्छेद 124 के तहत, भारत का सुप्रीम कोर्ट स्थापित किया गया है।
  • संरचना:
    • सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) और अन्य न्यायाधीश होते हैं।
    • न्यायाधीशों की संख्या संसद द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जा सकती है।
  • न्यायाधीशों की नियुक्ति:
    • भारत के राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
    • मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति परंपरागत रूप से वरिष्ठतम न्यायाधीश को बनाया जाता है।
  • योग्यता:
    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनने के लिए व्यक्ति को निम्नलिखित में से किसी एक मानदंड को पूरा करना होगा:

    • वह उच्च न्यायालय का न्यायाधीश कम से कम 5 वर्षों के लिए रहा हो।
    • वह किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 10 वर्षों तक वकील रहा हो।
    • वह राष्ट्रपति की राय में एक विशिष्ट विधि विशेषज्ञ हो।
  • कार्यकाल:
    • सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद पर बने रह सकते हैं।
    • न्यायाधीशों को महाभियोग की प्रक्रिया के माध्यम से पद से हटाया जा सकता है।
  • स्वतंत्रता:
    • न्यायाधीशों की नियुक्ति, कार्यकाल और वेतन संविधान द्वारा संरक्षित हैं, जिससे उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके।

यह अनुच्छेद भारतीय न्यायपालिका के मूलभूत ढांचे को स्थापित करता है और उसकी कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करता है।

अनुच्छेद 125

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 125 भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्तों और अन्य सुविधाओं से संबंधित है। इसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:

  1. न्यायाधीशों का वेतन और भत्ता
    भारत के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते और अन्य लाभ संसद द्वारा तय किए जाएंगे।
  • पद पर बने रहने तक वेतन में कमी नहीं
    किसी भी न्यायाधीश के वेतन और भत्तों में, जब तक वे अपने पद पर बने रहते हैं, कमी नहीं की जा सकती, सिवाय वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) के दौरान।

यह अनुच्छेद न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा सुनिश्चित करता है, ताकि न्यायाधीश बिना किसी दबाव या पक्षपात के निष्पक्ष निर्णय दे सकें।

अनुच्छेद 126

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 126 उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से संबंधित है। इसका प्रावधान यह है कि:

  • जब भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त होता है,
  • या जब मुख्य न्यायाधीश अस्थायी रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ होते हैं,

तो भारत के राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकते हैं।

इसका उद्देश्य न्यायालय के कार्यों को निर्बाध रूप से जारी रखना सुनिश्चित करना है।

अनुच्छेद 127

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 127 भारतीय सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। यह अनुच्छेद विशेष परिस्थितियों में किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय का अस्थायी न्यायाधीश नियुक्त करने का प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 127:

यदि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कमी हो और मुख्य न्यायाधीश की राय में कार्य कुशलता बनाए रखने के लिए अतिरिक्त न्यायाधीश की आवश्यकता हो, तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति से अनुरोध कर सकते हैं कि वे किसी उच्च न्यायालय के उपयुक्त न्यायाधीश को अस्थायी रूप से सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त करें।

इस अनुच्छेद के मुख्य बिंदु:

  1. मुख्य न्यायाधीश की सहमति आवश्यक: मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर ही राष्ट्रपति यह नियुक्ति करते हैं।
  2. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति: संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति अनिवार्य होती है।
  3. अस्थायी अवधि: यह नियुक्ति अस्थायी होती है और उस अवधि तक रहती है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की आवश्यकता बनी रहती है।

यह प्रावधान न्यायपालिका की कार्यकुशलता और सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों के निपटारे को सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।

अनुच्छेद 128

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 128 भारतीय उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है। यह अनुच्छेद न्यायपालिका की कार्यवाही को सुचारु बनाए रखने और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी को पूरा करने में सहायक होता है।

अनुच्छेद 128 में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (CJI) के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकते हैं। यह नियुक्ति आमतौर पर अस्थायी होती है और किसी विशेष मामले में सहायता देने के लिए की जाती है।

अनुच्छेद 129

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 129 उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता और अवमानना (contempt) से संबंधित है। इस अनुच्छेद के अनुसार, उच्चतम न्यायालय को संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत अवमानना मामलों को देखन और सुनने का अधिकार है। इसे इस प्रकार व्यक्त किया गया है:

“उच्चतम न्यायालय अपनी न्यायिक शक्तियों का उपयोग करते हुए किसी भी व्यक्ति या संस्था के द्वारा किए गए अवमानना कार्य को दंडित कर सकता है।”

यह अनुच्छेद अदालतों के सम्मान और न्यायिक प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए महत्वपूर्ण है।

अनुच्छेद 130

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 130 भारतीय सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) की स्थिति और अधिकारों से संबंधित है। इस अनुच्छेद में कहा गया है:

“भारत का सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली में स्थित होगा।”

इसका मतलब है कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यालय दिल्ली में होगा, और इसका स्थान निर्धारित किया गया है।

अनुच्छेद 131

भारतीय दंड संहिता (IPC) का अनुच्छेद 131 देशद्रोह के मामलों से संबंधित है। इस अनुच्छेद के तहत, यदि कोई व्यक्ति भारतीय राज्य के खिलाफ युद्ध करने के उद्देश्य से किसी प्रकार की साजिश, षड्यंत्र या योजना बनाता है या उसमें शामिल होता है, तो उसे सजा का भागी बनाया जा सकता है। इस अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर उसे आजीवन कारावास या 3 से 10 वर्षों तक की जेल और जुर्माना लगाया जा सकता है।

अनुच्छेद 131 का उद्देश्य भारत की संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा करना है और इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कठोर प्रावधान प्रदान करता है।

अनुच्छेद 131 A

सुप्रीम कोर्ड के अनुच्छेद 131 A भारतीय संविधान का एक प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को अधिकार प्रदान करता है कि वह किसी भी राज्य के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों को निपटाने का कार्य करे। यह अनुच्छेद मुख्य रूप से केंद्र और राज्यों के बीच या दो राज्यों के बीच कानूनी विवादों के निपटारे से संबंधित है।

इसका उद्देश संविधान में किसी राज्य के अधिकारों का उल्लंघन होने पर न्यायिक हस्तक्षेप करना है। अनुच्छेद 131-A की व्याख्या भारतीय न्यायपालिका द्वारा की जाती है, और यह भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य सरकारों) से संबंधित है।

इसमें यह कहा गया है कि यदि दो राज्यों के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो उसे केवल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुलझाया जाएगा।

अनुच्छेद 132

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 132 में उच्चतम न्यायालय में अपील की प्रक्रिया को निर्दिष्ट किया गया है। इसके अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को किसी उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले से संबंधित संवैधानिक सवालों पर विवाद हो, तो वह व्यक्ति उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है।

अनुच्छेद 132 के तहत निम्नलिखित प्रमुख बिंदु हैं:

  1. यदि किसी मामले में उच्च न्यायालय ने किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया है और इसमें संवैधानिक मुद्दा जुड़ा हुआ है, तो वह व्यक्ति उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है।
  2. उच्चतम न्यायालय यह तय करेगा कि क्या यह अपील स्वीकार करने योग्य है या नहीं।
  3. यह अपील तभी स्वीकार की जाएगी जब वह न्यायालय यह समझे कि अपील में कोई महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दा है जो संविधान से संबंधित हो।

इस अनुच्छेद का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संविधान की सही व्याख्या और अनुपालन हो, और इसके तहत न्यायालयों द्वारा किए गए फैसलों की समीक्षा की जा सके।

अनुच्छेद 133

भारत के संविधान का अनुच्छेद 133 न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र और अपील से संबंधित है। यह अनुच्छेद उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में दी गई अपीलों की प्रक्रियाओं को निर्दिष्ट करता है, विशेष रूप से उन मामलों में जो नागरिक मुद्दों और दंडात्मक निर्णयों से संबंधित हैं।

अनुच्छेद 133 के अनुसार, किसी भी उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए अंतिम आदेश या निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है, बशर्ते कि:

  1. मामला उच्च न्यायालय में अंतिम रूप से निर्णयित हुआ हो।
  2. निर्णय से संबंधित कोई महत्वपूर्ण कानूनी या संवैधानिक मुद्दा हो।
  3. कोई अन्य प्रासंगिक परिस्थिति हो, जो अपील के लिए पर्याप्त हो।

यह अनुच्छेद नागरिक मामलों में अपील के लिए सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र की स्थापना करता है और न्यायिक प्रणाली में कानूनी समता और न्याय की सुनिश्चितता करता है।

अनुच्छेद 134

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का अनुच्छेद 134 (Section 134) “अवकाश प्राप्त न्यायालय के आदेशों की पालना” (Orders of courts not to be disregarded) के बारे में है। इसमें कहा गया है कि किसी भी न्यायालय का आदेश, चाहे वह न्यायिक या प्रशासनिक हो, उसे बिना किसी कारण के नहीं टाला जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या अवहेलना करते हुए उस आदेश को नहीं मानता, तो उसे कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।

यह अनुच्छेद न्यायालयों के आदेशों की महत्ता और उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए है।

अनुच्छेद 134 A

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code, IPC) की धारा 134-A (Section 134-A) का संबंध “सत्यापन और परीक्षण की प्रक्रिया से” है, और यह इस बात से जुड़ी होती है कि अगर कोई अपराधी या संदिग्ध व्यक्ति किसी अपराध के बारे में जानकारी देता है या अपराध स्थल के बारे में जानकारी देता है, तो उसे पुलिस द्वारा कैसे प्रस्तुत किया जाता है।

यह धारा विशेष रूप से संदिग्धों से साक्षात्कार के समय, जब वे अपना बयान पुलिस को दे रहे होते हैं, तो उस प्रक्रिया को वैध बनाती है।

अनुच्छेद 135

अनुच्छेद 135: सुप्रीम कोर्ट के यह अनुच्छेद उन मामलों से संबंधित है जहाँ सुप्रीम कोर्ट को उच्च न्यायालयों के आदेशों और निर्णयों की समीक्षा का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 135 यह निर्धारित करता है कि भारतीय संसद, उच्च न्यायालयों से जुड़ी कोई भी व्यवस्था और नियमों के तहत सुप्रीम कोर्ट अपनी अधिकारिता का प्रयोग कर सकता है। यह एक तरह से सुप्रीम कोर्ट को अधिकृत करता है कि वह अपने क्षेत्राधिकार के तहत कुछ मामलों पर अंतिम निर्णय दे सकता है।

इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सर्वोच्च न्यायालय की नीतियां और निर्णय देशभर में प्रभावी रहें, और अदालतों के निर्णयों की कोई असंगति न हो।

यहां, अनुच्छेद 135 के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र और कार्यप्रणाली को स्पष्ट किया गया है।

अनुच्छेद 136

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 136 सर्वोच्च न्यायालय को अपील की स्वीकृति देने का अधिकार प्रदान करता है। इसके तहत, सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह किसी भी उच्च न्यायालय या अन्य न्यायिक प्राधिकरण से किसी मामले की अपील पर विचार करने के लिए स्वीकृति दे सके। यह अपील केवल सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति से ही स्वीकार की जा सकती है, और इसका उद्देश्य उन मामलों को सुनना है जिनमें किसी महत्वपूर्ण कानूनी या संविधानिक प्रश्न का समाधान करना हो।

संविधान के अनुच्छेद 136 में यह कहा गया है:

136. अपील की अनुमति।
सर्वोच्च न्यायालय के पास यह अधिकार है कि वह किसी उच्च न्यायालय, या किसी अन्य न्यायिक प्राधिकरण के आदेश, निर्णय, या निर्णयों के विरुद्ध अपील करने की अनुमति दे सके, चाहे वह मामला कानूनी या तथ्यों का हो।”

इस अनुच्छेद का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सर्वोच्च न्यायालय के पास व्यापक अधिकार हो, जिससे वह उन मामलों को सुन सके जिनमें न्याय के पालन के लिए आवश्यक हो।

अनुच्छेद 137

अनुच्छेद 137 भारतीय संविधान का वह अनुच्छेद है जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह अपनी पूर्ववर्ती निर्णयों की पुनर्विचार (Review) कर सकता है। यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में, जब उचित समझे, अपने पिछले निर्णयों को फिर से देख और बदलने का अधिकार देता है।

इस अनुच्छेद के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पुनः विचारित किया जा सकता है यदि न्यायालय को लगता है कि वह निर्णय गलत था या परिस्थितियां बदल चुकी हैं। पुनर्विचार की याचिका को “रिव्यू पेटीशन” कहा जाता है और यह एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से दाखिल की जाती है।

अनुच्छेद 138

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 138 भारतीय सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) से संबंधित है और इसकी व्यवस्था है कि राष्ट्रपति, राज्यपाल, या अन्य सक्षम प्राधिकृत व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय से किसी मामले के सम्बन्ध में निर्देश प्राप्त करने का अधिकार है।

इस अनुच्छेद के अंतर्गत, सर्वोच्च न्यायालय को विशेष परिस्थितियों में संविधान के अनुरूप राज्यों के किसी आदेश, कानूनी प्राधिकरण, या कानून के तहत मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद 138 में यह भी उल्लेख किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय को उपयुक्त आदेश, निर्देश या निर्णय जारी करने का अधिकार होगा ताकि न्यायिक व्यवस्था में सुधार और संविधान के उद्देश्यों का पालन किया जा सके।

अनुच्छेद 139

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 139 भारतीय सुप्रीम कोर्ट को कुछ विशेष प्रकार के मामलों को अपने पास लेने की शक्ति प्रदान करता है। इस अनुच्छेद के तहत, सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह उच्च न्यायालयों द्वारा निर्णयित कुछ प्रकार के मामलों को अपने पास ले सकता है, जब वह यह महसूस करता है कि उस मामले में किसी महत्वपूर्ण कानूनी या संवैधानिक मुद्दे का समाधान आवश्यक है या उस मामले का निर्णय विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।

यह अनुच्छेद कोर्ट को अपीलीय अधिकार प्रदान करता है, जिससे वह ऐसे मामलों को अपने पास ले सकता है जो विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे कि राष्ट्रीय महत्व के मामलों में न्याय देने के लिए। इसे सुप्रीम कोर्ट की “पैटिशनिंग पावर” भी कहा जाता है।

अनुच्छेद 139 A

सुप्रीम कोर्ट का अनुच्छेद 139A भारतीय संविधान का एक प्रावधान है, जो सर्वोच्च न्यायालय को उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों में समीक्षा करने का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 139A का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायपालिका के निर्णयों में निरंतरता और समानता बनी रहे, और यदि किसी मामले में कोई कानूनी मुद्दा हो जो अन्य उच्च न्यायालयों के फैसलों से भिन्न हो, तो इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समाधान किया जा सके।

इस अनुच्छेद के तहत, सर्वोच्च न्यायालय के पास अधिकार होता है कि वह किसी विशेष प्रकार के मामलों को सीधे अपनी सुनवाई के लिए ले सके। यह प्रावधान उन मामलों में लागू होता है जब उच्च न्यायालयों के निर्णयों में कोई महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उठे और देशभर में एक समान निर्णय की आवश्यकता हो।

अनुच्छेद 139A के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति मिलती है कि वह उच्च न्यायालयों से संबंधित किसी विशेष मामले को अपने पास ला सके और उस पर निर्णय दे सके, ताकि कानून का एक समान और स्पष्ट रूप से पालन हो।

अनुच्छेद 140

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 140 सुप्रीम कोर्ट के बारे में है और इसे “सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और निर्णयों के प्रभाव” के रूप में समझा जा सकता है। यह अनुच्छेद उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह किसी मामले में अपने आदेशों और निर्णयों की प्रक्रिया को सुधारने, संशोधित करने या फिर से विचार करने के लिए निर्देश दे सकता है।

इस अनुच्छेद के अनुसार, यदि सुप्रीम कोर्ट किसी मामले में कुछ निर्देश देना चाहे या अपने पूर्व के निर्णय में बदलाव करना चाहे, तो वह ऐसा कर सकता है, बशर्ते यह संविधान के अंतर्गत आवश्यक हो। यह अनुच्छेद न्यायालय को न्यायिक प्रक्रिया की प्रभावशीलता बनाए रखने में मदद करता है और उच्चतम न्यायालय की शक्तियों को सुनिश्चित करता है।

अनुच्छेद 141

भारत के संविधान का अनुच्छेद 141 भारतीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को कानूनी रूप से बाध्यकारी (binding) बनाता है। इसके तहत, सुप्रीम कोर्ट का प्रत्येक निर्णय पूरे देश में लागू होता है और उसे सभी न्यायालयों द्वारा पालन करना अनिवार्य होता है। इसका उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दी गई व्याख्याओं और निर्णयों को कानून के रूप में स्वीकार करना और सुनिश्चित करना है कि न्याय का एक समान प्रवाह पूरे देश में हो।

इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को न केवल उच्च न्यायालयों, बल्कि अन्य निचली अदालतों द्वारा भी अनुसरण करना होता है, जब तक कि वे फैसले सुप्रीम कोर्ट में वापस न बदले जाएं या कोई नया निर्णय न दिया जाए।

अनुच्छेद 142

भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत, सुप्रीम कोर्ट को न्यायपालिका के रूप में अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए किसी भी मामले में निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष आदेश देने का अधिकार प्राप्त है। इसे “न्यायिक अधिकार का विस्तारित उपाय” भी कहा जा सकता है। इस अनुच्छेद के तहत, सुप्रीम कोर्ट उन मामलों में आदेश जारी कर सकता है, जहां संविधान या कानून के तहत कोई विशेष प्रावधान उपलब्ध नहीं हो।

मुख्य रूप से अनुच्छेद 142 के द्वारा सुप्रीम कोर्ट को किसी भी निर्णय को लागू करने के लिए आवश्यक आदेश देने की शक्ति प्राप्त होती है, ताकि न्याय की प्रक्रिया पूरी हो सके, भले ही उस पर अन्य कानूनी पंक्तियाँ लागू न हो रही हों। उदाहरण स्वरूप, अदालत किसी मामले में अतिरिक्त आदेश देकर न्याय की स्थापना कर सकती है।

इसकी विशेषता यह है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश संविधान के अंतर्गत अंतिम होता है, और इसका पालन सभी पक्षों द्वारा किया जाना आवश्यक है।

अनुच्छेद 143

भारत के संविधान का अनुच्छेद 143 सुप्रीम कोर्ट को विशेष प्रकार की सलाह देने का अधिकार प्रदान करता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी प्रश्न पर, जो संविधान के प्रविधान या अन्य कानूनी मुद्दों से संबंधित हो, सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने का अधिकार होता है।

अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति किसी भी महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर, जो सरकार के लिए दिक्कतें पैदा कर सकता है, सुप्रीम कोर्ट से सिफारिश या सलाह ले सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, क्योंकि इसका उद्देश्य सुनिश्चित करना है कि संवैधानिक या कानूनी मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट का मार्गदर्शन लिया जाए, जिससे प्रशासन में सही निर्णय लिया जा सके।

इसमें विशेष रूप से यह प्रावधान है कि सुप्रीम कोर्ट की सलाह बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन यह सरकार को निर्णय लेने में मदद करती है।

अनुच्छेद 144

भारत के संविधान के अनुच्छेद 144 में यह प्रावधान है कि सभी सरकारी प्राधिकरण और अधिकारी, जिनके पास न्यायिक आदेशों को लागू करने का कर्तव्य है, को सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करना होगा।

इस अनुच्छेद का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों और आदेशों का पालन सभी सरकारी अधिकारियों द्वारा किया जाए, और किसी भी प्रकार की अवज्ञा या अनुपालन की कमी न हो।

संक्षेप में, अनुच्छेद 144 का उद्दीपन यह है कि न्यायपालिका के आदेशों को प्रशासनिक और अन्य सरकारी अधिकारियों द्वारा स्वीकार और लागू किया जाए।

अनुच्छेद 144 A (निरस्त)

अनुच्छेद 144A संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से जोड़ा गया था।
लेकिन, यह अनुच्छेद लंबे समय तक नहीं रहा। संविधान (तेतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 के माध्यम से इसे हटा दिया गया था। इसका मतलब है कि वर्तमान में भारत के संविधान में अनुच्छेद 144A नहीं है।

अनुच्छेद 144A क्या था?
अनुच्छेद 144A किसी भी केंद्र या राज्य कानून की संवैधानिक वैधता का निर्धारण करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कम से कम सात न्यायाधीशों के बैठने का प्रावधान करता था। इसके अलावा, ऐसे किसी भी कानून को अमान्य घोषित करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती थी।

इसे क्यों हटाया गया?
अनुच्छेद 144A को इसलिए हटाया गया क्योंकि इसे लोकतंत्र के लिए एक खतरा माना जाता था। यह अनुच्छेद सरकार को संसद द्वारा पारित किए गए कानूनों को चुनौती देने से रोकता था।

अनुच्छेद 145

सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 145 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट के नियमों और प्रक्रिया से संबंधित है। इसके तहत, सुप्रीम कोर्ट को अपने कार्य संचालन के लिए नियम बनाने की शक्ति दी जाती है। यह अनुच्छेद कोर्ट के प्रक्रिया और कार्यप्रणाली को सुव्यवस्थित करने के लिए आवश्यक नियमों के निर्माण की अनुमति देता है।

इस अनुच्छेद के तहत, सुप्रीम कोर्ट अपने नियमों को समय-समय पर संशोधित कर सकता है, ताकि न्यायिक कार्यों को सुचारु रूप से चलाया जा सके। इसके अलावा, यह अनुच्छेद यह भी तय करता है कि किसी भी मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई की प्रक्रिया कैसी होगी, और किस प्रकार से न्यायालय के आदेश और निर्णयों को लागू किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 145 का मुख्य उद्देश्य न्यायालय के कार्यों को पारदर्शिता और न्यायपूर्ण तरीके से चलाना है।

अनुच्छेद 146

सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 146 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कर्मचारियों और अधिकारियों के नियुक्ति, शक्तियाँ, वेतन, और कार्यों को निर्धारित करता है। इसे दो प्रमुख हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. अनुच्छेद 146(1): इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और अन्य न्यायधीशों के अलावा, अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों की नियुक्ति और उनके कार्यों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा। इसके अंतर्गत जो भी अधिकारी नियुक्त होंगे, उनकी कार्य व्यवस्था और वेतन का निर्धारण किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 146(2): इसके अनुसार, मुख्य न्यायधीश और अन्य न्यायधीशों के अलावा, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा शर्तों और वेतन का निर्धारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया जाएगा।

इस अनुच्छेद का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक कार्यों को सुव्यवस्थित और प्रभावी ढंग से चलाने के लिए आवश्यक कर्मचारियों और अधिकारियों की नियुक्ति और उनके कार्यों का निर्धारण करना है।

अनुच्छेद 147

भारत के संविधान के अनुच्छेद 147 का संबंध सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों और आदेशों से है। यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों और आदेशों के व्याख्या और स्पष्टीकरण से संबंधित है।

इसके अनुसार, यदि सुप्रीम कोर्ट का कोई आदेश या निर्णय किसी राज्य के मामले में अस्पष्ट हो या उसका सही अर्थ समझने में कठिनाई हो, तो राष्ट्रपति या सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इसे स्पष्ट किया जा सकता है। इसका उद्देश्य कोर्ट के आदेशों को सही तरीके से लागू करना और किसी भी प्रकार की असमंजस को दूर करना है।

संक्षेप में, अनुच्छेद 147 सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों या आदेशों के स्पष्टीकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।

इसे भी देखे :

इन अनुच्छेदों के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का अधिकार, कार्यक्षेत्र, और उसकी संरचना को निर्धारित किया गया है।

Leave a Reply

Amit Yadav

दोस्तों नमस्कार ! हम कोशिश करते हैं कि आप जो चाह रहे है उसे बेहतर करने में अपनी क्षमता भर योगदान दे सके। प्रेणना लेने के लिए कही दूर जाने की जरुरत नहीं हैं, जीवन के यह छोटे-छोटे सूत्र आपके सामने प्रस्तुत है...About Us || Contact Us