कैसे बात करे हमारे वाणी कैसी होनी चाहिए
वाणी कैसी होनी चाहिए? हमें कैसी वाणी बोलनी चाहिए? वाणी कैसी होनी चाहिए? मीठी वाणी कैसे बोली जाती है? हमें मीठी वाणी क्यों बोलना चाहिए? हमें कैसी वाणी बोलनी चाहिए? वाणी को मधुर करने के उपाय? हमारी बोली मीठी क्यों होनी चाहिए? वाणी का प्रयोग? इन सभी सवालो का जवाब आज हम इस पोस्ट में जानने की कोशिश करेंगे तो चलिए जानते है कि हमे कैसे बोलना चाहिए। अपने बोली से अपने बोलने के तरीके से सामने वाला को कैसे इम्प्रेस करे और बातचीत के जरिये कैसे अपने व्यक्तित्व को निखारे।
” वाणी में इतनी शक्ति होती है कि कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है। “
दुसरो से कैसे बात करना चाहिए?
मनुष्य का भाषा पर विशेष अधिकार है। भाषा के कारण ही मनुष्य इतनी उन्नति कर सका है। हमारी वाणी में मधुरता का जितना अधिक अंश होगा हम उतने ही दूसरों के प्रिय बन सकते हैं। हमारी बोली में माधुर्य के साथ – साथ शिष्टता भी होनी चाहिए। अगर हम मृदु वचन बोलेंगे तो इनका प्रभाव दूसरे व्यक्ति पर अच्छा पड़ेगा।
मीठी वाणी जीवन के सौंदर्य को निखार देती है और व्यक्तित्व की अनेक कमियों को छिपा देती है। हमारी वाणी ही हमारी शिक्षा – दीक्षा, परंपरा और मर्यादा का परिचय देती है।कटु वाणी आदमी को रुष्ट कर सकती है। वाणी के द्वारा कहे गए कठोर वचन दीर्घकाल के लिए भय और दुश्मनी का कारण बन जाते हैं।वाणी किसी भी स्थिति में कटु एवं अशिष्ट नहीं होनी चाहिए ।
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मीठी वाणी कैसे बोले?
बाणों से बींधा हुआ अथवा फरसे से कटा हुआ वन भी अंकुरित हो जाता है, किन्तु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ घाव नहीं भरता। जो व्यक्ति उपयोगी और अनुपयोगी का अन्तर समझ लेते हैं, वे कभी व्यर्थ शब्द व्यक्त नहीं करते। कठोर शब्दों में कहे गए हितकर वाक्यों को सुनकर भी मनुष्य रुष्ट हो जाता है।
कम बोलने से मन की शक्ति बढ़ती है। इसीलिए हमेशा कम बोले और मधुर बोले, मधुर वचन सुनने में भी और कहने में भी प्रसन्नता देते हैं। लेकिन मधुर वचन अहंकार त्याग से ही सम्भव है। पशु न बोलने के कारण और मनुष्य बोलने के कारण कष्ट उठाते हैं। कोमल उत्तर से क्रोध शान्त हो जाता है। और कटु वचन से उठता है। कठोर किन्तु हित की बात कहने वाले लोग थोड़े ही होते हैं।
सही शब्दो का इस्तेमाल करे
शब्द से ही सृष्टि का उदगम् है और उसी में सृष्टि का विनाश और पुनः शब्द से ही सृष्टि की नई रचना होती है इसलिए हमेेशा अपने शब्दों पर संयम रख कर ही बोलना चाहिए। उचित समय पर कही गई बात ज्यादा वजन रखती है । नीति वचन झूठ बोलना तलवार के घाव के समान है, घाव भर जाएगा, किन्तु उसका निशान सदा बना रहेगा ।गाली से प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती दोनों ओर अपमान होता है।
हृदय केवल हृदय की बात कर सकता है क्योंकि उसके पास वाणी नहीं होती। वाणी से भी वाणों की वर्षा होती है । जिस पर इसकी बौछारें पड़ती, वह दिन – रात दुखी रहता है । बोलना शिष्टाचार है और शिष्टाचार में सच और ईमानदारी होना आवश्यक है। कठोर वचन बुरा है क्योंकि तन – मन को जला देता है और मृदुल वचन अमृत वर्षा के समान है। इस दुनिया में सबसे ज्यादा कमजोर चीज, कठोर बात है ।
हमेशा सत्य और प्रिय बोले
वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विगन करता है । सत्य बोलें, प्रिय बोलें, किन्तु अप्रिय सत्य न बोलें। किसी साथ व्यर्थ वैर और शुष्क विवाद न करें। जो अपने मुख और जिह्वा पर संयम रखता है, वह अपनी आत्मा को सन्तापों से बचाता है। मौन से अच्छा भाषण दूसरा नहीं। फिर भी बोलना पड़े तो जहाँ एक शब्द से काम चलता हो, वहाँ दूसरा शब्द न बोलें। जो इंसान तोलकर नहीं बोलता, उसे सख्त बातें सुननी पड़ती हैं।
वाणी कैसी बोलनी चाहिए?
जब मन और वाणी एक होकर कोई चीज माँगते हैं, तब उस प्रार्थना का फल अवश्य मिलता है। अगर झूठ बोलने से किसी की जान बचती है तो झूठ बोलना पाप नहीं हैं। लेकिन याद रखे झूठा वादा करने से विनम्र इंकार करना अच्छा है । हमेशा सबकी बात ध्यान से सुनो परन्तु अपनी सलाह केवल थोड़े ही मनुष्यों को दो। क्योंकि प्रत्येक स्थान और समय बोलने के योग्य नहीं होता हैं। कभी कभी मौन वाणी से ज्यादा प्रभावी सिद्ध होता।
जहाँ मनुष्य की जिह्वा बोलने में असमर्थ हो जाती है , वहाँ पत्थर बोलना प्रारम्भ कर देते हैं। मौन उस अज्ञानी के लिए आभूषण है जो ज्ञानियों की सभा में जा बैठा है। नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य का आभूषण है। शब्द बड़ी साधना से उठ पाते हैं, उन्हें गिराने की चेष्टा नहीं होनी चाहिए । किसी से बात करते समय अपनी वाणी पर नियंत्रित रखना अति आवश्यक है।
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दोस्तों आपने अभी देखा कि वाणी कैसे होनी चाहिए, दूसरों से कैसे बात करनी चाहिए, किस प्रकार बात करके हम अपनी प्रतिष्ठा को और बढ़ा सकते हैं तो इस पोस्ट को अपने दोस्त यारों के साथ शेयर जरूर करे और आपको कैसे लगा हमे कॉमेंट करके बताए। धन्यवाद!