भारत की भगौलिक स्थिति
संसार की प्राचीन एवं महान सभ्यता में भारतीय संस्कृति और सभ्यता बेमिसाल है। भारत की भूमि उत्तर में हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से लेकर दक्षिण के ऊष्णकटिबंधीय सघन वनों तक, पूर्व में उपजाऊ ब्रह्मपुत्र घाटी से लेकर पश्चिम में थार के मरूस्थल तक 32,87,2631 वर्ग कि.मी. में फैला हुआ है। विश्व के इस सातवें विशालतम् देश को पर्वत तथा समुद्र शेष एशिया से अलग करते हैं, जिससे भारत की अलग भगौलिक स्थिति है। इसके उत्तर में महान हिमालय पर्वत है , जहां से यह दक्षिण में बढ़ता हुआ कर्क रेखा तक जाकर , पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर के बीच हिंद महासागर से जा मिलता है ।
भारत की भगौलिक स्थिति की बात करे तो यंहा की स्थलाकृति सबसे प्राचीन भू-भाग गोंडवाना भूमि का एक हिस्सा थी। इसकी मुख्य भूमि 804 ” और 3706 ” उत्तरी अक्षांश और 6807 ” और 97025 ” पूर्वी देशांतर के बीच फैली हुई है । इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 कि . मी . और पूर्व से पश्चिम तक 2,933 कि .हैं इसकी भूमि सीमा लगभग 15,200 कि.मी. है। मुख्य भूमि, लक्षद्वीप समूह और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के समुद्र-तट की कुल लंबाई 7,516.6 कि.मी. है।
भारत की भगौलिक क्षेत्र का प्राकृतिक विभाजन
मुख्य भूमि चार भागो में बंटी है –
- विस्तृत पर्वतीय प्रदेश,
- सिंधु मैदान,
- रेगिस्तान
- दक्षणीय प्रायद्वीप,
इसके अलावा द्वीप समूह के क्षेत्र हैं –
- हिमालय पर्वत श्रृंखला
- उत्तरी मैदान
- प्रायद्वीप पठार भारतीय
- मरुस्थल
- तटीय मैदान
- द्वीप समूह
हिमालय पर्वत
- भारत की सीमा पर विस्तृत हिमालय वलित पर्वत श्रंखला है, पूर्व में यह टेथिस सागर था।
- हिमालय की उत्पत्ति प्लेट विवर्तनिकी (प्लेट टेक्टानिक्स) से हुई हैं।
- देशांतरीय विस्तार के साथ हिमालय को तीन भागो में बाँट सकते है।
- हिमालय पर्वत श्रृंखला पश्चिम-पूर्व दिशा में सिंधु से लेकर ब्रम्हपुत्र तक फैली है।
- हिमालय विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है।
- सबसे उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला को महँ या आतंरिक हिमालय या हिमाद्रि कहते है, इसमें हिमालय के सभी मुख्य शिखर हैं।
- हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित श्रृंखला हिमाचल या निम्न हिमालय के नाम से जानी जाती हैं, इसमें पीर पंजाल श्रृंखला सबसे लम्बी और महत्वपूर्ण श्रृंखला है, इसी श्रृंखला में कश्मीर घाटी तथ हिमचाल के कांगड़ा एवं कुल्लू घांटियाँ स्थित हैं। यह पहाड़ी नगरों के लिए जाना जाता हैं।
- हिमालय की सबसे बहरी श्रंखला को शिवालिक कहा जाता हैं
- निम्न हिमालय तथा शिवालिक के बिच में स्थित लंबवत घाटी को दून के नाम से जाना जाता हैं,
- कुछ प्रसिद्धि दून है- देहरादून, कोटलीदुन एवं पाटलीदुन।
- सतलुज तथ काली नदियों के बिच स्थित हिमालय के भाग को कुमाऊँ हिमालय कहा जाता हैं।
भारत के प्रमुख दर्रे
हिमालय अधिक ऊंचाई के कारण आना जाना केवल कुछ ही दर्रो से हो पता हैं, जिनमे मुख्य हैं-
- जोजिला – जम्मू-कश्मीर
- पीर पंजाल – जम्मू-कश्मीर
- शिपकी ला – हिमाचल
- लिपुलेख – उत्तरांचल
- खैबर – पाकिस्तान
- बोमडिला – अरुणांचल प्रदेश
- नाथुला – सिक्किम
भारत-तिब्बत मुख्य व्यापार मार्ग पर चुम्बी घाटी से होते हुए जेलप-ला और नाथु-ला दर्रे हैं।
हिमालय के शिखर
- माउन्ट एवरेस्ट नेपाल ( 8848 मीटर )
- गॉडविन ऑस्टिन के-2 ( 8611 मीटर )
- कंचनजंगा भारत ( 8598 मीटर )
- धौलागिरी नेपाल ( 8172 मीटर )
- नंगा पर्वत भारत (8126 मीटर )
- नंदा देवी भारत ( 7817 मीटर )
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भारत के उत्तरी मैदान
- तीन प्रमुख नदी प्रणालिओं- सिंधु, गनगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों हैं, इसका निर्माण जलोढ़ मृदा से हुआ हैं।
- उत्तरी मैदान तीन उपवर्गों विभाजित है-
- पंजाब का मैदान
- गंगा का मैदान
- ब्रह्मपुत्र का मैदान
- ये विशालतम सपाट कछारी विस्तार। है। दिल्ली में यमुना नदी और बंगाल की खाड़ी के बिच लगभग 1,600 कि.मी. की दूरी है जिसमें केवल 200 मी. ढलान हैं।
- आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागो में बनता जाता है-
- नदियों के निर्माण वाले ‘भाबर ‘
- सबसे विशालतम भाग पुराने जलोढ़ से बना ‘ भांगर ‘
- नाम तथा क्षेत्र ‘ तराई ‘
- बाढ़ वाले मैदानों के नए जलोढ़ ‘ खादर ‘ जो उपजाऊ तथा गहन खेती के लिए आदर्श है।
भारत के प्राद्वीपीय पठार
इसके दो मुख्य भाग हैं –
- मध्य उच्चभूमि
- दक्कन का पठार
भारत के मध्य उच्चभूमि
नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का भाग जो की मालवा के पठार अघिकतर भागो पर फैला है, इसमें बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड तथा छोटा नागपुर पठार शामिल हैं।
दक्कन का पठार
- त्रिभुजाकार भुभाग हैं, जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित हैं। उत्तर में सतपुड़ा की श्रृंखला हैं, जबकि महादेव, कैमूर की पहाड़ तथा मैकल श्रृंखला इसके पूर्वी विस्तार हैं।
- दक्कन का पठार पश्चिम में ऊँचा ेनवं पूर्व की ओर कम ढाल वाला हैं।
- इस पठार का एक भाग उत्तर-पूर्व में भी देखा हैं, जिसे स्थानीय रूप से ‘मेघालय’ तथा ‘कार्बी एंगलौंग पठार’ के नाम से जाना जाता हैं।
- दक्षिण के पठार के पूर्वी एवं पश्चिमी सिरे क्रमशः पूर्वी तथा पश्चिमी घाट समान्तर में स्थित है।
- पश्चिमी घाट सतत है तथा उन्हें केवल दर्रो के द्वारा ही पार किया जा सकता हैं।
- पश्चिमी घाट का उच्चतम शिखर अनाईमुडी है, यह दक्षिण भरता की सबसे ऊँची चोटी हैं, साथ ही हिमालय पर्वत श्रृंखला को छोड़ कर शेष भारत की उच्चतम छोटी हैं।
- पूर्वी घाट सबसे ऊंचा शिखर महेंद्रगिरी हैं।
- पूर्वी घाट एवं पश्चिमी घाट पर मिलान स्थल पर नीलगिरि पहाड़ी है, इसकी सबसे ऊँची चोंटी डोडाबेट्टा है जो दक्षिण भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोंटी हैं। उटकमंड ( ऊंटी ) इसी पहाड़ी पर हैं।
- प्रायद्वीपीय पठार की एक विशेषता यंहा पाए जाने वाली काली मृदा हैं। जिसे ‘दक्कन ट्रैप’ के नाम जाना जाता हैं। इसकी उत्पत्ति ज्वालामुखी से हुई हैं।
भारत के मरुस्थल
- अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित हैं। ‘लुनी’ क्षेत्र की सबसे बढ़ी नदी है। यह कच्छ के रण में गिरती हैं।
- बरखान ( अर्धचन्द्राकार बालू का टीला ) यंहा पाया जाता हैं
- अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला हैं।
भारत के तटीय मैदान
- पश्चिमी तट – पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बिच स्थित संकीर्ण मैदान हैं, उत्तरी भाग को कोंकण,
- मध्य भाग को कन्नन मैदान ेनवं दक्षिणी भाग को मालाबार तट कहा जाता हैं।
- पूर्वी तट खड़ी के साथ विस्तृत मदन समतल हैं। इसका उत्तरी भाग ‘उत्तरी सरकार’ तथा दक्षिणी भाग ‘कोरोमंडल’ तट कहलाता हैं। अनेक लेगुन इस तट पर स्थित हैं,
- ‘चिल्का लेगुन ‘ (झील) भारत में खरे पानी की सबसे बढ़ी झील हैं।
भारत के द्वीप समूह
- केरल के मालाबार तट के पास स्थित लक्षद्वीप समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से बना हैं।
- बंगाल की खाड़ी में द्वीपों की श्रृंखला अंडमान एवं निकोबार द्वीप हैं।
- द्वीप समूह मुख्यतः दो भागो में बनता हैं – उत्तर में अंडमार तथा दक्षिण में निकोबार।
- अंडमान – निकोबार द्वीप समूह की सबसे ऊँची पर्वत चोटी सैडल पिक ( 730 मी.) हैं।
- भारत का एक मात्रा सक्रीय ज्वालामुखी इस समूह के बैरन द्वीप पर स्थित हैं।
- 10० अक्षांश छोटा अंडमान व कार निकोबार के बिच से गुजारी हैं।
- हुगली समीप गंगा सागर नाम से सागर द्वीप हैं यंहा न्यू मूर द्वीप का निर्माण हाल में हुआ हैं।