भारत में गरीबी | Poverty in India

भारत में गरीबी | Poverty in India

वैसे तो भारत को सोने का चिड़िया कहा जाता था। लेकिन आज स्थिति कुछ ऐसा है कि दुनियाभर में गरीबी का तीसरा आबादी भारत में ही है। लेकिन क्यों एक सोने की चिड़िया इतना गरीब हो गया? क्या कारण है कि भारत दुनियाभर में इतना गरीब आबादी वाला देश बन गया? तो चलिए देखते है, भारत में गरीबी के कारण, भारत क्यों एक गरीब देश है? इसे दूर करने का उपाय क्या क्या हो सकते है।

गरीबी क्या है?

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

निर्धनता या गरीबी से अभिप्राय उस न्यूनतम आय से है जिसकी एक परिवार को अपनी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यकता होती है, और जिसे वह परिवार जुटा पाने में असमर्थ होता है। गरीबी का अर्थ है जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपयोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता।

गरीबी का अर्थ?

निर्धनता या गरीबी का अर्थ ऐसे निर्धन से है जिसके पास जीवन यापन के लिए आवश्यक वस्तुओं का अभाव होता है। गरीबी के संबंध में अर्थ शास्त्रियों का कहना है कि निर्धनता या गरीबी उन वस्तुओं का अभाव या अपर्याप्त पूर्ति है, जो कि एक व्यक्ति तथा उसके आश्रितों को स्वस्थ एवं बलवान बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।

गरीबी की परिभाषा क्या है?

निर्धनता या गरीबी उन वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति का अभाव है जो व्यक्ति तथा उसके परिवार के स्वास्थ्य और कुशलता को बनाये रखने में आवश्यक है। इस प्रकार केवल भोजन, वस्त्र और आवास के प्रबन्ध से ही निर्धनता की समस्या समाप्त नहीं हो जाती।

गरीबी रेखा क्या है?

निर्धनता या गरीबी रेखा का अर्थ है जीवन स्तर की न्यूनतम सीमा। यह न्यूनतम सीमा ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2100 कैलोरी प्रतिदिन ऊर्जा प्राप्त करना है। इस सीमा कैलोरी से कम ऊर्जा प्राप्त करने वाले व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे माने जाते हैं।

गरीबी रेखा का निर्धारण कैसे किया जाता है?

गरीबी रेखा का निर्धारण आय और उपभोग के रूप में किया जाता है। लेकिन आय की तुलना में उपभोग गरीबी रेखा सीमा का एक बेहतर पैरामीटर है। इसका कारण यह है कि उपभोग किसी व्यक्ति द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं के वास्तविक प्रयोग को दिखलाता है, जबकि आय केवल खरीदने की क्षमता व्यक्त करती है।

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भारत में गरीबी

गरीबी भारतीय लोकतंत्र में आर्थिक असमानता के कारण जहाँ देश का एक छोटा वर्ग धनाढ्य है वहीं देश की एक बड़ी जनसंख्या गरीब है। भारत में गरीबी बहुत व्यापक है, अनुमान है कि विश्व की सम्पूर्ण गरीब आबादी का तीसरा हिस्सा भारत में है। विश्व बैंक के सूचना के आधार पर भारत के 32.7% लोग अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं।

योजना आयोग के साल 2009-2010 के गरीबी आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है। योजना आयोग ने गरीबी मापने की विधि की समीक्षा करने के लिए जून 2012 में सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट जून 2014 में प्रस्तुत की। इस विशेषज्ञ समूह में अखिल भारतीय स्तर पर 2011-2012 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ₹972 प्रति व्यक्ति प्रति माह व्यय तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 1407 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह व्यय को गरीबी रेखा का आधार माना है।

भारत में गरीबी के कारण क्या क्या है?

1. जनसंख्या का अधिक दबाव –

भारत में प्रतिवर्ष जनसंख्या 2.6 प्रतिशत प्रति हजार की दर से बढ़ती हैं। जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि होती है, उस गति से उत्पादन एवं साधनों की मात्रा में वृद्धि नहीं होती है जिससे देश का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है। मांग एवं पूर्ति में असंतुलन के कारण मूल्यों में वृद्धि होती है और लोगों की क्रय शक्ति घटती है। अतः लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते और वे निर्धनता की अवस्था में जीवन यापन करते हैं ।

2. निरंतर रहने वाली बेरोजगारी –

हमारे देश में अधिकांश युवक बेरोजगार है, उनके पास स्वयं का कोई काम धन्धा नहीं है। यह बेरोजगारी की निरंतर वृद्धि हो रही है। जिसके फलस्वरूप भारत मे गरीबी भ्य बढ़ रहा है। अगर रोजगार की समस्या कम होने लगे तो धीरे धीरे गरीबी भी कम होते जाएगा।

3. राष्ट्रीय उत्पादन का निम्न स्तर –

जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि होती है, उस गति से उत्पादन एवं साधनों की मात्रा में वृद्धि नहीं होती है जिससे देश का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है। मांग एवं पूर्ति में असंतुलन के कारण मूल्यों में वृद्धि होती है और लोगों की क्रय शक्ति घटती है।

4. विकास की कम दर –

भारत में पिछले 50 वर्षो में आर्थिक विकास के अनेक कार्यक्रम का क्रियान्यवन हुआ है। इसका लाभ सभी व्यक्तियों को मिला है लेकिन बराबर नहीं, जैसे- हरित क्रांति से बड़े कृषकों को लाभ हुआ हैं। आधुनिक तकनीकी के साधनों से रोजगार के अवसर कम हुए हैं जिसके कारण गरीबी में वृद्धि हुई है जिससे विकास की दर कम होती है।

5. पूँजी की अपर्याप्तता –

जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण पूँजी की अपर्याप्तता होती है। देश में मलेरिया, चेचक, टी.बी., कैंसर आदि रोगों से पीड़ित करोड़ों व्यक्ति हैं जिसके कारण उद्योगों, कारखानों आदि से उन्हें प्रायः अवकाश लेना पड़ता हैं। इससे एक ओर उत्पादन तो घटता ही है दूसरी ओर श्रमिकों का रोजगार भी कम होता है।

6. आधारभूत संरचना का अभाव –

केवल भोजन, वस्त्र और आवास के प्रबन्ध से ही निर्धनता की समस्या समाप्त नहीं हो जाती। बल्कि व्यक्तियों के लिए ऐसी वस्तुएँ भी प्राप्त होना आवश्यक है, जिससे स्वास्थ्य और कुशलता का एक सामान्य स्तर बनाये रखा जा सके और आधारभूत संरचना की पूर्ति कर सके।

7. आय का असमान : –

देश में मलेरिया, चेचक, टी.बी., कैंसर आदि रोगों से पीड़ित करोड़ों व्यक्ति हैं जिसके कारण उद्योगों, कारखानों आदि से उन्हें प्रायः अवकाश लेना पड़ता हैं। इससे एक ओर उत्पादन तो घटता ही है, वही दूसरी ओर श्रमिकों का रोजगार भी कम होता है। निम्न स्वास्थ्य स्तर के कारण लोग कम आयु में ही मर जाते हैं। जिसके कारण अनुभवी एवं कुशल श्रमिकों की कमी हो जाती है। इससे देश की आर्थिक उन्नति प्रभावित होती है तथा निर्धनता बढ़ती जाती हैं।

भारत में गरीबी दूर करने के उपाय

1. जनसंख्या वृद्धि पर रोक –

तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, आर्थिक विकास को लंगड़ा बना देती है। अतः जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण लगाना चाहिए। जनसंख्या पर नियंत्रण करने हेतु परिवार नियोजन कार्यक्रमों को व्यापक रूप में क्रियान्वित करना चाहिए।

2. रोजगार हेतु ठोस योजना –

रोजगार हेतु तकनीक, निर्धनता दूर करने के लिए कृषि तथा उद्योग दोनों में ही श्रम गहन तकनीक को अपनाया जाना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक श्रमिकों को रोजगार मिले, तथा निर्धनता पर नियंत्रण किया जा सके।

3. कृषि विकास व सुधार –

भूमि में स्थायी सुधार, सिंचाई सुविधाएँ, उत्तम बीज, उर्वरक खाद, नये कृषि उपरकणों का उपयोग, आर्थिक सहायता, तथा सहकारिता को प्रोत्साहित करके कृषि में स्थायी सुधार किया जा सकता है, जिससे कृषकों की आय में वृद्धि होगी तथा निर्धनता धीरे – धीरे दूर होगी।

4. आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण –

विकेन्द्रीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी संगठन की गतिविधियाँ, विशेष रूप से योजना, एक केंद्रीय, आधिकारिक स्थान या समूह से दूर प्रत्यायोजित की जाती हैं। आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण रूप में क्रियान्वित करना चाहिए।

5. पिछड़े क्षेत्रों पर विशेष ध्यान –

पिछड़े क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जिसके द्वारा पिछड़े क्षेत्रों पर लोग आ सके। आजादी के इतने दिन बाद भी कई ऐसे क्षेत्र है जहां रोड से लेकर बिजली, पानी जैसे जरूरी सुविधा भी नही है।

6. रोजगारोन्मुखी शिक्षा प्रणाली –

भारत की शिक्षा प्रणाली को और अधिक रोजगारोन्मुखी बनाने की जरूरत है। शिक्षा को कहीं अधिक रोजगार बाजार की ओर उन्मुख करना होगा। आज कई भारतीय छात्र बेरोजगार हैं। सरकार को प्रशिक्षण नीतियों और भावी श्रम शक्ति और नियोक्ताओं का मार्गदर्शन करने के लिए श्रम बाजार में आपूर्ति – मांग की स्थिति के संदर्भ में श्रम बाजार की जानकारी प्रदान करने के लिए एक संगठित प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।

सरकार द्वारा गरीबी को दूर करने के लिए किए गए उपाय :

1. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना –

इस योजना में प्रक्रियागत दृष्टिकोण और गरीब ग्रामीणों की क्षमता निर्माण पर बल दिया जाता है।
योजना के तहत स्थानीय जरूरतों के मुताबिक सामाजिक मध्यस्थता और कौशल विकास प्रशिक्षण पर आने वाली लागत उपलब्ध कराई जाती है।

योजना का उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की मदद करके सामाजिक एकजुटता, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और आमदनी देने वाली परिसंपत्तियों की व्यवस्था के जरिए उन्हें स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है। ग्रामीण गरीबों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए एक समन्वित कार्यक्रम के रूप में पहली अप्रैल, 1999 को शुरू की गई।

2. सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना –

इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रत्येक परिवार में से एक व्यक्ति को रोजगार दिया जाता है। मजदूरी का भुगतान नगद मुद्रा व वस्तु के रूप में दोनों प्रकार से किया जाता है। सूखा ग्रस्त क्षेत्र में इस कार्यक्रम का विशेष महत्व है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सड़कें, नहरें, छोटे बांध, भवन निर्माण आदि कार्य किये जाते हैं।

3. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना –

इस योजना की स्थापना प्रधानमंत्री मोदी जी ने 08 अप्रैल 2015 को की थी। केंद्र सरकार मंत्रालय इसके संबंध में दिशा – निर्देश तय करेगा तथा क्रियान्वयन का नियमन भी करती हैं। प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को निर्धारित समयावधि में पूरा करना है, पेयजल, आवास, ग्रामीण सड़कों जैसी ग्रामीण जरूरतों को पूरा करना सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से गरीबी उन्मूलन। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करना हैं।

4. जयप्रकाश रोजगार गारंटी योजना –

योजना को शुरू करने के लिए परिचालन तौर – तरीकों पर काम किया जा रहा हैं। प्रकाश रोजगार गारंटी योजना यह योजना देश के सबसे संकटग्रस्त जिलों में बेरोजगारों को गारंटीकृत रोजगार प्रदान करने का प्रयास करती है।

5. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना –

स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को ऋण प्रदान करने के लिए एक सरकारी योजना है। रोजगार की स्थापना के लिए बेरोजगार शहरी गरीब लाभकारी है।

6. प्रधानमंत्री रोजगार योजना –

शिक्षित बेरोजगारों को स्वनियोजन उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री योजना भारत सरकार द्वारा 2 अक्टूबर 1993 से प्रारंभ की गई है। उद्देश्य इस योजना की मुख्य विशेषता यह है की इससे शहर या गाँव के शिक्षित बेरोजगारी युवक / युवतियों अपना उद्योग धंधा शुरू करने के लिए उत्प्रेरित होते हैं।

7. लघु व कुटीर उद्योगों का विकास –

लघु एवं कुटीर उद्योग सरकार ने गरीबी तथा बेरोजगारी कम करने के लिए लघु तथा कुटीर उद्योगों के विकास हेतु विशेष प्रयत्न किये हैं। स्वरोजगार योजना को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत अधिक धन व्यय किया जा रहा है।

8. न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम –

पंचवर्षीय योजनाएँ गरीबी जैसी जटिल समस्या को दूर करने के लिए सरकार द्वारा योजनाओं को लागू किया गया। जिसके अंतर्गत गरीब जनता को उसके मूलभूत आवश्यकता की सामग्री प्रदान की गयी है। योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना, लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास करना, तथा रोजगार हेतु कार्यक्रम तथा निर्माण करना है।

9. बीस सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम –

वर्तमान में बीस सूत्रीय कार्यक्रम 2006 लागू है। इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य पिछड़े एवं निर्धन व्यक्तियों के जीवन स्तर में सुधार करना है। बीस सूत्री आर्थिक कार्यक्रम, बीस सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा वर्ष 1975 में की गयी थी। तत्पश्चात् वर्ष 1982, 1986 तथा 2006 में इस कार्यक्रम की पुर्नसंरचना की जा चुकी है।

गरीबी के प्रभाव क्या हैं?

निरक्षरता: गरीबी पैसे की कमी के कारण लोगों को उचित शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ बनाती है। पोषण और आहार: गरीबी के कारण आहार की अपर्याप्त उपलब्धता और अपर्याप्त पोषण होता है जो बहुत सारी घातक बीमारियों और कमी वाली बीमारियों को लाता है।

भेदभाव और सामाजिक असमानता: जब अमीरों और गरीबों के बीच भूमि, धन आदि जैसी संपत्तियों के वितरण की बात आती है तो उस समय समाज में व्यापक असमानता दिखाई पड़ती है। गरीब सभी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रह जाते हैं जबकि जो उच्च और मध्यम आय वाले वर्ग हैं उनकी आय में वृद्धि दिखाई देती है।

भारत में गरीबी से जुड़े महत्वपूर्ण सवालों के जवाब

भारत एक गरीब देश क्यों है?

भ्रष्टाचार, शिक्षा की कमी, धन का वितरण, जनसंख्या विस्फोट, जाति व्यवस्था, लोगों की मानसिकता और कुप्रबंधन, भारत में गरीबी के प्रमुख कारण हैं। उदाहरण के तौर पर भारत में गरीबों के लिए सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली दुनिया की सबसे बड़ी प्रणाली है। भारत के 21% वयस्क और पाँच वर्ष की आयु के आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।

भारत की गरीबी दर कितनी है?

ग्रामीण क्षेत्रों में 2011 में गरीबी 26.3 फीसदी थी, जो 2019 तक 14.7 फीसदी घटकर 11.6 फीसदी रह गई है। वहीं शहरी क्षेत्रों में 2011 में गरीबी 14.2 फीसदी थी, जो 2019 तक 7.9 फीसदी घटकर 6.3 फीसदी हो गई है। बेशक पिछले एक दशक में भारत में गरीबी काफी कम हुई है, लेकिन यह उतनी कम नहीं हुई जितनी उम्मीद की जा रही थी।

भारत में गरीबी दर 2022 क्या है?

विश्व बैंक द्वारा अप्रैल 2022 में एक और और हालिया अध्ययन में, गरीबी दर 10% आंकी गई। “भारत में गरीबी की संख्या 2011 के बाद से 12.3 प्रतिशत अंक कम होने का अनुमान है।

भारत में गरीबी की क्या स्थिति है?

अगर इनकी संख्या की बात करें तो ये संख्या है 2697.83 लाख यानी 26 करोड़ 97 लाख गरीब हैं, जिनका डेटा सरकार के पास है. वहीं, इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा गरीब होती हैं, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में गरीबी का प्रतिशत 25.70 है जबकि शहरी क्षेत्र में यह प्रतिशत 13.70 फीसदी है।

भारत में कितने प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे है?

आजादी के 75 साल बाद करीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वील आबादी घटकर 22 फीसदी पर आ गई। हालांकि, अगर इसे संख्या के आधार पर देखा जाए तो कोई खास अंतर नहीं आया। देश की आजादी के वक्त 25 करोड़ जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे थी, अब 26.9 करोड़ जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे है।

भारत में गरीबी का मुख्य कारण क्या है?

भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या दर है। इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य सुविधाएं और वित्तीय संसाधानों की कमी की दर बढ़ती है। इसके अलावा उच्च जनसंख्या दर से प्रति व्यक्ति आय भी प्रभावित होती है और प्रति व्यक्ति आय घटती है।

गरीबों की समस्या क्या है?

गरीबी एक ऐसी समस्या है, जो हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करने का कार्य करती है। गरीबी एक ऐसी बीमारी है जो इंसान को हर तरीके से परेशान करती है। इसके कारण एक व्यक्ति का अच्छा जीवन, शारिरीक स्वास्थ्य, शिक्षा स्तर आदि जैसी सारी चीजें खराब हो जाती है। यही कारण है कि आज के समय में गरीबी को एक भयावह समस्या माना जाता है।

सबसे गरीब गांव कौन सा है?

नवरंगपुर को देश का सबसे गरीब गांव माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां के लोगों की जिंदगी में परिवर्तन आया है। इस गांव के लोग काजू की खेती से अपनी जिंदगी संवार रहे हैं।

भारत का सबसे गरीब जिला कौन सा है?

दैनिक भास्कर के अनुसार एक रिपोर्ट में देश में सबसे गरीब जिला अलीराजपुर को बताया गया है। यहां की कुल आबादी में से 76.5 प्रतिशत लोगों को गरीब बताया गया है। अगर किसी व्यक्ति के पास रिपोर्ट में दिए गए 10 मानकों में से अगर एक तिहाई मानकों की पहुंच नहीं है, तो वह गरीब माना जाएगा।

भारत का कौन सा राज्य सबसे ज्यादा गरीब है?

बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है जहां के 51.91 फीसदी लोग आज भी बहुआयामी गरीबी रेखा से नीचे जी रहे हैं। इसके अलावा जीडीपी के अनुसार छत्तीसगढ़ भारत का सबसे गरीब राज्य हैं। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ की जीडीपी 3.25 लाख करोड़ रुपये हैं। इसके अलावा झारखंड भारत के सबसे गरीब राज्यों में झारखंड के बाद दूसरे नंबर पर आता हैं।

केंद्र शासित राज्यों में सबसे गरीब कौन है?

केंद्र शासित प्रदेशों की बात करें तो दादरा नगर हवेली (27.36%), जम्मू कश्मीर और लद्दाख (12.58%), दमन और दीव (6.82%) और चंडीगढ़ (5.97%) सबसे गरीब हैं. पुडुचेरी में सिर्फ 1.72% आबादी गरीब है. जबकि लक्ष्यदीप में 1.82 %, अंडमान में 4.30% और दिल्ली में 4.79% आबादी गरीब है।

भारत में गरीबी का आकलन कौन करता है?

नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ (Multidimensional Poverty Index- MPI) जारी किया जाता है।

किसी व्यक्ति को गरीब कब माना जाता है?

भारतीय योजना आयोग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2100 कैलोरी निर्धारित की गयी है। कोई भी व्यक्ति जो इससे कम पा रहा है, उसे गरीबी रेखा से नीचे माना गया है।

देश को गरीब क्या बनाता है?

राष्ट्रों की आर्थिक विकास दर में अंतर अक्सर इनपुट (उत्पादन के कारक) और टीएफपी में अंतर-श्रम और पूंजीगत संसाधनों की उत्पादकता में अंतर के कारण आता है। उच्च उत्पादकता तेजी से आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है, और तेजी से विकास एक राष्ट्र को गरीबी से बचने की अनुमति देता है।

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