महमूद गजनवी का भारत पर आक्रमण | Mahmud Ghaznavi

महमूद गजनवी | Mahmud Ghaznavi

भारत में इस्लामी शासन लाने और अपने छापों के कारण भारतीय हिन्दू समाज में गजनवी को एक आक्रामक शासक के रूप में जाना जाता है। महमूद गजनवी मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित गजनवी राजवंश के एक महत्वपूर्ण शासक था जो पूर्वी ईरान भूमि में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता हैं।

गजनवी तुर्क मूल का था और अपने समकालीन (और बाद के) सल्जूक़ तुर्कों की तरह पूर्व में एक सुन्नी इस्लामी साम्राज्य बनाने में सफल हुआ। इसके द्वारा जीते गए प्रदेशों में आज का पूर्वी ईरान, अफगानिस्तान और संलग्न मध्य-एशिया (सम्मिलित रूप से ख़ोरासान), पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत शामिल थे।

  • पूरा नाम – महमूद गज़नवी
  • जन्म – 2 Oct 971
  • जन्मस्थान – गजनी, अफगानिस्तान
  • पिता – सुलतान सुबुक तिगिन

महमूद गजनवी, गजनी का शासक था जिसने 971 से 1030 AD तक शासन किया। भारत की धन-संपत्ति से आकर्षित होकर, गजनवी ने भारत पर कई बार आक्रमण किए। वास्तव में गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया। उसके आक्रमण का मुख्य मकसद भारत की संपत्ति को लूटना था।

महमूद गजनवी द्वारा भारत पर आक्रमण

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

महमूद गजनवी जीवन परिचय

 

प्रथम आक्रमण (1001 ई.) :

महमूद गजनवी ने अपना पहला आक्रमण 1001 ई. में किया तथा पेशावर के कुछ भागो पर अधिकार करके अपने देश लौट गया।

दूसरा आक्रमण (1001-1002 ई :

अपने दूसरे अभियान के अन्तर्गत महमूद गजनवी ने सीमांत प्रदेशों के शाही राजा जयपाल के विरुद्ध युद्ध किया। जिसमे जयपाल की पराजय हुई और उसकी राजधानी बैहिन्द पर अधिकार कर लिया। जयपाल इस पराजय के अपमान को सहन नहीं कर सका और उसने आग में जलकर आत्मदाह कर लिया।

तीसरा आक्रमण (1004 ई.) :

महमूद गजनवी ने उच्छ के शासक वाजिरा को दण्डित करने के लिए आक्रमण किया। महमूद के भय के कारण वाजिरा सिन्धु नदी के किनारे जंगल में शरण लेने को भागा और अन्त में उसने आत्महत्या कर ली।

चौथा आक्रमण (1005 ई.) :

1005 ई. में महमूद गजनवी ने मुल्तान के शासक दाऊद के विरुद्ध मार्च किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भटिण्डा के शासक आनन्दपाल को पराजित किया और बाद में दाऊद को पराजित कर उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया।

पाँचवा आक्रमण (1007 ई.) :

पंजाब में ओहिन्द पर महमूद गजनवी ने जयपाल के पौत्र सुखपाल को नियुक्त किया था। सुखपाल ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था और उसे नौशाशाह कहा जाने लगा था। 1007 ई. में सुखपाल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। महमूद गजनवी ने ओहिन्द पर आक्रमण किया और नौशाशाह को बन्दी बना लिया गया।

छठा आक्रमण (1008 ई.) :

महमूद गजनी के 1008 ई. के छठे आक्रमण में नगरकोट के विरुद्ध हमले को मूर्तिवाद के विरुद्ध पहली महत्वपूर्ण जीत बताई जाती है।

सातवाँ आक्रमण (1009 ई. :

इस आक्रमण के अन्तर्गत महमूद गजनवी ने अलवर राज्य के नारायणपुर पर विजय प्राप्त की।

आठवाँ आक्रमण (1010 ई.) :

महमूद का आठवां आक्रमण मुल्तान पर था। वहां के शासक दाऊद को पराजित कर उसने मुल्तान के शासन को सदा के लिए अपने अधीन कर लिया।

नौवा आक्रमण (1013 ई.) :

अपने नवे अभियान के अन्तर्गत महमूद गजनवी ने थानेश्वर पर आक्रमण किया।

दसवाँ आक्रमण (1013 ई.) :

महमूद ग़ज़नवी ने अपना दसवां आक्रमण नन्दशाह पर किया। हिन्दू शाही शासक आनन्दपाल ने नन्दशाह को अपनी नयी राजधानी बनाया। वहां का शासक त्रिलोचन पाल था। त्रिलोचनपाल ने वहाँ से भाग कर कश्मीर में शरण लिया। तुर्को ने नन्दशाह में लूटपाट की।

ग्यारहवाँ आक्रमण (1015 ई.) :

महमूद का यह आक्रमण त्रिलोचनपाल के पुत्र भीमपाल के विरुद्ध था, जो कश्मीर पर शासन कर रहा था। युद्ध में भीमपाल पराजित हुआ।

बारहवाँ आक्रमण (1018 ई.):

अपने बारहवें अभियान में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया। उसने बुलंदशहर के शासक हरदत्त को पराजित किया। उसने महाबन के शासक बुलाचंद पर भी आक्रमण किया। 1019 ई. में उसने पुनः कन्नौज पर आक्रमण किया। वहाँ के शासक राज्यपाल ने बिना युद्ध किए ही आत्मसमर्पण कर दिया। राज्यपाल द्धारा इस आत्मसमर्पण से कालिंजर का चंदेल शासक क्रोधित हो गया। उसने ग्वालियर के शासक के साथ संधि कर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और राज्यपाल को मार डाला।

तेरहवाँ आक्रमण (1020 ई.) :

महमूद का तेरहवाँ आक्रमण 1020 ई. में हुआ था। इस अभियान में उसने बारी, बुंदेलखण्ड, किरात तथा लोहकोट आदि को जीत लिया

चौदहवाँ आक्रमण (1021 ई. :

अपने चौदहवें आक्रमण के दौरान महमूद ने ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण किया। कालिंजर के शासक गोण्डा ने विवश होकर संधि कर ली।

पन्द्रहवाँ आक्रमण (1024 ई.) :

इस अभियान में महमूद ग़ज़नवी ने लोदोर्ग (जैसलमेर), चिकलोदर (गुजरात), तथा अन्हिलवाड़ (गुजरात) पर विजय स्थापित की।

सोलहवाँ आक्रमण (1025 ई.) :

इस 16वें अभियान में महमूद गजनवी ने सोमनाथ को अपना निशाना बनाया। उसके सभी अभियानों में यह अभियान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। सोमनाथ पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने वहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़ दिया तथा अपार धन प्राप्त किया। यह मंदिर गुजरात में समुद्र तट पर अपनी अपार संपत्ति के लिए प्रसिद्ध था। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग 50,000 ब्राह्मणों एवं हिन्दुओं का कत्ल कर दिया। पंजाब के बाहर किया गया महमूद का यह अंतिम आक्रमण था।

सत्रहवाँ आक्रमण (1027 ई.) :

यह महमूद गजनवी का अन्तिम आक्रमण था। यह आक्रमण सिंध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों के जाटों के विरुद्ध था। इसमें जाट पराजित हुए।

महमूद गजनवी से जुड़े कुछ और जानकारियां

महमूद गजनवी ने भारत पर पहला आक्रमण कब किया था?

सुल्तान महमूद गजनवी ने भारत पर पहला आक्रमण 1001 ई. में किया जब सीमावर्ती क्षेत्र का राजा जयपाल था। जयपाल ने अपनी मुक्ति के लिए बहुत धन दिया, किन्तु अपने इस अपमान को वह सहन नहीं कर सका और आत्मदाह कर लिया। जयपाल हिंदूशाही वंश का राजा था जिसका पश्चिमोत्तर पाकिस्तान तथा पूर्वी अफगानिस्तान पर राज था।

महमूद गजनवी ने भारत पर कितने आक्रमण किए?

उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया और यहां की अपार सम्पत्ति को वह लूट कर ग़ज़नी ले गया था। आक्रमणों का यह सिलसिला 1001 ई. से आरंभ हुआ। महमूद इतना विध्वंसकारी शासक था कि लोग उसे मूर्तिभंजक कहने लगे थे।

भारत पर 17 बार आक्रमण करने वाला कौन था?

महमूद गजनवी यमीनी वंश का तुर्क सरदार ग़ज़नी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था। उसका जन्म ई. 971 में हुआ, 27 वर्ष की आयु में ई. 998 में वह शासनाध्यक्ष बना था।

महमूद गजनवी ने भारत पर हमला क्यों किया?

सुल्तान महमूद गजनवी ने मुल्तान के शासक दाऊद के विरुद्ध मार्च किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भटिण्डा के शासक आनन्दपाल को पराजित किया और बाद में दाऊद को पराजित कर उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया। पाँचवा आक्रमण (1007 ई.)- पंजाब में ओहिन्द पर महमूद गजनवी ने जयपाल के पौत्र सुखपाल को नियुक्त किया था।

महमूद गजनवी का अंतिम आक्रमण कब हुआ?

सत्रहवाँ आक्रमण (1027 ई.)- यह महमूद गजनवी का अन्तिम आक्रमण था। यह आक्रमण सिंध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों के जाटों के विरुद्ध था।

महमूद गजनवी के आक्रमण का मुख्य कारण क्या था?

अपने इस मत का समर्थन करते हुए ये विद्वान कहते है कि महमूद के भारत पर आक्रमण का उद्देश्य धन लूटना, मूर्ति खण्डित करना तथा काफिरों को इस्लाम धर्म स्वीकार कराना था। वह अपने साम्राज्य का विस्तार भी नही करना चाहता था, क्योंकि उसने जीते हुए प्रदेशों को अपने राज्य का अंग नही बनाया था।

मोहम्मद गजनवी के आक्रमण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

वह भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार नहीं कर सका, क्योंकि उसकी विध्वंसात्मक नीति ने हिन्दुओं में इस्लाम के प्रति घृणा की भावना जाग्रत कर दी, जो भारत के हिन्दुओं में पर्याप्त समय तक विद्यमान रही, जिसके कारण दोनों धर्मों में सामंजस्य नहीं हो सका।

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