भारत का ऐतिहासिक युद्ध, भारत की महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ

भारत का ऐतिहासिक युद्ध

भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास वर्षो से बहुत संघर्षमय रहा है। भारत का यह ऐतिहासिक भूमि आदिकाल से महायुद्धों का गवाह रहा हैं। चाहे वो महाभारत का युद्ध हो या भारतीय साम्राज्यों का या अंग्रेजों का। ये सभी लड़ाइयां ऐतिहासिक और भयंकर भी था। जिसने बहुत कुछ उलट फेर किया है। भारत के इतिहास का कुछ महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक युद्ध आपके सामने प्रस्तुत है।

भारत का ऐतिहासिक युद्ध

भारत का ऐतिहासिक युद्ध की सूची और उनसे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां

1. हाइडेस्पीज की लड़ाई – 326 ई.

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

झेलम का युद्ध जिसे हाईडेस्पीज (Hydaspes) का युद्ध भी कहा जाता हैं। यह युद्ध 326 ई. में झेलम नदी के किनारे सिकंदर और पंजाब के राजा पोरस के बीच हुआ था। भारत का यह ऐतिहासिक युद्ध भारी विनाशकारी था और दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें अंततः सिकंदर की जीत हुई।

हाइडेस्पीज युद्ध के परिणाम

इस युद्ध में सिकंदर ने पोरस को पराजित कर दिया, लेकिन पोरस के साहस से प्रभावित होकर उसका राज्य वापस कर दिया तथा पोरस और सिकंदर में मित्रता बन गया। युद्ध के बाद सिकंदर की सेना ने व्यास नदी से आगे बढ़ने से इंकार कर दिया।

2. कलिंग की लड़ाई – 261 ई.

261 ई.पू.में सम्राट अशोक तथा कलिंग देश के बीच यह युद्ध हुई, कलिंग पर विजय प्राप्त कर अशोक अपने साम्राज्य मे विस्तार करना चाहता था। क्योंकि सामरिक दृष्टि से कलिंग बहुत महत्वपूर्ण था। स्थल और समुद्र दोनो मार्गो से दक्षिण भारत को जाने वाले मार्गों पर कलिंग का नियन्त्रण था। यहाँ से दक्षिण – पूर्वी देशो से आसानी से सम्बन्ध बनाए जा सकते थे।

कलिंग युद्ध के परिणाम

भारत का इस ऐतिहासिक युद्ध के बाद मौर्य साम्राज्य का विस्तार हुआ। इसकी राजधानी तोशाली बनाई गई। इस युद्ध में हुए भारी विनाश ने अशोक का हृदय परिवर्तित कर दिया। इसने अशोक की साम्राज्य विस्तार की नीति का अन्त कर दिया। उसने अहिंसा, सत्य, प्रेम, दान, परोपकार का रास्ता अपना लिया और अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भी किया।

3. तराइन का प्रथम युद्ध – 1191 ई.

तराइन का प्रथम युद्ध अथवा तरावड़ी का युद्ध, तराइन नामक जगह जो भारत के वर्तमान राज्य हरियाणा के करनाल जिले में करनाल और थानेश्वर ( कुरुक्षेत्र ) के बीच दिल्ली से 113 किमी उत्तर में स्थित मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच भयंकर युद्ध हुआ, इसमें मोहम्मद गौरी पराजित हुआ।

तराइन के प्रथम युद्ध के परिणाम

तराइन के इस पहले युद्ध में राजपूतों ने मोहम्मद गौरी की सेना के छक्के छुड़ा दिए। गौरी के सैनिक प्राण बचा कर भागने लगे। सुल्तान मुहम्मद गौरी युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ। तुर्क सैनिक राजपूत सेना के सामने भाग खड़े हुए। इस विजय से पृथ्वीराज चौहान को 7 करोड़ रुपये की धन सम्पदा प्राप्त हुई। इस धन सम्पदा को उसने अपने बहादुर सैनिको में बाँट दिया। इस विजय से सम्पूर्ण भारतवर्ष में पृथ्वीराज की धाक जम गयी और उनकी वीरता और साहस की कहानी सुनाई जाने लगी।

4. तराइन का द्वितीय युद्ध – 1192 ई.

तराइन का द्वितीय युद्ध अथवा तरावड़ी का द्वितीय युद्ध एक ऐसी युद्ध है, जिसने पूरे उत्तर भारत को मुस्लिम नियंत्रण के लिए खोल दिया। ये युद्ध मोहम्मद ग़ौरी और अजमेर तथा दिल्ली के चौहान राजपूत शासक पृथ्वी राज तृतीय के बीच हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज की और से 3 लाख सैनिकों ने भाग लिया था जबकि गौरी के पास एक लाख बीस हजार सैनिक थे। गौरी की सेना की विशेष बात ये थी की उसके पास शक्तिशाली घुड़सवार दस्ता था। 1192 में तराइन में हुए दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय हुई।

तराइन के द्वितीय युद्ध के परिणाम

तराइन के द्वितीय युद्ध की सबसे बड़ी त्रासदी यह थी की जयचंद के संकेत पर राजपूत सैनिक अपने राजपूत भाइयों को मार रहे थे। परिणाम स्वरूप इस युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई और जयचन्द का इससे भी बुरा हाल हुआ, उसको मार कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया गया। पृथ्वीराज की हार से गौरी का दिल्ली, कन्नौज, अजमेर, पंजाब और सम्पूर्ण भारतवर्ष पर अधिकार हो गया। भारत में इस्लामी राज्य स्थापित हो गया। अपने योग्य सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का गवर्नर बना कर मुहम्मद गौरी, वापस चला गया।

5. चंदवार का युद्ध – 1194 ई.

चंदावर का युद्ध मुहम्मद ग़ोरी और कन्नौज के राजा जयचंद के बीच लड़ा गया जिसमें जयचंद की हार और मृत्यु हुई। चंदावर या चंदवार, वर्तमान फ़िरोज़ाबाद का पूर्ववर्ती नगर था। गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराने के पश्चात् 1194 ई. में भारत पर पुनः आक्रमण किया था। उस आक्रमण में ग़ोरी ने पृथ्वीराज के प्रबल प्रतिद्वंदी जयचंद राठौर को चंदावर में पराजित किया।

चंदवार के युद्ध के परिणाम

जयचंद कन्नौज का राजा था चंदावर के युद्ध में जयचंद मारा गया था और परिणामस्वरूप तुर्क साम्राज्य की नींव डाली। चंदावर की लड़ाई के बाद भारत में तुर्क के कठोर आक्रमण को रोकने वाला कोई मजबूत शासक न हुआ। तुर्क साम्राज्य फैला और आगे भी मोहम्मद गौरी की लूटपाट जारी रही। चंदावर की लड़ाई के बाद कई सांस्कृतिक स्थलों और मंदिरों को तोड़ दिया गया और उसके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण किया गया। पुजारियों की हत्या हुई और जबरन धर्मांतरण करने को विवश किया गया।

प्राचीन भारत की यही निर्मम घटनाएँ आधुनिक भारत में नफरत की जड़े आज ही सींच रही है, जिसका कोई समुचित समाधान नजर नहीं आ रहा। जयचंद की मौत के बाद भारत की सम्पदा लूट कर सुल्तान गौरी तुर्की वापस लौट गया और उसने जीते हुए सारे राज्य अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया। उसके बाद हिंदुस्तान में गुलाम वंश का शासन शुरू हुआ। तुर्की के अलग अलग शासकों ने इस युद्ध के बाद भारत मे करीबन 500 वर्षो तक राज किया।

6. पानीपत का प्रथम युद्ध – 1526 ई.

पानीपत का पहला युद्ध, 1526 ई. में उत्तरी भारत में लड़ा गया था और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। भारत का यह ऐतिहासिक युद्ध उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था। काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी, की एक बड़ी सेना को युद्ध में परास्त किया। यह युद्ध पानीपत नामक एक छोटे से गाँव के निकट लड़ा गया था जो वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है।

पानीपत के प्रथम युद्ध के परिणाम

भारत का इस ऐतिहासिक युद्ध में बाबर ने इब्राहीम लोदी को हराया और भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली। इस युद्ध के बाद मुगल साम्राज्य का उदय होने लगा और भारत के कई क्षेत्रों में मुगल साम्राज्य स्थापित हो गया।

7. पानीपत का द्वितीय युद्ध – 1556 ई.

पानीपत का द्वितीय युद्ध उत्तर भारत के हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर की सेना के बीच 5 नवम्बर 1556 को पानीपत के मैदान में लड़ा गया था। अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान के लिए यह एक निर्णायक जीत थी। पानीपत के इस द्वितीय युद्ध में मुगल सम्राट अकबर ने हेमू को हराया।

पानीपत के द्वितीय युद्ध के परिणाम

अकबर की सेना ने लड़ाई जीत ली और हेमू को गिरफ्तार कर लिया गया और मौत की सजा दी गई। उसका कटा हुआ सिर काबुल के दिल्ली दरवाजा पर प्रदर्शन के लिए भेजा गया। उसके धड़ दिल्ली के पुराना किला के बाहर फांसी पर लटका दिया गया था ताकि लोगों के दिलों में डर पैदा हो। बैरम खान ने विरोधियों की सामूहिक हत्या का आदेश दिया जो कई वर्षों तक जारी रहा।

अकबर ने ज्यादा प्रतिरोध के बिना आगरा और दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया। 1556 में पानीपत में अकबर की जीत भारत में मुगल सत्ता की वास्तविक बहाली थी। इससे अफगान शासन का अंत हुआ और मुगलों के लिए रास्ता साफ हो गया, फलस्वरूप दिल्ली पर वर्चस्व के लिए मुगलों और अफगानों के बीच चलने वाला संघर्ष अन्तिम रूप से मुगलों के पक्ष में निर्णीत हो गया और अगले तीन सौ वर्षों तक मुगलों के पास ही रहा।

8. तालीकोटा का युद्ध – 1564 – 65 ई.

इस युद्ध में हुसैन निजामशाह के नेतृत्व में बीजापुर बीदर, अहमदनगर और गोलकुण्डा की संगठित शक्ति ने विजयनगर के राम राजा को पराजित किया, इससे विजयनगर के हिन्दू राज्य का अंत हो गया। विजयनगर साम्राज्य की यह लडाई राक्षस – तांगड़ी नामक गावं के नजदीक लड़ी गयी थी। यह युद्ध भी एक भारत में मुस्लिम आक्रमण का भाग था।

तालिकोट के युद्ध के परिणाम

भारत का इस ऐतिहासिक युद्ध में विजय नगर साम्राज्य को हार का सामना करना पड़ा। विजयनगर की हार के साथ ही दक्षिण भारत के अंतिम हिन्दू साम्राज्य का पतन हो गया। दक्कन की सल्तनतों ने विजयनगर की राजधानी में प्रवेश करके उनको बुरी तरह से लूटा और सब कुछ नष्ट कर दिया परिणामस्वरूप दक्षिण भारतीय राजनीति में विजयनगर राज्य की प्रमुखता समाप्त हो गयी। मैसूर के राज्य, वेल्लोर के नायकों और शिमोगा में केलादी के नायकों नें विजयनगर से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। यद्यपि दक्कन की इन सल्तनतों में विजयनगर की इस पराजय का लाभ नहीं उठाया और अंततः मुगलों के आक्रमण के शिकार हुए।

9. हल्दीघाटी का युद्ध – 1576 ई.

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था जिसका नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह प्रथम ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप को मुख्य रूप से भील जनजाति का सहयोग मिला। लेकिन अकबर ने राणा प्रताप को पराजित किया।

हल्दीघाटी के युद्ध के परिणाम

अपने युद्ध के हाथियों के नुकसान के साथ मुग़ल मेवाड़ियों पर तीन तरफ से दबाने में सक्षम रहे, और जल्द ही राजपूत नेता एक – एक करके गिरने लगे। लड़ाई का ज्वार अब मुगलो की ओर झुकने लगा, और राणा प्रताप ने जल्द ही खुद को तीर और भाले से घायल पाया और अंततः राणाप्रताप को अरावली की पहाड़ियों में शरण लेनी पड़ी। मेवाड़ी सेना के लगभग 1,600 सैनिको की मृत्यु हो गई, जबकि मुगल सेना के करीब 150 सिपाही मारे गए और 350 घायल हुए।

10. प्लासी का युद्ध – 1757 ई.

प्लासी का पहला युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में भागीरथी नदी के किनारे प्लासी नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। इस युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है। युद्ध से पूर्व ही नवाब के तीन सेनानायक मीर जाफर, उसके दरबारी, तथा राज्य के अमीर सेठ, जगत सेठ आदि से कलाइव ने षडंयत्र कर लिया था। नवाब की तो पूरी सेना ने युद्ध मे भाग भी नही लिया था।

प्लासी के युद्ध के परिणाम

युद्ध के फ़ौरन बाद मीर जाफ़र के पुत्र मीरन ने नवाब की हत्या कर दी थी। क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को हराया और भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव पड़ी। इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है।

11. वांडीवाश का युद्ध – 1760 ई.

1760 में वांडीवाश का युद्ध ब्रिटिश तथा फ्रान्सीसी सेनाओं के बीच हुआ एक निर्णायक युद्ध था। इसमें फ्रान्सीसी सेना की हार हुई थी। वांडीवाश भारत के राज्य तमिलनाडु में स्थित हैं। इसी जगह युद्ध होने की वजह से इसे वांडीवाश का युद्ध कहा जाता हैं।

वांडीवाश के युद्ध के परिणाम

भारत का इस ऐतिहासिक युद्ध मे ब्रिटिश की जीत हुई। 26 जनवरी 1760 में अंग्रेज़ों ने फ्राँसीसियों को हराकर भारत में फ्रांसीसियों की शक्ति को प्रायः समाप्त कर दिया। इसके बाद भारत मे फ्रांसीसी हुकूमत पूरी तरह खत्म हो गया।

12. पानीपत का तीसरा युद्ध – 1761 ई.

पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 को पानीपत के मैदान में हुआ जो वर्तमान में हरियाणा में है। इस युद्ध में गार्दी सेना प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया तथा दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया। इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली ने मराठों को हराया।

पानीपत के तीसरे युद्ध का परिणाम

1761 में अहमदशाह अब्दाली ने मराठों को हराया इस युद्ध में पराजय से मराठा शक्ति को एक जबर्दस्त धक्का लगा। इस युद्ध में शाम तक आते – आते पूरी मराठा सेना खत्म हो गई। अब्दाली ने इस मौके को एक सबसे अच्छा मौका समझा और 15000 सैनिक जो कि आरक्षित थे उनको युद्ध के लिए भेज दिया और उन 15000 सैनिकों ने बचे – खुचे मराठा सैनिक जो सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में थे उनको खत्म कर दिया।

13. बक्सर का युद्ध – 1764 ई.

1764 में सर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजों ने कासिम शुर्जाउद्दौला और शाह आलम द्वितीय की संगठित सेना को हराया। भारत का इस ऐतिहासिक युद्ध ने अंग्रेजों को भारतवर्ष सर्वोच्च बना दिया।

बक्सर के युद्ध के परिणाम

बक्सर के युद्ध में हार मिलने के बाद मुगल सम्राट शाहआलम जो पहले ही अंग्रेजों से मिला हुआ था, अंग्रेजों से संधि कर उनकी शरण में जा पहुंचा। वहीं अवध के नवाब शुजाउदौला और अंग्रेजों के बीच कुछ दिन तक लड़ाईयां हुईं लेकिन लगातार परास्त होने की वजह से शुजाउदौला को भी अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा अंग्रेजों के साथ संधि करनी पड़ी। इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणाम में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कम्पनी के हाथ चला गया।

14. प्रथम स्वतन्त्रा संग्राम – 1857 ई.

1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला। इस विद्रोह का आरंभ छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों तथा आगजनी से हुआ था परन्तु जनवरी तक इसने एक बड़ा रूप ले लिया।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के परिणाम

भारतीय विद्रोह का अन्त भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन की समाप्ति के साथ हुआ और पूरे भारत पर ब्रिटिश राज का प्रत्यक्ष शासन आरंभ हो गया जो अगले 90 वर्षों तक चला। पूर्व ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों को मिलाकर बना भारतीय साम्राज्य, इन क्षेत्रों मे से कुछ तो स्थानीय राजाओं को लौटा दिये गये जबकि कईयों को ब्रिटिश ताज द्वारा जब्त कर लिया गया। फिर अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ और अन्ततः 1947 में भारत पूरी तरह अंग्रेजों से स्वतंत्र हो गया।

15. भारत चीन युद्ध – 1962 ई.

1962 का भारत-चीन युद्ध जो भारत चीन सीमा विवाद के रूप में भी जाना जाता है, इस युद्ध के लिए विवादित हिमालय सीमा एक मुख्य बहाना था, लेकिन अन्य मुद्दों ने भी भूमिका निभाई। जब चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गयी। भारत – चीन युद्ध विपरीत परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए उल्लेखनीय है। इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर ( 14,000 फीट ) से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी। इस युद्ध में चीनी और भारतीय दोनों पक्ष द्वारा नौसेना या वायु सेना का उपयोग नहीं किया गया था।

भारत चीन युद्ध के परिणाम

भारत चीन युद्ध मे चीनी सेना की जीत हुई लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की छवि धूमिल हो गई। चीन की विस्तारवादी नीति और धोखे से दूसरे राष्ट्र के क्षेत्रों में कब्जा करने की नीयत दुनिया के सामने आया। इस युद्ध में अक्साई चिन, चीन के नियंत्रण में आया।

16. भारत पाक युद्ध – 1965 ई.

1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच अनिर्णीत लड़ाई हुई ताशकंद समझौते के द्वारा पुनः शक्ति स्थापित की गई। यह युद्ध पाकिस्तान और भारत के बीच अप्रैल 1965 और सितंबर 1965 के बीच हुई झड़पों की परिणति थी। संघर्ष पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर के बाद शुरू हुआ, जिसे भारतीय शासन के खिलाफ विद्रोह को भड़काने के लिए जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पश्चिमी पाकिस्तान पर पूर्ण पैमाने पर सैन्य हमला किया। यह युद्ध 17 दिनों तक चला।

भारत पाकिस्तान युद्ध के परिणाम

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 211 के माध्यम से युद्धविराम की घोषणा की और दोनों पक्षों में युद्ध रूकवाया। इस युद्ध मे कोई स्थायी क्षेत्रीय परिवर्तन नहीं हुआ।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 211

इस प्रस्ताव को 20 सितंबर, 1965 को अपनाया गया था। प्रस्तावों 209 और 210 में संघर्ष विराम के आह्वान के अनसुने होने के बाद, परिषद ने मांग की कि संघर्ष विराम 22 सितंबर को 07.00 बजे जीएमटी पर प्रभावी हो और दोनों 5 अगस्त से पहले अपने पदों पर सेना वापस ले लें। परिषद ने महासचिव से युद्धविराम की निगरानी सुनिश्चित करने का अनुरोध किया और सभी राज्यों से किसी भी कार्रवाई से परहेज करने का आह्वान किया जिससे स्थिति बढ़ सकती है। सुरक्षा परिषद ने यह भी निर्णय लिया कि जैसे ही युद्धविराम पर पहुंचा जा सकता, यह विचार करेगा कि संघर्ष में अंतर्निहित राजनीतिक समस्या के समाधान की दिशा में सहायता के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

17. भारत – पाक युद्ध – 1971 ई.

1971 में भारत और बांग्लादेश की सेनाओं ने संयुक्त रूप से कार्यवाही करके बांग्लादेश में पाकिस्तान की सेना को आत्मसमर्पण के लिए विवश किया, पश्चिमी अंचल में 18 दिसम्बर 1971 के युद्ध विराम द्वारा लड़ाई बंद हुई। युद्ध की शुरुआत ऑपरेशन चंगेज़ खान से हुई थी। भारतीय सेना द्वारा लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया गया था, जिसमें पाकिस्तान सशस्त्र बलों के 79,676 से 81,000 वर्दीधारी कर्मी शामिल थे, जिनमें कुछ बंगाली सैनिक भी शामिल थे।

1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के परिणाम

इस युद्ध मे भारतीय विजय हुआ। पूर्वी पाकिस्तान सैन्य कमान का समर्पण के साथ ही बांग्लादेश के रूप में पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता हुआ जिसके कारण बांग्लादेश नामक नया राष्ट्र बना। युद्ध में भारतीय सेना ने पश्चिम में लगभग 2 15,010 किमी ( 5,795 वर्ग मील ) भूमि पर कब्जा कर लिया, लेकिन 1972 के शिमला समझौते में सद्भावना के रूप में इसे वापस कर दिया। जम्मू और कश्मीर में एक नई नियंत्रण रेखा को परिभाषित किया गया था।

18. कारगिल युद्ध – 1999 ई.

भारत और पाकिस्तान के मध्य जम्मू – कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र के कारगिल सेक्टर में भीषण पर्वतीय युद्ध हुआ भारत ने ऑपरेशन विजय द्वारा पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल से मार भगाया और शानदार विजय प्राप्त की।

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