विज्ञान की नई खोज, विज्ञान संचार की विश्लेषण, भविष्य में विज्ञान कैसा होगा,
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विज्ञान संचार की पूरी विश्लेषण क्या है, विज्ञान की नई खोज क्या क्या है, विज्ञान कंहा तक पहुँच गया है, भविष्य में विज्ञान कैसा होगा, भविष्य में विज्ञान संचार की प्रासंगिकता क्या है ? तो आइए कुछ महत्वपूर्ण बातो को समझने का प्रयास करते हैं

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             प्रौद्योगिकी में उद्योग की ध्वनि विद्यमान है । ऐसा प्रतीत होता है कि इसका आधार उदयोग ही है , लेकिन वास्तव में यह विज्ञान तथा अभियांत्रिकी से जुडा विशिष्ट ज्ञान है । यह एक ऐसा साधन है जो मनुष्य को वस्तुनिष्ठ ज्ञान तथा विज्ञान के माध्यम से अपने आस – पास के परिवेश पर व्यावहारिक नियंत्रण रखने की शक्ति प्रदान करता है ।

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इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

संचार की अवधारणा , संचार की प्रकृति , संचार के मुख्य तत्व , संचार प्रक्रिया . संचार के कार्य सफल संचार के अवरोधक , ये सभी जटिल प्रक्रिया का परिणाम है जिसके द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच अर्थपूर्ण सदेशों का आदान – प्रदान किया जाता है । ये अर्थपूर्ण संदेश भेजने वाले तथा संदेश पाने वाले के बीच एक समझदार साझेदारी बनाते हैं । संचार के अंतर्गत अनुभवों , विचारों , संदेशों , धारणाओं , दृष्टिकोणों , अभिमतों , सूचना तथा ज्ञान आदि का आदान प्रदान निहित है।

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               भारतीय साहित्य ( संस्कृत ) में संचार के अभिप्राय के अर्थ को दस अवधारणाओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है | Inciting , leading , Setting in motion , A course way , road , difficult progress आदि को लेना चाहिए । संचार प्रक्रिया के पांच चरणों – मौखिक , लिखित , मुद्रण , दूरसंचार , पारस्परिक क्रियात्मक संचार प्रणाली का भी उल्लेख किया गया है । विदेशी विद्वानों बैल्किन ,वर्सिग तथा बुक्स बेल ने भी इसका अनुमोदन किया है ।

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विज्ञान ने इतनी सफलता प्राप्त कर ली है जिसका अनुमान लगाना संभव नहीं है । विज्ञान का प्रयोग कर मनुष्य अपनी हर समस्या का समाध पान अनुसंधान चाहता है । विज्ञान भी नित – प्रति दिन हमारे जीवन को सरल बनाता जा रहा है लेकिन यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे हम पूर्ण नहीं मान सकते । आज विज्ञान में नए – नए आविष्कार किए जा रहे हैं । विज्ञान कई तरह के प्रयोग कर रहा है ।

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ब्रह्मांड में स्थित अनगिनत आकाशगांगाएं वैज्ञानिकों के लिए ऐसे स्रोत हैं जिनसे ब्रह्मांड में विद्यमान अबूझ रहस्यों की गुत्थी खोल सकते हैं । नासा – की हबल दूरबीन ने दस हजार आकाशगंगाओं के चित्र उतारे हैं जिनकी दूरी पृथ्वी से तरह अरब प्रकाश वर्ष दूर मानी जा रही है । एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो “ प्रकाश ‘ एक वर्ष में निर्णीत करता है जबकि प्रकाश एक सेकंड में तीन लाख कि . मी . दूरी तय करता है । हबल को इन तस्वीरों को लेने में चार महीनों का समय लगा ।

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              वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड की रचना चौदह अरब साल पहले हुई थी । हबल परियोजना के सदस्य डॉ . एंटन कोइमेमोअर के मतानुसार ये आकाशगंगाएं ब्रह्मांड बनने के बाद शुरूआती कुछ वर्षों की हैं । चंद्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई तथा यह पृथ्वी का चक्कर क्यों लगा रहा है ? यह प्रश्न भी चिरकाल से वैज्ञानिकों को उलझन में डाले हुए था ।

सौर मंडल के ग्रहों में पृथ्वी से सर्वाधिक समानता मंगल ग्रह की है इसलिए वैज्ञानिक इस पर जीवन ढूंढने की लंबी कवायद कर रहे हैं । इसी प्रयास की कड़ी में स्प्रिट व अपॉर्चुनिटी रोबोमिशन मंगल पर भेजे गए जिनसे अब तक वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए बहुमूल्य आंकड़े हमें प्राप्त हो रहे हैं । प्रारंभिक अनुसंधान से मंगल में जीवन के कोई प्रमाण नहीं मिले लेकिन कुछ वैज्ञानिक कृत्रिम तरीके से जीवन की परिरिस्थितियों का निर्माण करने के विषय पर गहन विचार – विमर्श कर रहे हैं ।

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वैज्ञानिक आज डी . एन . ए . कम्प्यूटर बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं । यदि वे सफल हो गए तो एक मिलीग्राम डी . एन . ए . में इतनी जानकारी सेव की जा सकेगी जितनी इस समय पूरी दुनिया में प्रिंटिंड मैटीरियल के रूप में मौजूद है । डी . एन . ए . कम्प्यूटर की अवधारणा अभी अपनी आरंभिक अवस्था में है । समय के साथ – साथ इसमें बढ़ोत्तरी देखने लायक होगी । इसके आईपाड में इतना डाटा सेव किया जा सकेगा जो कई हजार सालों का रिकार्ड रख सकेगा । यह न तो खराब होगा और न ही इसकी मेमोरी खत्म होगी ।

पीढ़ी – दर – पीढ़ी यह जानकारी आपसे आपके बच्चों तक जाती रहेगी । नैनो टेक्नॉलॉजी निकट भविष्य में हमारे जीवन का आधार होने जा रही है । नैनो का अर्थ है – एक बिलियन भाग – एक बिलियन का अर्थ है एक अरब और एक बिलियन भाग यानी 1 / 1000 , 000 , 000 अर्थात | 0 . 000000001 / यदि मीटर में देखें तो नैनोमीटर = 109 मीटर ( यदि 10 हाइड्रोजन परमाणु को एक पंक्ति में लगा दिया जाए , तब 1nm ( नैनोमीटर ) दूरी में 10 हाइड्रोजन परमाणुओं को एक पंक्ति में लगा दिया जाए तब 1nm ( नैनोमीटर ) की दूरी में 10 हाइड्रोजन परमाणु समा जाएंगे ।

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अब स्केननिंग प्रोब सूक्ष्मदर्शी द्वारा उस संरचना का वर्णन करना संभव हो गया है , जिसे हम देख नहीं सकते हैं । कोई ऐसा पदार्थ या संयंत्र या उपकरण अथवा उसका कोई भी ऐसा भाग , जिसका आकार एक नैनोमीटर या उससे भी कम हो और जो पूरी तरह कार्यशील होकर प्रौद्योगिकी के उपयोग में आए , उससे जुड़ा हुआ विज्ञान नैनो टेक्नोलॉजी कहलाता है । यह एक ऐसी तकनीक है , जिसमें आणविक स्तर पर पदार्थों का निर्माण तथा उसका ढांचा तैयार किया जाता है , जो एक उन्नत तकनीक का प्रतिनिधित्व करता है ।

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इसका प्रारंभ प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी , रिचार्ड फैनमैन ने 1959 में अपने अत्यंत लोकप्रिय व्याख्यान “ देअर इज प्लेन्टी ऑफ रूम एट द बॉटम में सर्वप्रथम नैनोनमीटर स्तर पदार्थ के गुण और उससे बनने वाली वस्तुओं के संभावित विषय पर चर्चा की थी । टोक्यों विश्वविद्यायालय के नोरियो तानीगुची ने 1974 में प्रकाशित अपने शोध पत्र में नैनो टेक्नॉलॉजी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया , लेकिन एन . टी . के विषय में जनचेतना का श्रेय अमेरिका के फोरसाइट नैनोटेक संस्थान निर्देशक , एरिक ड्रेक्सलर को जाता है , जिन्होंने 1986 में अपने अत्यंत विख्यात दस्तावेज ” एन्जिन ऑफ क्रिएशनः द कमिंग नैनो टैकनॉलॉजी ‘ को प्रकाशित किया ।

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यदि इसका विकास जारी रहा तो मानव का जीवन असाधारण रूप से आसान हो जाएगा । आपके कपड़े मैले नहीं होंगे । आपके पास ऐसे वाहन होंगे जो आपकी जेब में भी सफर कर सकेंगे आपका निवास स्थान आपकी तरह बुद्धिजीवी होगा तथा आपकी आवश्यकताओं का ध्यान रखेगा। एन . टी . का प्रयोग न केवल बाहरी आराम के लिए किया जाएगा अपितु इंसान की सेहत के लिए भी इसमें काफी संभावनाएं है।

 आस्ट्रिया में जन्मी भौतिक शास्त्री लिजमाइनर ‘ के नाभिकीय भौतिकी में किए गए अनुसंधान ने परमाणु के भीतर विद्यमान असीम शक्ति के रहस्य का स्रोत पाया था । बर्लिन के कैंसर विल्हेल्स इंस्टीट्यूट में भौतिक रसायनज्ञ आटोहान के साथ महत्वपूर्ण अनुसंधान कर उन्होंने Proactiniu ( Pa ) नामक एक नए रेडियोएक्टिव तत्व के साथ कई रेडियोएक्टिव तत्वों का पता लगाया ।

सन् 1938 में लिज जर्मनी छोड़कर स्वीडन चली गई तब आटोहान ने फ्रिट्स स्ट्रासमेन के साथ मिलकर यूरेनियम पर न्यूट्रानों की बौछार कर प्राप्त अवशेष में से Bariurn की उपस्थिति को पाया । इस घटना पर डेनमार्क में लिज ने अपने भतीजे आटो फ्रिश के साथ अध्ययन कर जनवरी 1939 में बताया कि जिस प्रक्रिया के निर्माण स्वरूप इस Bariurn के समस्थानिक का निर्माण हुआ है वह नाभिकीय विखंडन है ।

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फर्मी वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने न्यूट्रानों की बौछार से स्थायी तत्वों को भी रेडियो एक्टिव तत्वों में बदला । इससे हाइड्रोजनीय पदार्थों से गुजरकर यदि न्यूट्रानों की गति मंद कर दी जाए तो सम्पन्न हो रही विघटन प्रक्रिया की सक्षमता काफी बढ़ जाती है । विघटन प्रक्रिया में अत्यधिक ऊर्जा का भी उत्सर्जन होता है । परमाणुओं के विखंडन से प्राप्त यही ऊर्जा आगे चलकर विद्युत ऊर्जा तथा परमाणु बम का आधार बनी ।

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आज से कुछ वर्षो बाद भारत की स्थिति आश्चर्यजनक रूप से बदल जाएगी । मोबाइल पर व्यक्ति का आई कार्ड होने के साथ – साथ एक पुस्तकालय भी होगा। विश्व के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों के मल्टी मीडिया व्याख्यान भी मोबाइल पर जब चाहे देख , सुन सकेंगे । मोबाइल जी . पी . एस . तकनीक युक्त होंगे । जी . पी . एस . का अर्थ है ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम जो किसी भी वस्तु की पृथ्वी पर स्थिति का पता बता देता है ।

पृथ्वी की कक्षा में 24 उपग्रह चक्कर लगा रहे हैं । उन्हें पृथ्वी पर मौजूद ग्राउंड स्टेशन लगातार मॉनीटर करते रहते हैं । सेटेलाइट से भेजे गए संकेत जिस व्यक्ति के पास , जी . पी . एस . रिसीवर है , वह पकड़ सकता है । इससे उसे अक्षांश , देशांतर तथा समय का सही पता लग सकता है । पी . सी . तक सीमित रहने वालो Internet अब लैपटॉप और मोबाइल के बाद मानव शरीर में समा जाएगा ।

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internet किसी न किसी रूप में हर व्यक्ति से जुड़ा होगा । यह हमारे त्वचा के भीतर भी पाया जाएगा । मानव शरीर स्वयं इंटरनेटयुक्त होगा । नैनो टेक्नोलॉजी इंटरनेट के स्वरूप में संपूर्ण परिवर्तन कर देगी। अत्याधुनिक नैनो स्केल मशीन इंटरनेट को अणु के आकार का बना देगी जिसे इंजेक्शन के द्वारा त्वचा के अंदर डाला जा सकेगा । की फिल्म , लंबे टी . वी . कार्यक्रम मात्र आधे मिनट में डाउनलोड किए जा सकेंगे ।

           

संचार – सूचना तकनीक के कारण एक ऐसी वैज्ञानिक सोसायटी का निर्माण होगा जो पूरी तरह से कम्प्यूटर मशीनों से चलेगी । इस वैज्ञानिक सोसायटी के लोग कम्प्यूटर से हमेशा जुड़े रहेंगे । आधुनिक तकनीकी युग में इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल संचार प्रणाली सूचना और संचार के क्षेत्र में आश्चर्यजनक उपलब्धि होगी । यह प्रणाली मानव बुद्धि और उससे विकसित कृत्रिम बुद्धि का व्यावसायिक और प्रौद्योयोगिक अंतरण है ।

आरंभ में सैन्य अपेक्षाओं के लिए । संचार तथा सूचना प्रणाली का विकास होता रहा था । अब यह मानव जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रो में परंपरागत मान्यताओं और दृष्टियों को आंदोलित कर संस्कृति के नियामक के रूप में विश्व दृष्टि का प्रसार कर रही है ।

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संचार क्रांति के प्रभाव क्षेत्र में सामाजिक अधिकार , विवेक न्याय , सत्ता व्यवस्था , माग और पूर्ति प्रतियोगिता के मुक्त और छद्म विज्ञान – विपणन आदि आ जाते हैं । विज्ञान संचार प्रणाली आज विकसित और विकासशील देशों की तकनीकी क्षमताओं को चुनौती देकर शिक्षा , चिकित्सा , सूचना , मनोरंजन आदि को व्यवसाय बनाकर इनको अधिक से अधिक तकनीकी बनाने का उपक्रम कर रही है ।

दोस्तो आपने विज्ञान संचार की पूरी विश्लेषण क्या है, विज्ञान की नई खोज क्या क्या है, विज्ञान कंहा तक पहुँच गया है, भविष्य में विज्ञान कैसा होगा, भविष्य में विज्ञान संचार की प्रासंगिकता को भलीभांति जान ही गए होंगे इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे।

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Amit Yadav

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