कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव | Krishna Janmashtami Festival
श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव पूरे भारतवर्ष में हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। लेकिन क्या आप जनते हैं इसके हर साल मनाने का कारण क्या है? क्यों कृष्ण जन्माष्टमी मनाया जाता है? इसका क्या महत्व हैं? अगर आप भी इन सवालों के जवाब से रूबरू होना चाहते है तो आइए देखते विस्तार से कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव।
कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव
कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म के सभी त्यौहार में से एक प्रमुख त्यौहार है। ये त्यौहार भी पूरे भारत में बहुत ही धूम-धाम से मनया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव में भारत के सभी जगहों के कृष्ण मूर्तियो को, मंदिरो को बहुत सजया जाता है। विशेष तौर पर मथुरा, गोकुल, वृंदावन में कृष्ण जन्माष्टमी बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। जगह-जगह दही- हांडी बांधी जाती है, और छोटे-छोटे बच्चों को भगवान का स्वरूप कृष्ण बनाते हैं, और पूरे रास्ते को सजाया जाता है, और इसके साथ ही कृष्ण लीला भी किया जाता है।
भारत के लगभग सभी जगहों, शहरों, गावो में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है, इस दिन लोगो द्वारा व्रत रखा जाता है। लोगो का मानना है कि इस दिन भगवान की विधि विधान से पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरा होती है और मन को शान्ति मिलती ही। बहुत से लोग भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति अपने घर में स्थापना करते हैं। श्री फल, मिठाई इत्यादि प्रसाद स्वरूप भगवान श्री कृष्ण को चढ़ाते हैं, लोगो में प्रसाद बंटवाते है। रात्री में भजन, कीर्तन, कृष्ण लीला करते हैं, रथ में भगवान श्री कृष्णा और राधा बनकर रथ यात्रा निकलते हैं।
दही-हांडी फोडने वाले को इनाम दिया था है। बहुत से टोलियां होती है जो इस दही हांडी की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अपनी टोलियों को लाते है और बड़े ही धूम धाम से कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाये जाते है। दही हांडी फोड़ने की प्रतियोगिता स्कूल, कॉलेज में भी किया जाता है। स्कूल, कॉलेज में भी भगवान श्री कृष्ण की पूजा बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस प्रकार कृष्ण जन्माष्टमी को भगवान श्री कृष्ण की पूजा कर लोग आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव से जुडी कुछ महत्वपूर्ण बातें
कृष्ण जन्माष्टमी कब और क्यों मनाई जाती है?
श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव हिंदू परंपरा के अनुसार तब मनाई जाती है जब माना जाता है कि कृष्ण का जन्म मथुरा में भाद्रपद महीने के आठवें दिन (ग्रेगोरियन कैलेंडर में अगस्त और 3 सितंबर के साथ ओवरलैप) की आधी रात को हुआ था। इसलिए इस दिन भगवान श्री कृष्ण के जनमोत्स्व को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाई जाती है।
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व क्या है?
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। यही कारण है कि कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव विशेष महत्व रखता है। भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और कृपा पाने के लिए इस दिन लोग उपवास रखने के साथ विधि-विधान से पूजा और भजन करते हैं।
कृष्ण पूजा कब है?
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा विधिवत तरीके से पूजा की जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव इस साल 18 अगस्त 2022, गुरुवार को है। अष्टमी तिथि 18 अगस्त को शाम 09 बजकर 21 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 19 अगस्त को रात 10 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी।
कन्हैया का जन्म कैसे मनाया जाता है?
रात में 12 बजे मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि में कन्हैया का जन्म कराया जाता है और उन्हें पंचामृत से स्नान कराया जाता है। ब्रज के लोग अपने घरों में भी 12 बजे खीरे से कन्हैया का जन्म कराते हैं और उन्हें दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराकर मिष्ठान, मेवा, पंचामृत आदि का भोग लगाते हैं।
जन्माष्टमी 2 दिन क्यों मनाया जाता है?
हिंदू पंचाग के अनुसार, अष्टमी तिथि कृतिका नक्षत्र और भरणी नक्षत्र के बाद रोहिणी नक्षत्र आता है, इस नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए दो दिन कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव मनाया जाता है।
जन्माष्टमी पूजा कैसे करे?
उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएंं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें – अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए सूतिकागृह नियत करें। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि – विधान से पूजन करें।
मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाई जा रही है?
मंदिरों में आने वाले सभी भक्तों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। बहुत से लोग कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव मनाने के लिए मथुरा के यमुना घाट पर भी एकत्र हुए और भगवान कृष्ण के जन्मदिन पर उनके जन्मस्थान के दर्शन करने में सक्षम होने पर खुशी व्यक्त की।
क्या है कृष्ण होने के मायने?
‘सुदर्शन’ जैसा शस्त्र होने के बाद भी, यदि हाथ में हमेशा ‘मुरली’ है, तो वो कृष्ण है। ‘द्वारिका’ का वैभव होने के बाद भी, यदि ‘सुदामा” मित्र है, तो वो कृष्ण है। ‘मृत्यु‘ के फन पर मौजूद होने पर भी, यदि ‘नृत्य’ है तो, वो कृष्ण है। ‘सर्वसामर्थ्य’ होने पर भी, यदि ‘सारथी’ है, तो वो कृष्ण है।
कृष्ण जी को कैसे सजाएं?
सबसे पहले कान्हा जी को सुंदर वस्त्र पहनाएं।
अब उन्हें सिर पर पगड़ी पहनाएं और उसमें मोर पंख लगाएं। कान्हा जी के हाथों में कड़े डालें और पैरों में पजेब पहनाएं। अब ठाकुर जी को माला पहनाएं।
उनके हाथों में बांसुरी लगाएं। आप चाहे तो ठाकुर जी के माथे पर टीका और आंखों में काजल भी लगा सकते हैं।
जन्माष्टमी का व्रत में क्या क्या खाते हैं?
जन्माष्टमी के व्रत में खूब फल खा सकते हैं। रसीले फलों के सेवन से आपके शरीर में पानी कमी नहीं होने पाती, जिस वजह से आपको डिहाइड्रेशन नहीं होता। जन्माष्टमी के व्रत में आप तरबूज ककड़ी और खरबूज जैसे अधिक पानी वाले फलों का सेवन करें तो आपको विशेष लाभ होगा। इसके अलावा आप केला, सेब और अमरूद भी खा सकते हैं।
जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल की पूजा कैसे करें?
इस पावन दिन पर गोपाला को माखन का भोग जरूर लगाएं। उन्हें माखन का भोग लगाने के बाद माखन को प्रसाद के र्रोप में खुद भी ग्रहण करें। कान्हा के शीश पर मोर पंख हमेशा शोभामान रहता है। इसलिए अगर आपके घर में लड्डू गोपाल की सेवा है तो उनके लिए इस जन्माष्टमी मोरपंख जरूर लाएं और उनके मुकुट या पगड़ी में जरूर लगाएं।
महाराष्ट्र में जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है?
मंदिर में दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। भगवान कृष्ण का पहला दर्शन सुबह 5 बजे शुरू होता है और दोपहर 1 बजे समाप्त होता है। कीर्तन या भक्ति गीतों का गायन पूरे दिन होता है। कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मध्यरात्रि में भव्य प्रार्थना के साथ समाप्त होता है।
जन्माष्टमी के व्रत में पानी कब पीते हैं?
इस व्रत में पूरे दिन पानी पिया जा सकता है, लेकिन सूर्यास्त से लेकर कृष्ण जन्म तक के समय में निर्जल रहना होता है। इसके अलावा जन्माष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर साफ पानी से स्नान कर दिन भर जलाहार या फलाहार ग्रहण करने के साथ ही सात्विक रहना आवश्यक होता है।