काल (मृत्यु)
मृत्यु से सभी भय खाते हैं, किन्तु मृत्यु आत्मा का स्थानान्तरण मात्र है । जिस प्रकार हम पुराने वस्त्र बदलते हैं , उसी प्रकार आत्मा शरीर बदलती है। मृत्यु से ही तो नया जीवन मिलता है। तो आइए देेखते कि मृत्यु क्या हैं ? किसे कहते है? मृत्यु का अर्थ, मृत्यु की पूरी जानकारी क्या क्या हैं?
जीवन का सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु जिसे कोई टाल नहीं सकता है । जो मृत्युलोक में आया है उसे एक दिन अपने शरीर को छोड़कर जाना ही है । शरीर में मौजूद उर्जा जिसे आत्मा कहते हैं वह समाप्त नहीं होती बस रूपान्तरित होती रहती है ।
मृत्यु किसे कहते हैं ?
सामान्य भाषा मे किसी भी जीवात्मा अर्थात प्राणी के जीवन के अन्त को मृत्यु कहते हैं । मृत्यु सामान्यतः वृद्धावस्था , लालच , मोह , रोग , कुपोषण के परिणामस्वरूप होती है ।
मृत्यु हमारे लिए रहस्य नहीं है । हम सब जानते हैं कि वह हम सबको आएगी । उसके बारे में सिर्फ इतना पता नहीं चल पाता कि वह कब आएगी ।
मृत्यु का अर्थ
मृत्यु एक ऐसा मित्र है जो हजारों बंधनों , दुःखों एवं झंझटों से मुक्ति दिलाती है । मृत्यु अर्थात् परमात्मा को बीते हुए जीवन का हिसाब देने का पवित्र दिन हैं। शरीर का नाश होना मृत्यु नहीं है । मृत्यु है वास्तव में पापों की वासना।
मृत्यु क्या हैं ?
मृत्यु वह सोने की चाबी है जो अमरता के महल को खोल देती है। मृत्यु उसकी मुक्तिदायिनी है जिसे स्वतंत्रता मुक्त नहीं कर सकती , यह उसकी चिकित्सक है जिसे औषध निरोध नहीं कर सकती, यह उसकी अन्नदायिनी है जिसे समय सांत्वना प्रदान नहीं कर सकता । मृत्यु का फव्वारा जीवन के स्थिर जल को नर्तन कराता है ।
लोग मृत्यु को अमंगल मानते हैं , परंतु यह मृत्यु अमंगल नहीं है । मृत्यु ( काल ) परमात्मा की सेवक है अत: मंगल भी है। मृत्यु साथ ही चलती है , वह साथ ही बैठती है और सुदूरवर्ती पथ पर भी साथ – साथ जाकर साथ ही लौट आती है। जो मरना जानते हैं उनके लिए मौत भयंकर नहीं है ।
मृत्यु के बारे में सदैव प्रसन्न रहो और इसे सत्य मानो कि भले आदमी पर जीवन में या मृत्यु के पश्चात् कोई बुराई नहीं आ सकती । मृत्यु भी धर्मनिष्ठ प्राणी की रक्षा करती है । दुष्ट स्त्री , कपटी दोस्त , जवाब देने वाला नौकर और सर्प वाले घर में रहना मौत के समान ही है।
वृद्ध मनुष्य मुत्यु के पास जाते हैं लेकिन युवकों के पास मृत्यु स्वयं आती है । क्षुधा और प्यास से जितनों की मृत्यु होती है उनसे कहीं अधिक लोगों की मृत्यु अधिक भोजन और मदिरा सेवन से होती है ।
जीवन की चलती हुई तस्वीर के लिए मृत्यु ही एक समुचित चौखट है। जो आत्मा को अमर नहीं जानते वे ही मृत्यु से काँपा करते हैं। जिसे देवता प्यार करते हैं वह जल्दी मरता है ।मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है । जन्म भर की घटनाएँ एक – एक कर सामने आती हैं । समय की धुंध बिल्कुल उन पर से हट जाती है। मृत्यु को स्वाभाविक बनाने वाला ही सुख से मर सकता है । तो प्रभु का आमंत्रण है जब वह आये तो द्वार खोलकर उसका स्वागत करो और चरणों में हृदयधन सौंप अभिवादन करो।
मनुष्य वैसे तो मृत्यु पर विजय नहीं पा सकता , किन्तु मृत्यु के भय से मुक्त हो जाना ही मौत को जीतना होता है । मृत्यु पर हँसना सीख जाओ , तो मृत्यु से डर कहाँ रह जाएगा । मृत्यु स्वयं अपनी शक्ति से किसी मनुष्य को नहीं मार सकती । मनुष्य किसी दूसरे कारण से नहीं , स्वयं अपने ही कर्मों से मारा जाता है ।