नाग पंचमी कब से मनाया जाता है? नागपंचमी से जुड़े रहस्य

नाग पंचमी कब से मनाया जाता है? नागपंचमी से जुड़े रहस्य

भारत को नागों का देश भी कहा जाता है। यहां नाग को देव स्वरूप पूजा जाता है। लेकिन नाग पंचमी के दिन इसका महत्व सबसे ज्यादा होता है। इसलिए इस दिन को भारत मे त्यौहार के रूप में मनाया जता है। लेकिन क्या आप जानते है कि नागपंचमी कब से मनाया जाता है? क्या इसके पीछे का रहस्य? अगर आप भी नागपंचमी के बारे में विस्तार से जानना चाहते है तो इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े।

नाग पंचमी

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है, मान्यता है की, इस दिन नाग देवता की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। साथ ही सर्प के दर्शन से भय नहीं रहता है। कहा जाता है की नाग पंचमी के दिन विधि विधान से नाग देवताओं की पूजा करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

नाग पंचमी कब से मनाया जाता है? नागपंचमी से जुड़े रहस्य

भारत में लोग भगवान शिव के साथ साथ सांपों से भी जुड़ा रहता हैं,और इसीलिए भगवान से उनकी रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार नाग पंचमी श्रवण मास के दौरान शुक्ल पक्ष यानी चंद्र काल की पंचमी को मनाई जाती है। नाग पंचमी सबसे शुभ हिंदू त्योहारों में से एक त्यौहार है, जो आमतौर पर हरियाली तीज के 2 दिन बाद आता है। यह सावन माह के शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाई जाता है।

नागपंचमी क्यों मनाया जाता है?

भोलेनाथ के गले में सांपों का हार है और भगवान श्री कृष्ण के जन्म पर नाग कि सहायता से ही वासुदेव जी ने यमुना नदी पार की थी। समुद्र मंथन के समय देवताओं की मदद भी वहां वासुकी नाग ने ही की थी। इसीलिए नाग पंचमी के दिन नाग देवताओं का आभार व्यक्त करने के लिए यह, त्यौहार मनाया जाता है।

नाग पंचमी की शुरुआत

माता कद्रो ने नागों की यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाती को बचाने के लिए वासुकी बहुत चिंतित हुए तब इलापत्र नामक नाग ने बताया की आपकी बहन का जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा। तब नागराज वासुकी ने अपनी बहन जराकरू की विवाह एक ऋषि से करवा दिया। नागलोक की रक्षा के लिए यज्ञ को ऋषि आस्तिक मुनि ने श्रवण मास के शुक्ल पक्ष के पंचमी के दिन ही रोक दिया, और नागलोक की रक्षा की। इस तरह तक्षक नाग के बचने से नागलोक का वंश बच गया। आग के तप से नाग को बचाने के लिए ऋषि ने उन पर कच्चा दूध डाल दिया था। तभी से नागपंचमी मनाने लगा, और नागों को दूध से नहलाया जाने लगा। तभी से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

कैसे हुई नागों की उत्पत्ति?

हमारे धर्म ग्रंथो में शेषनाग, वासुकि नाग, तक्षक नाग, कर्कोटक नाग, धृतराष्ट्र नाग, कालिया नाग आदि नागो का वर्णन मिलता है। इन नागो से सम्बंधित यह कथा पृथ्वी के आदि काल से सम्बंधित है।

नागो की उत्पत्ति कद्रू और विनता दक्ष प्रजापति की पुत्रियाँ थीं और दोनों कश्यप ऋषि को ब्याही थीं। एक बार कश्यप मुनि ने प्रसन्न होकर अपनी दोनों पत्नियों से वरदान माँगने को कहा। कद्रू ने एक सहस्र पराक्रमी सर्पों की माँ बनने की प्रार्थना की और विनता ने केवल दो पुत्रों की किन्तु दोनों पुत्र कद्रू के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली पराक्रमी और सुन्दर हों। कद्रू ने 1000 अंडे दिए और विनता ने दो। समय आने पर कद्रू के अंडों से 1000 सर्पों का जन्म हुआ।

पुराणों में कई नागो खासकर वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कार कोटक, नागेश्वर, धृतराष्ट्र, शंख पाल, कालाख्य, तक्षक, पिंगल, महा नाग आदि का काफी वर्णन मिलता है।

शेषनाग कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे। इनका एक नाम अनन्त भी है। शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता व भाइयों ने मिलकर विनता के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।

ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।

वासुकि नाग धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। ये भी महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान थे। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। इनकी बुद्धि भी भगवान भक्ति में लगी रहती है। जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा।

तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया। आस्तीक ने ही प्रिय वचन कह कर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्रमंथन के समय नागराज वासुकी की नेती बनाई गई थी। त्रिपुरदाह के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।

तक्षक नाग धर्म ग्रंथों के अनुसार तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।

जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तीक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तीक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए। ग्रंथों के अनुसार तक्षक ही भगवान शिव के गले में लिपटा रहता है।

नाग पंचमी में क्या किया जाता है? नागपंचमी का त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

इसी दिन परिवार के सभी लोग आशीर्वाद लेने के लिए नाग देवताओं की पूजा करते हैं महिलाएं भी नाग देवताओं की पूजा करते हैं। जीवित सांपों को भी दूध पिलाकर और उनकी पूजा की जाती हैं। अच्छे से उनकी सेवा की जाती है, क्योंकि ऐसे माना जाता है कि नाग देवताओं की पूजा करने से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती ही।

नाग पंचमी के दिन शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ लगता है। माना जाता है की इस दिन भक्तों को भगवान शिव, नागदेव और 12 नागों की पूजा अवश्य करनी चाहिए। नाग पंचमी व्रत करने वाले भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। कहा जाता है की नाग पंचमी का व्रत रखने से भक्तों की मनोकामनाएं पुरी होती है।

किसान परिवार वाले इस दिन अपने खेतों में जाकर पूजा करते हैं। उनका मानना है की नाग खेत खलियानों में घूमते रहते हैं। तो वे दूध आकर पी सकते हैं और उनकी खेतों की रक्षा भी नागदेव करते हैं। आज के दिन नाग दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है।

नाग पंचमी कैसे मनाया जाता है?

नागपंचमी पर नाग देवता को दूध अर्पित करना मुख्य अनुष्ठान है । लोगों के बीच यह मान्यता है कि इस दिन नाग देवता को प्रसाद चढ़ाने से उनके परिवार को किसी भी बुराई से बचाया जाता है। कई लोग इस दिन को मनाने के लिए उपवास रखते हैं और गरीबों को खाना खिलाते हैं। कुछ भक्त घर में मिट्टी से सर्प की मूर्ति भी बनाते हैं।

नाग पंचमी पर पूजा कैसे की जाती है?

लकड़ी की चौकी पर नाग देवता का चित्र या मिट्टी की मूर्ति स्थापित करें। अब गाय के दूध से मूर्ति को स्नान कराएं फिर नाग देवता की दीपक, गंध, धूप और पुष्प से पूजा करें। इसके बाद नाग देवता को चीनी, घी और कच्चा दूध चढ़ाएं। अंत में नाग देवता का ध्यान करते हुए आरती करें और कथा का पाठ करें।

नागपंचमी से जुड़ी मान्यताएं

ऐसा भी मानना है कि अगर किसी व्यक्ति को नाग काट भी लेता है तो महिलाओं द्वारा गीत गाकर उनका उपचार किया जाता है, और फिर नाग देवता के मंदिर में ले जाए जाते हैं, और फिर रोगी स्वस्थ हो जाते हैं। नाग पंचमी को लेकर ऐसे ही बहुत सी ऐसी मान्यता है जो नाग पंचमी से जुड़ी हुई है।

भारत में नागों को भगवान का स्वरूप मानते हैं उनकी पूजा करते हैं क्योंकि भगवान शिव की पूजा कर करते हैं और भगवान शिव को नाग बहुत प्रिय होते हैं तो भक्तजन भगवान शिव की भी पूजा के साथ साथ नाग देवता की भी पूजा करते है। अर्थात भक्तों का मानना है कि नाग को प्रसन्न करना यानी भगवान शिव को प्रसन्न करना है।

नागपंचमी से जुड़े कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियां

नाग पंचमी का अर्थ क्या है?

नाग पंचमी एक पारंपरिक हिंदू त्योहार है, जो नाग पूजा का प्रतीक है । त्योहार का नाम दो शब्दों के संयोजन से लिया गया है – नाग, जिसका अर्थ है कोबरा / नाग, और पंचमी, जो कि चंद्रमा के ढलने या घटने के पंद्रह दिनों में से पांचवां है।

नागपंचमी की कहानी क्या है?

नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है, ताकि सर्पों से होने वोले भय दूर हों। परिवार के किसी सदस्य को सांपों से कोई हानि न पहुंचे। हालांकि नाग पंचमी की कथा में उस घटना का वर्णन है, जिसमें नागों के जीवन पर संकट छा गया था, तब सावन शुक्ल पंचमी को ब्रह्म देव के आशीर्वाद से उस संकट का समाधान मिला।

नाग पंचमी की शुरुआत कैसे हुई?

सर्प यज्ञ रुकवाने, लड़ाई को खत्म करके पुनः अच्छे सबंधों को बनाने हेतु आर्यों ने स्मृति स्वरूप अपने त्योहारों में ‘सर्प पूजा’ को एक त्यौहार के रूप में मनाने की शुरुआत की। नागवंश से ताल्लुक रखने पर उसे नागपंचमी कहा जाने लगा होगा।

नाग पंचमी का क्या महत्व है?

नागपंचमी को कालिया नाग पर कृष्ण की जीत का जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है। एक अन्य कहानी के अनुसार, परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सांपों से बदला लेने के लिए एक नाग यज्ञ की व्यवस्था की थी क्योंकि उनके पिता परीक्षित को तक्षक ने मार दिया था। ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को रोक दिया था।

नाग पंचमी के दिन सांप देखने से क्या होता है?

बेतिया। नाग पंचमी के दिन लोग नाग देवता की पूजा करते हैं। माना जाता है कि इस दिन नाग का दर्शन होना शुभ होता है। इस दिन नाग सांप का दर्शन शिवलिंग के साथ हो जाए तो श्रद्धालु इसे ईश्वर की बड़ी कृपा मानते हैं और दर्शन की होड़ लग जाती है।

नाग पंचमी के दिन क्या क्या नहीं करना चाहिए?

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, नागपंचमी पर लोहे के बर्तन जैसे तवा या कहाड़ी का इस्तेमला नहीं करना चाहिए। साथ ही इस दिन सुई धागे के उपयोग से भी बचना चाहिए। आगरा अपने व्रत रखा है तो इन चीज़ों का ख़ास तौर पर ध्यान रखें।

नाग पंचमी के दिन क्या खाना चाहिए?

पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएँ। कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी खाना खाया जाता है। इसके बाद दीवाल पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवाल पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति बनाते हैं।

घर पर नागा पूजा कैसे करें?

मूर्ति या मूर्ति पर दूध और पानी छिड़कें और फिर उस पर अक्षत, कुमकुम, हल्दी चंदन लगाएं। इसके बाद फूल, नैवेद्य और धूप चढ़ाएं। अब, पूजा करते समय किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा यज्ञ (क्षमा मांगें) मांगें। अंत में, देवता के सामने झुकें, उनका आशीर्वाद लें और पूजा समाप्त करें।

क्या नाग पंचमी पर दूध पी सकते हैं?

क्या नाग पंचमी पर दूध पीते हैं सांप? सांप सरीसृप हैं, दूध पीने के लिए स्तनधारी नहीं। सरीसृप द्वारा दूध को पचाया नहीं जा सकता और वे अंततः मर जाते हैं! नाग पंचमी पर सांप दूध क्यों पीते हैं इसका कारण यह है कि नाग पंचमी से 30-45 दिन पहले सपेरों द्वारा निर्जलित और तनावग्रस्त होते हैं।

हम नाग की पूजा क्यों करते हैं?

लोग भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें और उनके प्रियजनों को सांपों से बचाए रखें क्योंकि साल के इस समय में सांप सूखे स्थानों की तलाश में अपने ठिकाने से बाहर निकलते हैं। हालांकि जहरीले, सांपों को शांतिपूर्ण और हानिरहित प्राणी माना जाता है और कहा जाता है कि वे तभी आक्रामक होते हैं जब उन पर मनुष्यों द्वारा हमला किया जाता है।

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