बाबा सत्यनारायण के तपस्या का 25 वर्ष पूरा आज भी तपस्या में लीन
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  • Post last modified:February 26, 2023

तपस्या के 25 वर्ष कोसमनारा के तपस्वी बाबा सत्यनारायण

हमारे धर्म ग्रंथों में ऋषि मुनियों के द्वारा 15-20 वर्ष जंगलों, पहाड़ों और कंदराओं में कठोर तपस्या करने का वर्णन मिलता है। साधारण तौर पर लोग इसे काल्पनिक कथा, मनगढंत कहानियाँ ही समझते हैं, पर छतीसगढ़ के लोग इसे आज जीवंत रूप में देख रहे हैं। तो आइए देखते है कोसमनारा के तपस्वी बाबा सत्यनारायण के बारे में।

बाबा सत्यनारायण

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय के नजदीक ग्राम कोसमनारा में 16 फरवरी 1998 से तपस्या में लीन बाबा सत्यनारायण को यह हठ योग करते आज 25 वर्ष पूर्ण हो गए। रायगढ़ में गर्मी के मौसम में तापमान 47 डिग्री तक पहुँच जाता है। ऐसे गर्म मौसम सहित भीषण ठंड और भरी बरसात में भी बिना छत के हठ योग में विराजे बाबाजी का दर्शन कर लेना ही अपने आप में सम्पूर्ण तीर्थ के समान है।

क्या कहते हैं बाबा सत्यनारायण

बाबा कब क्या खाते हैं, कब समाधि से उठते हैं, आम लोगों को पता नहीं, लेकिन उनके करीबी लोग बताते हैं कि चौबीस घंटे में केवल एक बार अर्द्धरात्रि में आधे एक घंटे के लिए वे समाधि से उठकर नित्यकर्म कर थोड़ा सा दूध और फल ग्रहण करते हैं, और पुनः तपस्यालीन हो जाते हैं।

बाबा सत्यनारायण का बचपन

कोसमनारा से 19 किलोमीटर दूर देवरी, डूमरपाली में एक साधारण किसान दयानिधि साहू एवं हँसमती साहू के परिवार में 12 जुलाई 1984 को अवतरित हुए बाबाजी बचपन से ही आध्यात्मिक रुचि के थे। एक बार गांव के ही तालाब के बगल में स्थित शिव मंदिर में वे लगातार 7 दिनों तक तपस्या करते रहे। माँ बाप और गांव वालों की समझाइश पर वे घर लौटे तो जरूर मगर एक तरह से शिव जी उनके भीतर विराज चुके थे।

कब और कैसे तपस्या के लीन हुआ बाबा

14 वर्ष की अवस्था में एक दिन वे स्कूल के लिए बस्ता लेकर निकले मगर स्कूल नहीं गए। बाबाजी सफेद शर्ट और खाकी हाफ पैंट के स्कूल ड्रेस में ही रायगढ़ की ओर रवाना हो गए। अपने गांव से 19 किलोमीटर दूर और रायगढ़ से सट कर स्थित कोसमनारा वे पैदल ही पहुंचे। कोसमनारा गांव से कुछ दूर पर एक बंजर जमीन पर उन्होंने कुछ पत्थरों को इकट्ठा कर शिवलिंग का रूप दिया और अपनी जीभ काट कर उन्हें समर्पित कर दी। कुछ दिन तक तो किसी को पता नहीं चला मगर फिर जंगल में आग की तरह खबर फैलती चली गई और लोगों का हुजूम वहां पहुचने लगा। कुछ लोगों ने बालक बाबा की निगरानी भी की मगर बाबा जी तपस्या में जो लीन हुए तो आज तक उसी जगह पर हठ योग में लीन हैं।

मां बाप ने बचपन में उन्हें नाम दिया था हलधर… पिता प्यार से सत्यम कह कर बुलाते थे। उनके हठयोग को देख कर लोगों ने नाम दे दिया “बाबा सत्य नारायण”। बाबा बात नहीं करते मगर जब ध्यान तोड़ते हैं तो भक्तों से इशारे में ही संवाद कर लेते हैं। कोसमनारा की धरा को तीर्थ स्थल बनाने वाले बाबा सत्यनारायण के दर्शन करने वाले भक्तों के लिए अब उस तपस्या स्थल पर लगभग हर की व्यवस्था हो गई है, किंतु बाबा ने खुद के सर पर छांव करने से भी मना किया हुआ है। आज भी बाबा जी का कठोर तप जारी है।

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Amit Yadav

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