भारत में आर्थिक समिति | भारत के महत्वपूर्ण आर्थिक समितियां

भारत में आर्थिक समिति | भारत के महत्वपूर्ण आर्थिक समितियां

देश के वित्तीय क्षेत्र के सामने कई मुद्दे थे, यही कारण है कि सभी मुद्दों को हल करने के लिए कई समितियों का गठन किया गया था। तो चलिए देखते है भारत में आर्थिक समिति कौन कौन से और किस प्रकार है।

आर्थिक समिति क्या है?

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

आर्थिक समिति जिसे हम इकोनामिक कमिटी भी कहते हैं, किसी भी देश या फिर किसी भी स्टेट के जितने भी इकनोमिक आर्थिक प्रॉब्लम होती है उनसे संबंधित जितने भी नए – नए प्लानिंग होते हैं वह आर्थिक समिति के द्वारा ही की जाती है उनके ऊपर रिसर्च की जाती है। भारत में आर्थिक समिति जो इकनोमिक कमेटी होती है वह मिनिस्ट्री ऑफ फाइनेंस के अंदर आती है।

केंद्रीय आर्थिक समिति क्या है?

भारत की मंत्रिमण्डलीय आर्थिक समिति या केंद्रीय आर्थिक समिति, भारत सरकार के आर्थिक मामलों में निर्णय लेने वाली मंत्रिमण्डलीय समिति है। इस समिति में भारत के प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में गृहमन्त्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री और विदेश मंत्री शामिल होते हैं। यह समिति भारत में आर्थिक नीतियों के मामलों में अंतिम निर्णय लेने और आर्थिक नीति को दिशा प्रदान करने हेतु ज़िम्मेदार है।

आयोग और समिति में क्या अंतर है?

भारत में एक आर्थिक समिति उन लोगों का एक समूह है जो एक समूह के रूप में एक निर्णय लेने या दस्तावेज़ बनाने के लिए नियत नियमों के अनुसार मिलते हैं और विचार करते हैं। एक कमीशन उन लोगों का एक समूह है जो सरकार द्वारा कार्य करने के लिए सौंपे गए है।

भारत में महत्वपूर्ण आर्थिक समिति

भारत में आर्थिक समिति | भारत के महत्वपूर्ण आर्थिक समितियां

नरसिम्हम समिति – 1991 (बैंकिंग क्षेत्र में सुधार)

भारतीय अर्थव्यवस्था में 1991 के आर्थिक संकट के बाद बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के लिए जून 1991 में एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में नरसिंहम् समिति अथवा वित्तीय क्षेत्रीय सुधार समिति की स्थापना की गई जिसने अपनी संस्तुतियां दिसंबर 1991 में प्रस्तुत की।

नरसिंहम् समिति की प्रमुख बातें

  • नरसिंहम् समिति की सिफारिशों ने भारत में बैंकिंग क्षमता को बढ़ने में मदद की है।
  • इसने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये व्यापक स्वायत्तता प्रस्तावित की गई थी।
  • समिति ने बड़े भारतीय बैंकों के विलय के लिये भी सिफारिश की थी।
  • इसी समिति ने नए निजी बैंकों को खोलने का सुझाव दिया जिसके आधार पर 1993 में सरकार ने इसकी अनुमति प्रदान की।
  • भारतीय रिजर्व बैंक की देखरेख में बैंक के बोर्ड को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखने की सलाह भी नरसिंहम् समिति ने दी थी।
  • इस समिति ने शाखा लाइसेंसिंग की समाप्ति की सिफारिश की।
  • नरसिंहम समिति ने बैंकों के पुनर्निर्माण के ऊपर भी जोर दिया। इस समिति के अनुसार 3 या 4 अन्तर्राष्ट्रीय बैंक, 8 या 10 राष्ट्रीय बैंक तथा कुछ स्थानीय बैंक एवं कुछ ग्रामीण बैंक एक देश के अन्दर होने चाहिए।
  • इस समिति ने बैकों के ऋणों की समय पर वसूली के लिए विशेष ट्रिब्यूनल की स्थापना पर जोर दिया।
  • पहले बैंकों पर वित्त मंत्रालय तथा रिजर्व बैंक का नियंत्रण होता था। नरसिंहम कमेटी ने सुझाया कि बैंकों पर केवल रिजर्व बैंक का नियंत्रण होना चाहिए।
  • नरसिंहम समिति ने विदेशी बैंकिग को भी अपने देश में प्रोत्साहित करने की सिफारिश की।

एम एन गोइपोरिया समिति – 1991 (ग्राहक सेवा में सुधार)

देश के विभिन्न बैंकों में ग्राहक सेवा के विभिन्न स्तरों के सुधार में मदद करने के लिए 1991 में गोइपोरिया समिति बनाई गई थी। एमएन गोइपोरिया ने गोइपोरिया समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है, जिसमें उन्होंने विभिन्न बैंकों में भारत की ग्राहक सेवाओं में बदलाव लाने के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की थीं, और इनमें कुशलता से सुधार किया गया था।

एम एन गोइपोरिया समिति की प्रमुख बातें

इस समिति ने भारत भर के सभी बैंकों के लिए कई सिफारिशें की हैं और एक ग्राहक शिकायत पुस्तिका रखने की बात कही है। ताकि ग्राहकों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें ठीक से दर्ज किया जा सके और उन समस्याओं के बारे में उचित कार्रवाई की जा सके

  • कर्मचारियों का कार्य प्रारंभ हमेशा सामान्य व्यावसायिक घंटों से 15 मिनट पहले होगा ताकि ग्राहकों के लिए बैंकों को चालू किया जा सके और समय की बर्बादी न हो।
  • बैंक के अंदर बंद होने के समय से पहले आने वाले सभी ग्राहकों को संबोधित करना अनिवार्य है
  • कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंक में आने वाले ग्राहकों को व्यावसायिक घंटों के दौरान काउंटर और निर्बाध सेवाएं प्रदान की जा रही हैं
  • बैंक में विशेष मार्गदर्शन के लिए पूछताछ या क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ, का एक काउंटर होना चाहिए ताकि बैंक में आने वाला व्यक्ति भ्रमित न हो।
  • काउंटर बैंकिंग कार्यालय के प्रवेश द्वार के पास होना चाहिए
  • ग्राहक को शिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे अपनी पासबुक नियमित रूप से अपडेट करते रहें।
  • ग्राहकों के लिए एक शिक्षा अभियान शुरू किया जाना चाहिए ताकि पासबुक को अद्यतन रखने के लाभों पर ध्यान दिया जा सके।
  • प्रत्येक कर्मचारी को अपना पहचान बैच पहनना चाहिए जिसमें उनका नाम और फोटो ठीक से प्रदर्शित होना चाहिए ताकि ग्राहकों के लिए अधिकारियों के साथ तालमेल बिठाना बेहतर हो

एसए दवे समिति – 1991 (म्यूचुअल फंड की कार्यप्रणाली)

1991 में एसए दवे के अध्यक्षता में एक समिति बनाया गया। इस समिति ने भारत मे म्युचुअल फंड की कार्यप्रणाली को सिदृण बनाने के लिए सिफारिश की। ताकि म्युचुअल फंड से जुड़े समस्याओं को दूर किया जा सके। आज जो म्युचुअल फंड की कार्यप्रणाली की जो व्यवस्था है, उसमें काफी हद तक इस समिति का योगदान रहा है।

एसए दवे समिति की प्रमुख बातें

  • इस समिति के सिफारिश के बाद भारत में पहली बार Mutual Fund and Asset Management Companies के लिये ढाचा परिभाषित किया गया।
  • दवे समिति के सिफारिश के बाद कई निजी म्यूच्युअल फंड की स्थापना 1993 और 1994 में हुई
  • सभी विकसित देशो की तरह भारत मे भी म्यूच्युअल फंड में निवेश तेजी से बढ़ाने के लिए नई योजनाओं को अमल में लाना।
  • म्यूच्युअल फंड निवेशकों को शेयर बाज़ार में निवेश का एक सस्ता और आसान तरीका प्रदान करना।
  • म्यूच्युअल फंड के माध्यम से आम निवेशकों को विविधीकरण (diversification) और वित्तीय नियंत्रण (money management) का फायदा आसानी से मिलने की व्यवस्था बनाना।

नाडकर्णी एसएस समिति – 1992 (सार्वजनिक क्षेत्र के बांडों में व्यापार)

सुरेश शंकर नाडकर्णी एक भारतीय बैंकर, कॉर्पोरेट कार्यकारी और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के अध्यक्ष थे। इनके अगुवाई में 9 जून 1992 में एक समिति बनाया गया जिसे नाडकर्णी एसएस समिति के नाम से जाना जाता है। इस समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बांडों में व्यपार को मजबूत बनाने के लिए एक सिफारिश की।

नाडकर्णी एसएस समिति की प्रमुख बातें

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बॉन्ड (PS “बांड) में लेनदेन करने के लिए एक बेहतर प्रक्रिया विकसित करने के लिए समिति और म्यूचुअल फंड की इकाइयाँ।
  • समिति की स्थापना बैंकों और वित्तीय संस्थानों के प्रतिभूति लेनदेन की जांच करना।
  • पीएसयू बांडों में लेनदेन के लिए मौजूदा प्रक्रियाओं की जांच के आधार पर बेहतर प्रक्रियाएं और बैंकरा रसीद (बीआरई) जारी करने की प्रथा सहित कमियों को दूर करने की सिफारिश।
  • लेन-देन की बुकिंग और लेखांकन और स्थानान्तरण के कुशल तरीकों को शामिल करना।

राजा चेलिया समिति – 1992 (कर सुधार)

भारत सरकार ने देश में टैक्स सिस्टम में सुधार के के लिए प्रोफेसर राजा चेलेहिया के अगुवाई में एक टैक्स रिफॉर्म्स कमेटी नियुक्त या आर्थिक समिति की गठन की। जिसे राजा चोलिया समिति के रूप में जाना जाता है। इस आर्थिक समिति का गठन 1992 में कर सुधार के लिए किया गया था।

राजा चेलिया समिति की प्रमुख बातें

  • सीमांत कर दरों को कम करके व्यक्तिगत कराधान प्रणाली को सुधारना।
  • कॉर्पोरेट कर दरों में कटौती करना।
  • आयातित इनपुट की लागत कम करना।
  • सीमा शुल्क कर्तव्यों को कम करके
  • सीमा शुल्क दरों की संख्या में कमी और इसकी युक्तिसंगतता।
  • एक्साइज कर्तव्यों को सरल करना और वैल्यू-ऐड कर (वैट) सिस्टम के साथ एकीकरण।
  • वैट सिस्टम में कर नेट में सेवा क्षेत्र को लाना
  • कर आधार का विस्तार
  • कर जानकारी और कम्प्यूटरीकरण का निर्माण करना।
  • कर प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार

गोस्वामी समिति – 1993 (औद्योगिक रुग्णता)

भारत सरकार औद्योगिक अस्वस्थ्ता दूर करने के लिए सुझाव प्राप्त करने के लिए अप्रैल, 1993 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान के डॉ. ओमकार गोस्वामी की अध्यक्षता में एक आर्थिक समिति गठित की गई, जिसने 13 जुलाई, 1993 को अपनी रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को सौंप दी थी। इसे ही गोस्वामी समिति के नाम से जाना जाता है।

गोस्वामी समिति के प्रमुख बातें

  • इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में औद्योगिक इकाइयों को अस्वस्थ घोषित किए जाने के लिए पूर्व निर्धारित परिभाषा को बदलने के साथ-साथ रूग्ण औद्योगिक कंपनी अधिनियम के आमूल-चूल परिवर्तन करने का सुझाव दिया।
  • भारत में इस आर्थिक समिति ने औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड की भूमिका में बदलाव के लिए भी प्रस्ताव किया।
  • समिति का कहना था कि बोर्ड की रुचि बीमार इकाइयों को बंद करने के स्थान पर उनके पुनरुत्थान में अधिक रही है। वास्तव में पुनरुत्थान के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना अकुशल और गैर जिम्मेदार उद्यमियों को पुरस्कृत करने के समान है।

खन्ना समिति – 1994 (एनबीएफसी)

भारत में खन्ना समिति ने एनबीएफसी की वित्तीय स्थिति और परिचालन परिणामों में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए वित्तीय विवरणों के अलग-अलग प्रारूप निर्धारित करने की संभावना तलाशने की आवश्यकता को पहचाना और एनबीएफसी के संबंध में बैलेंस शीट और लाभ और हानि खाते के अलग-अलग प्रारूप तैयार करने की आवश्यकता पर विचार करने के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये वित्तीय विवरण विवेकपूर्ण मानदंडों और अन्य के अनुसार वित्तीय स्थिति की सही और सही तस्वीर को दर्शाने के लिए 1994 में खन्ना आर्थिक समिति की गठन किया गया।

खन्ना समिति की प्रमुख बातें

  • आरबीआई और अन्य प्राधिकरणों द्वारा जारी दिशा-निर्देश और प्रारूप वित्तीय विवरण और अनुसूची तैयार करना।
  • एक एनबीएफसी की सांविधिक लेखा परीक्षा के पूरा होने के बाद सांविधिक लेखापरीक्षकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को प्रस्तुत किए जाने वाले वाणिज्यिक बैंकों के मामले में एक लॉन्ग फॉर्म ऑडिट रिपोर्ट प्रारूप तैयार करना।
  • बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा बेहतर कॉर्पोरेट प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए लेखापरीक्षा समितियों की स्थापना के लिए दिशा-निर्देशों का सुझाव देना।
  • किसी अन्य संबंधित पहलुओं पर चर्चा करना जो उपरोक्त के लिए प्रासंगिक या प्रासंगिक हैं।

मल्होत्रा समिति – 1994 (बीमा क्षेत्र में सुधार और आईआरडीए)

बीमा क्षेत्र में सुधार के लिए सिफारिशें करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर आरएन मल्होत्रा की अध्यक्षता में 1993 में एक समिति का गठन किया गया और 1994 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। मल्होत्रा समिति ने विदेशी पूंजी का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक मजबूत मामला बनाने के लिए बीमा क्षेत्र में व्यावसायीकरण की अवधारणा को पेश करने की सिफारिश की।

मल्होत्रा समिति की प्रमुख बातें

  • बीमा क्षेत्र में निजी कंपनियों को शामिल किया जाए।
  • विदेशी कंपनियों को बीमा क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • बीमा क्षेत्र को विनियमित और विकसित करने के लिए एक स्वायत्त निकाय के रूप में बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) का गठन किया जाए।
  • IRDA के प्रमुख उद्देश्यों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना शामिल है ताकि बीमा बाजार की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उपभोक्ता की पसंद और कम प्रीमियम के माध्यम से ग्राहकों की संतुष्टि को बढ़ाया जा सके।
  • ग्राहक का प्रतिनिधित्व करने वाले दलालों को एक अन्य विपणन और वितरण चैनल के रूप में लाया जाना चाहिए, जो कि अधिकांश विकसित बाजारों में प्रचलित है।

  • जोखिम प्रबंधन और हामीदारी में पेशेवर मानकों का स्तर बढ़ाएं और दावों के निपटान में तेजी लाएं।

एस.एस. तारापुर समिति – 1997 (की स्थापना पूंजी खाता परिवर्तनीयता सुधार)

भारतीय रिजर्व बैंक ने पूंजी खाते पर रुपये की पूर्ण परिवर्तनीयता के लिए एक रोडमैप का प्रस्ताव करने के लिए पूंजी खाता परिवर्तनीयता (सीएसी) या एसएस तारापुर समिति पर समिति की स्थापना की। मई 1997 में समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

एसएस तारापुर समिति के प्रमुख बातें

  • पूंजी खाता उदारीकरण के विभिन्न रूपों के साथ भारत के अनुभव की जांच करना।
  • मौद्रिक और विनिमय दर नीति, वित्तीय बाजारों और वित्तीय प्रणाली पर बढ़ी हुई पूंजी खाता परिवर्तनीयता के प्रभावों की जांच करना।
  • भारत में घरेलू परिसंपत्तियों और देनदारियों के डॉलरकरण के प्रभावों के साथ-साथ भारतीय रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण की जांच करना।
  • पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता के लिए अनुक्रमण और समय सहित एक पूर्ण मध्यम अवधि के परिचालन ढांचे को विकसित करने के लिए, पूर्ववर्ती प्रभावों के साथ-साथ केंद्र और राज्यों के राजस्व और राजकोषीय घाटे दोनों में सुधार को ध्यान में रखते हुए।
  • अधिक पूंजी खाता परिवर्तनीयता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति करने वाले राष्ट्रों में नियामक संरचना की जांच करना।
  • मौद्रिक और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए नीतिगत सिफारिशें और विवेकपूर्ण सुरक्षा उपाय करना।

नरसिम्हम समिति II – 1998

भारत में आर्थिक सुधार के लिए नरसिंहम समिति द्वितीय की स्थापना 1998 में हुई। नरसिंहम् समिति की सिफारिशों ने भारत में बैंकिंग क्षमता को बढ़ने में मदद की है। इसने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये व्यापक स्वायत्तता प्रस्तावित की गई थी। समिति ने बड़े भारतीय बैंकों के विलय के लिये भी सिफारिश की थी।

नरसिम्हम समिति II की प्रमुख बातें

  • सुदृढ़ वाणिज्यिक बैंकों का आपस में विलय अधिकतम आर्थिक और वाणिज्यिक माहौल पैदा करेगा और इससे उद्योगों का विकास होगा।
  • सुदृढ़ वाणिज्यिक बैकों का विलय कमजोर वाणिज्यिक बैकों के साथ नहीं किया जाना चाहिए।
  • देश के बड़े बैंकों को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया जाना चाहिए।
  • जोखिम भरी आस्तियों से पूंजी के अनुपात को सन् 2000 तक 9 प्रतिशत तथा सन् 2002 तक 10 प्रतिशत के स्तर पर लाया जाना चाहिए।
  • सरकारी प्रतिभूतियों द्वारा कवर किए गए असुविधाजनक हो चुके ऋणों को गैर निष्पादनीय अस्ति माना जाए।
  • रुपये 2,00,000 लाख से कम के ऋणों पर ब्याज नियंत्रण का अधिकार बैंकों को दिया जाए।

दवे समिति – 1998

भारत में आर्थिक सुधारों के लिए सामूहिक निवेश योजनाओं के लिए मसौदा नियमों की जांच और अंतिम रूप देने के लिए, सेबी ने डॉ. एस.ए. दवे की अध्यक्षता में इस समिति की नियुक्ति की। समिति में सरकारी मंत्रालयों, नियामक निकायों, उपभोक्ता फोरम, व्यावसायिक निकायों और वृक्षारोपण उद्योग के प्रतिनिधित्व शामिल हैं।

दवे समिति की प्रमुख बातें

  • समिति ने 28 जनवरी, 1998 को अपनी पहली बैठक आयोजित की
  • और कुछ बड़ी सामूहिक निवेश योजनाओं द्वारा प्रसाद की संरचना में एक अंतर्दृष्टि इकट्ठा करने के लिए मौजूदा योजनाओं द्वारा प्रस्तुत जानकारी की समीक्षा करके अपना कार्य शुरू किया।
  • समिति ने 3 महत्वपूर्ण विशेषताओं की पहचान करके एक सामूहिक निवेश योजनाओं को परिभाषित किया है।
  • परिभाषा को अंतिम रूप देते समय, समिति यह मानती है कि यह संभव हो सकता है कि इस प्रकार की कुछ व्यवस्थाएं जैसे टाइम शेयर, क्लब सदस्यता आदि भी परिभाषा में शामिल हों।
  • यह सुझाव दिया जाता है कि सेबी को किसी भी वर्ग की व्यवस्था को छूट देने के लिए उचित अधिकार दिए जा सकते हैं।
  • यह भी देखा गया है कि कई मौजूदा सामूहिक निवेश योजनाएं निवेशकों के साथ कई समझौते करने का सहारा लेती हैं,
  • इसके तहत निवेशक को जमीन का स्वामित्व दिया जाता है और कंपनी को इस जमीन को विकसित करने का अधिकार दिया जाता है।

वर्मा समिति – 1999

भारत में आर्थिक सुधार के लिए 1999 में वर्मा समिति लाया गया जिसमे म्यूचुअल फंड आरआईसी 1999 कमजोर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पुनरुद्धार और 2001 आयकर समीक्षा जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों को शामिल किया गया।

भारत में आर्थिक समिति सूची

 

  • हजारी समिति (1967) – औद्योगिक नीति
  • पी. सी. अलेक्जेण्डर समिति (1978) – आयात-निर्यात नीतियों का उदारीकरण
  • तिवारी समिति (1984) – औद्योगिक रुग्णता
  • चक्रवर्ती कमेटी (1985) – मौद्रिक पद्धति के कार्यों की समीक्षा
  • रंगराजन समिति (1991) – भुगतान सन्तुलन
  • गोस्वामी समिति (1993) – औद्योगिक रुग्णता
  • नन्जुन्दप्पा समिति (1993) – रेलवे किराए भाड़े
  • स्वामीनाथन समिति (1994) – जनसंख्या नीति
  • भण्डारी समिति (1994) – क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पुनर्सरचना
  • के. आर. वेणुगोपाल समिति (1994) – सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत् केन्द्रीय निर्गम मूल्य निर्धारण
  • एम. जी. जोशी समिति (1994) – दूरसंचार में निजी क्षेत्रत्र के प्रवेश सम्बन्धी दिशा-निर्देश
  • ज्ञान प्रकाश समिति (1994) – चीनी घोटाला
  • बी.एन. युगांधर समिति (1995) – राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना
  • सुन्दर राजन समिति (1995) – (खनिज) तेल क्षेत्र में सुधार
  • डी. के. गुप्ता समिति (1995) – दूरसंचार विभाग की पुनर्संरचना
  • राकेश मोहन समिति (1995) – आधारिक संरचना वित्तीयन
  • मालेगाँव समिति (1995) – प्राथमिक पूँजी बाजार
  • सोधानी समिति (1995) – विदेशी मुद्रा बाजार
  • ओ. पी. सोधानी विशेषज्ञ दल (1995) – विदेशी विनिमय बाजार का विकास
  • पिन्टो समिति (1997) – नौवहन उद्योग
  • चंद्रात्रे समिति (1997) – शेयर व प्रतिभूतियों की स्टॉक एक्सचेंजों में डीलिस्टिंग
  • अजीत कुमार समिति (1997) – सेना के वेतनों की विसंगतियाँ
  • सी. बी. भावे समिति (1997) – कम्पनियों द्वारा सूचनाएं प्रस्तुत करना
  • एस. एस. तारापोर समिति (1997) – पूँजी खाते की परिवर्तनशीलता
  • महाजन समिति (मार्च 1997) – चीनी उद्योग
  • आर. वी. गुप्ता समिति (दिसम्बर 1997) – कृषि साख
  • एस. एन. खान समिति (1998) – वित्तीय संस्थायों तथा बैंकों की भूमिका में समन्वय
  • एन. एस. वर्मा समिति (1999) – वाणिज्यिक बैंकों की पुनर्संरचना
  • दवे समिति (2000) – असंगठित क्षेत्र के लिए पेंशन की सिफारिश
  • तारापोर समिति (जुलाई 2001) – यू.टी.आई. के शेयर सौदों की जाँच
  • वाई वी. रेड्डी समिति (अक्टूबर 2001) – आयकर छूटों की समीक्षा
  • माशेलकर समिति (जनवरी 2002) – ऑटो फ्यूल नीति
  • मालेशकर समिति (अगस्त 2003 में रिपोर्ट) – नकली दवाओं का उत्पादन
  • सप्तऋषि समिति (जुलाई 2002) – स्वदेशी चाय उद्योग के विकास हेतु
  • अभिजीत सेन समिति (जुलाई 2002) – दीर्घकालीन अनाज नीति
  • एन. आर. नारायण मूर्ति समिति (2003) – कार्पोरेट गवर्नेंस
  • वी.एस. व्यास समिति (दिसम्बर 2003) – कृषि एवं ग्रामीण साख विस्तार
  • विजय केलकर समिति-3 (मार्च 2004) – फिस्कल रेस्पोन्सिबिलिटी एण्ड बजट मैनेजमेन्ट एक्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था की त्रैमासिक समीक्षा
  • लाहिड़ी समिति (2005) – खाद्य तेलों के मूल्यों पर प्रशुल्क संरचना सम्बन्धी सिफारिश करना
  • सच्चर समिति-2 (2005) – मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन
  • नायर कार्यदल (2006) – पेट्रोलियम क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतिगत सुझाव देने हेतु
  • रंगराजन समिति-2 (2006) – पेट्रोलियम उत्पादों पर प्रशुल्क संरचना के सम्बन्ध में सिफारिशें देने हेतु
  • मालेगाँव समिति (2006) – लेखा मानकों पर सुझाव हेतु
  • शुंगलू समिति (2006) – सरदार सरोवर बाँध परियोजना के विस्थापितों के पुनर्वास की स्थिति की समीक्षा हेतु
  • पाठक आयोग (2006) – UNO के तेल के बदले अनाज कार्यक्रम की जाँच हेतु
  • मिस्त्री समिति (2007) – वित्तीय गतिविधियों के सुधार हेतु सुझाव
  • दीपक पारिख समिति (2007) – आधारिक संरचना के वित्तीय मामले में सुझाव देने हेतु
  • अभिजीत सेन समिति (मार्च 2007 में गठित) – कृषिगत उत्पादों के थोक एवं खुदरा मूल्यों पर फ्यूचर ट्रेडिंग की समीक्षा
  • सी. रंगराजन समिति – (31 दिसम्बर, 2007 को गठित) – बचत एवं निवेश के आँकड़ों की समीक्षा
  • तेन्दुलकर समिति (2008) – गरीबी रेखा के नीचे की लाइन की समीक्षा हेतु
  • बी. के. चतुर्वेदी समिति (2008) – तेल कम्पनियों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा हेतु
  • राकेश मोहन समिति – (रिपोर्ट मार्च 2009) – कमेटी ऑन फाइनेंशियल सेक्टर एसेसमेंट
  • सुब्बाराव समिति (जुलाई 2009) – मौद्रिक नीति पर तकनीकी सलाह हेतु
  • डॉ कीर्ति एस. पारीक समिति (अगस्त 2009) – पेट्रोलियम उत्पादों की मूल्य प्रणाली पर सुझाव देने हेतु
  • डॉ. सी. रंगराजन समिति (अप्रैल 2010) – सार्वजनिक व्यय के बेहतर प्रबन्धन के लिए
  • एम. सी. जोशी समिति (मई 2011) – काले धन से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं की समीक्षा

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