भारत में कृषि | भारतीय कृषि से जुड़े जरूरी जानकारी
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की त्यौहार से लेकिन अर्थव्यवस्था तक सब कृषि से जुड़ा हुआ है। इसलिए ये जानना भी जरूरी हो जाता है। कि आखिर भारत में कृषि किस प्रकार से है। तो चलिए देखते है भारतीय कृषि से जुड़े कुछ जरूरी जानकारियां।
कृषि का अर्थ क्या है?
एग्रीकल्चर या कृषि शब्द का अर्थ भूमि से जुड़े हुए सभी मानवीय कार्य, जैसे खेत का निर्माण, जुताई, बुआई, फसल उगाना, सिंचाई करना, पशुपालन, मत्स्य पालन, वृक्षारोपण एवं उनका संवर्धन आदि सम्मिलित है।
कृषि क्या है?
मानव सभ्यता के विकास में स्थायी कृषि एक महत्वपूर्ण चरण था भूमि अथवा मिट्टी को जोतने, बीज बोकर बीज उत्पन्न करने, सहायक के रूप में पशु पालने, मत्स्याखेट करने की सम्पूर्ण कार्य प्रणाली की कला एवं विज्ञान को “कृषि” कहते हैं।
कृषि की परिभाषा क्या है?
फसल उत्पन्न करना ही कृषि है। अर्थात, कृषि का अर्थ है फसल उत्पन्न करने की प्रक्रिया, फसल उत्पादन, पशुपालन आदि की कला, विज्ञानं और तकनीक को कृषि कहते हैं। भूमि के उपयोग द्वारा फसल उत्पादन करने की क्रिया और प्रक्रिया को कृषि कहते हैं। कृषि एक प्राथमिक कार्य है जिसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग द्वारा मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ती करना है।
कृषि क्यो जरूरी है?
इस प्रकार कृषि में बीज से बीज उत्पन्न करना एवं पशुपालन, मत्स्याखेट, वानिकी सभी सम्मिलित हैं। इसी व्यवसाय से विश्व की समस्त जनसंख्या को भोजन प्राप्त होता है एवं वस्त्र व आवास संबंधी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
भारत में कृषि
कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। भारत में कृषि सिंधु घाटी सभ्यता के दौर से की जाती रही है। भारत में कृषि की गौरवशाली परम्परा रही है। इतिहासकारों द्वारा किया गया शोध यह दर्शाता है कि भारत में सिन्धु घाटी सभ्यता के समय में भी कृषि व्यवस्था अर्थव्यवस्था की रीढ़ हुआ करती थी।
वैदिक काल में बीजवपन, कटाई आदि क्रियाएं की जाती थीं। हल, हंसिया, चलनी आदि उपकरणों का चलन था तथा इनके माध्यम से गेहूं, धान, जौ आदि अनेक धान्यों का उत्पादन किया जाता था। चक्रीय परती पद्धति के द्वारा मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने की परम्परा के निर्माण का श्रेय भी प्राचीन भारत को जाता है। रोम्सबर्ग (यूरोपीय वनस्पति विज्ञान के जनक) के अनुसार इस पद्धति को बाद में पाश्चात्य जगत में भी अपनाया गया।
1960 के बाद कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति के साथ नया दौर आया। 2007 में भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं सम्बन्धित कार्यों (जैसे वानिकी) का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हिस्सा 16.6% था। उस समय सम्पूर्ण कार्य करने वालों का 51℅ कृषि में लगा हुआ था। भारत का अधिकांश उत्सव और त्यौहार सीधे कृषि से जुड़ा हुआ है।
2010 संयुक्त राष्ट्र कृषि तथा खाद्य संगठन के विश्व कृषि सांख्यिकी, के अनुसार भारत के कई ताजा फल और सब्जिया, दूध, प्रमुख मसाले आदि को सबसे बड़ा उत्पादक ठहराया गया है। रेशेदार फसले जैसे जूट, कई स्टेपल जैसे बाजरा और अरंडी के तेल के बीज आदि का भी उत्पादक है। भारत गेहूं और चावल की दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत, दुनिया का दूसरा या तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है कई चीजो का जैसे सूखे फल, वस्त्र कृषि-आधारित कच्चे माल, जड़ें और कंद फसले, दाल, मछलीया, अंडे, नारियल, गन्ना और कई सब्जिया।
भारत में कृषि पद्धति
भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर कृषि आधारित है, क्योंकि जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा कृषि कार्य में लगा हुआ है। भारत में कृषि अनुमानतः सम्पूर्ण जनसंख्या का 67 प्रतिशत उन्नत भाग कृषि कार्य में संलग्न है। आज भी उर्वरक भारत में अधिकांश क्षेत्रों में कृषि कार्य पुरानी तकनीक और मानसून पर निर्भर है। मानसून पूर्व कृषि कार्य प्रारंभ हो जाता है। किसान खेतों की जुताई प्रारंभ कर देते हैं। धान की रोपाई के लिए जून – जुलाई में वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं।
जून, जुलाई में बोई गयी फसलों को खरीफ की फसल कहते हैं। उसके बाद नवंबर में बोई जाने वाली फसल को रबी की फसल कहते हैं। उसके अंतर्गत गेहूँ, दलहन, तिलहन आदि आते हैं। भारत में अलग – अलग क्षेत्रों में अनेक पद्धति प्रचलित हैं। इन पद्धतियों में गहन कृषि, विस्तृत कृषि, शुष्क कृषि एवं मिश्रित कृषि पद्धितियाँ प्रचलित है।
कृषि के प्रकार
भारत एक विशाल देश है यह अनेक प्रकार की कृषि की जाती है। जिनमे कुछ इस प्रकार है।
स्थानांतरण कृषि :
इस कृषि के अंतर्गत कृषक अपना कृषि क्षेत्र बदलते रहता है । वनों को काटकर तथा झाड़ियों को जला कर छोटे से भूखण्ड को साफ कर लकड़ी के हल या अन्य औजार द्वारा खोद कर बीज बो दिया जाता है। इस कृषि में मोटे अनाज जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा उत्पन्न किये जाते हैं।
बागाती कृषि :
बहुत से देशों में कृषि बागानों के रूप में किया जाता है। इसमें बड़ी बड़ी उपजें , बागानों में उत्पन्न होती हैं । बागाती कृषि में निम्न विशेषता पाई जाती हैं।
- इसके अंतर्गत विशिष्ट उपजों का ही वे उत्पादन किया जाता है। इस – केला, रबड़, कहवा, चाय आदि।
- इस कृषि के उत्पादों का उपयोग समशीतोष्ण कटिबंधीय देशों द्वारा किया जाता है।
- यह कृषि फार्मों अथवा बागानों में की जाती है। अधिकांश बागानों में विदेशी कम्पनियों का आधिपत्य रहा है।
गहनभरण वाली कृषि :
यह कृषि उन देशों में विकसित हुई है। जहाँ उपजाऊ भूमि की कमी तथा जनाधिक्य पाया जाता है। अधिकांश मानसूनी देशों में यह कृषि की जाती है।
मिश्रित खेती :
इस प्रकार की कृषि कार्यों के साथ – साथ पशुपालन व्यवसाय भी किया जाता है। यहाँ पर कुछ फसलों का उत्पादन मानव के लिए तथा कुछ उत्पादन पशुओं के लिए किया जाता है।
फलों एवं सब्जियों की कृषि :
नगरीय केन्द्रों के समीपवर्ती कृषि क्षेत्रों में फल एवं सब्जियों का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता है। बाजार केन्द्र की समीपता एवं परिवहन संसाधनों की सुविधा के आधार पर इस कृषि का विकास हुआ है।
शुष्क कृषि :
यह कृषि पूर्णतः वर्षा जल पर निर्भर रहती है। देश की कुल कृषि भूमि के 70 प्रतिशत भाग पर यह कृषि की जाती है।
भारत की मुख्य फसलें
चावल :
भारत की एक मुख्य खाद्यान्न फसल चावल है। चावल उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु वाला पौधा है। अतः गर्म और आर्द्र जलवायु में खूब पनपता है। इसलिए इसे मुख्यरूप से खरीफ की ऋतु में उगाया जाता हैं।
चावल के उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। छत्तीसगढ़ में चावल की फसल अधिक होती है। इस क्षेत्र में धान की दो फसल ली जाती है, धान अधिक उपज देने वाली फसल है। रोपाई की सुधरी तकनीकों, सुनिश्चित सिंचाई सुविधाओं तथा उर्वरकों के उपयोग से कम समय में ही अच्छे परिणाम निकलते है।
गेहूं :
रबी की प्रमुख फसल है। गेहूँ भारत अधि की प्राचीन फसल है। उत्तरी मैदान में पंजाब, हरियाणा, की दोमट मिट्टयों में गेहूँ की अच्छी पैदावार होती है, उत्तर प्रदेश के शेष भागों में बिहार, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में भी कहीं – कहीं गेहूँ पैदा किया जाता है, लेकिन गेहूँ मुख्य रूप से उत्तर भारत की फसल है।
कपास :
भारत कपास के पौधों का मूल स्थान है। गुजरात और महाराष्ट्र कपास के उत्पादक राज्य है।
खाद्य सुरक्षा
जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरे नंबर का देश है। इतनी बड़ी जनसंख्या के भरण पोषण के लिए आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से जुझने के लिए खाद्य पदार्थों का भंडारण और सुरक्षा अति आवश्यक है ताकि देश आत्म निर्भर बना रहे। सुरक्षा के लिए सरकार के द्वारा ” भारतीय खाद्य निगम संस्था “की स्थापना की गई है।
नवीनीकरण हेतु किए गए प्रयास
स्वतंत्रता के बाद भारत की कृषि उन्नति के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ लागू की गई। कृषि के उत्पादन को बढ़ाने के लिए नई तकनीकी का प्रयोग, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग जिस से कृषि के उत्पादन में वृद्धि हुई।
भारत में कृषि सिंचाई
भारत में सिंचाई का मतलब खेती और कृषि गतिविधियों के प्रयोजन के लिए भारतीय नदियों, तालाबों, कुओं, नहरों और अन्य कृत्रिम परियोजनाओं से पानी की आपूर्ति करना होता है। भारत जैसे देश में, 64% खेती करने की भूमि, मानसून पर निर्भर होती है। भारत में सिंचाई करने का आर्थिक महत्त्व है – उत्पादन में अस्थिरता को कम करना, कृषि उत्पादकता की उन्नती करना, मानसून पर निर्भरता को कम करना, खेती के अंतर्गत अधिक भूमि लाना, काम करने के अवसरों का सृजन करना, बिजली और परिवहन की सुविधा को बढ़ाना, बाढ़ और सूखे की रोकथाम को नियंत्रण में करना।
कृषि का राष्ट्रीय आय में योगदान
सरकारी राजस्व में कृषि का योगदान है, इस से आय प्राप्त होती है। निर्यात व्यापार में विशेषकर जूट, कपास, चाय, फल, तिलहन, मसाले आदि प्रमुख हैं।
हरितक्रान्ति :
कृषि में नवीन तकनीकी का प्रयोग करके कृषि उत्पादन में वृद्धि करना। स्वतंत्रता के बाद भारत की कृषि उन्नति के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ प्रारंभ की गई। कृषि के उत्पादन को बढ़ाने के लिए नवीनीकरण उपायों का प्रयोग किया गया। सरकार द्वारा कृषि विकास के लिए अनेक कार्य और नयी – नयी तकनीकी कृषि क्षेत्र में नेक लायी गयी। इसके अंतर्गत कृषि क्षेत्रों में वृद्धि, श्रित रासायनिक उर्वकों के उत्पादन में वृद्धि, कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना, किसानों को प्रशिक्षण, कीटनाशकों का छिड़काव, हरितक्रांति आदि आते हैं।
वैश्वीकरण :
आधुनिक युग में यातायात के साधनों का विकास एवं वैज्ञानिक उन्नति के कारण सम्पूर्ण विश्व एकजूट बन गया है। वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात उन्नत साधनों के कारण पलक झपकते ही विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक कृषि उत्पादों को लाया ले जाया जा सकता है।
रोजगार प्रदायक एवं सम्पूर्ण उत्पाद :
कृषि के सम्पूर्ण उत्पाद से रोजगार की प्राप्ति होती है। हजारों की संख्या में श्रमिक कार्य करके अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं, अपने परिवार का भी पेट भर रहे हैं।
- भारत के कृषि संस्थान | भारत के प्रमुख अनुसंधान केंद्र | प्रमुख शोध संस्थान
- भारत के कृषि विश्वविद्यालय, भारत मे कुल कितने कृषि विश्वविद्यालय है?
भारत ने पिछ्ले 60 वर्षो मैं कृषि विभाग में कई सफलताए प्राप्त की है। ये लाभ मुख्य रूप से भारत को हरित क्रांति, पावर जनरेशन, बुनियादी सुविधाओं, ज्ञान में सुधार आदि से प्राप्त हुआ। भारत में फसल पैदावार अभी भी सिर्फ 30% से 60% ही है। अभी भी भारत में कृषि प्रमुख उत्पादकता और कुल उत्पादन लाभ के लिए क्षमता है। विकासशील देशों के सामने भारत अभी भी पीछे है। इसके अतिरिक्त, गरीब अवसंरचना और असंगठित खुदरा के कारण, भारत ने दुनिया में सबसे ज्यादा खाद्य घाटे से कुछ का अनुभव किया और नुकसान भी भुगतना पड़ा।
भारतीय कृषि से जुड़े कुछ जानकारी :
- कृषि क्रांति क्या है? विभिन्न कृषि क्रांतियां कौन कौन से है? देखे पूरी जानकारी
- सबसे बड़ा उत्पादक राज्य, भारत में फसलों के उत्पादक राज्यो की पूरी सूची
भारत में कृषि का महत्व क्या है?
कृषि संपूर्ण राष्ट्र को प्रभावित करती है। कृषि-उत्पादन मुद्रास्फीति दर पर अंकुश रखता है, उद्योगों की शक्ति प्रदान करता है, कृषक आय में वृद्धि करता है तथा रोजगार प्रदान करता है। कृषि का आर्थिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक महत्व भी है।
भारत में कुल कृषि क्षेत्र कितना है?
देश के 328.7 मिलियन हेक्टेयर के कुल भौगोलिक क्षेत्र की कुल कार्यबल आबादी का 54.6% कृषि और संबद्ध क्षेत्र की गतिविधियों में लगा हुआ है, जिसमें से 140.1 मिलियन हेक्टेयर शुद्ध बुवाई क्षेत्र है। (जनगणना 2011)
कृषि कितने प्रकार की होती है?
- सिंचित कृषि
- मिश्रित कृषि
- एकल और बहु-फसल कृष
- विविध कृषिऔर विशेष कृषि
- उपउत्पाद कृषि
- स्थानांतरण कृषि
- बागवानी कृषि
- व्यापारिक कृषि
भारतीय कृषि की विशेषता क्या है?
खाद्यान्न की प्रधानता-देश की कृषि खाद्यान्न प्रधान है क्योंकि विशाल जनसंख्या के लिए भोजन जुटाना मुख्य लक्ष्य है। कुल कृषि उत्पादन में 80% भाग खाद्यान्नों का होता है। फसलों की विविधता-भारत में जलवायु विषमता के कारण कई प्रकार की फसलें ली जाती हैं। एक ही खेत में एक साथ अनेक फसलें बोयी जाती हैं।
भारत में कृषि सुधार कब हुआ?
1949 में कांग्रेस कृषि सुधार समिति के प्रतिवेदन में संघीय लोकतांत्रिक ढांचे के अधीन भूमि सुधार तथा सहकारी खेती पर बल दिया गया। पहली दो विचारधाराओं को कानूनी समर्थन के अभाव में अस्वीकार कर दिया गया तथा कांग्रेस की नीतियों के आधार पर ही कृषि सुधारों की प्रक्रिया को प्रारंभ करने का निश्चय किया गया।
कृषि कितने प्रतिशत है?
भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 51 फीसदी भाग पर कृषि, 4 फ़ीसदी पर पर चरागाह, लगभग 21 फीसदी पर वन और 24 फीसदी बंजर और बिना उपयोग की है। देश की कुल श्रम शक्ति का लगभग 52 फीसदी भाग कृषि और इससे सम्बंधित उद्योग और धंधों से अपनी आजीविका चलता है।
कृषि विकास क्या है?
कृषि के विकास का तात्पर्य है कि कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयत्न किये जायें जिससे बढ़ती जनसंख्या की मांग पूरी की जा सके।
भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
भूमि पर अधिकार देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है। फसल पर सही मूल्य किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता। इसके अलावा अच्छे बीज, सिंचाई व्यवस्था, मिट्टी का क्षरण, मशीनीकरण का अभाव, भंडारण सुविधाओं का अभाव परिवहन भी एक बाधा इत्यादि।
कृषि पर आधारित उद्योग कौन कौन से हैं?
कृषि-आधारित उद्योग-धंधों में कपास उद्योग, गुड व खांडसारी, फल व सब्जियों-आधारित, आलू-आधारित कृषि उद्योग, सोयाबीन-आधारित, तिलहन-आधारित, जूट-आधारित व खाद्य संवर्धन-आधारित आदि प्रमुख उद्योग हैं। पिछले कुछ वर्षों में दूसरे उद्योगों की भांति कृषि-आधारित उद्योगों में भी काफी सुधार हुआ है।
खेती की शुरुआत कैसे हुई?
अपने देश में खेती की शुरुआत आज से 5-6 हज़ार साल पहले हुई। जंगली गेहूं आज का गेहूं जंगली मक्का आज का मक्का जैसे सुंगा झुंड था वैसे शिकारियों के और भी कई झुंड थे। धीरे-धीरे उन्हें पौधों को उगाने के बारे में कई बातें पता भी चल गईं थीं। ख़ासकर, झुंड की औरतों को पेड़-पौधों के बारे में काफी ज्ञान रहता था।
सबसे पहले खेती कहाँ हुई थी?
इजिप्ट में नील नदी, चाइनीज नदी घाटी तथा उत्तरी भारतीय मैदानों के आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले प्रारंभिक मनुष्यों की सभ्यता फसल उगाने से जुड़ी हुई थी।
ऐसा कौन सा देश है जहां खेती नहीं होती है?
सिंगापुर, ऐसा देश है जहां एक भी खेत नहीं हैं।