कृषि का विकास कम से कम सात से तेरह ईशा वर्ष पूर्व हो चुका था। तब से अब तक बहुत से महत्वपूर्ण परिवर्तन हो चुके हैं। भारत में कृषि व उससे जुड़ी सहायक गतिविधियाँ आजीविका का एक प्रमुख साधन है। हम जैसे ही कृषि क्रान्ति के युग में प्रवेश करते हैं तो पाते हैं कि सभी क्षेत्रों में दिन-प्रतिदिन नई खोज़ और आविष्कार हो रहा है। लेकिन कृषि के क्षेत्र में सबसे बड़ा बदलाव हरित क्रांति के साथ नया दौर के रूप में हुआ। कृषि क्रांति के रूप में ये नई कृषि योजनाओं का अविष्कार और खोज किस प्रकार हुआ आइए देखतें है कृषि क्रांति क्या है? विभिन्न कृषि क्रांतियां कौन कौन से देखे पूरी जानकारी, पोस्ट के माध्यम से…
कृषि क्या है?
उपजाऊ भूमि को खोदकर अथवा जोतकर और बीज बोकर व्यवस्थित रूप से अनाज उत्पन्न करने की प्रक्रिया को कृषि अथवा खेती कहते हैं।
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कृषि क्रांति क्या है? कृषि क्रन्ति किसे कहते है?
वास्तव में, कृषि का कोई विकल्प नहीं हैं। अत: कृषि क्षेत्र में आ रहे बदलाव से किसानों को नियमित रूप से अवगत कराया जाना विशेषज्ञों के बीच सूचना के आदान-प्रदान के लिए प्लेटफॉर्म तैयार कर एवं खेती के दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों की योजना बनाकर एवं माँग के आधार पर सभी विस्तार एवं सलाह सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित कराकर कृषि क्षेत्र में ज्ञान आधारित नई विकल्पों के साथ किये गये विशेष प्रयास या उपलब्धता ही कृषि क्रांति हैं।
विभिन्न कृषि क्रांति कौन कौन से देखे पूरी जानकारी
1. हरित क्रांति – खाधान्न उत्पादन
हरित क्रांति सन् 1940-60 के मध्य कृषि क्षेत्र में हुए शोध विकास, तकनीकि परिवर्तन एवं अन्य कदमों की श्रृंखला को संदर्भित करता है जिसके परिणाम स्वरूप हरित क्रांति के पिता कहे जाने वाले नौरमन बोरलोग के नेतृत्व में संपूर्ण विश्व तथा खासकर विकासशील देशों को खादान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। भारत में हरित क्रांन्ति की शुरुआत सन् 1966-1967 हुई थी। भारत में एम. एस. स्वामीनाथन को इसका जनक माना जाता है और तत्कालीन कृषि एवं खाद्य मन्त्री बाबू जगजीवन राम को हरित क्रान्ति का प्रणेता माना जाता हैं।
क्योंकि उन्होंने एम.एस. स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों पर हरित क्रांति का सफलतम संचालन किया। हरित क्रान्ति भारतीय कृषि में 1960 के दशक में पारम्परिक कृषि को आधुनिक तकनीकि द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने के रूप में सामने आई। क्योंकि कृषि क्षेत्र में यह तकनीकि एकाएक आई, तेजी से इसका विकास हुआ और थोड़े ही समय में इससे इतने आश्चर्यजनक परिणाम निकले कि देश के योजनाकारों, कृषि विशेषज्ञों तथा राजनीतिज्ञों ने इस अप्रत्याशित प्रगति को ही ‘हरित क्रान्ति’ की संज्ञा प्रदान कर दी।
हरित क्रांति के परिणाम
- हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई।
- कृषि आगतों में हुए गुणात्मक सुधार के फलस्वरूप देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है।
- खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता आई है।
- व्यवसायिक कृषि को बढ़ावा मिला है।
- कृषकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है।
- कृषि आधिक्य में वृद्धि हुई है।
- हरित क्रान्ति के फलस्वरूप गेहूँ, गन्ना, मक्का तथा बाजरा आदि फ़सलों के प्रति हेक्टेअर उत्पादन एवं कुल उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई
- रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग
- उन्नतशील बीजो के प्रयोग में वृद्धि
- सिंचाई सुविधाओं का विकास
- पौधा संरक्षण
- बहुफसली कार्यक्रम की शुरुआत
- आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग
- कृषि सेवा केंद्रों की स्थापना
- कृषि उद्योग निगमो की स्थापना
- कृषि शिक्षा एंव अनुसंधान
- मृदा परीक्षण
- भूमि परीक्षण
श्वेत क्रांति – दुग्ध उत्पादन
13 जनवरी 1970 को दुग्ध क्रान्ति या ऑपरेशन फ्लड शुरू किया गया जिससे कि भारत में दूध की कमी को दूर किया जा सके और इसे ‘श्वेत क्रांति’ भी कहते हैं। भारत में श्वेत क्रांति के जनक डॉ . वर्गीज कुरियन ने दूध की कमी से जूझने वाले देश को दुनिया का सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला देश बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। जिसके परिणाम स्वरूप आज भारत दुनिया के सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश हैं। भारतीय दुग्ध उत्पादन से जुड़े महत्वपूर्ण सांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार देश में 70 प्रतिशत दूध की आपूर्ति छोटे/ सीमांत/ भूमिहीन किसानों से होती है।
श्वेत क्रांति के परिणाम
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना।
- भारत में दूध उत्पादन को बढ़ावा मिला
- करीब 7 करोड़ कृषक परिवार में प्रत्येक दो ग्रामीण घरों में से एक डेरी उद्योग से जुड़े।
- ऑपरेशन फ्लड ने डेयरी उद्योग से जुड़े किसानों को उनके विकास को स्वयं दिशा देने में सहायता दी, उनके संसाधनों का कंट्रोल उनके हाथों में दिया
- राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड देश के दूध उत्पादकों को 700 से अधिक शहरों और नगरों के उपभोक्ताओं से जोड़ता है।
- अमूल की सफलता से अभिभूत होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अमूल मॉडल को अन्य स्थानों पर फैलाने के लिए राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन किया।
- भारत की ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ करने में डेरी उद्योग की प्रमुख भूमिका है।
नीली क्रांति – मत्स्य उत्पादन
नीली क्रांति विशेष रूप से अविकसित देशों में, वैश्विक जलीय कृषि उत्पादन पालन और मछली, शंख और जलीय पौधों की महत्वपूर्ण वृद्धि और गहनता को संदर्भित करती है। 1980 के दशक से पहले, जलीय कृषि से वैश्विक मछली आपूर्ति एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी। समुद्री मत्स्य पालन में कमी और बाद में कब्जा मत्स्य उत्पादन में गिरावट के कारण जलीय कृषि का तेजी से विकास हुआ। 1980 के दशक के मध्य से 2000 तक, वैश्विक जलीय कृषि उत्पादन में 50 % से अधिक की वृद्धि हुई, और वैश्विक मछली आपूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में खुद को मजबूत किया। इसे ही नीली क्रांति कहा गया।
नीली क्राति शुरू में एशिया और विशेष रूप से चीन में केंद्रित थी। लेकिन हाल ही में अफ्रीका ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। नीली क्रांति ने 1980 के दशक से वैश्विक मछली खपत में वैश्विक वृद्धि को प्रेरित और समर्थन किया है। पिछले कई दशकों में, वैश्विक मछली खपत में प्रति वर्ष 3.1 % की वृद्धि हुई है, और मुख्य रूप से जलीय कृषि के माध्यम से 2000 से, जलीय कृषि सबसे तेजी से बढ़ता हुआ खाद्य उत्पादन क्षेत्र रहा हैं। जो 5.8 % प्रति वर्ष बढ़ रहा है।
नीली क्रांति के परिणाम
- 1980 के दशक के उत्तरार्ध में मत्स्य उत्पादन पर कब्जा करने के चरम और उसके बाद के ठहराव ने तकनीकी नवाचार को बढ़ावा दिया और जलीय कृषि उत्पादन के लिए बेहतर दक्षता हासिल की।
- जलीय कृषि तेजी से बढ़ी है और अब प्रत्यक्ष मानव उपभोग और अन्य उद्देश्यों के लिए वैश्विक मछली आपूर्ति के मुख्य स्रोत का प्रतिनिधित्व करती है, और वैश्विक खाद्य प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- नीली क्रांति ने कुछ क्षेत्रों में खेती की मछली की पहुंच और उपलब्धता में सुधार किया है, इसलिए संभावित रूप से कम आय वाले देशों और ग्रामीण आबादी में खाद्य और पोषक तत्वों की सुरक्षा में सुधार हुआ है।
- जलीय कृषि उत्पादन में वृद्धि ने एक विश्वसनीय मछली आपूर्ति को सक्षम किया है जो जंगली मछली पकड़ने की तुलना में अधिक स्थिर है।
- जलकृषि के उछाल ने खेती की अधिकांश प्रजातियों की कीमत को नीचे गिरा दिया है, जिससे वे कम आय वाले परिवारों के लिए अधिक किफायती हो गए हैं।
भूरी क्रांति – उवर्रक उत्पादन
भूरी क्रांति के अंतर्गत उर्वरक उत्पादन, चमड़ा उत्पादन एवं कोको उत्पादन को बढ़ावा मिला। भूरी क्रांति को लागू करने से इससे जुड़े लोगों की आय में वृद्धि हुई जिससे देश को भी आर्थिक लाभ मिला। भूरी क्रांति ने मृदा उर्वरता, फसल उत्पादकता को बढ़ाने तथा देश की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न मांग को पूरा करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भारत की हरित क्रांति की सफलता तथा खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने का श्रेय मुख्यतः उर्वरकों के प्रयोग को जाता है।
भूरी क्रांति के परिणाम
- किसानों की आय में अत्यधिक बढ़ोतरी
- ज्यादा फसलों का उत्पादन हुआ जिससे देश की अर्थव्यवस्था में असर देखने को मिला।
- मृदा की उर्वरता बढ़ाने में सहयोग।
- कृषि उत्पादकता में सुधार हेतु किसानों द्वारा अपनी अधिशेष आय का पुनः निवेश किया गया।
- 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले बड़े किसानों को इस क्रांति से विशेष रूप से विभिन्न आदानों जैसे- हाईब्रिड बीज, उर्वरक, मशीन आदि में बड़ी मात्रा में निवेश करने से लाभ प्राप्त हुआ।
- इसने पूंजीवादी कृषि को भी बढ़ावा दिया ।
रजत क्रांति – अंडा उत्पादन
सिल्वर क्रांति या रजत क्रांति मुर्गी पालन में कुशल विकास को बढ़ाने के लिए उन्नत विधियों और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके भारत में अंडा उत्पादन की अत्यधिक वृद्धि से संबंधित है। सिल्वर क्रांति 1969-1978 में शुरू हुई थी। जिसके तहत मुर्गियों से अधिक अंडे व मांस उत्पादन के लिए देश में 5 बड़े कुक्कुट फार्म बंगलौर, मुंबई, भुवनेश्वर, दिल्ली और शिमला में स्थापित किए गए। यहां पर उन्नत नस्ल की मुर्गियों को आयात कर संकरण द्वारा उम्दा नस्ल की मुर्गियों का विकास किया गया। भारत में आंध्र प्रदेश अंडे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
रजत क्रांति के परिणाम
- भारत विश्व में अंडे का सबसे बड़ा उत्पादक देश बना
- रजत क्रांति के वजह से ही आज देश का मुर्गी व्यवसाय विश्व का सबसे बड़ा व तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र बनकर उभरा है।
- आज देश का मुर्गी पालन का व्यवसाय 13 फीसदी वार्षिक की दर से वृद्धि कर रहा है।
- बड़ी फर्मों के लोए उन्नत तकनीक का प्रयोग
- बीमारियों को रोकने के लिए जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करना
- संकर मुर्गा और मुर्गियाँ प्राप्त करने के लिए चिकित्सा अनुप्रयुक्त विज्ञान का बढ़ना।
- अंडा उत्पादों के गुणवत्ता मानकों में वृद्धि।
पीली क्रांति – तिलहन उत्पादन
पीली क्रांति तिलहन उत्पादन से सम्बन्धित हैं। पीली क्रांति के जनक कौन है, बता दे कि 1980 के दशक में जब देश का खाद्य तेल आयात चिन्ताजनक स्तर पर पहुंच गया तब भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने स्वयं हस्तक्षेप करके तिलहन पर तकनीकी मिशन शुरु कराया पीला 1986- 1987 में शुरू की क्रांति, खाद्य तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष रूप से सरसों और तिल के बीज के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से यह योजना प्रारम्भ की गई। इस क्रांति के परिणामस्वरुप भारत के खाद्य तेलों और तिलहन उत्पादन में महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की हैं। सैम पित्रोदा को भारत में पीली क्रांति के पिता के रूप में जाना जाता है।
पीली क्रांति किसानों के लिए कई लाभ लेकर आई। उन्हें फसलों के लिए उर्वरक और कीटनाशकों के साथ साथ सिंचाई आदि जैसी सुविधाएं दी गईं। अन्य सुविधाओं में परिवहन सुविधा और भंडारण शामिल थे क्रांति को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक था। तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड जैसे बोर्डों को कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गईं। एनडीबी ने गुजरात में मूंगफली के तेल का उत्पादन बढ़ाने की जिम्मेदारी ली।
पीली क्रांति के परिणाम
- इस क्रांति के तहत तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त केने की दृष्टि से उत्पादन, प्रसंस्करण और प्रबन्ध प्राद्योगिकी का सर्वोत्तम उपयोग करने के उद्देश्य से तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन प्रारम्भ किया गया।
- पीली क्रांति के परिणामस्वरूप ही हमारा देश खाद्य तेलों और तिलहन उत्पादन में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर सका है।
- पीली क्रांति ने संकर सरसों और तिल के बीज को प्रत्यारोपित किया जिससे खाद्य तेल के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई।
- क्रांति ने पंजाब राज्य में खिलते सूरजमुखी के साथ एक नए युग को जन्म दिया।
- पीली क्रांति से एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ क्योंकि क्रांति शुरू होने पर तेल उत्पादन केवल 12 मिलियन टन था, जो 10 वर्षों में 24 मिलियन टन हो गया।
- संकर बीज के उपयोग से उत्पादन में सुधार के लिए कई अन्य उपाय किए गए।
- कृषि भूमि के उपयोग में लगभग 26 मिलियन हेक्टेयर की वृद्धि हुई। इसके साथ ही, आधुनिक तकनीकी आदानों का व्यापक उपयोग हुआ।
कृष्ण क्रांति – बायोडीजल उत्पादन
पेट्रोलियम उत्पादों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को कृष्ण क्रांति नाम दिया गया है। इसका मकसद देश को पेट्रोल और डीजल में आत्मनिर्भर बनाने हैं। कच्चा तेल काले रंग का होता है। इसलिए इसके उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को ब्लैक रेवोलुशन या कृष्ण क्रांति कहा जा रहा है। कृष्ण क्रांति भारत में कच्चे पेट्रोलियम के उत्पादन में वृद्धि करके तेल आयात पर भारत की निर्भरता को नियंत्रित करने के लिए 1970 के दशक में किए गए सरकारी कदमों को संदर्भित करता है ।
दरअसल, यह देश में एक ऐसी क्रांति है जिसकी एक बार शुरुआत हो जाने के बाद देश को हमेशा जरूरत रहेगी। इसके लिए हमें देश में दूसरे तरीकों से पेट्रोल और डीजल को बनाना होगा या इसका विकल्प तैयार करना होगा। क्योंकि अभी जिस गति से विश्व में पेट्रोलियम उत्पादों का उपभोग हो रहा है, उसके अनुसार विश्व में अगले 40 साल की मांग पूरी करने के लिए ही कच्चे तेल के भंडार हैं। भविष्य में होने वाली तेल की कमी को पूरा करने के लिए अभी से गंभीरता पूर्वक कदम उठाने होंगे।
कृष्ण क्रांति के परिणाम
- पेट्रोल में एथेनॉल के 20 प्रतिशत मिश्रण और बायोडीजल से देश में ईंधन आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ेगा और कच्चे तेल के आयात में कमी आएगी जिससे देश का अर्थतंत्र मजबूत होगा।
- ब्लैक रिवोल्यूशन या कृष्ण क्रांति भारत की टिकाऊ विकास को मजबूत करेगी।
- सरकार को अपने तमाम प्रयासों से इसके मार्ग में आने वाली प्रत्येक कठिनाई को दूर करना।
- एथेनॉल पर ध्यान केंद्रित करने से पर्यावरण के साथ ही एक बेहतर प्रभाव किसानों के जीवन पर भी पड़ रहा है।
- देश की वर्तमान और भावी सुरक्षा के लिए कृष्ण क्रांति का सफल होना बहुत जरूरी है।
लाल क्रांति – टमाटर/मांस उत्पादन
कृषि विभाग के अनुसार लाल क्रांति टमाटर और मांस से सम्बंधित है। इस तकनीक के माध्यम से टमाटर की खेती के लिए अत्यधिक जमीन की आवश्यकता नहीं होती है। कम जमीन में भी इस तकनीक के जरिये टमाटर का उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। लाल क्रांति के माध्यम से जिले में टमाटर की पैदावार को बढ़ाने का काम किया जा रहा है।
लाल क्रांति के परिणाम
- जिसके तहत ऐसे किसान जिनके पास जमीन अधिक नहीं है वो भी इस तकनीक के जरिये अच्छा मुनाफा कम सकते हैं।
- लाल क्रांति के माध्यम से जिले में टमाटर की पैदावार को बढ़ाने का काम किया जा रहा है।
- गरीब और कम जमीन वाले किसानों को काफी फायदा मिल रहा है।
- इस तकनीक के माध्यम से टमाटर की खेती के लिए अत्यधिक जमीन की आवश्यकता नहीं होती है। कम जमीन में भी इस तकनीक के जरिये टमाटर का उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
- सिचाई के लिए कम पानी और थोड़ी बहुत उचित देख-रेख के जरिये किसान कम लागत में क्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
गुलाबी क्रांति – झिंगामछली उत्पादन
गुलाबी क्रांति या पिंक रिवोल्यूशन भारत में फार्मास्युटिकल, प्याज और झींगा उत्पादन को बढ़ाने के लिए की गयी झींगा मछली के उत्पादन से संबंधित है। भारत के समग्र समुद्री उत्पाद में मछली का निर्यात भी समाहित है। भारत के समस्त मछली निर्यात में झींगा मछली का प्रमुख योगदान है। इस मछली के उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक मिशन तैयार किया गया, जिससे झींगा मछली का उत्पादन बढ़ाया जा सके। इस मिशन को ही गुलाबी क्रांति कहा गया। भारत में गुलाबी क्रांति का जनक दुर्गेश पटेल को माना जाता है।
गुलाबी क्रांति के परिणाम
- इस मिशन के परिणामस्वरूप झींगा मछली के उत्पादन एवं निर्यात में वृद्धि हुई,
- इस क्रांति के वजह से ही भारत संसार का सबसे बड़ा झींगा मछली निर्यातक राष्ट्र बन पाया।
- इस क्षेत्र के आधुनिकीकरण के माध्यम से विकास की उच्च क्षमता हासिल की जा सकती है।
- गुलाबी क्रांति इस क्षेत्र में बेहतर अवसर उपलब्ध कराती है।
- अधिक निर्यात से भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी तो हमारा देश इस मुद्रा का उपयोग व्यापार असंतुलन को कम करने में कर सकता है।
बादामी क्रांति – मसाला उत्पादन
मसाला मूलतः वनस्पति उत्पाद या उनका मिश्रण होता है, जो खाद्य पदार्थों को सुगंधित स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मसालों की उत्पादन और निर्यात बढ़ाने के लिए बादामी क्रांति की शुरुआत की गई थी। आज भारतीय मसाले देश और दुनिया सभी जगह अपनी खुशबू और रंग के लिए मशहूर हैं। देश में हर साल अनुमानित 12.50 लाख हैक्टेयर में मसालों की खेती होती है जिससे करीब 10.5 लाख टन मसालों का उत्पादन होता है। लेकिन ये सब सम्भव बादामी क्रांति के वजह से हुआ है। बादामी क्रांति से मसालों के उत्पादन को बढ़ावा मिला जिससे मसालों के व्यापार से जुड़े लोगों की आय में वृद्धि हुई।
बादामी क्रांति के परिणाम
- बादामी क्रांति में मसालों के उत्पादन को बढ़ावा मिला जिससे मसालों के व्यापार से जुड़े लोगों की आय में वृद्धि हुई
- ज्यादा उपज देने वाली किस्मों पर जोर दिया गया।
- बादामी क्रांति के बदौलत आज मसालों का एक्सपोर्ट सभी बागवानी फसलों के कुल निर्यात आय का 41 फीसदी योगदान देता है।
- भारत ने मसाला उत्पादन में बड़ी छलांग लगाई है।
- भारतीय मसालों की धाक पूरी दुनिया में बढ़ रही है
- देश में मसाला उत्पादन वर्ष 2014-15 के 67.64 लाख टन से बढ़कर वर्ष 2020-21 में रिकॉर्ड 60 फीसदी वृद्धि के साथ करीब 107 लाख टन के स्तर तक पहुंच गया है।
- इसकी वजह से एक्सपोर्ट लगभग दोगुना हो गया है।
सुनहरी क्रांति – फल उत्पादन
सुनहरी क्रांति फलों के उत्पादन से संबंधित है। भारत में इस क्रांति का उदय 1991 से 2003 तक समयकाल तक माना जाता है। इस क्रन्ति की शुरुआत फलों के बगीचों, बीजों के विकास के लिए शुरू किया गया था। यह क्रांति सम्पूर्ण बागवानी, शहद व फलो के उत्पादन से सम्बंधित है। इस क्रांति के कारण भारत में सब्जियों, फलो आदि बागवानी से सम्बंधित चीजो का बहुत अधिक उत्पादन संभव हो सका है। इस कृषि आंदोलन का नेतृत्व करने में विशेष योगदान के कारण निर्पख टुटेज को स्वर्ण क्रांति या सुनहरी क्रांति का जनक कहा जाता है।
सुनहरी क्रांति के परिणाम
- इस अवधि के दौरान अपनाए गए परिवर्तनों में शहद और बागवानी उत्पादों जैसे फूल, फल, मसाले, सब्जियां और वृक्षारोपण फसलों के उत्पादन में सहायता और वृद्धि के लिए नई तकनीकों का उपयोग शामिल था।
- बागवानी के क्षेत्र में नियोजित निवेश ने उच्च उत्पादकता प्राप्त की,
- इस क्षेत्र के साथ एक स्थायी आजीविका विकल्प के रूप में उभर रहा है।
- अधिक रिटर्न देने वाली फसलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, फसल के पैटर्न में बदलाव आया।
खेती की तकनीक में सुधार हुआ है। - भारत आज आम, नारियल, केला आदि विभिन्न फलों के उत्पादन में दुनिया में आगे बढ़ गया है।
- देश को दुनिया में फलों और सब्जियों के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक के रूप में भी जाना जाता है।
- इस क्षेत्र में लगे किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है।
- ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार के बड़े अवसर पैदा हुए हैं।
- बागवानी क्षेत्र स्थायी आजीविका प्रदान करने वाले क्षेत्र के रूप में उभरा है।
अमृत क्रांति – नदी जोड़ो परियोजना
अमृत क्रांति का संबन्ध नदियों को जोड़ने की परियोजना से संबंधित है। भारत में उत्तर भारत की नदियों को दक्षिण भारत की नदियों से जोड़ने की योजना बनायी जा रही है। दरअसल, भारत विविधताओं से परिपूर्ण राष्ट्र है और यहां सांस्कृतिक विविधता तो खूब है ही, भौगोलिक विविधता भी कम नहीं है। पूरे देश में नदियों का जाल है। लेकिन नदियों का स्वरूप अलग है।
भारत की नदियों में गर्मी के मौसम में पानी की बहुत कमी होती है और यही नदियां बरसात के समय विशाल स्वरूप ग्रहण करके अपने आसपास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देती हैं तथा फसलों को बरबाद कर देती हैं। मिट्टी का क्षरण बहुत बड़े पैमाने पर होने के कारण भी क्षति अधिक होती है। बरसात के समय यह पानी फालतू बह कर समुद्र में चला जाता है और मनुष्य को दो तरफ से क्षति होती है। पहले तो धन, जन की हानि, और दूसरे प्रकार से जल की हानि।
इसी के मद्देनजर भारत सरकार ने एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना का शुभारंभ 13 अक्तूबर 2002 को किया था। अमृत क्रांति के रूप में भारत सरकार ने नदी संपर्क योजना का प्रस्ताव पारित किया जिसमें लगभग सैंतीस नदियों को जोड़ने की बात कही गई। यह केवल नदियों को जोड़ने या उन्हें आपस में मिला देने की परियोजना नहीं है। नदियों को नहरों के माध्यम से जोड़ा जाएगा और जगह-जगह पर बांध और जल संरक्षण के लिए जल भंडार बनाए जाएंगे। मानसून के दिनों में जरूरत से ज्यादा पानी को इसमें सुरक्षित कर लिया जाएगा और बाद में जिस राज्य को आवश्यकता होगी, उसे नहरों के जरिए उसी सरक्षित पानी से आपूर्ति की जाएगी।
अमृत क्रांति परियोजना के परिणाम
- मृदा अपरदन को रोकने के लिये मदद मिलेगा।
- पर्यावरण का प्रबन्धन सही ढंक से होगा।
- जलविद्युत उत्पादन में तीव्रता आएगी।
- नौकायन में वृद्धि होगा।
- सिंचाई बहुत अधिक मात्रा में होगी।
- इससे वर्ष भर जल की आपूर्ति सुगमतापूर्वक होती है।
- ये नदियां अपने आसपास के क्षेत्रों को हरा-भरा रखती हैं और पेयजल, जल विद्युत आदि अनेक प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं।
- बाढ़ को रोकने में मदद होगा और बाढ़ के कारण अपार धन – जन की हानि कम होगी।
- कृष्णा और गोदावरी नदियों के आपस में जुड़ने से तकरीबन साढ़े तीन लाख एकड़ के भूक्षेत्र को फायदा होगा।
- अन्य नदियों को भी आपस में जोड़ने की योजना को गति मिलेगी।
- नदियों को नहरों के माध्यम से जोड़ा जाएगा और जगह – जगह पर बांध और जल संरक्षण के लिए जल भंडार बनाए जाएंगे।
मीठी क्रांति – मधुमक्खी पालन
मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसे मीठी क्रांति के नाम से जाना जाता है । मीठी क्रांति को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2020 में ( कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत ) राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन शुरू किया गया। मधुमक्खी पालन एक कृषि आधारित गतिविधि है, जो एकीकृत कृषि व्यवस्था के तहत ग्रामीण क्षेत्र में किसान और भूमिहीन मजदूरों द्वारा की जा रही है।
मीठी क्रांति का परिणाम
- फसलों के परागण में मधुमक्खी पालन खासा उपयोगी है, जिससे कृषि आय में बढ़ोतरी के माध्यम से किसानों/मधुमक्खी पालकों की आय बढ़ रही है।
- शहद व बी वैक्स, बी पोलेन, प्रोपोलिस, रॉयल जेली, बी वेनोम आदि महंगे मधुमक्खी उत्पाद उपलब्ध हो रहे हैं।
- मधुमक्खी पालन/शहद उत्पादन और शहद के निर्यात के लिए व्यापक संभावनाएं और अवसर उपलब्ध कराती है।
- मधुमक्खी पालन उद्योग के समग्र विकास को प्रोत्साहन देना, कृषि/बागवानी उत्पादन को बढ़ाना।
- अवसंरचना सुविधाओं के विकास के साथ ही एकीकृत मधुमक्खी विकास केन्द्र (आईबीडीसी)/सीओई, शहद परीक्षण प्रयोगशालाओं, मधुमक्खी रोग नैदानिकी प्रयोगशालाएं, परम्परागत भर्ती केन्द्रों, एपि थेरेपी केन्द्रों, न्यूक्लियस स्टॉक, बी ब्रीडर्स आदि की स्थापना।
- मधुमक्खी पालन के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण।
- वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन को लेकर जागरूकता और क्षमता निर्माण।
कुछ और महत्वपूर्ण कृषि क्रांतियां
- धुसर / स्लेटी क्रांति – सीमेंट
- गोल क्रांति- आलु
- इंद्रधनुषीय क्रांति – सभी क्रांतियो पर निगरानी रखने हेतु
- सनराइज / सुर्योदय क्रांति – इलेक्ट्रॉनिक उधोग के विकास के हेतु
- गंगा क्रांति – भ्रष्टाचार के खिलाफ सदाचार पैदा करने हेतु ( जोहड़े वाले बाबा / वाटर मैन ऑफ इंडिया / राजेन्द्र सिंह द्वारा
- सदाबहार क्रांति – जैव तकनीकी
- सेफ्रॉन क्रांति – केसर उत्पादन से
- स्लेटी / ग्रे क्रांति – उर्वरको के उत्पादन से
- हरित सोना क्रांति – बाँस उतपादन से
- मूक क्रांति – मोटे अनाजों के उत्पादन से
- परामनी क्रांति – भिन्डी उत्पादन से
- ग्रीन गॉल्ड क्रांति – चाय उत्पादन स
- खाद्द श्रंखला क्रांति – भारतीय कृषकों की 2020 तक आमदनी को दुगुना करने से
- खाकी क्रांति – चमड़ा उत्पादन से व्हाइट
- गॉल्ड क्रांति – कपास उत्पादन से ( तीसरी क्रांति )