भारत में राजवंश | भारत में राज करने वाले वंशज और उनके शासक

भारत में राजवंश | भारत में राज करने वाले वंशज और उनके शासक

भारत का इतिहास काफी पुराना है। यंहा बहुत से वंशजों और शासकों ने शासन चलाया। तो आइए जानते है भारत मे राज करने वाले वंशज कौन कौन से है? कौन कौन से साम्राज्य ने भारत पर अपना राज स्थापित किया। लेकिन इन सब को जानने से पहले ई.पू. और ईसवी को जान लेते है क्योंकि इसे जाने बगैर ठीक से समझ नही आएगा। तो चलिए देखते है भारत में राजवंश और उनके साम्राज्य।

ई.पू. और ईसवी का क्या अर्थ है?

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

ग्रेगोरियन कैलेंडर में ईसवी (ई.) ईसा मसीह के जन्म के बाद के वर्षों को दर्शाता है और ईसा पूर्व (ई.पू.) उनके जन्म से पूर्व के वर्षों को दर्शाता है। जैसे 10 ई. का मतलब है ईसा के जन्म से 10 साल बाद का समय और 10 ई.पू. का मतलब है ईसा के जन्म से 10 साल पहले का समय। मान लिया जाय यदि मौर्य काल का स्थापना 322 ईसा पूर्व तथा पतन 298 ईसा पूर्व में हुआ इसका मतलब 322 साल पहले स्थापना हुई और 298 वर्ष पहले पतन हुई। इस प्रकार उनका कुल शासन काल 24 वर्ष हुई।

भारत में राजवंश

भारत में राजवंश

महाजनपद काल – 600 ई.पू.

छठी शताब्दी ई.पू. के आसपास भारत में 16 महाजनपदों का शासन था इनमें सर्वाधिक शक्तिशाली मगध था जिसने हर्यक वंश के बिम्बसार एवं अजातशत्रु के प्रयासों से साम्राज्य का स्तर पा लिया था। अजातशत्रु के समय यह सर्वाधिक शक्तिशाली था।

हय्यक वंश – 544 ई. पू. – 413 ई.पू.

बिम्बिसार द्वारा स्थापित हय्यक वंश ब्रह्रथ द्वारा स्थापित बरहदथ वंश को पराजित करने के बाद उभर कर आया। हरयक वंश की राजधानी राजगीर थी और इस राजवंश का सबसे शक्तिशाली राजा अजातशत्रु, बिंबिसार का पुत्र था। अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार को जेल में जकड़ दिया और मगध के सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया। हय्यक वंश ने वर्तमान में बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बांग्लादेश और नेपाल के रूप में जाना जाने वाले क्षेत्र का गठन किया था।

ईसा पूर्व छठी सदी में विश्व की प्रथम गणतंत्रात्मक व्यवस्था वैशाली में थी। यह भारत में द्वितीय नगरीकरण का काल भी था। डेरियस या दारा पहला ईरानी शासक था जिसने भारत पर लगभग 516 ई.पू. में आक्रमण कर भारत के कुछ माग को अपने अधीन किया था वह यहां से भारी कर प्राप्त करता था।

हर्यक साम्राज्य के शासक

  • बिम्बिसार – 544 – 492 ई.पू.
  • अजातशत्रु – 492 – 460 ई.पू.
  • उदायिभद्र – 460–444 ई.पू.
  • अनिरुद्ध – 444 – 440 ई.पू.
  • मुंडा – 440 – 437 ई.पू.
  • दर्शक – 437 ई.पू.
  • नागदशक – 437 – 413 ई.पू.।

शिशुनाग वंश – 413 ई.पू. – 345 ई.पू.

हय्यक राजवंश का पतन शिशुनाग राजवंश ने किया जो मगध में एक अमात्य था। उन्होंने हय्यक वंश के खिलाफ लोगों द्वारा विद्रोह का नेतृत्व किया और मगध के सिंहासन पर कब्जा कर लिया और पाटलीपुत्र को अपनी राजधानी बनाया। शिशुनाग वैशाली के लिच्छवी शासकों में से एक का पुत्र था। शिशुनाग ने सिंध, कराची, लाहौर, हेरात, मुल्तान, कंधार और वेल्लोर के अलावा आज के समय में राजस्थान के जयपुर तक अपने राज्य का विस्तार किया। यहां तक कि शिशुनाग राजवंश ने अपने राज्य का विस्तार दक्षिण में मदुरै और कोच्चि तथा पूर्व में मुर्शिदाबाद और पश्चिम में मंडल तक फैलाया।

शिशुनाग राजवंश के शासक

  • शिशुनाग – 413-395 ई.पू.
  • काकवर्ण ( कालाशोक ) – 395 – 377
  • क्षेमधर्मन – 377 – 365
  • क्षत्रौजस – 365 – 355
  • नंदिवर्धन – 355 – 349
  • महानन्दि – 349 – 345

नंदवंश – 344 ई.पू. – 322 ई.पू.

नंदवंश प्राचीन भारत का एक राजवंश था। पुराणों में इसे महापद्मनंद कहा गया है तथा सर्वक्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। जिसने पाँचवीं – चौथी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया। नंदवंश की स्थापना महापद्मनंद ने की थी। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जो कुलीन नहीं था तथा जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांघ गई।

यह साम्राज्य वस्तुतः स्वतंत्र राज्यों या सामंतों का शिथिल संघ ना होकर बल्कि किसी शक्तिशाली राजा बल के सम्मुख नतमस्तक होते थे। ये एक एक रात की छत्रछाया में एक अखंड राजतंत्र था, जिसके पास अपार सैन्यबल, धनबल और जनबल था। महापद्मनंद ने निकटवर्ती सभी राजवंशो को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की एवं केंद्रीय शासन की व्यवस्था लागू की। इसीलिए सम्राट महापदम नंद को ” केंद्रीय शासन पद्धति का जनक ” कहा जाता है। महापद्म नन्द के नव नंद प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं।

नन्द वंश के शासक

  • उग्रसेन
  • पंडूक
  • पाण्डुगति
  • भूतपाल
  • राष्ट्रपाल
  • योविषाणक
  • दशसिद्धक
  • कैवर्त
  • धनानन्द (अंतिम शासक)

सिकन्दर काल – 326 ई.पू.

सिकन्दर मकदूनिया का शासक था विश्व विजय अभियान के दौरान 326 ई.पू. में उसने भारत पर आक्रमण किया पुरू या पौरस से हाइडेस्पीज (झेलम) नदी के तट पर युद्ध हुआ। पराजित होने के बाद पुरू ने कहा- मेरे साथ अन्य राजाओं जैसा व्यवहार किया जाए सिकंदर के हमले के समय उत्तर भारत पर नंद राजवंश का शासन था। सिकन्दर की भारत में सफलता के कारणों में भारत में केन्द्रीय सत्ता का अभाव उसकी श्रेष्ठ सेना तथा देशद्रोही भारतीय शासकों का सहयोग प्रमुख है। भारत में पहली बार ग्रीकों (सिकन्दर) द्वारा सैनिक शासन की स्थापना की गयी।

मौर्य काल – 321 ई.पू. -185 ई.पू.

प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था। मौर्य राजवंश ने 137 वर्ष भारत में राज्य किया । इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री चाणक्य ( कौटिल्य ) को दिया जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य और तक्षशिला में आचार्य चाणक्य के प्रयासों से 322 ई.पू. में घनानंद परास्त हुआ। जिससे नंद वंश समाप्त हुआ और मौर्य वंश प्रारंभ हुआ। चन्द्रगुप्त के साम्राज्य में बिहार बंगाल, उड़ीसा, पंजाब, प.भारत, उ.प.प्रान्त, अफगानिस्तान दक्कन शामिल थे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने पाटलीपुत्र को अपनी राजधानी बनाई। कौटिल्य चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री थे। चन्द्रगुप्त ने मालवा, गुजरात एवं महाराष्ट्र को जीता।

मौर्य काल के शासक

  • सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य – 321-298 ईसा पूर्व
  • बिन्दुसार मौर्य – 298-271 ईसा पूर्व
  • सम्राट अशोक महान – 269-232 ईसा पूर्व
  • कुणाल मौर्य – 232-228 ईसा पूर्व
  • दशरथ मौर्य – 228-224 ईसा पूर्व
  • सम्प्रति मौर्य – 224-215 ईसा पूर्व
  • शालिसुक मौर्य – 215-202 ईसा पूर्व
  • देववर्मन मौर्य- 202-195 ईसा पूर्व
  • शतधन्वन् मौर्य – 195-187 ईसा पूर्व
  • बृहद्रथ मौर्य – 187-185 ईसा पूर्व

शुंग वंश – 185 ई. पू. – 73 ई. पू. (36वर्ष)

अंतिम मौर्य राजा वृहद्रथ के ब्राम्हण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई.पू. में उसको मारकर मौर्य साम्राज्य का अंत कर दिया और शुंग वंश की नींव डाली और अगले 36 सालों तक इस क्षेत्र पर शासन किया। पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्रा उनके उत्तराधिकारी बने। इसके बाद कुल दस शुंग शासक एक के बाद एक सिंहासन पर बैठे और फिर 73 ईसा पूर्व में कण्व राजवंश ने सिंहासन पर हमला किया और कब्ज़ा कर लिया।

शुंग वंश के शासक

  • पुष्यमित्र शुंग – 185-149 ईसा पूर्व
  • अग्निमित्र शुंग – 149-141 ईसा पूर्व
  • वसुज्येष्ठ शुंग – 141-131 ईसा पूर्व
  • वसुमित्र शुंग – 131-124 ईसा पूर्व
  • अंधक – 124-122 ईसा पूर्व
  • पुलिन्दक – 122-119 ईसा पूर्व
  • घोष शुंग – 119-108 ईसा पूर्व
  • वज्रमित्र – 108-94 ईसा पूर्व
  • भगभद्र – 94-83 ईसा पूर्व
  • देवभूति – 83 -73 ईसा पूर्व

गुलाम वंश – 1193 – 1290 ई. (97वर्ष)

गुलाम वंश मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था। इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था जिसे मोहम्मद ग़ौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद नियुक्त किया था। इस वंश ने दिल्ली की सत्ता पर 1193-1290 ई. तक यानी कि 97 वर्षो तक राज किया। इससे पूर्व किसी भी मुस्लिम शासक ने भारत में लंबे समय तक प्रभुत्व कायम नहीं किया था। इसी समय चंगेज खाँ के नेतृत्व में भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पर मंगोलों का आक्रमण भी हुआ।

गुलाम वंश के शासक

  • मुहम्मद घोरी – 1193 से 1206 ई.
  • कुतुबुद्दीन ऐबक – 1206 से 1210 ई.
  • आराम शाह – 1210 – 1211 ई.
  • इल्तुतमिश – 1211 – 1236 ई.
  • रुकनुद्दीन फिरोज शाह – 1236 से 1236 ई.
  • रज़िया सुल्तान – 1236 से 1240 ई.
  • मुईज़ुद्दीन बहराम शाह – 1240 से 1242 ई.
  • अल्लाउदीन मसूद शाह – 1242 से 1246 ई.
  • नासिरुद्दीन महमूद – 1246 से 1266 ई.
  • गियासुदीन बल्बन – 1266 से 1286 ई.
  • कै खुशरो – 1286 से 1287 ई.
  • मुइज़ुदिन कैकुबाद – 1287 से 1290 ई.
  • शमुद्दीन कैमुर्स – 1290 से 1290 ई.

खिलजी वंश – 1290 से 1320 ई तक ( 30 वर्ष)

ख़लजी वंश या खिलजी वंश मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था। खिलजी वंश का संस्थापक मलिक फ़िरोज़ था जिसने भारत में अपनी सत्ता स्थापित करने के बाद जलालुद्दीन की पदवी धारण कर ली। इसने दिल्ली की सत्ता पर 1290-1320 इस्वी तक राज किया। दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत में दूसरा शासक परिवार था, हालांकि ख़िलजी क़बीला लंबे समय से अफ़ग़ानिस्तान में बसा हुआ था, लेकिन अपने पूर्ववर्ती गुलाम वंश की तरह यह राजवंश भी मूलत: तुर्किस्तान का था। अंतिम ख़लजी शासक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह की उनके प्रधानमंत्री खुसरो ख़ां ने 1320 में हत्या कर दी। बाद में तुग़लक वंश के प्रथम शासक ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने खुसरो ख़ां से गद्दी छीन ली।

खिलजी वंश के शासक

  • जलालुदद्दीन फ़िरोज़ खिलजी – 1290 से 1296 ई.
  • अल्लाउदीन खिलजी – 1296 से 1316 ई.
  • सहाबुद्दीन उमर शाह – 1316 से 1316 ई.
  • कुतुबुद्दीन मुबारक शाह – 1316 से 1320 ई.
  • नासिरुदीन खुसरो शाह – 1320 से 1320 ई.

तुगलक वंश – 1320 – 1414 ई. ( 94 वर्ष )

खुसरो खां से गद्दी छीन लेने के बाद ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात तुग़लक़ वंश की स्थापना की। तुग़लक़ वंश भारत मे राज करने वाले ऐसे राजवंश था जिसने सन् 1320 से लेकर सन् 1414 तक दिल्ली की सत्ता पर राज किया। सिंचाई के लिए नहर का प्रथम निर्माण गयासुद्दीन तुगलक के द्वारा किया गया था, जिसने 1412 तक राज किया। इस वंश में तीन योग्य शासक हुए। ग़यासुद्दीन, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ और उसका उत्तराधिकारी फ़िरोज शाह तुग़लक़। इनमें से पहले दो शासकों का अधिकार क़रीब-क़रीब पूरे देश पर था। फ़िरोज की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत का विघटन हो गया और उत्तर भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया। यद्यपि तुग़लक़ 1412 तक शासन करते रहे, तैमूर के आक्रमण से तथा उत्तराधिकारी के अभाव में यह वंश 1414 में समाप्त हो गया जिसके बाद सय्यद वंश का शासन आया।

तुगलक वंश के शासक

  • गयासुद्दीन तुगलक प्रथम – 1320 से 1325 ई.
  • मुहम्मद बिन तुगलक दूसरा – 1325 से 1351 ई.
  • फ़िरोज़ शाह तुगलक – 1351 से 1388 ई.
  • गयासुद्दीन तुगलक दूसरा – 1388 से 1389 ई.
  • अबु बकर शाह – 1389 से 1389 ई.
  • मुहम्मद तुगलक तीसरा – 1389 से 1394 ई.
  • सिकंदर शाह पहला – 1394 से 1394 ई.
  • नासिरुदीन शाह दुसरा – 1394 से 1395
  • नसरत शाह – 1395 से 1399 ई.
  • नासिरुदीन महमद शाह दूसरा दुबारा सता पर – 1399 से 1413 ई.
  • दोलतशाह – 1413 से 1414 ई.

सैय्यद वंश – 1414 – 1451 ई. ( 37 वर्ष )

तुगलक वंश के बाद सैयद वंश अथवा सय्यद वंश दिल्ली सल्तनत का चतुर्थ वंश था, जिसकी स्थापना ख़िज्र खाँ ने की जिन्हें तैमूर ने मुल्तान (पंजाब क्षेत्र) का राज्यपाल नियुक्त किया था। जिसने भारत पर 1414 से 1451 तक राज किया। यह परिवार सैयद अथवा मुहम्मद के वंशज माने जाता है। तैमूर के लगातार आक्रमणों के कारण दिल्ली सल्तनत का कन्द्रीय नेतृत्व पूरी तरह से हतास हो चुका था और उसे 1398 तक लूट लिया गया था।

इसके बाद उथल-पुथल भरे समय में, जब कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी, सैयदों ने दिल्ली में अपनी शक्ति का विस्तार किया। भारत मे राज करने वाले इस वंश के विभिन्न चार शासकों ने 37 वर्षों तक दिल्ली सल्तनत का नेतृत्व किया। इस वंश के अन्तिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह ने स्वेच्छा से दिल्ली सल्तनत को 19 अप्रैल 1451 को बहलूल खान लोदी के लिए छोड़ दिया और बदायूं चले गये। वो 1478 में अपनी मृत्यु के समय तक वहाँ ही रहे।

सैय्यद वंश के शासक

  • खिज्र खान – 1414 से 1421 ई.
  • मुइज़ुदिन मुबारक शाह दूसरा – 1421 से 1434 ई.
  • मुहमद शाह चौथा – 1434 से 1445 ई.
  • अल्लाउदीन आलम शाह – 1445 से 1451 ई.

लोदी वंश – 1451 – 1526 ई. ( 75 वर्ष )

लोदी वंश खिलजी अफ़्गान लोगों की पश्तून जाति से बना था। इस वंश ने दिल्ली के सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया। इन्होंने 1451 से 1526 तक शासन किया। दिल्ली का प्रथम अफ़गान शासक परिवार लोदियों का था। वे एक अफ़गान कबीले के थे, जो सुलेमान पर्वत के पहाड़ी क्षेत्र में रहता था। बहलोल लोदी मलिक काला का पुत्र और मलिक बहराम का पौत्र था। उसने सरकारी सेवा सरहिंद के शासक के रूप में शुरू की और पंजाब का सूबेदार बन गया। प्रथम अफ़गान शाह के रूप में वह सोमवार 19 अप्रैल 1451 को अबू मुज़फ्फर बहलोल शाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

बहलोल लोदी की मृत्यु 1479 ई. में हुई। उसकी मृत्यु के समय तक लोदी साम्राज्य आज के पूर्वी और पश्चिमी पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के एक भाग तक फैल चुका था। सिकंदर लोदी 21 नवम्बर 1517 को मरा। गद्दी के लिए उसके दोनों पुत्रों, इब्राहीम और जलाल में झगड़ा हुआ। अत: साम्राज्य दो भागों में बँट गया। किंतु इब्राहीम ने बँटा हुआ दूसरा भाग भी छीन लिया और लोदी साम्राज्य का एकाधिकारी बन गया। जलाल 1518 में मौत के घाट उतार दिया गया।

किंतु अफगान सरकार की अंतर्निहित निर्बलताओं ने सुल्तान की निपुणताहीन कठोरता का संयोग पाकर, आंतरिक विद्रोह तथा बाहरी आक्रमण के लिए दरवाजा खोल दिया। जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने 21 अप्रैल 1526 ई. को पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हरा और मौत के घाट उतारकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की।

लोदी वंश के शासक

  • बहलोल लोदी – 1451 से 1489 ई.
  • सिकंदर लोदी दूसरा – 1489 से 1517 ई.
  • इब्राहिम लोदी – 1517 से 1526 ई.

मुगल वंश – 1526 – 1539 ई. ( 13 वर्ष )

मुग़ल सलतनत-ए-हिंद, एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था, जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप पर मुगल साम्राज्य के अंत के लिए मराठे जिम्मेदार थे। 1500 ई. के आसपास तैमूरी राजवंश के राजकुमार बाबर के द्वारा उमैरिड्स साम्राज्य के नींव की स्थापना हुई, जब उन्होंने दोआब पर कब्जा किया और खोरासन के पूर्वी क्षेत्र द्वारा सिंध के उपजाऊ क्षेत्र और सिंधु नदी के निचले घाटी को नियंत्रित किया।

21 अप्रैल 1526 में, बाबर ने दिल्ली के सुल्तानों में आखिरी सुलतान, इब्राहिम शाह लोदी, को पानीपत के पहले युद्ध में हराया। 1530 में बाबर का बेटा हुमायूँ उत्तराधिकारी बना लेकिन पश्तून शेरशाह सूरी के हाथों प्रमुख उलट-फेर सहे और नए साम्राज्य के अधिकाँश भाग को क्षेत्रीय राज्य से आगे बढ़ने से पहले ही प्रभावी रूप से हार गए। 1540 से हुमायूं एक निर्वासित शासक बने, 1554 में साफाविद दरबार में पहुँचे जबकि अभी भी कुछ किले और छोटे क्षेत्र उनकी सेना द्वारा नियंत्रित थे। लेकिन शेर शाह सूरी के निधन के बाद जब पश्तून राज्य अव्यवस्था में घिर गया, तब हुमायूं एक मिश्रित सेना के साथ लौटे, अधिक सैनिकों को बटोरा और 1555 में दिल्ली को पुनः जीतने में कामयाब रहे।

मुगल वंश के शासक

  • ज़ाहिरुदीन बाबर – 1526 से 1530 ई.
  • हुमायूं – 1530 से 1539 ई.

सूरी वंश – 1539 – 1555 ई. (17 वर्ष )

सूरी साम्राज्य द सूरियानो टोलवाकमन​ई भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में स्थित पश्तून नस्ल के शेर शाह सूरी द्वारा स्थापित एक साम्राज्य था जो सन् 1540 से लेकर 1557 तक चला। इस दौरान सूरी परिवार ने बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल सल्तनत को भारत से बेदख़ल कर दिया और ईरान में शरण मांगने पर मजबूर कर दिया। 22 मई 1545 को शेर शाह सूरी का देहांत हुआ। उन्होंने 17 मई 1540 (बिलग्राम के युद्ध) के बाद से बागडोर संभाली थी और अपने देहांत तक सुल्तान बने रहे। हुमायूँ ईरान से वापस आकर भारत पर क़ब्ज़ा करने में सफल हो गया और उसने अंतिम सूरी सुल्तान आदिल शाह सूरी और उसके सिपहसलार हेमू को हरा दिया। सूरी साम्राज्य ख़त्म हो गया।

हालांकि सूरी साम्राज्य सिर्फ़ 17 साल चला, इस काल में भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत से प्रशासनिक और आर्थिक विकास लाए गए। भारतीय इतिहास में अक्सर शेर शाह सूरी को विदेशी नहीं समझा जाता। उनके राज में हिन्दू और मुस्लिमों में आपसी भाईचारा और सामाजिक एकता बढ़ी। ग्रैंड ट्रंक रोड जैसे विकास कार्यों पर ज़ोर दिया गया। साम्राज्य को 47 प्रशासनिक भागों में बांटा गया (जिन्हें ‘सरकार’ कहा जाता था) और इनके आगे ‘परगना’ नामक उपभाग बनाए गए। स्थानीय प्रशासन मज़बूत किया या। आने वाले समय में मुग़ल और ब्रिटिश राज की सरकारो ने शेर शाह के बहुत सी उपलब्धियों पर अपनी मोहर लगाकर उन्हें जारी रखा। भारत की मुद्रा का नाम ‘रुपया’ भी उन्होंने ही रखा।

सूरी वंश के शासक

  • शेर शाह सूरी – 1539 से 1545 ई.
  • इस्लाम शाह सूरी – 1545 से 1552 ई.
  • महमूद शाह सूरी – 1552 से 1553 ई.
  • इब्राहिम सूरी – 1553 से 1554 ई.
  • फिरहुज़् शाह सूरी – 1554 से 1554 ई.
  • मुबारक खान सूरी – 1554 से 1555 ई.
  • सिकंदर सूरी – 1555 से 1555 ई.

मुगल वंश पुनःप्रारंभ – 1555 – 1857 ई. ( 315 वर्ष )

16 वीं शताब्दी और 17-वीं शताब्दी के अंत के बीच मुग़ल साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप में प्रमुख शक्ति थी। मुग़ल साम्राज्य ने उत्तरी भारत के शासकों के रूप में दिल्ली के सुल्तान का स्थान लिया। शेर शाह की असामयिक मृत्यु और उनके उत्तराधिकारियों की सैन्य अक्षमता ने 1555 में हुमायूँ को अपनी गद्दी हासिल करने के लिए सक्षम किया। हालाँकि, कुछ महीनों बाद हुमायूं का निधन हुआ और उनके 13 वर्षीय बेटे अकबर ने गद्दी हासिल करी। मुग़ल विस्तार का सबसे बड़ा भाग अकबर के शासनकाल (1556-1605) के दौरान निपुण हुआ।

वर्तमान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तराधिकारि जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब द्वारा इस साम्राज्य को अगले सौ साल के लिए प्रमुख शक्ति के रूप में बनाया रखा गया था।औरंगजेब के शासनकाल के बाद, साम्राज्य में गिरावट हुई। बहादुर शाह ज़फ़र के साथ शुरुआत से, मुगल सम्राटों की सत्ता में उत्तरोत्तर गिरावट आई और वे कल्पित सरदार बने, जो शुरू में विभिन्न विविध दरबारियों द्वारा और बाद में कई बढ़ते सरदारों द्वारा नियंत्रित थे। 18 वीं शताब्दी में, इस साम्राज्य ने पर्शिया के नादिर शाह और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली जैसे हमलावरों का लूट को सहा, जिन्होंने बार बार मुग़ल राजधानी दिल्ली में लूटपाट की।

भारत में इस साम्राज्य के क्षेत्रों के अधिकांश भाग को ब्रिटिश को मिलने से पहले मराठाओं को पराजित किया गया था। 1803 में, अंधे और शक्तिहीन शाह आलम II ने औपचारिक रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षण स्वीकार किया। उन्होंने 1857 में अंतिम मुग़ल सम्राट को पद से गिराया और उन्हें बर्मा के लिए निर्वासित किया, जहाँ 1862 में उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार मुग़ल राजवंश का अंत हो गया, जिसने भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण अध्याय का योगदान किया था।

मुगल वंश के शासक

  • हुमायू दुबारा गाद्दी पर – 1555 से 1556 ई.
  • जलालुदीन अकबर – 1556 से 1605 ई.
  • जहांगीर सलीम – 1605 से 1628 ई.
  • शाहजहाँ – 1628 से 1659 ई.
  • औरंगज़ेब – 1659 से 1707 ई.
  • शाह आलम पहला – 1707 से 1712 ई.
  • जहादर शाह – 1712 से 1713 ई.
  • फारूखशियर – 1713 से 1719 ई.
  • रईफुदु राजत – 1719 से 1719 ई.
  • रईफुद दौला – 1719 से 1719 ई.
  • नेकुशीयार – 1719 से 1719 ई.
  • महमूद शाह – 1719 से 1748 ई.
  • अहमद शाह – 1748 से 1754 ई.
  • आलमगीर – 1754 से 1759 ई.
  • शाह आलम – 1759 से 1806 ई.
  • अकबर शाह -1806 से 1837 ई.
  • बहादुर शाह जफर 1837 – 1857 ई.

ब्रिटिश राज (वाइसरॉय) – 1858 – 1947 ई. ( 90 वर्ष )

ब्रिटिश राज 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश द्वारा शासन था। क्षेत्र जो सीधे ब्रिटेन के नियंत्रण में था जिसे आम तौर पर समकालीन उपयोग में “इंडिया” कहा जाता था‌- उसमें वो क्षेत्र शामिल थे जिन पर ब्रिटेन का सीधा प्रशासन था (समकालीन, “ब्रिटिश इंडिया”) और वो रियासतें जिन पर व्यक्तिगत शासक राज करते थे पर उन पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता थी।

भारत की स्वतंत्रता और उसके बाद भारत में संसदीय प्रणाली, एक-व्यक्ति को एक मत का अधिकार और निष्पक्ष न्यायालय आदि ब्रितानी शासन की देन है। भारत में जिला प्रशासन, विश्वविद्यालय और स्टॉक एक्सचेंज संस्थागत व्यवस्था भी ब्रितानी शासन की दैन है। ब्रितानी शासन की सबसे बड़ी दैन अलग-अलग रियासतों में शासन से भारत को मुक्त करना है। मेटकाफ के अनुसार दो सदी के शासन ने ब्रिटिश बुद्धिजीवियों और भारतीय विशेषज्ञों की प्राथमिकता भारत में शान्ति, एकता और अच्छी शासन व्यवस्था कायम करना रहा।

ब्रिटिश राज के शासक

  • लॉर्ड केनिंग – 1858 से 1862 ई.
  • लॉर्ड जेम्स ब्रूस एल्गिन – 1862 से 1864 ई.
  • लॉर्ड जहॉन लोरेन्श – 1864 से 1869 ई.
  • लॉर्ड रिचार्ड मेयो – 1869 से 1872 ई.
  • लॉर्ड नोर्थबुक – 1872 से 1876 ई.
  • लॉर्ड एडवर्ड लुटेनलॉर्ड – 1876 से 1880 ई.
  • लॉर्ड ज्योर्ज रिपन – 1880 से 1884 ई.
  • लॉर्ड डफरिन – 1884 से 1888 ई.
  • लॉर्ड हन्नी लैंसडोन – 1888 से 1894 ई.
  • लॉर्ड विक्टर ब्रूस एल्गिन – 1894 से 1899 ई.
  • लॉर्ड ज्योर्ज कर्झन – 1899 से 1905 ई.
  • लॉर्ड गिल्बर्ट मिन्टो – 1905 से 1910 ई.
  • लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंज – 1910 से 1916 ई.
  • लॉर्ड फ्रेडरिक सेल्मसफोर्ड – 1916 से 1921 ई.
  • लॉर्ड रुक्स आईजेक रिडींग 1921 से 1926 ई.
  • लॉर्ड एडवर्ड इरविन – 1926 से 1931 ई.
  • लॉर्ड फ्रिमेन वेलिंग्दन – 1931 से 1936 ई.
  • लॉर्ड एलेक्जंद लिन्लिथगो – 1936 से 1943 ई.
  • लॉर्ड आर्किबाल्ड वेवेल – 1943 से 1947 ई.
  • लॉर्ड माउन्टबेटन – 1947 से 1947 ई.

आजाद भारत, प्रधानमंत्री – 1947 से

भारत सरकार, जो आधिकारिक तौर से संघीय सरकार व आमतौर से केन्द्रीय सरकार के नाम से जाना जाता है, 28 राज्यों तथा 8 केन्द्र शासित प्रदेशों के संघीय इकाई जो संयुक्त रूप से भारतीय गणराज्य कहलाता है, की नियंत्रक प्राधिकारी है। भारतीय संविधान द्वारा स्थापित भारत सरकार नई दिल्ली, दिल्ली से कार्य करती है। आजादी के बाद भारत ने स्वतंत्र भारत में अपनी सबसे पहली उपलब्धि तब हासिल की जब 26 जनवरी, 1950 को हमारा अपना संविधान लागू हुआ। इसके साथ ही अंग्रेजों के जमाने का गवर्मेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1935 समाप्त हो गया और भारत एक गणराज्य बना।

भारत के प्रधानमन्त्री भारत गणतन्त्र की सरकार के मुखिया हैं। भारत के प्रधानमन्त्री, का पद, भारत के शासनप्रमुख (शासनाध्यक्ष) का पद है। संविधान के अनुसार, वह भारत सरकार के मुखिया, भारत के राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार, मन्त्रिपरिषद का मुखिया, तथा लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता होता है। वह भारत सरकार के कार्यपालिका का नेतृत्व करता है। भारत की राजनैतिक प्रणाली में, प्रधानमन्त्री, मन्त्रिमण्डल में का वरिष्ठ सदस्य होता है।

आजाद भारत के शासक

  • जवाहरलाल नेहरू – 1947 से 1964
  • गुलजारीलाल नंदा – 1964 से 1964
  • लालबहादुर शास्त्री – 1964 से 1966
  • गुलजारीलाल नंदा – 1966 से 1966
  • इन्दिरा गांधी – 1966 से 1977
  • मोरारजी देसाई – 1977 से 1979
  • चरणसिंह – 1979 से 1989
  • इन्दिरा गांधी – 1980 से 1984
  • राजीव गांधी – 1984 से 1989
  • विश्वनाथ प्रतापसिंह – 1989 से 1990
  • चंद्रशेखर -1990 से 1991
  • पी.वी.नरसिंह राव – 1991 से 1996
  • अटल बिहारी वाजपेयी – 1996 से 1996
  • ऐच.डी.देवगौड़ा – 1996 से 1997
  • आई.के.गुजराल – 1997 से 1998
  • अटल बिहारी वाजपेयी – 1998 से 2002
  • डॉ.मनमोहनसिंह – 2004 से 2014
  • नरेन्द्र मोदी – 2014 से अबतक

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