मुगल साम्राज्य के शासक और उनके कार्याकाल, मुगल काल और उनके शासक

मुगल साम्राज्य

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

मुगल साम्राज्य की बात करे तो 1526 ई. से 1857 ई. तक लगभग 331 सालों तक शासन रहा है। मुगल वंश का संस्थापक बाबर था। बाबर एवं उत्तरवर्ती मुगल शासक तुर्क एवं सुन्नी मुसलमान थे। बाबर ने मुगल वंश की स्थापना के साथ ही पद-पादशाही की स्थापना की, जिसके तहत शासक को बादशाह कहा जाता था।

मुगल साम्राज्य के शासक और उनके कार्याकाल, मुगल काल और उनके शासक

देखे मुगल साम्राज्य के शासक और उनके कार्याकाल की विस्तृत जानकारी..

1. बाबर (1526- 1530 ई.)

बाबर का जन्म फरवरी, 1483 ई. में हुआ था। बाबर के पिता उमरशेख मिर्जा फरगाना नामक छोटे राज्य के शासक थे। बाबर ने 1507 ई. में बादशाह की उपाधि धारण की, जिसे अब तक किसी तैमूर शासक ने धारण नहीं की थी। बाबर के चार पुत्र थे – हुमायूँ, कामरान, असकरी तथा हिंदाल। बाबर का वास्तविक नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था। बाबर, महान विजेता तैमूर का वंशज था और उसकी माता कुतलुक निगारखानम पराक्रमी चंगेज खाँ की वंशज थी। बाबर, 1494 ई. में 11 वर्ष की आयु में फरगना का शासक बना।

बादशाह बाबर का भारत पर आक्रमण

बाबर ने भारत पर पाँच बार आक्रमण किया, जिसमे बाबर का भारत के विरुद्ध किया गया प्रथम अभियान 1519 ई. में युसूफ जाई जाति के विरुद्ध था। इस अभियान में बाबर ने बाजौर और भेरा को अपने अधिकार में कर लिया। बाबर ने द्वितीय आक्रमण 1519-20 ई . में पेशावर पर किया। बाबर ने तृतीय आक्रमण 1520 ई . में किया तथा सियालकोट और सैयदपुर को जीता। बाबर ने चौथा आक्रमण 1524 ई . में किया, इस आक्रमण में उसने लाहौर और दीपालपुर पर अधिकार किया।

दिसम्बर 1925 ई. में बाबर ने पाँचवीं बार भारत पर आक्रमण किया। 21 अप्रैल, 1526 ई . बाबर और दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम लोदी के मध्य पानीपत के मैदान में घमासान युद्ध लड़ा गया, यह युद्ध पानीपत के प्रथम युद्ध के नाम से जाना जाता है। पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार तुगलमा युद्ध नीति एवं तोपखाने का प्रयोग किया था। बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खाँ लोदी एवं मेवाड़ के शासक राणा साँगा ने दिया था।

मुगल शासक बनने के बाद बाबर का शासन काल

खानवा का युद्ध – 17 मार्च, 1527 ई को राणा साँगा एवं बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर विजयी हुआ। चन्देरी का युद्ध – 29 जनवरी, 1528 ई. को मेदनी राय एवं बाबर के बीच हुआ , जिसमें बाबर विजयी हुआ। घाघरा का युद्ध – 6 मई, 1529 ई. को अफगानों एवं बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर विजयी हुआ। बाबर को अपनी उदारता के लिए कलन्दर की उपाधि दी गयी। खानवा युद्ध में विजय के बाद बाबर ने ‘गाजी’ की उपाधि धारण की थी।

घाघरा की विजय बाबर की अन्तिम विजय थी और उसके अगले वर्ष ही 1530 ई. में बाबर की मृत्यु हो गई। प्रारंभ में बाबर के शव को आगरा के आरामबाग में दफनाया गया, बाद में काबुल में उसके द्वारा चुने गए स्थान पर दफनाया गया। बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा की रचना की, जिसका अनुवाद बाद में फारसी भाषा में अब्दुल रहीम खानखाना ने किया। बाबर को मुबईयान नामक पद्य शैली का भी जन्मदाता माना जाता है। बाबर प्रसिद्ध नक्शबन्दी सूफी ख्वाजा उबैदुल्ला अहरार का अनुयायी था। बाबर का उत्तराधिकारी हुमायूँ हुआ।

2. हुमायूँ (1530 ई.-1540 ई. तथा 1545 ई. – 1556 ई.)

हुमायूँ का जन्म 6 मार्च, 1508 ई. को काबुल में हुआ था। हुमायूँ अरबी, फारसी एवं तुकी भाषा का अच्छा ज्ञाता था। नासीरुददोन हुमायूँ 29 दिसम्बर, 1930 ई. को आगरा में 23 वर्ष को अवस्था में मुगल सिंहासन पर बैठा। दिल्ली की गद्दी पर बैठने से पहले हुमायूँ बदख्शों का सूबेदार था। अपने पिता के निर्देश के अनुसार हुमायूँ ने अपने राज्य का बँटवारा अपने भाइयों में कर दिया। इसने कामरान को काबुल और कंधार, मिर्जा असकरी को संभल, मिर्जा हिंदाल को अलवर एवं मेवाड़ की जागीरें दी। अपने चचेरे भाई सुलेमान मिजां की हमारों ने बदख्शाँ प्रदेश दिया। 1533 ई. में हुमायूँ ने दीनपनाह नामक नए नगर की स्थापना की थी।

मुगल शासक बनने के बाद हुमायूँ का शासन काल

हुमायूँ द्वारा लड़े चार प्रमुख युद्धों का क्रम है- देवरा (1531 ई.), चौसा (1539), बिलग्राम (1540) एवं सरहिन्द का युद्ध (1555 ई.)। चौसा का युद्ध 25 जून, 1539 ई. में शेर खाँ एवं हुमायूँ के बीच हुआ। इस युद्ध में शेर खाँ विजयी रहा। चौसा के युद्ध के बाद शेर खाँ ने शेरशाह की पदवी ग्रहण कर ली। बिलग्राम या कन्नौज युद्ध 7 मई, 1540 ई. में शेर खाँ एवं हुमायूँ के बीच हुआ। इस युद्ध में भी हुमायूँ पराजित हुआ। शेर खाँ ने आसानी से आगरा एवं दिल्ली पर कब्जा कर लिया।

बिलग्राम युद्ध के बाद हुमायूँ सिन्ध चला गया, जहाँ उसने 15 वर्षों तक घुमक्कड़ों जैसा निर्वासित जीवन व्यतीत किया। निर्वासन के समय हुमायूँ ने हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु फारसवासी शिया मीर बाबा दोस्त उर्फ मीर अली अकबर जामी की पुत्री हमीदन बेगम से 29 अगस्त, 1541 ई. को निकाह कर लिया। हमीदा से ही अकबर जैसे महान सम्राट का जन्म हुआ। 1545 ई में हुमायूँ ने ईरान के शाह की सहायता से काबुल और कन्धार पर अधिकार किया। तत्पश्चात् फरवरी 1555 ई. में हुमायूँ ने लाहौर को विजित किया। 15 मई, 1555 ई. को मच्छीवारा युद्ध में विजय प्राप्त कर हुमायूँ ने सम्पूर्ण पंजाब अधिकृत किया।

22 जून, 1555 ई के सरहिन्द युद्ध में अफगानों पर निर्णायक विजय प्राप्त कर हुमायूँ ने पुनः भारत के राजसिंहासन को प्राप्त किया। हुमायूँनामा को रचना गुल बदन बेगम ने की थी। जनवरी 1556 ई . को हुमायूँ दिल्ली के दोनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से फिसलकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। हुमायूँ ज्योतिष में विश्वास करता था, इसलिए इसने सप्ताह के सातों दिन सात रंग के कपड़े पहनने के नियम बनाए।

3. शेरशाह (1540 – 1545 ई.) गैर मुगल शासक

सूर साम्राज्य का संस्थापक अफगान वंशीय शेरशाह सूरी था। शेरशाह का जन्म 1472 ई. में बजवाड़ा (होशियारपुर) में हुआ था। इनके बचपन का नाम फरीद खाँ था। यह सुर वंश से संबंधित था। इनके पिता हसन खाँ जौनपुर राज्य के अन्तर्गत सासाराम के जमींदार थे। फरीद ने एक शेर को तलवार के एक ही वार से मार दिया था। उसकी इस बहादुरी से प्रसन्न होकर बिहार के अफगान शासक सुल्तावर मुहम्मद बहार खाँ लोहानी ने उसे शेर खा की उपाधि प्रदान की।

मुगल काल मे शेरशाह का शासन काल

शेरशाह बिलग्राम युद्ध (1540 ई.) के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा। शेरशाह ने रोहतासगढ़ के दुर्ग एवं कन्नौज के स्थान पर शेरसूर नामक नगर बसाया। रोहतासगढ़ किला , किला – ए – कुहना दिल्ली नामक मस्जिद का निर्माण शेरशाह के द्वारा किया गया था। कबूलियत एवं पट्टा प्रथा की शुरुआत शेरशाह ने की। शेरशाह ने 1541 ई . में पाटलिपुत्र को पटना के नाम से पुनः स्थापित किया। शेरशाह ने ग्रैंड ट्रक रोड की मरम्मत करवायी। मलिक मुहम्मद जायसी शेरशाह के समकालीन थे।

डाक प्रथा का प्रचलन शेरशाह के द्वारा किया गया। शेरशाह की मृत्यु 22 मई , 1545 ई. को हो गयी। मृत्यु के समय वह उक्का नाम का आग्नेयास्त्र चला रहा था। शेरशाह की मृत्यु कालिंजर के किले को जीतने के क्रम में हुई। उस समय कालिंजर का शासक कीरत सिंह था। शेरशाह का मकबरा सासाराम में झील के बीच ऊँचे टीले पर निर्मित किया गया है। शेरशाह का उत्तराधिकारी उसका पुत्र इस्लाम शाह था।

4. अकबर (1556 ई. – 1605 ई.)

अकबर का जन्म अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में 15 अक्टूबर, 1542 ई. को हुआ था। हुमायूँ की मृत्यु के समय अकबर पंजाब में था, जहाँ बैरम खां के संरक्षण में पंजाब के गुरुदासपुर जिले के कालानौर नामक स्थापन पर 14 फरवरी, 1556 ई. को अकबर का राज्याभिषेक मिजा अबुल कासिम ने किया था। 1556 ई. में अकबर ने बैरम खा को अपना वकील (वजीर) नियुक्त कर ‘खान-ए-खाना’ की उपाधि से उसे अलंकृत किया था। अकबर की धार्मिक नीति का मूल उद्देश्य सार्वभौमिक सहिष्णुता था, इसे ‘सुलहकुल’ की नीति कहते हैं।

अकबर के समय मुगल काल की महत्वपूर्ण जानकारी

अकबर ने दार्शनिक एवं धर्मशास्त्रीय विषयों पर वाद-विवाद हेतु फतेहपुर सीकरी में एक इबादतखाना (प्रार्थना भावन) का निर्माण 1575 ई. में कराया था। अकबर म ने सभी धर्मों में सामंजस्य स्थापित करने हेतु 1582 ई नवीन धर्म प्रवर्तित किया। अकबर के समय की प्रमुख स्थापत्य उपलब्धि फतेहपुर सीकरी है। अकबर के काल में भारत आने वाला यात्री मानडेल्स्लो था। अकबर की प्रारम्भिक कठिनाइयों को समाप्त करने का श्रेय बैरम खाँ को है।

1562 ई. में अकबर ने दास प्रथा को समाप्त किया।अकबर ने 1562 ई . में ऐतमाद खाँ की सहायता से बजट प्रथा प्रारम्भ की थी। अकबर ने 1563 ई. में तीर्थयात्रा कर समाप्त कर दिया। अकबर ने 1564 ई में जजिया कर समाप्त किया। अकबर की शासन प्रणाली की प्रमुख विशेषता मनसबदारी प्रथा थी। अकबर के दरबार का प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन था। अकबर के दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार अब्दुससमद था। अकबर के शासनकाल के प्रमुख गायक तानसेन, बाजबहादुर, बाबा रामदास एवं बैजू बाबरे थे।

मुगलों की राजकीय भाषा फारसी थी। महाभारत का फारसी भाषा में रज्मनामा नाम से अनुवाद बदायूँनी, नकीब खाँ एवं अब्दुल कादिर ने किया। पंचतंत्र का फारसी भाषा में अनुवाद अबुल फजल ने अनवर ए – सादात नाम से तथा मौलाना हुसैन फैज न यार – ए दानिश नाम से किया। अकबर के काल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल कहा जाता है। अकबर ने बीरबल को कविप्रिय एवं नरहरि को महापात्र की उपाधि प्रदान की।

अकबर के काल मे हुए युद्ध

जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाही गाजी की उपाधि से राजसिंहासन पर बैठा। पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवम्बर, 1556 ई. को अकबर और हेमू के बीच हुई थी। मक्का की तीर्थ यात्रा के दौरान पाटन नामक स्थान पर मुबारक खाँ नामक युवक ने बैरम खां की हत्या कर दी।हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून, 1576 ई . को मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप एवं अकबर के बीच हुआ। इस युद्ध में अकबर विजयी हुआ। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मान सिंह एवं आसफ खाँ ने किया था। अकबर के शासनकाल में हुए अफगान-बलूचियों के विद्रोह में राजा बीरबल की मृत्यु हो गई थी। अकबर द्वारा गुजरात पर किया गया दूसरा आक्रमण न केवल अकबर के शासनकाल का अपितु विश्व का द्रुतगामी आक्रमण माना गया है।

अकबर के दरबार के नवरत्न

  1. बीरबल
  2. अबुल फजल ,
  3. टोडरमल ,
  4. हकीम हुमाम ,
  5. तानसेन ,
  6. मानसिंह ,
  7. अब्दुर्रहीम खानखाना ,
  8. मुल्ला दो प्याजा ,
  9. फैजी ।

अक्टूबर 1605 ई. को अकबर बीमार पड़ा तथा कुछ दिनों तक मृत्यु से जूझने के बाद 25-26 अक्टूबर, 1605 ई. की रात्रि में उसकी मृत्यु हो गई। अकबर को सिकन्दरा (आगरा) में मुस्लिम रीति में दफनाया गया। अकबर मुगल साम्राज्य का सबसे अच्छा शासक था।

5. जहाँगीर (1605 ई. – 1627 ई.)

अकबर के शासन के 13 वें वर्ष अर्थात् 30 अगस्त, 1569 ई. को जहांगीर का जन्म हुआ था। जहाँगीर के बचपन का नाम सलीम था। सलीम का शिक्षक अकबर का नौरल अब्दुर्रहीम खानखाना था। अकबर की मृत्यु के पश्चात् सलीम का ‘जहाँगीर’ के नाम से आगरा के किले में राज्याभिषेक हुआ। जहाँगीर के सिंहासन पर बैठते ही सबसे पहले उसके पुत्र खुसरो ने 1606 ई. में आगरा पंजाब जाकर विद्रोह कर दिया। जहाँगीर ने उसे भैरोवल के मैदान में परास्त किया तथा जहाँगीर के आदेश पर उसे अन्धा कर दिया गया था। जहाँगीर के पाँच पुत्र थे – खुसरो, परवेज, खुर्रम, शहरयार, जहाँदार।

मई 1611 ई. में जहांगीर ने मेहरुन्निसा (नूरजहाँ) नामक विधवा से विवाह करके उसे ‘नूरमहल’ की उपाधि दी। नूरजहाँ को 1613 ई. में बादशाह बेगम भी बनाया गया। नूरजहाँ के पिता मिर्जा ग्यासबेग को दीवान अथवा राज्य कर मन्त्री नियुक्त किया गया था उसे ‘एतमाद्दौला’ की उपाधि भी दी गई। खुसरो की सहायता एवं आशीर्वाद देने के अभियोग में सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव को जहाँगीर ने मृत्यु दण्ड दिया तथा उनकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली। जहाँगीर को न्याय की जंजीर के लिए याद किया जाता है। यह जंजीर सोने की बनी थी, जो आगरे के किले के शाहबुर्ज एवं यमुना तट पर स्थित पत्थर के खम्भे में लगवाई हुई थी।

जहाँगीर के शासन काल मे चित्रकला

मुगल चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष पर जहाँगीर के शासनकाल में पहुँची, जहाँगीर के दरबार के प्रमुख चित्रकार थे- आगा रजा, अबुव हसन, मुहम्मद नासिर, मुहम्मद मुराद, उस्ताद मंसूर, विशनदास , मनोहर एवं गोवर्धन, फारुख बेग और दौलत। जहाँगीर ने आगा रजा के नेतृत्व में आगरा में एक चित्रणशाला की स्थापना की।जहाँगीर के समय को चित्रकला का स्वर्णकाल कहा जाता है।

इतमाद – उद – दौला का मकबरा 1626 ई. में नूरजहाँ बेगम ने बनवाया। मुगलकालीन वास्तुकला के अन्तर्गत निर्मित यह प्रथम ऐसी इमारत है, जो पूर्णरूप से बेदाग सफेद संगमरमर से निर्मित है। सर्वप्रथम इसी इमारत में पित्रदुरा नामक जड़ाऊ काम किया गया। जहाँगीर के मकबरा का निर्माण नूरजहाँ ने करवाया था।

जहाँगीर के शासन काल मे यूरोपीय यात्री

जहाँगीर के शासनकाल में कैप्टन हॉकिन्स, सर टॉमस रो, विलियम फिंच एवं एडवर्ड टैरी जैसे युरोपीय यात्री आए। लाडली बेगम शेर अफगान एवं मेहरुन्निसा की पुत्री थी, जिसकी शादी जहाँगीर के पुत्र शहरयार के साथ हुई थी। इंग्लैण्ड के सम्राट जेम्स प्रथम ने अंग्रेजी कम्पनी को व्यापारिक सुविधाएँ दिलाने के लिए विलियम हॉकिन्स ( 1608 ई.) पाल कैनिंग (1612 ई.) तथा विलियम एडवर्ड (1615 ई.) को जहाँगीर के दरबार में भेजा। इंग्लैण्ड के सम्राट जेम्स प्रथम ने सर टामस रो (1615-19 ई.) को राजदूत बनाकर भेजा।

अस्मत बेगम ने गुलाब से इत्र निकालने की विधि खोजी थी। यह नूरजहाँ की माँ थी । महाबत खाँ ने झेलम नदी के तट पर 1626 ई. में जहाँगीर, नूरजहाँ एवं उसके भाई आसफ खाँ को बन्दी बना लिया था। 7 नवम्बर, 1627 ई. को भीमवार नामक स्थान पर जहाँगीर की दमे के रोग से पीड़ित होने के कारण मृत्यु हो गई। उसे शहादरा (लाहौर) में रावी नदी के किनारे दफनाया गया।

6. शाहजहाँ (1628 ई. – 1658 ई.)

जहाँगीर के बाद सिंहासन पर शाहजहाँ बैठा। शाहजहाँ के बचपन का नाम खुर्रम था। शाहजहाँ का जन्म लाहौर में 5 जनवरी, 1592 ई. को हुआ था। इसकी माता का नाम जगत गोसाईं थीं। 1628 ई. में आगरा के राजसिंहासन पर शाहजहाँ का राज्यारोहण हुआ। शाहजहाँ ने अपनी पत्नी ‘अर्जुमन्द बानू बेगम’ को मुमताज महल की उपाधि से अलंकृत किया। 1631 ई. में प्रसव पीड़ा के कारण उसकी मृत्यु हो गया। अपनी बेगम मुमताज महल की याद में शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण आगरे में उसकी कब्र के ऊपर करवाया। ताजमहल का निर्माण करने वाला मुख्य स्थापत्य कलाकार उस्ताद अहमद लाहौरी था।

शाहजहाँ के शासनकाल की स्थापत्य कला का स्वर्ण युग कहा जाता है। दिल्ली का लालकिला, दीवाने आम, दीवाने खास, जामा मस्जिद, आगरा मोती मस्जिद, ताजमहल, मयूर सिंहासन आदि प्रमुख शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया। आगरे के जामा मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने करवाई। शाहजहाँ के दरबार के प्रमुख चित्रकार मुहम्मद फकीर एवं मीर हासिम थे। शाहजहाँ ने 1638 ई. में अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली लाने के लिए यमुना नदी के दाहिने तट पर शाहजहाँनाबाद की नींव डाली।

शाहजहाँ ने संगीतज्ञ लाल खाँ को ‘गुण समन्दर’ की उपाधि दी थी। शाहजहाँ के पुत्रों में दाराशिकोह सर्वाधिक विद्वान था। दाराशिकोह ने भगवद्गीता, योगवशिष्ठ, उपनिषद् एवं रामायण का अनुवाद फारसी में करवाया। दाराशिकोह ने सर्र – ए – अकबर ( महान रहस्य ) नाम से उपनिषदों का अनुवाद करवाया थी। शाह बुलंद इकबाल (King of Lofty Fortune) के रूप में दाराशिकोह जाना जाता है ।

शाहजहाँ 6 सितम्बर, 1657 ई. में गम्भीर रूप से रोगग्रस्त हो गया, ऐसी स्थिति में उसके चार पुत्रों द्वारा शिकोह, शुजा, औरंगजेब और मुराद के मध्य उत्तराधिकार का युद्ध प्रारम्भ हो गया। जिसमें औरंगजेब अपने भाइयों का वध करके राज सिंहासन पर बैठा। ( 1615-19ई. ) सामूगढ़ में विजय प्राप्त करने के पश्चात् औरंगजेब ने मुराद की हत्या कर दी तथा औरंगजेब ने स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया और 18 जून, 1658 ई. को औरंगजेब ने शाहजहाँ को बंदी बना लिया। शाहजहाँ के अन्तिम आठ वर्ष (1658 ई. – 1666 ई.) आगरा के किले के शाहबुर्ज में एक बन्दी के रूप में व्यतीत हुए। आगरे के किले में कैदी जीवन के आठवें वर्ष अर्थात् 13 जनवरी, 1666 ई. को 74 वर्ष की अवस्था में शाहजहाँ की मृत्यु हो गयी।

7. औरंगजेब ( 1658 ई. – 1707 ई. )

मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब, शाहजहाँ तथा मुमताज महल की छठी सन्तान थी। औरंगजेब का जन्म 1618 ई. में उज्जैन के निकट दोहद नामक स्थान पर हुआ था। औरंगजेब का विवाह फारस के राजघराने की शहजादी दिलराम बानो बेगम ( रबिया बीबी ) से 1637 ई. में हुआ। उत्तराधिकार युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् 21 जुलाई, 1658 ई. को औरंगजेब आगरा के सिंहासन पर बैठा। औरंगजेब का वास्तविक राज्याभिषेक एक वर्ष पश्चात् 5 जून 1659 ई. को अत्यन्त धूमधाम के साथ दिल्ली में हुआ था।

सम्राट बनने के उपरान्त औरंगजेब ने जनता के आर्थिक कष्टों के निवारण हेतु राहदारी (आन्तरिक पारगमन शुल्क) और पानदारी (व्यापारिक चुंगियों) आदि को समाप्त कर दिया था। औरंगजेब के शासनकाल में 1689 ई. तक मुगल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया, जो काबुल से लेकर चीन तक और कश्मीर से लेकर कावरी नदी तक विस्तृत था। औरंगजेब ने 1679 ई. में जाजिया कर को पुनः लागू किया। 1679 ई. में औरंगजेब ने बीबी का मकबरा का निर्माण औरंगजेब ने कुरान को अपने शासन का आधार बनाया।

औरंगजेब ने सिक्के पर कलमा खुदवाना, नवरोज का त्योहार मनाना, भाँग की खेती करना, गाना बजाना झरोखा दर्शन, तुलादान प्रथा आदि पर प्रतिबंध लगा दिया। औरंगजेब ने 1699 ई. में हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया। 1686 ई . में बीजापुर एवं 1697 में गोलकुण्डा को औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य में मिला लिया। औरंगजेब का पुत्र अकबर ने दुर्गादास के बहकावे में आकर अपने पिता के खिलाफ विद्रोह किया। औरंगजेब की मृत्यु 4 मार्च, 1707 ई. को हुई। औरंगजेब को दौलताबाद में स्थित फकीर बुहरानुद्दीन के कब्र के अहाते में दफना दिया गया।

8. बहादुरशाह (1707 ई. -1712 ई.)

औरंगजेब का सबसे बड़ा पुत्र मुहम्मद मुअब्जम बहादुरशाह को पदवी धारण करके 63 वर्ष की आयु में मुगलराज सिंहासन पर आसीन हुआ। बहादुरशाह ने अपने शासनकाल में राजपूतों व मराठों के प्रति सहनशील व शान्ति की नीति अपनायी। बहादुरशाह की मृत्यु 1712 ई में हुई । बहादुरशाह प्रथम को मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकार के लिए उसके चार पुत्रों में संघर्ष हुआ। बहादुरशाह का ज्येष्ठ पुत्र उनीजउद्दीन अपने भाइयों को मारकर अमीर जुल्फिकार खाँ की सहायता से जहाँदरशाह की पदवी धारण कर राजसिंहासन पर आसीन हो गया।

9. जहाँदारशाह (1712 ई. – 1713 ई.)

जहाँदरशाह मुगल सम्राट बनने के बाद जुल्फिकार खाँ को वजीर के पद पर नियुक्त किया। मुगल साम्राज्य के इस  अत्यधिक भ्रष्ट एवं लोभी आचरण वाले बादशाह जहाँदरशाह पर उसकी प्रेमिका लाल कुंवर का विशेष प्रभाव था। जहाँदरशाह के भान्जे फखसियर ने हिन्दुस्तानी अमीर सैय्यद बन्धुओं की सहायता से जहाँदरशाह को अपदस्थ कर हत्या करा दी।

10. फरुखसियर ( 1713 ई. -1719 ई.)

जहाँदरशाह को भारतीय इतिहास में लम्पट मूर्ख शासक की संज्ञा प्राप्त है। फरुखसियर को सिंहासन सैय्यद बन्धुओं की सहायता से प्राप्त हुआ था। फरुखसियर ने सैय्यद बन्धुओं को सम्मानित करते हुए सैय्यद अब्दुको मुगल साम्राज्य का वजीर और सैय्यद हुसैन अली को मोरबख्शी बनाया। सैय्यद बन्धुओं ने अपनी महत्वाकांक्षा के अनुरूप 19 जून 1719 ई. को फर्रुखसियर की हत्या करवा दी। इसके बाद रफीउद्दौला रफोउदरजात को मुगल बादशाह बनाया। रफीउद्दौला को शाहजहाँ द्वितीय को उपाधि से सुशोभित किया था।

11. मुहम्मदशाह (1719 ई. – 1748 ई.)

रफीउदरजात की मृत्यु के उपरान्त सैय्यद भाइयों ने रोशन अख्तर को सितम्बर 1719 में मुहम्मदशाह को उपाधि के साथ सिंहासन पर बैठाया। मुहम्मदशाह के सिंहासन पर बैठते ही सैय्यद भाईयों के विरुद्ध षड्यन्त्र का सूत्रपात हो गया। 1722 ई. में तुरानी गुट के अमीर निजाम उल मुल्क ने सैय्यद बन्धुओं की हत्या करा दी तथा स्वयं वजीर बन गया। 1724 ई में निजामुल्क में दक्षिण में स्वतन्त्र हैदराबाद राज्य की स्थापना की। मुहम्मदशाह ने उसकी स्वतंत्रा को मान्यता देते हुए उसे ‘आसफजाह’ को उपाधि से अलंकृत किया।

मुहम्मदशाह ने 1720 ई. में जजिया कर को सदैव के लिए प्रतिबन्धित कर दिया था। मुहम्मदशाह के ही काल में फारस के अफगान शासक नादिरशाह ने 1939 ई. में भारत पर आक्रमण किया। नादिरशाह ने करनाल के समीप मुगल सेना को युद्ध में पराजित कर दिल्ली के खजाने को खूब लूटा तथा वापस जाते वक्त वह मयूर सिंहासन व कोहिनूर हीरा भी ले गया। मुहम्मदशाह के पश्चात् 1748 ई. में उसका पुत्र अहमदशाह राजसिंहासन पर आसीन हुआ।

12. अहमदशाह (1748 ई. – 1754 ई. )

अहमदशाह ने अवध के सूबेदार सफदरजंग को अपना वजीर नियुक्त किया। 1754 ई. में जहाँदरशाह का पुत्र आलमगीर द्वितीय के नाम से मुगल बादशाह के पद पर आसीन हुआ।

13. आलमगीर द्वितीय ( 1754 ई – 1759 ई.)

अहमदशाह के बाद आलमगीर द्वितीय मुगल सिहासन पर बैठा। आलमगीर द्वितीय अपने वजीर इमादुल्गुल्क का कठपुतली शासक था।

14. शाहआलम ( 1759 ई. – 1806 ई.)

1759 ई. में आलमगीर द्वितीय का पुत्र अली गौहर शाहआलम द्वितीय की पदवी धारण कर मुगल राजसिंहासन पर आसीन हुआ। इसने अपने शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए मराठों को सहायता ली। 1765 ई. में शाह आलम द्वितीय ने 26 लाख रुपए वार्षिक पेंशन के बदले अंग्रेजों को बंगाल व बिहार की दीवानी दे दी।

15. अकबर द्वितीय ( 1806 ई. – 1837 ई.)

शाह आलम द्वितीय के पश्चात् 1806 ई. में उसका पुत्र अकबर द्वितीय मुगल राजसिंहासन पर आसीन हुआ। अकबर द्वितीय अंग्रेजों के संरक्षण में बनने वाला प्रथम मुगल बादशाह था। इसके समय में मुगल साम्राज्य मात्र लाल किले तक ही सीमित रह गया था। 1837 ई. में इस मुगल सम्राट की मृत्यु हो गई।

16. बहादुरशाह जफर ( 1837 ई. – 1857 ई.)

अकबर द्वितीय का पुत्र बहादुरशाह जफर द्वितीय मुगल साम्राज्य का अन्तिम मुगल सम्राट था। 1857 ई. के विद्रोह में वह विद्रोहियों का नेता घोषित किया गया था। अंग्रेजों ने बहादुरशाह जफर को बन्दी बना कर रंगून निर्वासित कर दिया था। 1862 ई. में मुगल साम्राज्य की इस अन्तिम मुगल सम्राट की मृत्यु हो गई।

मुगल साम्राज्य की महत्वपूर्ण जानकारी

  • मुगल साम्राज्य में लगानहीन भूमि ( मदद – ए – माश ) का निरीक्षण सद्र करता था।
  • सम्राट के विभागों का धान मीर समान कहलाता था।
  • मुगल साम्राज्य में सूचना एवं गुप्तचर विभाग का प्रधान दरोगा – ए – डाक चौकी कहलाता था ।
  • प्रशासन की दृष्टि से मुगल साम्राज्य का बँटवारा सूबों में, सूबों का सरकार में सरकार का परगना या महाल में , महाल का जिला या दस्तूर में और दस्तूर ग्राम में बँटे थे।
  • मुगल साम्राज्य में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, जिसे मावदा या दीह कहते थे। मावदा के अन्तर्गत छोटी-छोटी बस्तियों को नागला कहा जाता था।
  • शाहजहाँ के शासनकाल में सरकार एवं परगना के मध्य चकला नाम की एक नई इकाई की स्थापना की गयी थी।
  • भूमिकर के विभाजन मुगल शासन व्यवस्था मंत्रिपरिषद् को विजारत कहा जाता था।
  • सम्राट के बाद शासन के कार्यों को संचालित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी वकील था।
  • जब कभी सद्र न्याय विभाग के प्रमुख का कार्य करता था, तब उसे काजी कहा जाता था।
  • खालसा भूमि- प्रत्यक्ष रूप से बादशाह के नियंत्रण में।
  • मुगल साम्राज्य में जागीर भूमि – तनख्वाह के बदले दी जाने वाली भूमि।
  • सयूरगल या मदद – ए – माश भूमि अनुदान में दी गई।
  • लगानहीन करोड़ी नामक अधिकारी की नियुक्ति 1573 ई में अकबर के द्वारा की गयी थी। इसे अपने क्षेत्र से एक करोड़ दाम वसूल करना होता था।
  • अकबर ने 1580 ई. में दहसाला नाम की नवीन कर प्रणाली प्रारंभ की। इस व्यवस्था को टोडरमल बन्दोबस्त’ भी कहा जाता है।
  • औरंगजेब ने अपने शासनकाल में नस्क प्रणाली को अपनाया और भू – राजस्व की राशि की उपज का आधा कर दिया।
  • मुगल साम्राज्य में रुपए की सर्वाधिक ढलाई औरंगजेब के समय में हुई।
  • शाहजहाँ ने आना सिक्के का प्रचलन करवाया । जहाँगीर ने सिक्कों पर अपना एवं नूरजहाँ का नाम अंकित करवाया।
  • 1570-71 ई . में टोडरमल ने खालसा भूमि पर भू-राजस्व की नवीन प्रणाली जब्ती प्रारंभ की।
  • सबसे बड़ा सिक्का शंसब सोना का था।
  • स्वर्ण का सबसे प्रचलित सिक्का इलाही था।
  • दैनिक लेन – देन के लिए ताँबे के दाम का प्रयोग होता था ।
  • एक रुपया में 40 दाम होते थे।
  • मुगल सेना के ( 1 ) पैदल सैना, ( ii ) घुड़सवार सैना, ( iii ) तोपखाना और ( iv ) हाथी सेना चार भाग थे ।
  • मनसबदारी प्रथा अकबर ने प्रारंभ की थी। 10 से 500 तक मनसब प्राप्त करने वाले मनसबदार , 500 से 2500 तक मनसव प्राप्त करने वाले उमरा तथा 2500 . से ऊपर तक मनसब प्राप्त करनेवाले अमीर – ए – आजम कहलाते थे।

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