छत्तीसगढ़ के त्यौहार, छत्तीसगढ़ में कौन कौन से पर्व मनाते है? छत्तीसगढ़ी पर्व
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  • Post last modified:January 13, 2022

आमतौर पर छत्तीसगढ़ में त्यौहार को तिहार कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में बहुत से त्यौहार मनाया जाता है। यंहा सभी अलग अलग जनजातियों के द्वारा अलग अलग त्यौहार मनाया जाता है। सभी त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यंहा त्योहारों में अपने अपने घरों में अलग अलग व्यंजन बनाया जाता है। तो आइये देखते है कि छत्तीसगढ़ के त्यौहार, छत्तीसगढ़ में कौन कौन से पर्व मनाते है? छत्तीसगढ़ी पर्व कौन कौन से है?

त्यौहार का क्या अर्थ क्या है ? पर्व क्यों मनाते है ? त्यौहार कब मानते है?

प्रतिवर्ष किसी निश्चित तिथि को मनाया जाने वाला कोई धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव को त्यौहार या पर्व कहते है।प्रत्येक त्यौहार अलग अवसर से संबंधित होता है , कुछ वर्ष की ऋतुओं का , कुछ फसल कटाई का ,कुछ वर्षा ऋतु का अथवा पूर्णिमा का स्वागत करते हैं । दूसरों में धार्मिक अवसर , ईश्वरीय सत्ता / परमात्मा व संतों के जन्म दिन अथवा नए वर्ष की शरूआत के अवसर पर त्यौहार मनाए जाते हैं ।

छत्तीसगढ़ के त्यौहार

हरेली– मुख्य रूप से किसानों का पर्व है , धान की बुआई बाद श्रावण मास की अमावस्या को सभी कृषि एवं लौह उपकरणों की पूजा की जाती है । यह त्यौहार छत्तीसगढ़ अंचल में प्रथम पर्व के रूप में मनाया जाता है ।इस दिन बांस की गेंड़ी बनाकर बच्चे घूमते व नाचते हैं ।

भोजली– रक्षाबंधन के दूसरे दिन भाद्र मास की प्रतिप्रदा को यह पर्व मनाया जाता है , इस दिन लगभग एक सप्ताह पूर्व से बोये गये गेहूं , चावल आदि के पौधे रूपी भोजली को विसर्जित किया जाता है । यह मूलतः मित्रता का पर्व है इस अवसर पर भोजली का आदान – प्रदान होता है । जहाँ भोजली के गीत गाए जाते हैं । “ओ देवी गंगा , लहर तुरंगा” भोजली का प्रसिद्ध गीत है ।

कोरबा महोत्सव

यह छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में मई के महीने में आयोजित किया जाता है । पहाड़ी जनजाति कोरवा इस त्योहार को सभी धार्मिक संस्कारों और अनुष्ठानों बहुत धार्मिकता और उत्साह के साथ मनाते हैं ।

नाग पंचमी – श्रावण शुक्ल पक्ष के पंचमी के दिन । इस पर्व के अवसर पर दलहा पहाड़ ( जांजगीर – चांपा ) में मेला आयोजित किया जाता है । नागपंचमी के अवसर पर कुश्ती खेल आयोजित की जाती है ।

हलषष्ठी ( हरछठ , कमरछठ ) – भागमास की कृष्ण षष्ठी को मनाया जाता है । इस पर्व में महिलाएँ भूमि पर कुंड बनाकर शिव – पार्वती की पूजा करती हैं और अपने पुत्र की लंबी आयु की कामना करती हैं।

पोला– भाद्र अमावस्या के दिन गाँवों में बैलों को सजाकर बैल दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है । बच्चे मिट्टी के बैल से खेलते हैं ।

अरवा तीज– इस दिन आम की डलियों का मंडप बनाया जाता है । विवाह का स्वरूप लिए हुए यह उत्सव वैसाख माह में अविवाहित लड़कियों द्वारा मनाया जाता है।

सकट–  देवारों में सकट का अत्यधिक महत्वपूर्ण पर्व है । सकट में महिलायें अपने माता – पिता के घर आती है । उपवास रखा जाता है । सामूहिक भोज से उपवास तोड़ा जाता है । परिजन वस्त्र , श्रृंगार सामग्रियां अपनी कन्या को देते हैं ।

छेरछेरा – छेरछेरा त्यौहार पौष माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । यह पूस – पुन्नी के नाम से भी जाना जाता है । इस अवसर पर बच्चे नई फसल के धान माँगने के लिए घर – घर दस्तक देते है । उल्लासपूर्वक लोगों के घर जाकर ‘ छेरछेरा- कोठी के धान लाकर हेरा ‘ कहकर धान माँगते हैं । जिसका अर्थ है अपने भंडार में निकाल कर हमें दो । इसी दिन महिलाएँ अंचल का प्रसिद्ध सुवा नृत्य ‘ भी करती हैं। और पुरूष डंडा नृत्य करते है।

गौरा– छत्तीसगढ़ में गौरा कार्तिक माह में मनाया जाता है। इस उत्सव पर स्त्रियाँ शिव – पार्वती का पूजन करती हैं , अंत में प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है । गोड़ आदिवासी भीमसेन की प्रतिमा में तैयार करते हैं ।

गोवर्धन पूजा – कार्तिक माह में दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है । यह पूजा गोधन की समृद्धि की कामना में की जाती है इस अवसर पर गोबर की विभिन्न आकृतियाँ बनाकर उसे पशुओ के खुरों से कुचलवाया जाता है ।

नवरात्रि– चैत्र व अश्विन दोनों माह में माँ दुर्गा की उपासन का यह पर्व 9 दिन मनाया जाता है । अंचल के दंतेश्वरी , बम्लेश्वरी , महामाया, मनकादाई आदि शक्तिपीठों पर विशेष पूजन होता है । अश्विन नवराति में माँ दुर्गा की आकर्षक एवं भव्य प्रतिमाएँ भी स्थापित की जाती है

गंगा दशमी – सरगुजा क्षेत्र में यह उत्सव गंगा के पृथ्वी पर अवतरण को स्मृति में मनाया जाता है , जो जेठ मास की दशमी को होता है । आदिवासी एवं गैर आदिवासी दोनों द्वारा यह पर्व माया जाता है इस पर्व में पति – पत्नी मिलकर पूजन करते हैं । दोनों के प्रतिस्पर्धात्मक खेलों का आयोजन होता है ।

 

छत्तीसगढ़ के त्यौहार, छत्तीसगढ़ में कौन कौन से पर्व मनाते है? छत्तीसगढ़ी पर्व

जेठवनी – इस पर्व में तुलसी विवाह के दिन तुलसी की पूजा की जाती है। इस दिन गन्ने की पूजा की जाती है। और गन्ने और कांदा का भोग किया जाता है।

दशहरा – ये छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्यौहार है। इसे राम को विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है । इस अवसर पर शस्त्र पूजन और दशहरा मिलन होता है । बस्तर क्षेत्र में यह देतेश्वरी की पूजा का पर्व है ।

देवारी : छत्तीसगढ़ में दीपावली के त्यौहार को देवारी के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ में दीपावली को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता हैं।

सरहुल– यह उरांव जनजाति का महत्वपूर्ण त्योहार है , इस अवसर पर प्रतीकात्मक रूप से सूर्य देव और धरती माता विवाह रचाया जाता है , मुर्गे की बलि भी दी जाती है। अप्रैल के प्रारंभ में , जब साल वृक्ष फलते हैं । तब यह उरांव जनजाति व अन्य लोगों द्वारा मनाया जाता है । मुर्गे को सूर्य तथा काली मुर्गी को धरती का प्रतीक मानकर उन्हें सिंदूर लगाया जाता है तथा उनका विवाह किया जाता है । बाद में उनकी बलि चढ़ा दी जाती है।

बीज बोहानी– कोरवा जनजाति द्वारा बीज बोने से पूर्व यह उत्सव मनाया जाता है।

कजरी -यह छत्तीसगढ़ के क्षेत्र का एक और महत्वपूर्ण त्योहार है और उसी दिन आता है जो रक्षा बंधन या श्रावण पूर्णिमा पर मनाया जाता है । यह त्योहार किसानों के जीवन में विशेष महत्व रखता है और यह वह है जो इस त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं ।

आमाखायी– बस्तर में धुरवा व परजा जनजातियाँ आम फालने के समय यह त्यौहार मनाती है ।

रतौना– यह बैगा आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है , यह बस्तर का महत्वपूर्ण आयोजन है ।

चैतराई -यह छत्तीसगढ़ राज्य में गोंडों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है । इस त्यौहार के दिन गाँव के भगवान को कुछ शराब के साथ एक सुअर या मुर्दा चढ़ाया जाता है । इसके बाद आदिवासी समूह नृत्य , लोककथाओं और अन्य प्रकार के सांस्कृतिक प्रदर्शनों के रूप में पूर्ण मनोरंजन करते हैं ।

नवखाना – यह त्यौहार छत्तीसगढ़ में भादों माह के उज्ज्वल पखवाड़े या अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सितंबर के महीने में मनाया जाता है । इस दिन गोंड अपने पूर्वजों को नए अनाज और शराब चढ़ाते हैं । त्योहारों के उत्सव विभिन्न जिलों में अलग – अलग रूप लेते हैं । जिले के कोंडागांव तहसील में , बुद्ध देव की विशेष रूप से पूजा की जाती है , जबकि जगदलपुर तहसील में त्योहारों को मिठाई लेने और परिवार के सदस्यों को नए कपड़े देने के द्वारा मनाया जाता है ।

गोंचा– बस्तर में प्रसिद्ध रथयात्रा को गोंचा कहा जाता है । यह बस्तर का महत्वपूर्ण आयोजन है ।

नवान – नई फसल पकने पर दीपावली के बाद यह पर्व मनाया जाता है । कहीं – कहीं यह छोटी दीपावली कहलाती है । इस अवसर पर गोंड़ आदिवासी साजा वृक्ष , माता भवानी , नारायणदेव , रात माई एवं होलेरा देव को धान की बालियाँ चढ़ाते हैं ।

लारूकाज – लारू का अर्थ दूल्हा और काज का अर्थ अनुष्ठान है इस तरह इसका अर्थ विवाह उत्सव है । यह सुअर के विवाह का सूचक है गोडा का यह पर्व नारायण देव के सम्मानार्थ आयोजित किया जाता है । सुख समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए 9 या 12 वर्षों में एक बार इसका आयोजन प्रत्येक परिवार के लिए आवश्यक समझा जाता है ।

धनकुल– तीजा पर्व में महिलाएं अपने सुहाग के लिए गौरी या लक्ष्मी की आराधना करती है । कथा भादों की नवीं से प्रारंभ हो जाती हैं । स्त्रियाँ धनकुल की कथा गुरुमाएं से सुनती हैं और पूजा में भाग लेती है । गुरुमाएं धनकुल – वाद्य के साथ कथा करती हैं ।

बस्तर का दशहरा – बस्तर में दशहरा देवी दंतेश्वरी की पूजा से संबंधित है । इस अवसर पर रथ यात्रा आयोजित होती है । दशहरा उत्सव का आरंभ काकतीय नरेश पुरुषोत्तम देव ने किया । दशहरा उत्सव का आरंभ क्वार अमावस्या को काछन गुड़ी से होता है । माओली मंदिर में कलश स्थापना , जोगी बिठाना , रथ – यात्रा , कुंवारी पूजा , गोंचा , मुड़िया दरबार , देवी विदाई आदि दशहरा पर्व के विभिन्न चरण हैं । दंतेश्वरी माँ की प्रतिमा को पालकी में बिठाकर बाहर निकालने का अनुष्ठान उत्सव का महत्वपूर्ण पक्ष होता है । रथ खींचने का कार्य दंडामी माड़िया व धुरवा आदिवासी करते हैं। गोंड इस अवसर पर भवानी माता की पूजा करते हैं । गाँव की रक्षा के लिए भूमिया आदिवासी इस अवसर पर गामसेन देव की पूजा करते हैं ।

करमा पर्व– कर्म की जीवन में प्रधानता इस पर्व का महत्वपूर्ण संदेश है । यह पर्व भाद्र मास में पड़ता है । यह उरांव , बैगा , बिंझवार , गोड़ आदि जनजातियों का महोत्सव है । – करमा प्रायः धान रोपने व फसल कटाई के बीच के अवकाश काल का उत्सव है । यह अधिक उत्पादन के लिए मनाया जाने वाला पर्व है । इस पर्व का केन्द्रीय तत्व करम वृक्ष है । करम वृक्ष की तीन डालियाँ काट कर अखाड़ा या नाच के मैदान में गाड़ दिया जाता है , इस अवसर पर करमा नृत्य किया जाता है , दूसरे दिन करम संबंधी गाथा कही जाती है तथा विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं ।

मेघनाद पर्व – गोड़ जनजाति का यह पर्व फाल्गुन मास के प्रथम पखवाड़े में होता है । कहीं – कहीं यह पर्व चैत्र में मनाया जाता है । गोंड मेघनाथ को अपना सर्वोच्च देवता मानते हैं मेघनाथ का प्रतीक एक बड़ा सा ढाँचा आयोजन के मुख्य दिवस के पहले खड़ा किया जाता है ।  मेघनाथ ढाँचे के निकट स्त्रियाँ नृत्य करते समय खण्डेरादेव के अपने शरीर में प्रवेश का अनुभव करती हैं । यह आयोजन गोंड जनजाति में आपदाओं से विजय पाने का विश्वास उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

माटी पूजा – माटी पूजा या ‘ पृथ्वी की पूजा छत्तीसगढ़ राज्य में महत्वपूर्ण महत्व का त्योहार है जहां लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है । इस त्यौहार के दौरान बस्तर जिले के आदिवासी लोग अगले सीजन के लिए फसलों की भरपूर पैदावार के लिए पृथ्वी की पूजा करते हैं । धार्मिक संस्कार और परंपराएं भी उनके द्वारा अत्यंत श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाई जाती हैं ।

ककसार –  ककसार उत्सव अबूझमाड़िया आदिवासियों में एक महत्त्वपूर्ण पर्व के में मनाया जाता है । * इसमें स्त्री – पुरुष अपने – अपने अर्द्धवृत्त बनाकर सारी रात नृत्य करते हैं। ककसार के अवसर पर वैवाहिक संबंध भी तय किए जाते हैं इस तरह यह अविवाहित लड़के – लड़कियों के लिए अपने जीवन साथी चुनने का अवसर भी होता है।

ककसार बस्तर की मुड़िया जनजाति का पूजा नृत्य है। जिसमें मुड़िया जनजाति के लोग लिंगदेव को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए पुरुष कमर में लोहे या पीतल की घंटियाँ बाँधकर , हाथ में छतरी लेकर , सिर में सजावट करके रात भर सभी वाद्यों के साथ नृत्य गायन करते हैं , स्त्रियाँ विभिन्न झूलों और मोतियों की माला पहनती है । . इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत को ककसारपाटा कहा जाता है ।

मातर – यह छत्तीसगढ़ के अनेक हिस्सों में दीपावली के तीसरे दिन मनाया जाने वाला एक मुख्य त्योहार है । मातर या मातृ पूजा कुल देवता की पूजा का त्योहार है । यहां के आदिवासी एवं यादव समुदाय के लोग इसे मानते है । ये लोग लकड़ी के बने अपने कुल देवता खोड़ हर देव की पूजा अर्चना करते है । राउत लोगो द्वारा इस अवसर पर पारम्परिक वेश भूषा में रंग- बिरंगे परिधानों में लाठियां लेकर नृत्य किया जाता है ।

रामनवमी – चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी के जन्म तिथि के अवसर पर छत्तीसगढ़ के लोग शादी के लिए बहुत शुभ मुहूर्त मानते है । रामनवमी चैत्र माह में नवरात्र के नौवें दिन मनाया जाता है । इस दिन जवारा एवं ज्योति कलश विसर्जन किया जाता है ।

अक्षय तृतीया ( अक्ति ) – मनाई जाने वाली तिथि – वैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया । इस पर्व के दौरान पुतली एवं पुतले का विवाह किया जाता है एवं अक्ति पर्व मनाया जाता है । अक्ति की तिथि विवाह के लिए बहुत अच्छी मुहूर्त मानी जाती है इस दौरान छत्तीसगढ़ में विवाह का माहौल बहुत ज्यादा रहता है ।

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This Post Has One Comment

  1. अजय

    नवा खाना ही सबसे प्रमुख और मूल त्योहार है छत्तीसगढ़ का क्योंकी इसी दिन जो मूल छत्तीसगढ़ के लोगो के द्वारा मनाया जाता है नये फसलौ के द्वारा 👍👍👍

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Amit Yadav

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