संयम क्या हैं, संयम किसे कहते हैं, संयम का अर्थ, संयमित क्यो रहना चाहिए।

लोग संयम का महत्व तो अच्छी तरह समझते हैं , लेकिन उसका यथोचित उपयोग नहीं कर पाते । इसी लिए आज की पोस्ट में हम बात करेंगे कि संयम क्या हैं, संयम किसे कहते हैं, संयम का अर्थ, संयमित क्यो रहना चाहिए। क्योंकि जीवन में संयम से बहुत उपलब्धियां संभव होती है । मनुष्य का पहला कर्तव्य है संयम धारण करना । इसके बिना सभी कर्म अधूरे ही रह जाएंगे । कर्म क्षेत्र में संयम सबसे आवश्यक है ।

दोस्तो संयम से मनुष्य क्षीर , गंभीर बनता है और निर्णय लेने में कोई गलती नहीं करता । संयम द्वारा बड़े से बड़ा संकट टाला जा सकता है । एक प्रकार से संयम सुख , समृद्धि , उन्नति तथा शांति का द्वार कहा जाता है । संसार में जो भी उपलब्धियां आज दृष्टिगत हा रही हैं । वे संयम का ही परिणाम है ।

संयम क्या हैं

संयम एक ऐसा गुण है जो व्यक्ति के जीवन को खुशियों एवं सुखों से भर देता है । इन्द्रिय संयम , वाणी का संयम , मन का संयम ही व्यक्ति को महान् बनाता है ।

संयम संस्कृति का मूल है । विलासिता, निर्बलता और अनुकरण के वातावरण से न संस्कृति का उदय होता है और न विकास । संयम के आधार पर निर्मित संस्कृति प्रभावशाली और दीर्घजीवी होती है ।

संयम क्या होती हैं

आत्मज्ञानी व संयमी पुरुषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न ही वे विषयों के लिए युक्ति करते हैं । बाहरी किन्हीं विशेष कारणों से किया गया संयम वास्तविक संयम नहीं है असली संयम का संबंध भीतरी समझ से होता हैं।

संयम का अर्थ क्या है

संयम का अर्थ है अपनी बिखरी शक्ति को एक निश्चित दिशा देना । लक्ष्य का निश्चय होते ही ऐसे पदार्थ और व्यक्ति निरर्थक लगने लगते हैं , जो लक्ष्य प्राप्ति के सहायक नहीं होते , बल्कि बाधक होते हैं । इस सन्दर्भ में की जानेवाली सतत् विचार प्रक्रिया सहज संयम का कारण बनती है ।

संयम का अर्थ है सदा सचेत रहना कि अन्तस्थल में क्या घट रहा है । अविवेकी व्यक्ति संयम पर भाषण दे सकता है , संयम की मिठास भी नहीं चख सकता । जबकि यह मिठास आँवले की मिठास की तरह पुष्टिकारक तथा रोगों का निवारण करने वाली हुआ करती है ।

संयम किसे कहते हैं

जिसे नहीं करना चाहिए उस ओर जब मन आकृष्ट हो जाए और आप उसे प्रयासपूर्वक रोकें , वैसा न करने दें तो उसे संयम कहा जाता है । लेकिन संयम का अर्थ है जब आकर्षणों की ओर जाने के लिए मन सहज रूप से रुक जाए ।

संयमित क्यों रहना चाहिए

सदा ध्यान रखे कि संयम इंसान का बेहतरीन गुण है । जो व्यक्ति संयम नहीं रखता उसके निर्णय , उसकी इच्छाएँ बदलती रहती हैं और परीक्षा के क्षणों में वह निर्बल साबित होता है ।

धन अच्छे कार्यों से उत्पन्न होता है । हिम्मत, योग्यता, विद्वत्ता, वेग दृढ़ता से बढ़ता है, चतुराई से फलता – फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है । इस लिए हमेशा संयमित रहना चाहिए।

संयमित न रहने से क्या होता है ?

असंयमी व्यक्ति जानवरों से भी गया बीता होता है । जानवर भी भोजन और वासनापूर्ति में कुछ संयम रखते हैं , किन्तु इंसान बुद्धिमान होकर भी आहार – विहार में बड़े असंयमी होते हैं जिससे वे बीमार पड़ते हैं । संयम एक ऐसा अंकुश है , जो हमें विवेक और सत्य के पथ पर आरूढ़ रखता है । वही साधक आत्मतत्व की अनुभूति कर पाता है,

इंद्रियाँ शिथिल हो जाएँ , लेकिन मन से वासना न जाए , ऐसी स्थिति में असंयमी व्यक्ति अत्यन्त हास्यास्पद हो जाता है । ऐसी घटनाएँ आपको वृद्धों में , विशेषरूप से देखने को मिलती हैं । ऐसे वृद्ध अपने जीवन को नरक बना लेते हैं ।

संयम पर विद्वानों की कथन

  • शरीर के लिए संयम , पथ्य एवं औषध की व्यवस्था रखनी ही चाहिए । -हकीकत राय ।
  • संयम उस मित्र के समान है जो ओझल होने पर भी मनुष्य की शक्तिधारा में विद्यमान रहता है । -प्रेमचन्द ।
  • गति के साथ संयम और स्थिति रक्षा दोनों ही आवश्यक हैं। -बाबू गुलाब राय ।
  • गृहस्थ का घर भी एक तपोभूमि है । सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता ।

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  • मन , वाणी और शरीर से सम्पूर्ण संयम में रहने का सार ही ब्रह्मचर्य है । स्वामी महावीर ।
  • अपनी कर्मेन्द्रियों का संयम करते हुए जो मन से विषयों का चिन्तन करता है , वह पाखण्डी है । संयम का अर्थ है इस बात की समझ कि विषयों में सुख नहीं , वे दुःख का कारण -विदुर नीति ।
  • सन्त संयम नहीं करता । प्रत्येक वस्तु को वह दूसरे के निमित्त समझता है । ‘ तीर्थ करें । -अज्ञात महाबीर -लोओत्से ।
  • संयम की जानकारी और अभ्यास दोनों अलग – अलग बातें हैं । दोनों एक – दूसरे के बिना अधूरे हैं क्योंकि अँधेरेपन में भटकने की संभावना पूरी तरह से बनी रहती है । -स्वामी गोविन्द प्रकाश।

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  • इस सच्चाई से कौन इंकार करता है कि यातायात की पीली बत्ती देखने के पश्चात् सिर्फ हरी बत्ती का इन्तजार ही रहता है , चाहे आप समय नष्ट करने ही क्यों न जा रहे हों फँसे रहना हम मंजूर नहीं करते । -राजा ठाकुर ।
  • संयमहीन जीवन विपत्तियों का आगार बन जाता है ।
  • विद्यार्थी अवस्था में संयम की महान् विद्या सीख लेनी चाहिए । जब आप संयम की शक्ति का संग्रह कर लेंगे तो एकाग्रता भी , जो जीवन की एक महान् शक्ति है , पा लेंगे । -विनोबा भावे ।
  • जो आत्मसंयमी है वही सर्वशक्तिमान है । जो आत्मसंयमी नहीं है , वह स्वतन्त्र नहीं है । -पाइथागोरस ।

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  • जो अपने ऊपर शासन कर सकते हैं वही दूसरों पर भी करते -हैजलिट ।
  • बलवान् बनने के लिए एक ओर जरूरी बात है संयम । मैं इन्द्र हूँ , ये इन्द्रियों मैरी शक्तियाँ हैं । -विनोबा भावे ।

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