अनुशासन का महत्व | अनुशासन का अर्थ | अनुशासित कैसे बने

अनुशासन का महत्व

अनुशासन नियमों का परिमार्जित तथा समाज में स्वीकृत रूप है। किसी भी राष्ट्र, समाज या संस्था की उम्पति उसके नागरिकों को अनुशासनबद्धता, नियमबद्धता आदि पर निर्भर करती है। अनुशासन मानव जीवन का प्राण है। अनुशासनहीन समाज शीघ्र ही पतन के गर्त में गिर जाता है। इसलिए ये जानना भी जरूरी है कि जीवनके अनुशासन का क्या महत्व है? तो आइए देखते है मानव जीवन में अनुशासन का महत्व, अनुशासन का अर्थ, अनुशासित कैसे बने?

अनुशासन का महत्व, अनुशासन का अर्थ, अनुशासित कैसे बने

अनुशासन का अर्थ क्या है?

अनुशासन दो शब्दों के मेल से बना है-‘अनुशासन’, जिसका शाब्दिक अर्थ है शासन (नियमों) के अनुसार आचरण करना। जब व्यक्ति समाज के नियमों के अनुरूप आचरण करता है, तो कहा जाता है, वह अनुशासित है।

अनुशासन कितने प्रकार के होते हैं?

अनुशासन दो प्रकार का होता है बाह्य अनुशासन और आत्मानुशासन। जब व्यक्ति दंड के भय से नियमों का पालन करता है, तो अनुशासन का यह रूप बाह्य अनुशासन है, पर जब वह स्वेच्छा से नियमों का पालन करता है, तो इसे आत्मानुशासन कहा जाता है। आत्मानुशासन श्रेष्ठ होता है क्योंकि इसका पालन स्वेच्छा से किया जाता है।

विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व

वैसे तो मानव जीवन के हर मोड़ पर अनुशासन का महत्त्व है, पर विद्यार्थी जीवन में इसका विशेष महत्व है। विद्यार्थी जीवन संपूर्ण जीवन की आधारशिला है। इस काल में जो संस्कार, जो जीवन मूल्य तथा जो आदतें पड़ जाती हैं, वे जीवन भर साथ देती हैं इसीलिए विद्यार्थी जीवन में अनुशासित रहने वाले विद्यार्थी जीवन भर अनुशासित रहते है तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बन कर देश के विकास में भागीदार बनते हैं।

इसके विपरीत इस काल में अर्थात विद्यार्थी जीवन मे अनुशासनहीन हो जाने वाला जीवन भर अनुशासनहीन रहता है तथा न तो अपना, न समाज का और न ही राष्ट्र का कोई भला कर पाता है।

अनुशासनहीनता के कारण

दुर्भाग्य से आज का विद्यार्थीवर्ग अनुशासित नहीं है। वह अपनी संस्कृति से विमुख है, फैशन का दीवाना है, उसमें विनयशीलता, शिष्टाचार, आज्ञाकारिता, सादगी, परिश्रमशीलता, सत्यनिष्ठा, समयबद्धता जैसे गुणों का अभाव है। उसके कारणों पर ध्यान दें तो पाते हैं कि सबसे पहले तो आज की शिक्षा पद्धति ही दोषपूर्ण है। शिक्षा में नैतिक शिक्षा का कोई स्थान नहीं है, अच्छे शिक्षकों का भी अभाव है। आज की शिक्षा एक व्यवसाय बनकर रह गई है।

अनुशासनहीनता को कैसे दूर करे? अनुशासित कैसे बने?

आज आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा पद्धति में व्यापक सुधार किए जाएं। विद्यार्थियों को राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखने का प्रावधान किया जाए तथा विदेशी फिल्मों, कार्यक्रमों आदि की समीक्षा की जाए। साथ ही आर्थिक विषमता, गरीबी, बेरोजगारी भी विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता को जन्म देती है। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।

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