नागा साधु कैसे बनते हैं? देखिए नागा साधु का रहस्यमयी दुनिया
संस्कृत में नागा का अर्थ पहाड़ होता है, और पहाड़ों के आसपास रहने वाले लोग पहाड़ी या नागा के नाम से जाने जाते हैं। नागा साधु हठयोग के सबसे अच्छे उदाहरण हैं। नागा साधुओं का इतिहास बहुत पुराना है, इनके निशान मोहनजो-दड़ो के सिक्कों और चित्रों में पाए जाते हैं जहाँ नागा साधुओं को पशुपतिनाथ रूप में भगवान शिव की पूजा करते हुए दिखाया गया है।
नागा साधु का जीवन शैली
इनके आश्रम हरिद्वार और दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में हैं जहां ये आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके गुस्से के बारे में प्रचलित किस्से कहानियां भी भीड़ को इनसे दूर रखती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह शायद ही किसी को नुकसान पहुंचाते हों। हां, लेकिन अगर बिना कारण अगर कोई इन्हें उकसाए या तंग करे तो इनका क्रोध भयानक हो उठता है। कहा जाता है कि भले ही दुनिया अपना रूप बदलती रहे लेकिन शिव और अग्नि के ये भक्त इसी स्वरूप में रहेंगे।
भारत में रहने के दौरान एलेक्जेंडर और उनके सैनिक नागा साधुओं से भी मिले। नागा स्थिति को प्राप्त करने की प्रक्रिया बहुत कठिन है और अभ्यास इतना कठिन है कि इसकी तुलना दुनिया भर में किसी भी सेना की सबसे कड़ी ट्रेनिंग से भी नहीं की जा सकती है। प्राचीन काल के दौरान, नागा साधुओं को वैदिक-विरोधी आक्रमणकारियों से बुरी तरह से लड़ने के लिए सिखाया जाता था। नागा साधु मंदिरों और मठों की रक्षा करने के लिए तालवृक्ष, त्रिशूल, गदा, तेज दनुश और शस्त्र कौशल से लैस थे।
नागा साधु का इतिहास
कई लोग मानते हैं कि आदि शंकराचार्य ने युवा साधुओं पर जोर दिया कि वे सैनिक की तरह प्रशिक्षण लें। इसके लिए ऐसे मठ स्थापित किए गए, जहां सैन्य प्रशिक्षण दिया जाने लगा, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए। इस तरह बाहरी आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। अखाड़ों का इतिहास वीरता से भरा है।
समय-समय पर अखाड़ों ने मुगलों और अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए शस्त्र उठाया था। इन्होंने कभी जोधपुर को बाहरी आतंकियो से बचाया तो कभी अहमदशाह अब्दाली और औरंगज़ेब को हराया, तो कभी अंग्रेज़ जासूसों को मज़ा चखाया। औरंगज़ेब तो इनकी ताक़त देख के मंदिरो को तोड़ना बंद ही कर दिया था। यही नहीं, नागा साधुओं ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1920 में, गांधी जी ने उनकी मदद मांगी।तब इन्होंने ही ग्रामीण भारत के आम लोगों के बीच आग की तरह स्वतंत्रता आंदोलन का प्रसार किया। ग्रामीण लोग इन साधुओं को बहुत सम्मान के साथ मानते थे।
स्वतंत्रता के बाद,ऐसा माना जाता है की इन्होंने शस्त्र त्याग दिए और अब सिर्फ़ कुम्भ के समय ही इनके दर्शन हो पाते है। आज परिस्थिति ऐसी है की इनके अखाड़ों के साधुओं पर हमले हो रहे, इन्हें मारा जा रहा। जिनकी मिसालें दी जानी चाहिए, उनपे सियासत खेल कर इनकी तपस्या का मज़ाक़ बनाया जा रहा।
नागा साधु बनने के लिए क्या क्या करना पड़ता है?
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं। कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है। पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है। नागा साधु बनने के लिए नीचे दिए जानकारी को गौर करें।
मजबूत ब्रह्मचर्य और तपस्या:
एक व्यक्ति जो नागा साधु बनने में रुचि रखता है, उसे अपनी वासना,भावनाओं पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन केवल भौतिक शरीर तक ही सीमित नहीं है बल्कि नैतिक मूल्यों पर भी आधारित है।
भगवान, लोगों और देश के लिए सेवा:
एक व्यक्ति जो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करता है, उसका कोई फायदा नहीं है अगर वह भगवान, लोगों और देश से प्यार नहीं करता है। नागा साधु को ये मानकर इनकी सेवा करनी होती है।
अंतिम संस्कार:
परिवार और समाज के लिए खुद को मृत मानते हुए अपना अंतिम संस्कार करना बहुत ज़रूरी है। यह नागाओं की एक नई दुनिया में एक व्यक्ति के नए जन्म की तरह है। अंतिम संस्कार, पिंडदान और श्राद्ध व्यक्ति द्वारा स्वयं किए जाते हैं, परिवार के सदस्यों और दोस्तों के साथ उसके संबंध को त्यागते हैं। इसके बाद, गुरु उसे नया नाम और पहचान देता है।
वस्त्र त्याग:
नागा साधु कपड़े नहीं पहन सकते। एक नागा साधु अपने शरीर को सजाने के लिए सांसारिक चीजों का उपयोग नहीं कर सकता है,वह केवल अपने शरीर को राख से रगड़ सकता है,जो उसका एकमात्र श्रृंगार है।
रुद्राक्ष धारण करना:
नागा को अपनी गर्दन पर रुद्राक्ष माला पहननी होती है।
एक बार भोजन:
एक नागा साधु दिन में केवल एक बार भोजन कर सकता है।नागा साधु भोजन के लिए अधिकतम सात घरों में भिक्षा ले सकते हैं, यदि इन सात घरों में से किसी में भी उन्हें भोजन नहीं दिया जाता है तो उन्हें दिन के लिए भूखा रहना पड़ता है।
धरती पर सोना:
एक नागा केवल धरती पर ही सो सकता है,वह सोने के लिए खाट,पलंग या छटाई का इस्तेमाल नहीं कर सकता। हर नागा साधु को इस शर्त का पालन करना होता है।
गुरु मंत्र:
दीक्षा प्राप्त करने के बाद, गुरु नागा को एक मंत्र देता है।उनका पूरा जीवन इस गुरुमंत्र के इर्द-गिर्द घूमता है। उसे पूरी तरह से गुरु पर भरोसा करना चाहिए और उसे दिए गए मंत्र के साथ तपस्या करनी चाहिए।
एकांत जीवन:
एक नागा साधु शहरों या घनी आबादी वाले शहरों में नहीं रह सकता है। उसे उन जगहों पर शरण लेनी होगी जो आम लोगों से बहुत दूर हैं।
आखिर कैसे बनते हैं महिला नागा साधु
पुरुष नागा साधु की तरह महिला नागा साधुओं का जीवन भी रहस्यमय बना हुआ है। आखिर महिला नागा साधु कैसे बनती हैं और इनकी दिनचर्या किस तरह की होती है। बताया जाता है कि महिलाओं की नागा साधु बनने की प्रक्रिया आसान नहीं होती है, इनको कई कठिन तपस्याओं से गुजरना होता है। यह अपना पूरा जीवन ईश्वर को समर्पित कर देती हैं और यह दुनिया के सामने बहुत कम नजर आती हैं। महिला नागा साधु अखाड़े, जंगल, गुफाओं में रहना पसंद करती हैं। साथ ही इनको कई सालों तक भयंकर तपस्या करनी पड़ती है।
क्या पुरुषों की तरह महिला नागा साधु भी रहती हैं निर्वस्त्र?
अधिसंख्य नागा साधु पुरुष ही होते हैं, कुछ महिलायें भी नागा साधु हैं पर वे सार्वजनिक रूप से सामान्यतः नग्न नहीं रहती अपितु एक गेरुवा वस्त्र लपेटे रहती हैं।
पहला विदेशी नागा साधु कौन था?
बाबा रामपुरी, जन्म विलियम ए. गन्स (14 जुलाई, 1950), जिन्हें बाबा राम पुरी-जी के नाम से भी जाना जाता है, एक अमेरिकी मूल के साधु हैं। वह नागा साधु बनने वाले पहले पश्चिमी होने का दावा करते हैं, जिसकी शुरुआत 1970 में हुई थी।