भारत में राष्ट्रीय आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाएं, भारत आजाद कैसे हुआ?

भारत में राष्ट्रीय आंदोलन

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

राष्ट्रीय आंदोलन, भारत की आज़ादी के लिए सबसे लम्बे समय तक चलने वाला एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था। भारत में राष्ट्रीय आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के साथ ही हुई। जो 15 अगस्त, 1947 ई. तक लगातार जारी रहा।

भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन ब्रिटिश राज के विरुद्ध भारतीय उपमहाद्वीप में स्वतन्त्रता हेतु ऐतिहासिक विद्रोह ( 1857-1947 ) भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका उद्देश्य, अंग्रेजी शासन से भारतीय उपमहाद्वीप को मुक्त करना था। इस आन्दोलन का आरम्भ 1857 में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है । जिसमें स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों की जान गई।

भारत में राष्ट्रीय आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाओं की पूरी लिस्ट..

भारत में राष्ट्रीय आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाएं

क्र. वर्ष महत्वपूर्ण घटनाएं
1 1904 भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित
2 1905 बंगाल का विभाजन
3 1906 मुस्लिम लीग की स्थापना
4 1907 सूरत अधिवेशन, कांग्रेस में फूट
5 1909 मार्ले-मिंटो सुधार
6 1911 ब्रिटिश सम्राट का दिल्ली दरबार
7 1916 होमरूल लीग का निर्माण
8 1916 मुस्लिम लीग-कांग्रेस समझौता (लखनऊ पैक्ट)
9 1917 महात्मा गाँधी द्वारा चंपारण में आंदोलन
10 1919 रौलेट अधिनियम
11 1919 जलियाँवाला बाग हत्याकांड
12 1919 मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार
13 1920 खिलाफत आंदोलन
14 1920 असहयोग आंदोलन
15 1922 चौरी-चौरा कांड
16 1927 साइमन कमीशन की नियुक्ति
17 1928 साइमन कमीशन का भारत आगमन
18 1929 भगतसिंह द्वारा केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट
19 1929 कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता की माँग
20 1930 सविनय अवज्ञा आंदोलन
21 1930 प्रथम गोलमेज सम्मेलन
22 1931 द्वितीय गोलमेज सम्मेलन
23 1932 तृतीय गोलमेज सम्मेलन
24 1932 सांप्रदायिक निर्वाचक प्रणाली की घोषणा
25 1932 पूना पैक्ट
26 1942 भारत छोड़ो आंदोलन
27 1942 क्रिप्स मिशन का आगमन
28 1943 आजाद हिन्द फौज की स्थापना
29 1946 कैबिनेट मिशन का आगमन
30 1946 भारतीय संविधान सभा का निर्वाचन
31 1946 अंतरिम सरकार की स्थापना
32 1947 भारत के विभाजन की माउंटबेटन योजना

भारत मे राष्ट्रीय आंदोलन की प्रमुख घटना

भारत में राष्ट्रीय आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत जानकारी…

1. भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित (1904)

भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम लॉर्ड कर्जन ने लागू किया। यह लॉर्ड एल्गिन द्वितीय के बाद 1899 ई . में भारत के वायसरॉय बनकर आया लॉर्ड कर्ज़न (1899-1905 ई.) के कार्यकाल में पारित किया गया। शैक्षिक सुधारों के अन्तर्गत कर्ज़न ने 1902 ई. में सर टॉमस रैले की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय आयोग ‘ का गठन किया । आयोग द्वारा दिये गए सुझावों के आधार पर विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 ई . पारित किया गया।

इस अधिनियम के आधार पर विश्वविद्यालय पर सरकारी नियन्त्रण बढ़ गया। विश्वविद्यालय की सीनेट में मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। गैर सरकारी कॉलेजों का विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित होना अत्यधिक कठिन बना दिया गया। इसके द्वारा यह निश्चित हुआ कि विश्वविद्यालयों को केवल परीक्षा लेने का ही काम नहीं करना चाहिए, उन्हें योग्य अध्यापक नियुक्त करके अनुसंधान तथा अध्यापन का भी काम करना चाहिए। स्कूलों तथा कालेजों में छात्रावास की व्यवस्था करने का आदेश दिया गया।

2. बंगाल का विभाजन (1905)

बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा 19 जुलाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय कर्जन के द्वारा किया गया था। एक मुस्लिम बहुल प्रान्त का सृजन करने के उद्देश्य से ही भारत के बंगाल को दो भागों में बाँट दिये जाने का निर्णय लिया गया था। विभाजन के सम्बन्ध में कर्ज़न का तर्क था कि तत्कालीन बंगाल, जिसमें बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे, काफ़ी विस्तृत है और अकेला लेफ्टिनेंट गवर्नर उसका प्रशासन भली-भाँति नहीं चला सकता है।

इसीलिए उत्तरी और पूर्वी बंगाल के राजशाही, ढाका तथा चटगाँव डिवीजन में आने वाले पन्द्रह ज़िलों को असम में मिला दिया गया और पूर्वी बंगाल तथा असम नाम से एक नया प्रान्त बना दिया गया और उसे बंगाल से अलग कर दिया गया। बंगाल – विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी हुआ । इतिहास में इसे बंगभंग नाम से भी जाना जाता है। अतः इसके विरोध में 1908 ई. में सम्पूर्ण देश में ‘बंग-भंग’ आन्दोलन शुरु हो गया। इस विभाजन के कारण उत्पन्न उच्च स्तरीय राजनीतिक अशांति के कारण 1911 में दोनो तरफ की भारतीय जनता के दबाव की वजह से बंगाल के पूर्वी एवं पश्चिमी हिस्से पुनः एक हो गए।

3. मुस्लिम लीग की स्थापना (1906)

हिंदुओं के बीच सरकार विरोधी रुख को देखकर ब्रिटिश अधिकारियों ने मुसलमानों के प्रति पुरानी दमन – नीति को छोड़कर उन्हें संरक्षण देने की नीति अपना ली थी . बंग – विभाजन ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन दिया था। लार्ड मिण्टो के समर्थन में 30 दिसंबर, 1906 में ब्रिटिश भारत के दौरान ढाका (वर्तमान में बांग्लादेश) में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी। लीग में आगा खां , ख्वाज़ा सलीमुल्लाह और मोहम्मद अली जिन्ना समेत कई नेता शामिल थे। सलीमुल्ला ख़ाँ ‘मुस्लिम लीग ‘ के संस्थापक व अध्यक्ष थे, जबकि प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता मुश्ताक हुसैन ने की। 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ‘मुस्लिम लीग’ बन गई थी।

4. सूरत अधिवेशन, कांग्रेस में फूट (1907)

सूरत अधिवेशन 26 दिसम्बर, 1907 ई. को ताप्ती नदी के किनारे यह अधिवेशन सम्पन्न हुआ। ऐतिहासिक दृष्टि से यह अधिवेशन अति महत्त्वपूर्ण था। कांग्रेस आपसी मतभेदों के कारण गरम दल और नरम दल नामक दो दलों में बंट गयी। इसी को सूरत विभाजन कहते हैं। स्वराज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन एवं अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नरम दल तथा गरम दल दोनों में काफ़ी मतभेद था। अधिवेशन से पूर्व ही दोनों दलों में भयंकर मार – पीट हुई, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस का दो भागो में विभाजन हो गया। सूरत विभाजन के बाद गरम दल का नेतृत्व तिलक, लाला लाजपत राय एवं विपिन चन्द्र पाल ( लाल, बाल, पाल ) ने किया। नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले थे। 1916 ई. में कांग्रेस के ‘ लखनऊ अधिवेशन ‘ में पुनः दोनों दलों का आपस में विलय हो गया।

5. मार्ले-मिंटो सुधार या भारत परिषद नियम (1909)

वर्ष 1909 में भारत परिषद अधिनियम, जिसे मार्ले मिंटो सुधार भी कहा जाता है, ब्रिटिश संसद द्वारा पारित एक अधिनियम था, जिसे ब्रिटिश भारत में स्वशासित शासन प्रणाली स्थापित करने के लक्ष्य से पारित किया गया था। इस अधिनियम द्वारा चुनाव प्रणाली के सिद्धांत को भारत में पहली बार मान्यता मिली। गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में पहली बार भारतीयों को प्रतिनिधित्व मिला तथा केंद्रीय एवं विधानपरिषदों के सदस्यों को सीमित अधिकार भी प्रदान किये गए। मार्ले-मिन्टो सुधार के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि इस समय मार्ले भारत राज्य सचिव एवं लार्ड मिन्टो भारत के वाइसरॉय थे।

6. ब्रिटिश सम्राट का दिल्ली दरबार (1911)

1911 में ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली दरबार का आयोजन किया। बादशाह जॉर्ज पंचम और उसकी महारानी इस अवसर पर भारत आये थे और उनकी ताज़पोशी का समारोह भी हुआ था। इस दिल्ली दरबार में मौजूद हज़ारों की भीड़ के सामने ब्रिटेन के सम्राट जॉर्ज पंचम ने इसी दरबार में एक घोषणा के द्वारा बंगाल के विभाजन को भी रद्द कर दिया गया, साथ ही राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाने की घोषणा भी की गई। इस भव्य आयोजन के लिए दिल्ली शहर से दूर बुराड़ी इलाक़े को चुना गया।

7. होमरूल लीग का निर्माण (1916)

होम रूल आन्दोलन या अखिल भारतीय होम रूल लीग, एक राष्ट्रीय राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना 1916 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा भारत में स्वशासन के लिए राष्ट्रीय मांग का नेतृत्व करने के लिए ” होम रूल ” के नाम के साथ की गई थी। होमरूल लीग आन्दोलन का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहते हुए संवैधानिक तरीके से स्वशासन को प्राप्त करना था। इस लीग के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक एवं श्रीमती एनी बेसेंट थीं। स्वराज्य की प्राप्ति के लिए तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 ई. को बेलगांव में ‘ होमरूल लीग ‘ की स्थापना की थी। तिलक के होमरूल लीग के प्रभाव क्षेत्र से बाहर के सभी हिस्सों में लीग के प्रभाव को फैलाने की ज़िम्मेदारी एनी बेसेंट पर थी। होमरूल लीग के सर्वाधिक कार्यालय मद्रास में थे।

8. मुस्लिम लीग-कांग्रेस समझौता या लखनऊ समझौता (लखनऊ पैक्ट) 1916

लखनऊ समझौता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा किया गया समझौता था । इसे 29 दिसम्बर को लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा और 31 दिसम्बर, 1916 को लीग द्वारा पारित किया गया था । लखनऊ की बैठक में कांग्रेस के उदारवादी और अनुदारवादी गुटों का फिर से मेल हुआ । इस समझौते में भारत सरकार के ढांचे और हिन्दू तथा मुसलमान समुदायों के बीच संबंधों के बारे में प्रावधान था । मुहम्मद अली जिन्ना और बाल गंगाधर तिलक इस समझौते के प्रमुख निर्माता थे। मोहम्मद अली जिन्नाह अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष की हैसियत से संवैधानिक सुधारों की संयुक्त कांग्रेस लीग योजना पेश की। इस योजना के अंतर्गत कांग्रेस लीग समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई । इसी समझौते को ‘लखनऊ समझौता’ कहते हैं।

9. चंपारण आंदोलन (1917)

उत्तर बिहार में नेपाल से सटे हुए चंपारण जिले में नील की खेती की प्रथा थी। इस क्षेत्र में बागान मालिकों को जमीन की ठेकेदारी अंग्रेजों द्वारा दी गई थी . बागान मालिकों ने “तीन कठिया प्रणाली” लागू कर रखी थी। इसी प्रणाली के विरुद्ध चंपारण आंदोलन 19 अप्रैल 1917 को शुरू हुआ था। नील की खेती के विरोध में चल रहे नील आंदोलन को ही जब गांधी जी ने बिहार के चम्पारण से शुरू किया तो इसे चम्पारण आंदोलन या चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाने लगा।

गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने आजमाए हुए अस्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती पर ही किया। यहीं उन्होंने यह भी तय किया कि वे आगे से केवल एक कपड़े पर ही गुजर-बसर करेंगे। इसी आंदोलन के बाद उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से विभूषित किया गया। गांधी जी को चंपारण के किसानों के साथ – साथ बिहार के बड़े वकीलों का भी सहयोग प्राप्त हुआ।

10. रौलेट अधिनियम (1919)

रौलेट एक्ट को काला कानून भी कहा जाता है । यह कानून तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए बनाया गया था । इस कानून के तहत ब्रिटिश सरकार को ये अधिकार प्राप्त हो गया था, किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए, उसे जेल में बंद कर सकती थी। इस अधिनियम के विरुद्ध रौलेट सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था। रौलेट सत्याग्रह 1919 के अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम को लागू करने वाली ब्रिटिश सरकार के जवाब में किया गया था, जिसे रौलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है।

11. जलियाँवाला बाग हत्याकांड (1919)

जलियाँवाला बाग अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर के पास का एक छोटा सा बगीचा है। जहाँ बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में रोलेट एक्ट , अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों व दो नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में एक सभा रखी गई , जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। करीब 5,000 लोग जलियाँवाला बाग में इकट्ठे थे।

ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों को यह 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी परिस्थिति लग रही थी जिसे न होने देने के लिए 13 अप्रैल 1919 को ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने बाग़ को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दी। जलियाँवाला बाग़ उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था । वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे।

भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया। ब्रिटिश सरकार ने जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। 19 नवंबर 1919 को डायर आयोग के सामने पेश हुआ और अपने हर अपराध को सही ठहराता रहा। इस घटना ने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। इसी घटना की याद में यहाँ पर स्मारक बना हुआ है।

12. मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919)

मोंटेगू – चेम्सफोर्ड सुधार भारत में ब्रिटिश सरकार द्वार धीरे – धीरे भारत को स्वराज्य संस्थान का दर्जा देने के लिए पेश किये गए सुधार थे । सुधारों का नाम प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत के राज्य सचिव एडविन सेमुअल मोंटेगू , 1916 और 1921 के बीच भारत के वायसराय रहे लॉर्ड चेम्सफोर्ड के नाम पर पड़ा। इसे भारत सरकार अधिनियम का आधार 1919 की आधार पर बनाया गया था। इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रांतीय विधायी परिषदों का आकार बढ़ा दिया गया तथा यह निश्चित किया गया कि उनके अधिकांश सदस्य चुनाव जीतकर आएंगे। दोहरी शासन प्रणाली के तहत प्रांतीय सरकारों को अधिक अधिकार दिए गए।

इस अधिनियम के द्वारा केंद्र प्रांतों के बीच शक्तियों के दायित्व को स्पष्ट रूप से बांट दिए गए । प्रतिरक्षा , विदेशी मामले, रेलवे, मुद्रा, वाणिज्य, संचार, अखिल भारतीय सेवाएं केंद्र सरकार को सौंप दिया । प्रांत विषयों को दो श्रेणियां में बांट दिया। पहला रक्षित और दूसरा हस्तांतरित। भूमि राजस्व न्याय , पुलिस , जेल , इत्यादि को रक्षित श्रेणी में रखा गया। कृषि , उद्योग , शिक्षा , स्वास्थ्य आदि को स्थानांतरित क्षेत्र में रखा गया। रक्षित श्रेणी के कारण प्रांतों में दोहरे शासन की व्यवस्था आरंभ हुई।

13. खिलाफत आंदोलन (1920)

ख़िलाफ़त आन्दोलन 1919 से 1922 के मध्य भारत में मुख्य रूप से मुस्लिम बहुसंख्यक वर्ग द्वारा चलाया गया राजनीतिक – धार्मिक आन्दोलन था। इस आन्दोलन का उद्देश्य मुस्लिमों के मुखिया माने जाने वाले तुर्की के ख़लीफ़ा के पद की पुनः स्थापना कराने के लिये ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालना था। खिलाफत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की खलीफा के पद को पुनः स्थापित करना तथा वहाँ के धार्मिक क्षेत्रों से प्रतिबंधों को हटाना था।

सन् 1919 में अली बंधुओं द्वारा अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन किया गया । जिसने इस आंदोलन की शुरुआत की । खिलाफत आंदोलन के प्रमुख कारण तुर्की के खलीफा का अंग्रेजों द्वारा अपमान । लखनऊ समझौता , तथा अलीबंधुओ द्वारा खिलाफत आंदोलन की शुरूआत साथ करना । भारत में मुसलमानों के द्वारा अंग्रेजों का विरोध। शीघ्र ही देशव्यापी आंदोलन छेड़ दिया गया। गांधी चाहते थे कि भारत की ‘आजादी के आंदोलन’ में मुसलमान भी किसी तरह जुड़ जाएं। अतः उन्होंने 1921 में अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी से जुडकर ‘खिलाफत आंदोलन’ की घोषणा कर दी।

14. असहयोग आंदोलन (1920)

असहयोग आंदोलन अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ 1920 को गांधी जी द्वारा शुरू किया गया सत्याग्रह आंदोलन है। 1920 से फरवरी 1922 के बीच महात्मा गांधी तथा भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया गया , जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की । यह अंग्रेजों द्वारा प्रस्तावित अन्यायपूर्ण कानूनों और कार्यों के विरोध में देशव्यापी अहिंसक आंदोलन था । इस आंदोलन में , यह स्पष्ट किया गया था कि स्वराज अंतिम उद्देश्य है।

असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को प्रस्ताव पारित हुआ । जो लोग भारत से उपनिवेशवाद को खत्म करना चाहते थे उनसे आग्रह किया गया कि वे स्कूलो, कॉलेजो और न्यायालय न जाएँ, कर न चुकाएँ। असहयोग आंदोलन के दौरान 5 फ़रवरी , 1922 में हुए चौरी चौरा घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।

15. चौरी-चौरा कांड (1922)

चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में संयुक्त राज्य के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी, जब असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था। जवाबी कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों ने हमला किया और एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी, जिससे उनके सभी कब्जेधारी मारे गए।

इससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जलकर मर गए थे। इस घटना को इतिहास के पन्नों में चौरी चौरा कांड से के नाम से जाना जाता है। चौरी चौरा की इस घटना से महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन को आघात पहुँचा, जिसके कारण उन्हें असहयोग आन्दोलन को स्थागित करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने इस घटना के बाद , 19 लोगों को पकड़कर उन्हें फाँसी दे दी थी, और उनकी याद में यहाँ एक शहीद स्मारक आज खड़ा है ।

16. साइमन कमीशन की नियुक्ति (1927)

1927 में वाइसराय लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी को दिल्ली बुलाकर यह सूचना दी कि भारत में वैधानिक सुधार लाने के लिए एक रिपोर्ट तैयार की जा रही है जिसके लिए एक कमीशन बनाया गया है जिसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन होंगे। साइमन आयोग सात ब्रिटिश सांसदो का समूह था, जिसका गठन 1927 में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिये किया गया था।

साइमन आयोग का नाम इसके अध्यक्ष सर जोन साइमन के नाम पर रखा गया था। जो सात ब्रिटिश सांसदों का समूह था। जिसका उद्देश्य हमारे देश के संविधान में हुए सुधारों का अध्ययन करना था . इस आयोग का गठन मुख्य रूप से मानटेंगयु चेम्स्फ़ोर्ड सुधार की जांच करना था। भारत में एक संघ की स्थापना करना था , जिसमें ब्रिटिश भारतीय शासन तथा देशी रियासतें शामिल हो और जिनका चालन ब्रिटिश सरकार के पक्ष में रहे । केंद्र की उत्तरदाई शासन व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए भी इस आयोग का गठन किया गया था ।

17. साइमन कमीशन का भारत आगमन (1928)

1927 में मद्रास में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें सर्वसम्मति से साइमन कमीशन के बहिष्कार का फैसला लिया गया जिसमें नेहरु, गांधी सभी ने इसका विरोध करनेका निर्णय लिया। मुस्लिम लीग ने भी साइमन के बहिष्कार का फैसला किया । 3 फरवरी 1928 को कमीशन भारत पहुंचा। गांधी जी ने इसे भारतीय नेताओं का अपमान माना, यह कमीशन जब लाहौर पहुंचा तो वहां की जनता ने लाला लाजपत राय के नेतृत्व में काले झंडे दिखाए और साइमन कमीशन वापस जाओ के नारों से आकाश गूंजा दिया।

18. भगतसिंह द्वारा केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट (1929)

8 अप्रैल 1929 को ही भारतीय क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था और आजादी के नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दी थी। पब्लिक सेफ़्टी बिल अर्थात इस बिल में सरकार को संदिग्धों को बिना मुक़दमा चलाए हिरासत में रखने का अधिकार दिया जाना था। इसी के विरोध जताने के लिए ऐसा किया गया। हालांकि वो ये हर क़ीमत पर सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनके फेंके गए बमों से किसी का नुक़सान न हो। केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी। लेकिन इस दिन को अंग्रेजों के उस डर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए, जिसके चलते इन तीनों को 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी गई थी।

19. कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता की माँग (1929)

19 दिसंबर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी और लोगों ने अंग्रेजी साम्राज्य से पूरी तरह से स्वतंत्र होकर ‘ अपना राज ‘ बनाने के लिए संघर्ष करने की प्रतिज्ञा की थी। 31 दिसम्बर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन तत्कालीन पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में हुआ। इसी अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का नारा देकर पूर्ण आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ने का प्रस्ताव पारित किया इसी संघर्ष के चलते भारत का आधिकारिक झण्डा लाहौर में फहराया गया तत्पश्चात 26 जनवरी 1930 को पहली बार देश में पूर्ण स्वराज दिवस अथवा स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। अगले 18 वर्षों तक इसी दिन स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता रहा। फिर देश को आजादी मिलने के बाद 15 अगस्त 1947 को अधिकारिक रुप से स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया।

20. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)

सविनय अवज्ञा , किसी भी नागरिक द्वारा अपनी सरकार के कुछ कानूनों , आदेशों का पालन न करने की प्रतिज्ञा और उसका सम्यक अनुपालन है । इसे अहिंसा के प्रमुख हथियार के रूप में विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपनाया गया है। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाये गए जन आन्दोलन में से एक था। महात्मा गाँधी जी द्वारा शुरू हुआ सविनय अवज्ञा आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ, उनकी नींव को कमजोर बनाने के लिए था। सविनय अवज्ञा आंदोलन की औपचारिक घोषणा 6 अप्रैल 1930 को गाँधी जी के नेतृत्व में हुई थी। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये गए कानून को तोड़ना और उनकी बात की अवहेलना करना तथा कुछ विशिष्ट प्रकार के गैर – क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था।

21. प्रथम गोलमेज सम्मेलन (1930)

अंग्रेज़ सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1930-32 के बीच सम्मेलनों की एक श्रृंखला के तहत तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किये गए थे । भारत में स्वराज , या स्व – शासन की मांग तेजी से बढ़ रही थी । 1930 के दशक तक , कई ब्रिटिश राजनेताओं का मानना था कि भारत में अब स्व – शासन लागू होना चाहिए। प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवम्बर , 1930 से 13 जनवरी 1931 तक लन्दन में आयोजित किया गया था। सम्मेलन में सभी विचारधाराओं के व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया।

मुसलमानों, हिन्दू महासभा, सिक्ख, ईसाई, जमींदारों, उद्योगपतियों, हरिजनों, यूरोपियनों, भारतीय नरेशों , इंग्लैण्ड के विभिन्न राजनीतिक दलों तथा भारतयी उदारपंथियों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया। प्रतिनिधि सदस्यों का चयन इस प्रकार किया गया कि, भारतीय प्रतिनिधियों में मतभेद स्पष्ट हो जाये। प्रथम गोलमेज सम्मेलन के अवसर पर काँग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन चला रही थी, अतः काँग्रेस ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग नहीं लिया। यह सम्मेलन कांग्रेस के बहिष्कार के फलस्वरूप 19 जनवरी, 1931 को समाप्त हो गया था।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन 22 नवंबर , 1930 से 13 जनवरी 1931 तक लंदन में आयोजित किया गया।
  • इस सम्मेलन का उद्घाटन ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम ने किया।
  • इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने की।
  • यह ऐसी पहली वार्ता थी , जिसमें ब्रिटिश शासकों द्वारा भारतीयों को बराबर का दर्जा दिया गया।
  • प्रथम गोलमेज सम्मेलन जिसमें 89 सदस्यों में 13 ब्रिटिश, शेष 76 भारतीय राजनीतिक दलों से थे।

22. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931)

दूसरा गोलमेज सम्मेलन 7 सितंबर , 1931 को आरंभ हो गया। महात्मा गाँधी 12 सितंबर , 1931 में लंदन पहुँचे । इस सम्मेलन में डॉ.अम्बेडकर ने दलित वर्गों के लिए कुछ स्थान आरक्षति करने की माँग की, किन्तु गाँधीजी ने इसे अस्वीकार कर दिया और काँग्रेस को 85 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधि बताया। महात्मा गाँधी ने भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की माँग की। गांधी जी ने कहा कि साम्प्रदायिक समस्या भी अत्यधिक जिटिल बन गई है। लेकिन साम्प्रदायिक समस्या का हल नहीं निकल सका।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में मदनमोहन मालवीय एवं एनी बेसेन्ट ने खुद के खर्च पर भाग लिया था ।
  • फ्रेंकमोरेस नामक ब्रिटिश नागरिक ने गांधी जी के बारे में इसी समय कहा , कि अर्ध नंगे फकीर के ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वार्ता हेतु सेण्टपाल पैलेस की सीढिया चढने का दृश्य अपने आप में एक अनोखा और दिव्य प्रभाव उत्पन्न कर रहा था।
  • 28 दिसंबर, 1931 को गांधी लंदन से खाली हाथ निराश बंबई पहुंचे , स्वदेश पहुँचने पर उन्होंने कहा , कि यह सच है कि मैं खाली हाथ लौटा हूँ , किन्तु मुझे संतोष है कि जो ध्वज मुझे सौंपा गया था , मैंने उसे नीचे नहीं होने दिया और उसके सम्मान के साथ समझौता नहीं किया।
  • गांधी इरविन समझौते को भी सरकार ने दफन कर दिया।
  • मजबूर होकर गांधी ने द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने की घोषणा की ।

23. तृतीय गोलमेज सम्मेलन (1932)

लंदन में तृतीय गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर , 1932 से 24 दिसंबर 1932 तक चला, कांग्रेस ने सम्मेलन का बहिष्कार किया। इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया था। इस सम्मेलन में कुल 46 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में भारत सरकार अधिनियम 1935 हेतु ठोस योजना के अंतिम स्वरूप को पेश किया गया।इस सम्मेलन के समय भारत के सचिव सेमुअल होर थे ।

तृतीय गोलमेज सम्मेलन से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य :

  • लंदन में हुआ . तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन 17 नवम्बर 1932 से 24 दिसम्बर 1932 तक किया गया।
  • इस सम्मेलन में केवल 46 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
  • तृतीय गोलमेज सम्मेलन में मुख्यतः प्रतिक्रियावादी तत्वों ने ही भाग लिया।
  • कांग्रेस ने सम्मेलन का बहिष्कार किया।

 

अम्बेडकर और तेज बहादुर सप्रू ने तीनों गोल मेज सम्मेलनों में हिस्सा लिया । महात्मा गांधी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लिया। प्रथम गोल मेज सम्मेलन से पहले, एमके गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरफ से नागरिक अवज्ञा आंदोलन शुरू किया था।तीनों सम्मेलनों के दौरान इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड था।

24. सांप्रदायिक निर्वाचक प्रणाली की घोषणा (1932)

साम्प्रदायिक निर्णय 4 अगस्त, 1932 ई. को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्जे मेकडोनाल्ड के द्वारा दिया गया था । इसी निर्णय के आधार पर नया भारतीय शासन – विधान बनने वाला था, जिस पर उस समय लन्दन में गोलमेज सम्मेलन में विचार-विमर्श चल रहा था और जो बाद में 1935 ई . में पास हुआ। 16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड द्वारा भारत में उच्च वर्ग , निम्न वर्ग , मुस्लिम , बौद्ध , सिख , भारतीय ईसाई , एंग्लो – इंडियन, पारसी और अछूत ( दलित ) आदि के लिए अलग – अलग चुनावक्षेत्र के लिए ये निर्णय दिया , जिससे सभी वर्गों के लोगो को प्रतिनिधित्व मिलता।

लेकिन इसे गलत भारत में उच्च जातियों के लोगों ने सांप्रदायिक का नाम देकर विरोध किया। भारत में राष्ट्रवादी भावना के विकास को दबाने के लिए अंग्रेजों ने कूटनीति का सहारा लिया। भारतीयों की एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजी सरकार ने बांटो और राज करो की नीति पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया। देशी राजा, जमींदारों और मुस्लिम लीग का समर्थन प्राप्त हुआ था। अतः इसका लाभ उठाकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रमसे मैकडोनाल्ड ने भारतीयों के बीच की खाई और बढ़ाने का निश्चय किया। इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड ने सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा किया था।

25. पूना पैक्ट या पूना समझौता (1932)

पूना पैक्ट अथवा पूना समझौता भीमराव आम्बेडकर एवं महात्मा गांधी के मध्य पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में 24 सितम्बर, 1932 को हुआ था। अंग्रेज सरकार ने इस समझौते को सांप्रदायिक अधिनिर्णय ( कॉम्युनल एवार्ड ) में संशोधन के रूप में अनुमति प्रदान की। समझौते में दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचक मंडल को त्याग दिया गया लेकिन दलित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 148 और केन्द्रीय विधायिका में कुल सीटों की 18 % कर दी गयीं।

पूना समझौता की प्रमुख बातें :

  • दलित वर्ग के लिये पृथक निर्वाचक मंडल समाप्त कर दिया गया।
  • व्यवस्थापिका सभा में अछूतों के स्थान हिंदू वर्ग के अंतर्गत ही सुरक्षित रखे गये।
  • प्रांतीय विधानमंडलों में दलित वर्गों के लिये 148 सीटें आवंटित की गई जबकि सांप्रदायिक पंचाट में उन्हें 71 सीटें प्रदान करने का वचन दिया गया था।
  • मद्रास में 30 , बंगाल में 30 मध्य प्रांत एवं संयुक्त प्रांत में 20 20 , बिहार एवं उड़ीसा में 18 बम्बई एवं सिंध में 15 , पंजाब में 8 तथा असम में 7 स्थान दलितों के लिये सुरक्षित किये गए।
  • गैर – मुस्लिमों निर्वाचन क्षेत्रों को आवंटित सीटों का एक निश्चित प्रतिशत दलित वर्गों के लिये आरक्षित कर दिया जाएगा।
  • केंद्रीय विधानमंडल में दलित वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिये संयुक्त निर्वाचन की प्रक्रिया तथा प्रांतीय विधानमंडल में प्रतिनिधियों को निर्वाचित करने की व्यवस्था को मान्यता दी गई।
  • दलित वर्ग को सार्वजनिक सेवाओं तथा स्थानीय संस्थाओं में उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उचित प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई।
  • कांग्रेस ने स्वीकार किया कि दलित वर्गों को प्रशासनिक सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाएगा।

26. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 9 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था जिसे अगस्त क्रांति भी बोला जाता है। इस आन्दोलन का लक्ष्य भारत से अंग्रेजी साम्राज्य को समाप्त करना था। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। भारत छोड़ो का नारा युसुफ मेहर अली ने दिया था। भारत की स्वाधीनता के लिए नौ अगस्त 1942 को आजादी के अंतिम संग्राम का ऐलान करने पर महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया तो समूचा देश हिंसा की आग में जल उठा।

शांति और अहिंसा के मसीहा को हिरासत में जाते देख उनके अनुयायियों सहित आम जनमानस हिंसा पर उतर आया और विरोध करने लगे कि नमक कानून को भंग किया जाए तथा सरकार को किसी भी प्रकार का कर न दिया जाए। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के प्रति दुर्व्यवहार का विरोध। सरकार विरोधी हड़तालें , प्रदर्शन तथा सार्वजनिक सभाएं करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया जाए। मूल्यों में असाधारण वृद्धि , आवश्यक वस्तु उपलब्ध न होने के विरोध।

27. क्रिप्स मिशन का आगमन (1942)

क्रिप्स मिशन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल द्वारा ब्रिटिश संसद सदस्य तथा मजदूर नेता सर स्टेफ़र्ड क्रिप्स के नेतृत्व में मार्च 1942 में भारत भेजा गया था, जिसका उद्देश्य भारत के साथ राजनीतिक गतिरोध दूर करना और भारतीयों का सहयोग प्राप्त करना। विशेष महात्मा गाँधी ने क्रिप्स प्रस्तावों पर टिप्पणी करते हुये कहा था कि- “यह आगे की तारीख का चेक था, जिसका बैंक नष्ट होने वाला था। ” कांग्रेस की ओर से जवाहरलाल नेहरू तथा मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को क्रिप्स मिशन के संदर्भ में परीक्षण एवं विचार विमर्श हेतु अधिकृत किया था।

ब्रिटिश सरकार की फिरंगी नीति भी क्रिप्स मिशन की असफलता का कारण रही। वास्तव मे ब्रिटिश सरकार भारत को स्वतंत्रता तो देना ही नही चाहती थी , वह तो अन्य विदेशी शासको का चर्चिल पर दबाव था इसलिये उसने क्रिप्स को प्रस्ताव लेकर भारत भेजा था ।

क्रिप्स मिशन के महत्वपूर्ण बातें :

  • डोमिनियन राज्य के दर्जे के साथ एक भारतीय संघ की स्थापना की जाएगी।
  • यह संघ राष्ट्रमंडल के साथ अपने संबंधों के निर्धारण में स्वतंत्र होगा तथा संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों और संस्थाओं में अपनी भूमिका को खुद ही निर्धारित करेगा।

28. आजाद हिन्द फौज की स्थापना (1943)

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन 1943 में जापान की सहायता से टोकियो में रासबिहारी बोस ने भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इण्डियन नेशनल आर्मी नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया। इस सेना के गठन में कैप्टन मोहन सिंह , रासबिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खास बात यह है कि इस फौज की स्थापना भारत में नहीं, बल्कि जापान में की गई थी। आजाद हिंद फौज की स्थापना टोक्यो ( जापान ) में 1942 में रासबिहारी बोस ने की थी। उन्होंने 28 से 30 मार्च तक फौज के गठन पर विचार के लिए एक सम्मेलन बुलाया और इसकी स्थापना हुई।

इसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था। बोस ने अपने अनुयायियों को जय हिन्द का अमर नारा दिया और 21 अक्टूबर 1943 में सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना की। इस फौज की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारत की मुक्ति के लिए संघर्ष करना था। भारत की भूमि पर आजाद हिंद फौज ने युद्ध किए तथा अनेक बार ब्रिटिश सेनाओं को परास्त किया।

29. कैबिनेट मिशन का आगमन (1946)

वर्ष 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक तीन सदस्यीय उच्च – स्तरीय शिष्टमंडल भेजने की घोषणा की । इस मिशन को विशिष्ट अधिकार दिये गये थे तथा इसका कार्य भारत को शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिये, उपायों एवं संभावनाओं को तलाशना था। कैबिनेट मिशन मार्च 1946 में भारत भेजा मिशन के अध्यक्ष लार्ड पैथिक लारेन्स थे। 24 मार्च 1946 को कैबिनेट मिशन दिल्ली पहुंचा।

कैबिनेट मिशन जो 24 मार्च 1946 को आया था। यह मुख्य रूप से राष्ट्र के राष्ट्रमंडल में डोमिनियन स्टेटस के तहत भारत को स्वतंत्रता देने के लिए भारत आया था 28 जनवरी 1946 को वायसराय ने विधानसभा में राजनीतिक नेताओं के साथ एक नई कार्यकारी परिषद स्थापित करने और भारत में एक संविधान – निर्माण निकाय बनाने की घोषणा की।

30. भारतीय संविधान सभा का निर्वाचन (1946)

संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली संसद भवन में हुई थी, इसमें अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को चुना गया। उसके बाद 11 दिसम्बर 1946 को डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष के लिए चुना गया। 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा द्वारा उदेश्य प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।

भारतीय संविधान सभा का निर्माण ‘भारत के संविधान‘ की रचना के लिए किया गया था । संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसम्बर 1946 को जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किये गए एक उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारम्भ हुई थी। इस नयी सरकार ने भारत के संबन्ध में अपनी नई नीति की घोषणा की तथा एक संविधान निर्माण करने वाली समिति बनाने का निर्णय लिया। भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 में अपना काम पूरा कर लिया और 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ। इसी दिन कि याद में हम हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं ।

31. अंतरिम सरकार की स्थापना (1946)

जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में उनके 11 सहयोगियों के साथ 2 सितम्बर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया गया। अगस्त 1946 में कांग्रेस ने अंतरिम सरकार में शामिल होने का निर्णय लिया ताकि ब्रिटिश सरकार के लिए सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके। अंतरिम सरकार ने 2 सितम्बर 1946 से कार्य करना आरम्भ किया।

वेवल ने 1 अगस्त, 1946 को कांग्रेस अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू को अंतरिम सरकार के गठन के लिए निमंत्रण दिया। 24 अगस्त, 1946 को पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत की पहली अंतरिम राष्ट्रीय सरकार की घोषणा की गयी। इस अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग की भागीदारी नहीं थी। पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल , डा. राजेन्द्र प्रसाद , आसफ अली, राजगोपालाचारी, शरत चंद्र बोस, डा.जय मथाई, सरदार बलदेव सिंह , सरफराज अहमद खां, नाजीक राम, सैयद अली जहीन, डा. सी. एच.भाभा आदि थे।

जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में उनके 11 सहयोगियों के साथ 2 सितम्बर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया गया। इसमें मुस्लिम लीग के सदस्य शामिल नही हुए। हालाकि उनके शामिल होने के लिए विकल्प खुला रखा गया था। ब्रिटिश हुकूमत से सत्ता लेकर भारत और पाकिस्तान बनाने में मदद देने के लिए 2 सितंबर , 1946 को भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया गया था। अंतरिम सरकार में वाइस प्रेसिडेंट नेहरू थे, जिनके ऊपर प्रेसिडेंट द विस्काउंट वेवल और कमांडर इन चीफ सर क्लॉड थे। कांग्रेस और मुस्लिम लीग संविधान सभा के चुनावों के लिए सहमत हो गई थी।

32. भारत के विभाजन की माउंटबेटन योजना (1947)

3 जून 1947 को माउंटबेटन योजना प्रस्तुत हुआ। इसका प्रमुख बिन्दु यह था कि आगामी 15 अगस्त 1947 को भारत को दो भागों में विभाजित करके दो पूर्ण प्रभुतासम्पन्न देश ( भारत और पाकिस्तान ) बनाए जाएंगे। माउन्टबेटन योजना लॉर्ड माउन्ट बेटन द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह योजना भारत के जनसाधारण लोगों में ‘मनबाटन योजना’ के नाम से भी प्रसिद्ध हुई । ‘मुस्लिम लीग’ पाकिस्तान के निर्माण पर अड़ी हुई थी। विवशतापूर्वक कांग्रेस तथा सिक्खों द्वारा देश के विभाजन को स्वीकार कर लेने के बाद समस्या के हल के लिए लॉर्ड माउन्ट बेटन लन्दन गये और वापस आकर उन्होंने ये योजना प्रस्तुत की।

24 मार्च , 1947 ई . को लॉर्ड माउन्ट बैटन भारत के वायसराय बनकर आये । पद ग्रहण करते ही उन्होंने ‘ कांग्रेस ‘ एवं ‘ मुस्लिम लीग ‘ के नेताओं से तात्कालिक समस्याओं पर व्यापक विचार विमर्श किया । ‘ मुस्लिम लीग ‘ पाकिस्तान के अतिरिक्त किसी भी विकल्प पर सहमत नहीं हुई माउन्ट बेटन ने कांग्रेस से देश के विभाजन रूपी कटु सत्य को स्वीकार करने का अनुरोध किया। कांग्रेस नेता भी परिस्थितियों के दबाव को महसूस कर इस सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गये।

इस सम्बन्ध में पटेल ने कहा ” यदि कांग्रेस विभाजन स्वीकार न करती तो एक पाकिस्तान के स्थान पर कई पाकिस्तान बनतें। ” सिक्खों ने भी इस योजना को अनमने ढंग से स्वीकृत दे दी ।

माउंटबेटन योजना की प्रमुख बातें :

  • 3 जून , 1947 को लार्ड माउंटबेटन ने अपनी योजना रखी जिसने भारतीय राजनीतिक समस्या के समाधान की रूपरेखा निर्धारित की।
  • भारत का विभाजन भारत और पाकिस्तान में होगा बंगाल और पंजाब विभाजित होंगे और उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त एवं असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराया जाएगा।
  • पाकिस्तान के संविधान के लिए एक पृथक संविधान सभा बनेगी।
  • देसी रियासतें भारत या पाकिस्तान में मिल होने या अपनी स्वतंत्रता बनाये रखने के लिए स्वतंत्र थीं।
  • 15 अगस्त 1947 की तिथि भारत एवं पाकिस्तान को सत्ता हस्तांतरण के लिए निर्धारित की गई . •
  • ब्रिटिश सरकार ने जुलाई 1947 में भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 पारित किया जिसमें माउंटबेटन योजना द्वारा रखे गए मुख्य प्रावधान थे।

1947 में भारत के विभाजन का सबसे मुख्य कारण अंग्रेजों के षडयंत्रो तथा मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिकता की नीति थी। अंग्रेजों ने फुट डालों और शासन करो की नीति को अपनाया। भारत का विभाजन अंग्रेजों ने मुसलमानों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए हिन्दू और मुसलमानों मे अंतर करना प्रारंभ कर दिया। और नतीजन हिंदुस्तान दो भागों में बट गया। इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या लगभग 1.45 करोड़ थी। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद लगभग 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और लगभग 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।

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