उत्तरप्रदेश का चुनाव, उत्तरप्रदेश की पूरी चुनावी गणित क्या है? यूपी चुनाव

उत्तरप्रदेश भारत का सबसे बड़ा और एक महत्वपूर्ण राज्य हैं। देश की चुनाव में उत्तरप्रदेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। कहते है कि भारत मे केंद्र की सरकार उत्तरप्रदेश से होते हुए ही जाती हैं। मतलब उत्तरप्रदेश की चुनाव यूपी में जितना महत्वपूर्ण हैं उतने ही केंद्र की आम चुनाव के लिये। तो आइए देखते हैं कि उत्तरप्रदेश का चुनाव में क्या क्या महत्वपूर्ण है, उत्तरप्रदेश की पूरी चुनावी गणित क्या है?

उत्तरप्रदेश का चुनाव, उत्तरप्रदेश की पूरी चुनावी गणित क्या है? यूपी चुनाव

उत्तरप्रदेश में राजनीतिक दल

भारत के उत्तरप्रदेश भारत के राजनीतिक के लिहाज से एक सियासी अखाड़ा हैं। यंहा भारत के सबसे ज्यादा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक दल हर चुनाव में भाग लेते हैं। उत्तरप्रदेश की राजनीतिक दल की बात करे तो यंहा की चुनाव में भाग लेने कुछ प्रमुख राजनीतिक दलों की सूची निम्न हैं…

  • भारतीय जनता पार्टी
  • समाजवादी पार्टी
  • बहुजन समाज पार्टी
  • कांग्रेस
  • आम आदमी पार्टी
  • राष्ट्रीय जनता दल( आरजेडी)
  • जनता दल यूनाइटेड
  • लोक जनशक्ति पार्टी
  • राष्ट्रीय लोकदल(आर एल डी)
  • आशावादी कांग्रेस पार्टी
  • जनक्रान्ति पार्टी
  • राष्ट्रीय लोकमंच
  • अपना दल
  • पीस पार्टी
  • बुंदेलखंड कांग्रेस
  • इंडियन जस्टिस पार्टी
  • लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी
  • शिवसेना

उत्तरप्रदेश में ये सभी राजनीतिक दल लगभग हर चुनाव में सक्रिय रहते हैं। इसके अलावा भी और बहुत सारे छोटे क्षेत्रीय दल है जो उत्तरप्रदेश की राजनीति में अपना सक्रियता कायम रखता है और चुनाव में भाग लेता हैं।

1. उत्तरप्रदेश में विधानसभा की चुनाव

यूपी विधान सभा का कार्यकाल कुल 5 वर्ष का होता है। वर्तमान में यंहा 404 विधानसभा सीट हैं। विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का निर्वाचन मा. सदस्य स्वयं में से करते हैं। चुनाव के पश्चात जिस दल को बहुमत मिलता हैं। वो राज्य में शासन व्यवस्था चलाती हैं। बहुमत वाली दल के सदस्य अपना एक नेता चुनता हैं। जिसे मुख्यमंत्री कहते हैं। राज्य की पूरी शासन व्यवस्था मुख्यमंत्री के पास होता हैं। उत्तर प्रदेश विधान सभा सदन (भवन) ऐतिहासिक नगरी लखनऊ में स्थित है।

उत्तरप्रदेश की विधानसभा से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी

यूपी में विधायी संस्थाओं का विकास भारत में विधान मण्डल के इतिहास से सीधे जुड़ा हुआ है। 1861 तक समस्त विधान कार्य ब्रिटेन की संसद के हाथों में था।  राज्य में सर्वप्रथम 5 जनवरी, 1887 को 9 नामनिर्देशित सदस्यों के साथ लेजिस्लेटिव कौंसिल की स्थापना हुई जिसका नाम ‘नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज एण्ड अवध लेजिस्लेटिव कौंसिल’ था। लेजिस्लेटिव कौंसिल मार्च, 1937 तक एकल सदनीय विधान मण्डल के रूप में उत्तरप्रदेश में कार्यरत थी।

1 अप्रैल, 1937 से अंग्रेजों के शासन काल में ही लेजिस्टलेटिव असेम्बली और लेजिस्लेटिव कौंसिल नाम से दो सदन स्थापित हो गये। निचले सदन, लेजिस्लेटिव असेम्बली का गठन पूर्णतः निर्वाचित सदस्यों द्वारा तथा ऊपरी सदन, लेजिस्लेटिव कौंसिल का गठन निर्वाचित और नामनिर्देशित दोनों प्रकार के सदस्यों द्वारा किये जाने की व्यवस्था की गयी। इस बीच राज्य का नाम बदल कर  युनाइटेड प्रोविंसेज कर दिया गया।

स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश के वैकल्पिक विधान मण्डल का प्रथम सत्र नये संविधान के अंतर्गत 2 फरवरी, 1950 को आरम्भ हुआ। मा.पुरूषोत्तम दास टण्डन को अध्यक्ष पद की शपथ दिलायी गयी। प्रथम विधान सभा का गठन 8 मार्च, 1952 को हुआ था। तब से इसका गठन सत्रह बार हो चुका है। 1967 तक एक आंग्ल भारतीय सदस्य को सम्मिलित करते हुए विधान सभा की कुल सदस्य संख्या 431 थी। वर्ष 1967 के पश्चात् विधान सभा की कुल सदस्य संख्या 426 हो गई। 9 नवम्बर, 2000 को उत्तराखण्ड के गठन के पश्चात् विधान सभा की सदस्य संख्या 403 निर्वाचित एवं एक आंग्ल भारतीय समुदाय के मनोनीत सदस्य को सम्मिलित करते हुए कुल 404 हो गई है।

2. उत्तरप्रदेश में लोकसभा की चुनाव

भारत के प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सदस्य मिलते है। वर्तमान में यह 1971 की जनसंख्या पर आधारित है। अगली बार लोकसभा के सदस्यों की संख्या वर्ष 2026 मे निर्धारित किया जायेगा इससे पहले प्रत्येक दशक की जनगणना के आधार पर सदस्य स्थान निर्धारित होते थे। यह कार्य बकायदा 84 वें संविधान संशोधन (2001) से किया गया था ताकि राज्य अपनी आबादी के आधार पर ज्यादा से ज्यादा स्थान प्राप्त करने का प्रयास नही करें।

वर्तमान में उत्तरप्रदेश की बात करे तो यंहा सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीट है और यही कारण हैं। कि उत्तरप्रदेश लोकसभा चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता हैं। उत्तरप्रदेश में ज्यादातर लोकसभा चुनाव में भारत के प्रधानमंत्री यही से निकलते हैं। उत्तरप्रदेश में लोकसभा चुनाव पूरी तरह विभिन्न जातियों के समीकरण को देखते हुए राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं। उत्तरप्रदेश के चुनाव ही ये तय करता है कि कोई राजनीतिक दल केंद्र की सरकार में रहेगा या विपक्ष में रहेगा।

3. राज्यसभा की चुनाव

भारतीय संसद में दो सदन हैं, लोकसभा और राज्यसभा ऊपरी सदन को राज्यसभा कहा जाता है। संविधान की अनुसूची चार के मुताबिक सदस्यों का चयन राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की आबादी के आधार पर होगा। इस प्रकार राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 233 ही हो सकी जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं। यानी वर्तमान में राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 245 है। इसमें सबसे ज्यादा राज्यसभा सीट 31 उत्तरप्रदेश में है।

राज्यसभा चुनाव में विधायक यानी एमएलए हिस्सा लेते हैं। विधान परिषद सदस्य यानी एमएलसी राज्यसभा चुनाव में शामिल नहीं होते हैं। राज्य सभा चुनाव की वोटिंग का फॉर्मूला है यानी किसी राज्य की राज्यसभा की खाली सीटों में एक जोड़कर उससे कुल विधानसभा सीटों को विभाजित किया जाता है। इससे जो संख्या आती है फिर उसमें 1 जोड़ दिया जाता है।

जैसे कि अभी उत्तरप्रदेश में 10 सीटें खाली हैं। उत्तरप्रदेश में कुल विधायक हैं 395 (कुल 404) अब समझिए

  1. राज्यसभा सीटों की संख्या 10 हैं अब इसमें एक जोड़ना होगा, तो हो गया 11,
  2. अब इस 11 से विधायकों की संख्या यानी 395 को भाग दिया जाएगा।
  3. नतीजा आएगा 35, अब इसमें फिर से एक जोड़ दिया जाएगा तो नतीजा आएगा 36,

यानी इस स्थिति में राज्यसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश से एक राज्यसभा सीट जीतने के लिए 36 विधायकों का वोट मिलना जरूरी है। इस प्रकार राज्यसभा के चुनाव होता हैं।।

4. उत्तरप्रदेश विधानपरिषद की चुनाव

राज्य की विधान परिषद का आकार राज्य की विधान सभा में स्थित सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं और किसी भी कारणों से 40 सदस्य से कम नहीं हो सकता। उत्तरप्रदेश विधान परिषद में कुल 100 सदस्य हैं। विधान परिषद के सदन (भवन) ऐतिहासिक नगरी लखनऊ में स्थित है। विधान परिषद सदस्य यानी एमएलसी राज्यसभा चुनाव में शामिल नहीं होते हैं।

5. उत्तरप्रदेश ग्रामपंचायत और जिलापंचायत चुनाव

स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन की स्थापना और विकास के महत्व को महसूस किया गया और यू.पी. में पंचायत राज अधिनियम, 1947 के तहत पूरे राज्य में प्रत्येक गाँव में या गाँवों के एक समूह के लिए ग्राम सभा और ग्राम पंचायत की स्थापना की गई। पंचायत राज निकायों का कामकाज दो अलग-अलग अधिनियमों द्वारा शासित होता है, एक ग्राम पंचायतों के लिए और दूसरा क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के लिए।

यूपी की धारा 12बीबी के तहत पंचायत राज अधिनियम, 1947, प्रधान और एक ग्राम पंचायत के सदस्य के पद के चुनाव के लिए अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण राज्य चुनाव आयोग में निहित है। इसी प्रकार उत्तरप्रदेश की धारा 264-बी के अनुसार यू.पी. क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत अधिनियम, 1961, अध्यक्ष के कार्यालय और एक जिला पंचायत के सदस्य और प्रमुख और एक क्षेत्र पंचायत के सदस्य के चुनाव का संचालन करने के लिए अधीक्षण, निर्देश और नियंत्रण राज्य चुनाव आयोग में निहित है।

6. उत्तरप्रदेश में शहरी निकाय चुनाव

ग्रामीण स्थानीय निकायों की तरह, राज्य में शहरी स्थानीय निकाय दो अलग-अलग अधिनियमों द्वारा शासित होते हैं, एक नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों को शासित करता है और दूसरा नगर निगमों के लिए। यूपी की धारा 13-बी के तहत नगर पालिका अधिनियम, 1916 और उत्तर प्रदेश की धारा 45 नगर निगम अधिनियम, 1959, राज्य चुनाव आयोग में निहित अध्यक्षों, सदस्यों, महापौरों और पार्षदों के कार्यालय के चुनाव के संचालन के लिए अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण हैं।

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