डिजिटल लत क्या है? कहीं आप इसका शिकार तो नही है?
  • Post author:
  • Post last modified:May 8, 2023

डिजिटल लत क्या है? कहीं आप इसका शिकार तो नही है?

आटा से भी सस्ता मोबाइल ‘डाटा’ के घोर नकारात्मक प्रभाव अब खुलकर दिखने लगे हैं। इंटरनेट, साइबर संसार, स्मार्टफोन व सोशल मीडिया की ऐसी लत युवाओं में लग चुकी है जिससे वह न सिर्फ वास्तविक दुनिया से कट गया है, बल्कि इसके शिक्षा स्तर और बौद्धिक क्षमता में भी गिरावट दर्ज हो गई है। इसलिए ये जानना भी जरूरी है कैसे डिजिटल लत से छुटकारा पाया जाए।

डिजिटल लत क्या है?

डिजिटल एडिक्शन एक आवेग नियंत्रण विकार को संदर्भित करता है जिसमें डिजिटल उपकरणों, डिजिटल तकनीकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म, यानी इंटरनेट, वीडियो गेम, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, मोबाइल डिवाइस, डिजिटल गैजेट्स और सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म का जुनूनी उपयोग शामिल है।

बच्चों की मौलिक सोच व स्तर में गिरावट का कारण है डिजिटल लत

स्कूली बच्चों और बीस वर्ष के आसपास के नवयुवकों व लड़कियों पर हाल ही में हुए एक डिजिटल-साइबर सर्वे से पता चला है कि इनकी 92 फीसदी संख्या साइबर एडिक्शन के समुद्र में गोता लगाती है जिनमें 60 फीसद संख्या ऐसी है जो खाना-पीना छोड़ सकते हैं, पर फोन-सोशल मीडिया नहीं? कक्षा पांच से ऊपर वाले अधिकांश बच्चे फोन में ऐसे घुसे हुए, जैसे उन्हें दुनियादारी से कोई मतलब ही नहीं? सिर्फ अपने में ही मस्त होते हैं। समय पर खाना खाना, स्वस्थ रहने के लिए खेलकूद, स्कूल होमवर्क आदि सब भूले होते हैं।

सेकेंडरी लेवल के बच्चों में शिक्षा स्तर का गिरने का कारण भी डिजिटल लत ही है। इसके अलावा उनके शारीरिक विकास में नुकसान हो रहा है? बच्चे समय से पहले अपनी आंखों की रोशनी खोते जा रहे हैं। पारिवारिक सदस्य हों या अभिभावक, शिक्षक, चिकित्सक, सभी इंटरनेट, स्मार्टफोन व सोशल मीडिया के नकारात्मक पक्षों से भलीभांति वाकिफ हैं, बावजूद इसके वह कुछ कर नहीं पाते। दरअसल, उनमें एक डर ये भी होता है, कि ज्यादा सख्ती दिखाने पर बच्चे गलत कदम उठाने में देरी नहीं करते? डिजिटल युग में वास्तविक रिश्ते बहुत पीछे छूटते जा रहे हैं जिनमें युवा ज्यादा हैं।

डिजिटल लत क्या है?

बीते दिनों अमेरिकी कंपनी ‘साइबर वर्ल्ड ओरीजनल’ और ‘ए.टी. कियर्नी’ ने संयुक्त रूप से दर्जन भर देशों में करीब लाख से ज्यादा लोगों से बातचीत करके एक सर्वे किया, जिसमें लोगों से पूछा गया कि उनके बच्चे ज्यादातर समय कैसे बिताते हैं। उत्तर में बताया गया कि स्कूलों से आने के बाद बच्चे बा-मुश्किल अपनी स्कूली ड्रेस चेंज करते हैं, घर पहुंचते ही सीधे मोबाइलों पर झपट्टा मारते हैं। खाना-पीना, स्कूल बैग्स रखना भी गवारा नहीं समझते। यहां तक कि शाम के वक्त खेलने-कूदने का वक्त होता है, वहां भी स्मार्टफोन ले जाकर बच्चे गेमों में मटरगश्ती करते हैं। भारत के हालात कुछ ज्यादा ही खराब हैं। स्मार्टफोन के इस्तेमाल में हिंदुस्तानी बच्चे अव्वल श्रेणी में हैं जिसकी वजह हमारे यहां मोबाइल डाटा अन्य देशों के मुकाबले काफी सस्ता है।

डिजिटल लत के नुकसान

साइबर एडिक्शन के नुकसान एक नहीं, अनेक हैं। मन-मस्तिष्क में इंटरनेट की सोहबत घुसने से बच्चे स्टडीज की मूल मौलिकता से अनभिज्ञ हो रहे हैं। अभी हाल में यूपीपीसीएस का परिणाम घोषित हुआ जिनमें जिन बच्चों ने सफलता पाई, उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा भी कि कोई भी परीक्षा पास करने के लिए प्रतिभागियों को सोशल मीडिया से दूर रहना होगा। इंटरनेट के सकारात्मक पक्ष के संबंध भी हैं जिनका भी जिक्र उन्होंने किया। पर, ज्यादातर बच्चे सदुपयोग की जगह दुरुपयोग ही करते हैं।

इंटरनेट में व्यस्त होने के चलते ही कम्पीटिशन में प्रतिभागी पिछड़ रहे हैं। जबकि, जो बच्चे दूर रहते हैं, उन्हें बाजी मारने में कोई मुश्किल नहीं होती। कई सफल बच्चे कहते हैं कि अब कम्पीटिशन कम है, क्वालिटी-स्टडी के प्रतिभागियों की संख्या सीमित होती है। कुल मिलाकर, इंटरनेट, फोन, सोशल मीडिया के जंजाल में फंस चुकी पीढ़ी को बाहर निकालना किसी चुनौती से कम नहीं? बहरहाल, इस समस्या का सर्वाधिक नकारात्मक पहलू एक यह भी है।

आज की पीढ़ी गूगल-इंटरनेट को ही शिक्षक और अपना माईबाप समझने लगी है, जो सर्च किया उसे ही वास्तविक सच्चाई मान लेती है। तब उन्हें बुजुर्गों के अनुभव, बुद्धिजीवियों की राय बेमानी-सी लगती है। विद्यालयों में पढ़ाए गए कोर्स या चैप्टरों पर विश्वास नहीं करती। पाठ्यक्रम की तमाम सामग्री गूगल करके समझते हैं। असल मायनों में यहीं से शिक्षा का स्तर गिरना भी आरंभ हो जाता है। युवाओं में अब धीरे-धीरे देश की जरूरी-वास्तविक समस्याओं को जानने-समझने की क्षमता कुंद होती जा रही है।

सर्वे बताता है कि ऐसा भी नहीं है कि युवा इंटरनेट का इस्तेमाल जरूरी तौर पर करते हैं, जमकर दुरुपयोग करते हैं। चाइल्ड पोर्नोग्राफी की लत भी इंटरनेट से चिपकने से लगती है। कई बच्चे स्कूलों में भी फोन के साथ पकड़े जाने लगे हैं। कई मर्तबा तो बच्चों की हरकतों को देखकर शिक्षक-अभिभावक भी शर्मसार होते हैं।

कैसे डिजिटल लत इतनी भयानक हो गया?

दरअसल, कोरोना काल में लगाए गए लॉकडाउन ने बच्चों में फोन की लत को और बढ़ाया था। वो ऐसा वक्त था, जब बच्चे घरों में कैद थे और स्कूलों की बीच में छूटी पढ़ाई को फोन के जरिए ऑनलाइन पढ़ते थे। तब, अभिभावक भी यही मानते थे कि बच्चे पढ़ने में मग्न हैं। पर, उन्हें क्या पता था कि बच्चे मोबाइल एडिक्शन के शिकार हुए पड़े हैं। समय की मांग यही है, युवाओं और आने वाली पीढ़ी को इस समस्या से किसी भी सूरत में बचाने के मुकम्मल उपाय खोजे जाएं।

क्या फोन की लत लगना संभव है?

लगातार फोन का उपयोग लत का एक हाल ही में विकसित रूप है। अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन आधिकारिक तौर पर इस स्थिति को मान्यता नहीं देता है। फिर भी, इसे दुनिया भर के कई चिकित्सा पेशेवरों और शोधकर्ताओं द्वारा एक व्यवहारिक लत के रूप में स्वीकार किया जाता है।

बच्चों के डिजिटल एडिक्शन को कैसे दूर करें?

अपने बच्चों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह की अलग-अलग एक्टीविटी में शामिल होने के लिए बढ़ावा दें. ऐसा करने से उन्हें संतुलन बनाने और स्क्रीन पर ज्यादा निर्भर होने से बचने में मदद मिल सकती है।

माता-पिता के लिए जरूरी टिप्स

बच्चों में डिजिटल एडिक्शन या मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन का अत्यधिक इस्तेमाल चिंता का विषय है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक और भावनात्मक पहलुओं पर भी नकारात्मक असर डाल सकता है. एक माता-पिता के रूप में, अपने बच्चों में स्वस्थ आदतें विकसित करना और टेक्नोलॉजी के साथ संतुलन बनाने में मदद करने के लिए कदम उठाना बेहद जरूरी है। डिजिटल एडिक्शन पर काबू पाने और स्वस्थ प्रौद्योगिकी की आदतों को बढ़ावा देने में अपने बच्चों का समर्थन करने के लिए माता-पिता कई तरीके अपना सकते हैं।

अपनी प्रतिक्रिया दें !

Amit Yadav

दोस्तों नमस्कार ! हम कोशिश करते हैं कि आप जो चाह रहे है उसे बेहतर करने में अपनी क्षमता भर योगदान दे सके। प्रेणना लेने के लिए कही दूर जाने की जरुरत नहीं हैं, जीवन के यह छोटे-छोटे सूत्र आपके सामने प्रस्तुत है...About Us || Contact Us