छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य कौन कौन से है? छत्तीसगढ़ के लोकगीत कौन कौन से है

छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

छत्तीसगढ़ में लोक नृत्यों की अनेक विविधताएँ हैं। यहाँ का जनजातीय क्षेत्र हमेशा अपने लोक नृत्यों के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है। छत्तीसगढ़ में अनेक तरह के लोक नृत्य प्रचलित हैं। विभिन्न अवसरों, पर्वों से संबंधित भिन्न – भिन्न नृत्य प्रचलित हैं, जिनमें स्त्री-पुरुष समान रूप से भाग लेते हैं। छत्तीसगढ़ की लोक रचनाओं में नदी-नाले, झरने, पर्वत और घाटियाँ तथा सुंदर धरती की कल्पना होती है। तो आइये विस्तार से देखते है कि छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य कौन कौन से है? छत्तीसगढ़ के लोकगीत कौन कौन से है?

मध्य काल में यहाँ अनेक जातियाँ आयी थी जो अपने साथ अनेक संस्कृति भी लेकर आई थी। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्यों में बहुत कुछ समानता होती है। ये नृत्य मात्र मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि जातीय नृत्य, धार्मिक अनुष्ठान ओर ग्रामीण उल्लास के अंग भी हैं। देव- पितरों की पूजा-अर्चना के बाद लोक जीवन प्रकृति के सहचर्य के साथ घुल मिल जाता है।

छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य कौन कौन से है? छत्तीसगढ़ के लोकगीत कौन कौन से है

छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य

छत्तीसगढ़ में प्रकृति के अनुरूप ही ऋतु परिवर्तन के साथ लोक नृत्य अलग अलग शैलियों में विकसित हुआ। यहाँ के लोक नृत्यों मे मांदर, झांझ, मंजीरा और डंडा प्रमुख रूप से प्रयुक्त होता है। छत्तीसगढ़ के निवासी नृत्य करते समय मयूर के पंख, सुअर के सिर्से, शेर के नाखून, गूज, कौड़ी और गुरियों की माला आदि आभूषण धारण करते हैं। अब आइए कुछ छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख लोक नृत्य को विस्तार से देखते है।

1. गौरा नृत्य

गौरा छत्तीसगढ़ की मड़िया जनजाति का यह बहुत ही प्रसिद्ध लोक नृत्य है। नयी फसल पकने के समय मड़िया जनजाति के लोग गौर नामक पशु के सींग को कौड़ियों में सजाकर सिर पर धारण कर अत्यन्त ही आकर्षक व प्रसन्नचित मुद्रा में यह नृत्य करते हैं। यह छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि विश्व के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में एक है। एल्विन ने तो इसे देश का सर्वोत्कृष्ट नृत्य माना है। गौरा नृत्य को लोग बहुत पसंद करते हैं।

2. पंथी नृत्य

पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ का बहुत ही प्रसिद्ध लोक नृत्य है, जो कि सतनाम पंथियों द्वारा किया जाता है। यह नृत्य माघ पूर्णिमा पर जैतखम की स्थापना पर उसके चारों ओर किया जाता है। पंथी नृत्य में गुरु घासीदास की चरित्र गाथा को बड़े ही मधुर राग में गाया जाता है। यह बड़ा ही आकर्षक नृत्य है।

3. करमा नृत्य

करमा नृत्य छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का सबसे प्रमुख लोक नृत्य है। करमदेवता को प्रसन्न करने के लिए सामूहिक रूप से आदिवासी स्त्री-पुरुष इस नृत्य को करते हैं। करमा नृत्य के मुख्यतः चार रूप हैं जिसमे करमा खरी, करमा खाय, करमा झुलनी व करमा हलकी शामिल हैं। करमा नृत्य छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के साथ साथ पूरे छत्तीसगढ़ में भी लोकप्रिय है।

4. मांदरी नृत्य

मांदरी नृत्य घोटुल का प्रमुख नृत्य है। इसमें मंदिर की करताल पर नृत्य किया जाता है। इसमें गीत नहीं गाया जाता है। पुरुष नर्तक इसमें हिस्सा लेते हैं। दूसरी तरह के मादरी नृत्य में चिटकुल के साथ युवतियाँ भी हिस्सा लेती हैं। यह पोटुल का प्रमुख नृत्य है। इसमें कम से कम एक चक्कर मांदरी नृत्य अवश्य किया जाता है। मांदरी नृत्य में शामिल हर व्यक्ति कम से कम एक थाप के संयोजन को प्रस्तुत करता है, जिस पर पूरा समूह नृत्य करता है।

5. गेंड़ी नृत्य

गेंड़ी मुड़िया जनजाति का प्रिय नृत्य है जिसमें पुरुष लकड़ी की बनी हुई ऊँची गेंड़ी पर चढ़कर तेज गति से नृत्य करते हैं। छत्तीसगढ़ के इस लोक नृत्य में शारीरिक कौशल व संतुलन के महत्व को प्रदर्शित किया जाता है। सामान्यतः घोटुल के अंदर व बाहर इस नृत्य को विशेष आनंद के साथ किया जाता है। प्रति वर्ष श्रावण मास के हरेली अमावस्या से लेकर भादों मास की पूर्णिमा तक गेंड़ी का मौसम चलता है। गेंड़ी लोक नृत्य के समय दो प्रमुख लोक वाद्य यंत्र, मोहरी और तुडबुड़ी बजाये जाते हैं।

6. सरहुल नृत्य

सरहुल नृत्य छत्तीसगढ़ की उरांव जनजाति का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। इसे उरांव जनजाति द्वारा अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए साल वृक्ष के चारों ओर घूम-घूम कर उत्साहपूर्वक किया जाता है। वास्तव में उरांव जनजाति का मानना है कि इनके देवता साल वृक्ष में निवास करते हैं।

7. ददरिया नृत्य

ददरिया नृत्य छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध प्रणय (प्रेम) नृत्य है। यह एक गीतमय नृत्य है जिसमें युवक गीत गाते हुए युवतियों को आकर्षित करने के लिए नृत्य करते हैं। छत्तीसगढ़ में यह काफी लोकप्रिय है। खास कर ये लोक नृत्य युवाओं में बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं।

8. परधौनी नृत्य

छत्तीसगढ़ में बैगा जनजाति का यह बहुत लोकप्रिय नृत्य है जो कि विवाह के अवसर पर बारात पहुँचने के साथ किया जाता है। वर पक्ष वाले उस नृत्य में हाथी बनाकर नृत्य करते हैं।

9. हुलकी नृत्य

हुलकी पाटा घोटुल का सामूहिक मनोरंजक लोक नृत्य है। इसे अन्य सभी अवसरों पर भी किया जाता है । इसमें लड़कियाँ व लड़के दोनों भाग लेते हैं। हुलकी पाटा मुरिया संसार के सभी कोनों को स्पर्श थोड़ा बहुत अवश्य करते हैं। हुलकी पाटा मुरिया जगत की कल्पनाओं का व्यावहारिक गीत है। दण्डामी नृत्य माड़िया नर्तकियों के दाहिने हाथ में बाँस की एक छड़ी होती है, जिसे तिरुडुडी कहते हैं। नर्तकी इसे बजा बजा कर नृत्य करती है।

10. डंडारी नृत्य

डंडारी नृत्य प्रतिवर्ष होली के अवसर पर आयोजित होता है। विशेष रूप से राजा मुरिया भतरा इस नृत्य में रुचि लेते हैं। नृत्य के पहले दिन में गाँव के बीच एक चबूतरा बनाकर उस पर एक सेलम स्तंभ स्थापित किया जाता है और फिर ग्रामवासी उसके चारों ओर घूम – घूम कर नृत्य करते हैं। बाद में डण्डारी नृत्य यात्रा कर गाँव-गाँव में नृत्य प्रदर्शित करते हैं।

ये तो हो गया छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य और उनके बारे में पूरी जानकारी अब आये देखते है छत्तीसगढ़ के लोकगीत क्या और कौन कौन से छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकगीत है।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत

लोकगीत छत्तीसगढ़ में बहुत ही लोकप्रिय है। छत्तीसगढ़ में लोकगीत को अलग-अलग जनजाति के लोगों द्वारा अलग-अलग समय मे किया जाता हैं। 1940 में पहली बार श्यामचरण दुबे व 1962 में दानेश्वर वर्मा ने लोकगीतों का स्वतंत्र संग्रह क्रमश: छत्तीसगढ़ी लोकगीतों का परिचय व छत्तीसगढ़ के लोकगीत आदि प्रकाशित कर, छत्तीसगढ़ी लोकगीत को नयी दिशा दी इस संदर्भ में हेमंत नायडू का छत्तीसगढ़ी लोकगीत संग्रह भी महत्वपूर्ण है। आइये देखते हैं। कि छत्तीसगढ़ के कौन कौन से लोकप्रिय लोकगीत है।

प्रमुख छत्तीसगढ़ी लोकगीत –

  • सुआ गीत – प्रमुखत: गोंड आदिवासी स्त्रियों का नृत्य गीत है।
  • सेवा गीत – छत्तीसगढ़ में चेचक को माता माना जाता है। इसकी शांति के लिये माता सेवा गीत गाया जाता है।
  • जवाँरा गीत – छत्तीसगढ़ में दुर्गा माता की आरती, विभिन्न देवताओं की स्तुति आदि का वर्णन होता है।
  • भोजली गीत – इसमें तांत का बना एक वाद्य बनाकर नारियों द्वारा गीत गाया जाता है।
  • करमा गीत – नृत्य आदिवासियों को अत्याधिक प्रिय है। करमा गीतों का मुख्य स्वर शृंगार है।
  • बाँस गीत – राऊत जाति का प्रमुख गीत है।
  • देवार गीत – देवार जनजातिनकी प्रमुख गीत है जिसमे गुजरी, सीताराम नायक, यसमत, ओडनि व बीरम गीत शामिल है।
  • गौरा गीत – माँ दुर्गा की स्तुति में गाये जाने वाले लोकगीत हैं, जो नवरात्रि के समय गाया जाता है।
  • ददरिया गीत – ददरिया गीतों को छत्तीसगढ़ी लोक गीत का राजा कहा जाता है। इन गीतों में सौन्दर्य व शृंगार की बहुलता होती
  • लेंजा गीत – बस्तर के आदिवासी बाहुल क्षेत्र का लोकगीत है।
  • रेला गीत– मुरिया जनजाति का प्रसिद्ध गीत है।
  • भड़ौनी गीत – विवाह के समय हँसी मजाक को मूल लक्ष्य बनाकर बनाया गया लोकगीत है।

  • नचौनी गीत – नारी की विरह-वेदना, संयोग-वियोग के रसों से भरपूर प्रसिद्ध लोकगीत है।
  • बैना गीत – छत्तीसगढ़ में तंत्र साधना से संबंधित लोकगीत जो देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है।
  • राऊत गीत – छत्तीसगढ़ी यादव समाज में दस दिनों तक चलने वाला प्रसिद्ध नृत्य गीत है।
  • लोरिक चन्दौनी– छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में, लोक कथाओं पर आधारित यह लोकप्रिय गीत है।
  • नागमत गीत – नागदेव के गुण-गान व नाग-दंश से सुरक्षा की प्रार्थना में गाये जाने वाला लोकगीत है, जो नाग पंचमी के अवसर पर गाया जाता है।
  • डण्डा गीत– यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध नृत्य गीत है। यह प्रतिवर्ष पूर्णिमा से पूर्व गाया जाता है ।
  • दहकी गीत– छत्तीसगढ़ में होली के अवसर पर अश्लीलतापूर्ण परिहास में गाया जाने वाला लोक-गीत है।
  • पंथी गीत– छत्तीसगढ़ में सतनाम सम्प्रदाय के लोगों द्वारा अध्याय-महिमा से रचा-बसा प्रसिद्ध नृत्य गीत है।

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