प्रमुख व्यक्ति के उपनाम | भारत के प्रसिद्ध व्यक्तियों के उपनाम

प्रमुख व्यक्ति के उपनाम | भारत के प्रमुख व्यक्तियों के उपनाम

भारत एक महान देश है अजर इसे महान बनाने में बहुत महान व्यक्तियों का योगदान है। आज इस आर्टिकल में हम जानेगें भारत के कुछ ऐसे ही महान व्यक्तित्व और उनको सम्मान में कहे जाने वाले उनके उपनाम के बारे में। तो चलिए देखते है कुछ प्रमुख व्यक्ति और उनके उपनाम क्या है और क्यों है?

भारत के प्रमुख व्यक्ति और उनके उपनाम

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

प्रमुख व्यक्ति के उपनाम | भारत के प्रसिद्ध व्यक्तियों के उपनाम

1. राष्‍ट्रपिता – महात्‍मा गाँधी

मोहनदास करमचन्द गांधी को पहली बार नेताजी सुभाष चन्द्रबोस ने राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया था, 4 जून 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को ‘ देश का पिता ‘कहकर संबोधित किया था। इसके बाद 6 जुलाई 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने एक बार फिर रेडियो सिंगापुर से एक संदेश प्रसारित कर गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया। बाद में भारत सरकार ने भी इस नाम को मान्यता दे दी।

गांधी जी के देहांत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी रेडियो के माध्यम से देश को संबोधित किया था और कहा था कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे। बताया जाता है, कि नेताजी और महात्मा गांधी एक – दूसरे का भरपूर सम्मान करते थे, लेकिन इसके साथ दोनों के बीच कुछ मुद्दों को लेकर मतभेद भी थे। बताया जाता है, कि नेता जी महात्मा गांधी के इस विचार से सहमत नहीं थे कि अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही स्वतंत्रता पाई जा सकती है।

नेताजी का मानना था कि अहिंसा एक विचारधारा हो सकती है, लेकिन इसका किसी पंथ की तरह पालन नहीं किया जा सकता है। नेताजी का मानना था कि राष्ट्रीय आंदोलन को हिंसा मुक्ता होना ही चाहिए, लेकिन जरूरत पड़ने पर हथियार उठाने से पीछे नहीं हटा जा सकता है। वहीं इसके उलट महात्मा गांधी का मानना था कि अहिंसा ही देश को स्वतंत्र कराने का एकमात्र रास्ता है। महात्मा गांधी कई अहिंसा आंदोलनों से अंग्रेजों को कई मोर्चों पर झुका चुके थे।

2. बापू – महात्‍मा गाँधी

गांधी जी को “बापू”नाम बिहार के चंपारण जिले के रहने वाले गुमनाम किसान से मिला था दरअसल बिहार के चंपारण जिले में गांधी जी ने निलहा अंग्रेजों द्वारा भारतीय किसानों पर किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी। सही मायनों में अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ बापू के आंदोलन की शुरुआत चंपारण से ही हुई थी।

बापू जब चंपारण पहुंचे तो यहां एक कमरे वाले रेलवे स्टेशन पर अपना कदम रखा उस वक्त किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि इस धरती से मिलने वाला प्यार उन्हे देशभर में बापू के नाम से मशहूर बना देगा। दरअसल राजकुमार शुक्ला ने गांधी जी को एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी ने ही उन्हें को चंपारण आने पर विवश कर दिया था। उस गुमनाम किसान को आज दुनिया राजकुमार शुक्ल के नाम से जानती है।

3. सीमांत गाँधी, बादशाह खान – खान अब्‍दुल गफ्फार खाँ

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान (1890 – 20 जनवरी 1988) सीमाप्रांत और बलूचिस्तान के एक महान राजनेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य और निष्ठा के कारण सरहदी गांधी ( सीमान्त गांधी ), बच्चा खाँ तथा बादशाह खान के नाम से पुकारे जाने लगे। ख्याति प्राप्त वरिस्थ बलूच नेता खान अब्दुल गफ्फार खान जिन्हें हिंदुस्तान में इज्ज़त से सीमांत गाँधी भी कहा जाता है। भारतीय स्वतंत्रता अन्दोलन में सक्रिय रहे। वह आज़ादी के बाद बलूचिस्तान को भारत में मिलाने के पक्ष में थे।

खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गांधी कहा जाता है। खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था। उनके परदादा आबेदुल्ला खान सत्यवादी होने के साथ ही साथ लड़ाकू स्वभाव के थे। पठानी कबीलियों के लिए और भारतीय आजादी के लिए उन्होंने बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी थी। आजादी की लड़ाई के लिए उन्हें प्राणदंड दिया गया था। खुदाई खिदमतगार का सामाजिक संगठन उन्होंने बनाया था उन्हें सर्वप्रथम 1919 में गिरफ्तार किया गया था दूसरी बार सत्याग्रह आंदोलन के चलते उन्हें 1930 में गिरफ्तार किया गया।

4. भारत के वृद्ध पुरूष – दादा भाई नौरोजी

दादाभाई नौरोजी ब्रिटिशकालीन भारत के एक पारसी बुद्धिजीवी, शिक्षाशास्त्री, कपास के व्यापारी तथा आरम्भिक राजनैतिक एवं सामाजिक नेता थे। उन्हें  भारत का वयोवृद्ध पुरुष कहा जाता है। इसके अलावा वो इसी नाम से ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले पहले एशियाई भी थे। संसद सदस्य रहते हुए उन्होंने ब्रिटेन में भारत के विरोध को प्रस्तुत किया। उन्होंने भारत की लूट के संबंध में ब्रिटिश संसद में थ्योरी पेश की।

ऐसे दादा भाई नौरोजी का आज 30 जून 1917 को मृत्यु हो गई थी, उनका जन्म 4 सितम्बर 1825 को हुआ था। मनेकबाई और नौरोजी पालनजी डोर्डी के पुत्र दादा भाई नौरोजी का जन्म एक ग़रीब पारसी परिवार में गुजरात के नवसारी में हुआ था। वर्ष 1850 में केवल 25 वर्ष की उम्र में प्रतिष्ठित एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट में सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। इतनी कम उम्र में इतना सम्मानजनक ओहदा संभालने वाले वह पहले भारतीय थे। उन्हें भारत का वयोवृद्ध पुरुष (Grand Old Man of India) भी कहा जाता है। 1892 से 1895 तक वे यूनाइटेड किंगडम के हाउस आव कॉमन्स के सदस्य (एमपी) थे।

5. भारत के लौह पुरूष – सरदार वल्‍लभ भाई पटेल

वल्लभभाई झावेरभाई पटेल जो सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे, एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारत के पहले उप – प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र में अपने एकीकरण का मार्गदर्शन किया। भारत और अन्य जगहों पर, उन्हें अक्सर हिंदी, उर्दू और फ़ारसी में सरदार कहा जाता था, जिसका अर्थ है प्रमुख। उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत – पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।

बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया।

इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसंबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

6. शांति दूत – लाल बहादूर शास्‍त्री

लाल बहादुर शास्त्री एक भारतीय राजनेता और राजनेता थे, जिन्होंने 1964 से 1966 तक भारत के दूसरे प्रधान मंत्री और 1961 से भारत के छठे गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। 1963। उन्होंने आनंद, गुजरात के अमूल दूध सहकारी का समर्थन करके और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड का निर्माण करके – दूध के उत्पादन और आपूर्ति को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान – श्वेत क्रांति को बढ़ावा दिया।

भारत के खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए शास्त्री ने भारत में हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया 1965 में हुई, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में, लाल बहादूर शास्‍त्री महात्‍मा गाँधी को अपना गुरु माने थे, उन्ही के दिखाये रास्ते पे चलते थे इस कारण “शांति दूत” कहा गया।

7. पंजाब केसरी – लाला लाजपत राय

लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। और उन्हें प्यार से “पंजाब केसरी” कहा जाता था। कहा जाता है जब भी वो बोलते थे तो उनकी आवाज केसरी के जैसे गूंजती थी। केसरी की दहाड़ से जंगल के जानवर डर जाते हैं, ठीक उसी तरह लाला लाजपत राय की आवाज से अंग्रेज सरकार कांप उठती थी। एक लेखक और राजनीतिज्ञ, राय भी लाल-बाल-पाल तिकड़ी का हिस्सा थे। राय ने पंजाब नेशनल बैंक के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाहौर में पढ़ने से लेकर भारत में राष्ट्रवाद के स्तंभ होने तक, राय ने कई महत्वपूर्ण काम किए।

8. बंगाल केसरी – आशुतोष मुखर्जी

“बंगाल केसरी” के नाम से आशुतोष मुखर्जी को जाना जाता है  इन्हें उपनाम अपने शेर जैसे पराक्रम के लिए मिला है। बंगाल केसरी का अर्थ होता है “बंगाल का शेर”। बांग्ला क्षेत्र में दिए गए अपने अभूतपूर्व योगदान के लिए आशुतोष मुखर्जी को” बंगाल केसरी” की उपाधि मिली है। प्रमुख योगदान शिक्षा के क्षेत्र में सर आशुतोष मुखर्जी का सबसे अधिक योगदान है। उनके कार्यकाल में कोलकाता विश्वविद्यालय का चतुर्दिक विकास हुआ। कलकत्ता विश्वविद्यालय को परीक्षा लेने वाली संस्था से उन्नत करके शिक्षा प्रदान करने वाली संस्था बनाने का मुख्य श्रेय इन्हीं को है ।

9. बिहार केसरी – डाँ. श्री कृष्‍ण सिंह

“बिहार केसरी” डॉ. श्रीकृष्ण सिंह भारत के अखंड बिहार राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री (1946 – 1961) थे। उनके सहयोगी डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह उनके मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री व वित्तमंत्री के रुप में आजीवन साथ रहे। उनके मात्र 10 वर्षों के शासनकाल में बिहार में उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला व सामाजिक क्षेत्र में की उल्लेखनीय कार्य हुये।

आजाद भारत की पहली रिफाइनरी बरौनी ऑयल रिफाइनरी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना – सिन्दरी व बरौनी रासायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना – भारी उद्योग निगम ( एचईसी ) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट – सेल बोकारो, बरौनी डेयरी , एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड – गढ़हरा, आजादी के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल राजेंद्र पुल, कोशी प्रोजेक्ट, पुसा व सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय इत्यादि जैसे अनगिनत उदाहरण हैं। उनके शासनकाल में संसद के द्वारा नियुक्त फोर्ड फाउंडेशन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री एपेल्लवी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे बेहतर शासित राज्य

माना था और बिहार को देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था बताया था। अविभजित बिहार के विकास में उनके अतुलनीय, अद्वितीय व अविस्मरणीय योगदान के लिए ” बिहार केसरी ” श्रीबाबू को आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में जाना जाता है। अधिकांश लोग उन्हें सम्मान और श्रद्धा से ” बिहार केसरी ” और ” श्रीबाबू ” के नाम से संबोधित करते हैं।

10. आंध्र केसरी – टी. प्रकाशम

टंगुटूरी प्रकाशम पंतलु मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्यमंत्री , भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे , और बाद में नए आंध्र राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने , जो भाषाई रेखाओं के साथ मद्रास राज्य के विभाजन द्वारा बनाए गए । उन्हें “आंध्र केसरी ( आंध्र के शेर ) “के रूप में भी जाना जाता था।

” साइमन , वापस जाने ” के नारे से इसका बहिष्कार करने का फैसला किया। इस बहिष्कार के कई कारण थे , सबसे महत्वपूर्ण यह है , कि आयोग के पास रैंक में एक भी भारतीय नहीं था। आयोग जहां भी गया था वहां काले झंडे के प्रदर्शन के साथ बधाई दी गई थी। जब आयोग ने 3 फरवरी 1928 को मद्रास का दौरा किया , तो प्रकाशम पंतुलु ने नारा दिया ” साइमन कमीशन वापस जाओ “। अंग्रेजी सैनिकों ने प्रकाशम की अध्यक्षता में प्रदर्शनकारियों को चेतावनी दी। अगर वे ( प्रदर्शनकारियों ) एक इंच आगे बढ़े तो उन्होंने शूट करने की धमकी दी । प्रकाशम पंतुलु ने अपनी छाती को रोक दिया। इसने ब्रिटिश सैनिकों को गूंगा मारा। इस अनुकरणीय साहस ने उन्हें ” आंध्र केसरी ” शीर्षक दिया । इस घटना के बाद , उन्हें सम्मानित रूप से ” आंध्र केसरी ” ( आंध्र का शेर ) माना जाता था।

टंगुटूरी प्रकाशम पंतलु मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्यमंत्री , भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे , और बाद में नए आंध्र राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने , जो भाषाई रेखाओं के साथ मद्रास राज्य के विभाजन द्वारा बनाए गए । उन्हें आंध्र केसरी ( आंध्र के शेर ) के रूप में भी जाना जाता था । आंध्र प्रदेश सरकार ने 10 अगस्त 2014 को अपनी जयंती घोषित एक राज्य त्योहार घोषित किया।

11. शेर–ए–कश्‍मीर, कश्‍मीर के शेर – शेख अब्‍दुल्‍ला

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला एक भारतीय राजनेता थे, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाई शेर – ए – कश्मीर ( कश्मीर का शेर ) के रूप में संदर्भित, अब्दुल्ला इसके संस्थापक नेता थे। अखिल जम्मू और कश्मीर मुस्लिम सम्मेलन ( बाद में इसका नाम बदलकर जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ) और भारत में प्रवेश के बाद जम्मू और कश्मीर के पहले निर्वाचित प्रधान मंत्री थे।

उन्होंने महाराजा हरि सिंह के शासन के खिलाफ आंदोलन किया और कश्मीर के लिए स्व – शासन का आग्रह किया। उन्होंने जम्मू और कश्मीर की रियासत के पहले निर्वाचित प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया और बाद में उन्हें जेल में डाल दिया गया। 8 अगस्त 1953 को उन्हें प्रधान मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया और बख्शी गुलाम मोहम्मद को नए प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। 1965 में ‘ सदर-ए-रियासत और प्रधानमंत्री शब्दों को गवर्नर और मुख्यमंत्री शब्दों से बदल दिया गया। 1974 के इंदिरा शेख समझौते के बाद शेख अब्दुल्ला फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने।

12. बंगबंधु – शेख मुजीबुर रहमान

शेख़ मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के संस्थापक नेता, महान अगुआ एवं प्रथम राष्ट्रपति थे। उन्हें सामान्यतः “बंगलादेश का जनक “कहा जाता है। वे अवामी लीग के अध्यक्ष थे। उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सशस्त्र संग्राम की अगुवाई करते हुए बांग्लादेश को मुक्ति दिलाई। वे बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति बने और बाद में प्रधानमंत्री भी बने। वे शेख़ मुजीब के नाम से भी प्रसिद्ध थे। उन्हें बंगबन्धु की पदवी से सम्मानित किया गया। रहमान को बांग्लादेश के लोग ” बंगबंधु ” ( बंगाल का मित्र ) कहते हैं।

13. देशबंधु – चितरंजन दास

देशबन्धु चित्तरंजन दास सुप्रसिद्ध भारतीय नेता , राजनीतिज्ञ , वकील , कवि , पत्रकार तथा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमुख नेता थे । उन्होंने कई बड़े स्वतंत्रता सेनानियों के मुकद्दमे भी लडे !” देशबन्धु ( फ्रेंड ऑफ नेशन ) उपनाम से चितरंजन दास को जाना जाता है । चितरंजन दास एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी व पेशे से वकील थे । चितरंजन दास का जन्म ढाका में हुआ था ,जो इस समय बांग्लादेश की राजधानी है व स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश की बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आता था । इसी कारण चितरंजन दास का योगदान मुख्य रूप से बंगाल क्षेत्र में केंद्रित है तथा बंगाली सभ्यता के अनुसार ही उन्हें “देशबन्धु ” (राष्ट्र का मित्र) कहकर संबोधित किया जाता है।

चितरंजनदास को देशबन्धु की उपाधि उस समय मिली जब उन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के चलते वकालत छोड़ अपनी सारी संपत्ति मेडिकल कॉलेज और स्त्रियों के अस्पताल को दान में दे दी, उनके इस अमूल्य त्याग के लिए उन्हें “देशबन्धु “कहा जाने लगा। कांग्रेस के नेतृत्व पर पकड़ रखने वाले चितरंजन दास ने वर्ष 1923 तक कांग्रेस के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया । वर्ष 1923 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ अपने साथियों के साथ मिलकर स्वराज पार्टी स्थापित की । इसलिए उन्हें समाज पार्टी के संस्थापक नेता के रूप में जाना जाता है ।

गांधी जी प्यार से उन्हें ” क्राइस्ट्स फेथफुल एपोस्टल ” कहते थे । भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिए , सेंट स्टीफन कॉलेज , दिल्ली के उनके छात्रों एवं गांधीजी ने उन्हें” दीनबंधु ” की उपाधि दी थी।

14. दीनबंधु – सी.एफ.एण्‍ड्रयुज

दीनबंधु चार्ल्स फ्रीर एंड्रयूज का जन्म 12 फरवरी 1871 को इंग्लैंड में हुआ था । वे एक ईसाई मिशनरी , शिक्षक और में समाज सुधारक थे । आरंभिक काल में उन्होंने ब्रिटेन में सामाजिक कार्यो में बढ़ – चढ़कर भाग लिया । भारत में आने के बाद इन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में अध्यापन कार्य किया ।

दीनबन्धु उपनाम से सी . एफ . एंड्र्यूज को जाना जाता है । एंड्रयूज को यह उपाधि प्रवासी भारतीयों के उद्धार के लिए किए गए उनके प्रयासों के चलते मिली है । सर्वप्रथम एंड्रयूज को “दीनबंधु ” की उपाधि भारतीय मूल के गिरमिटिया मजदूर ( विदेश भेजे गए भारतीय गुलाम मजदूर ) व सामान्य मजदूरों द्वारा फिजी में दी गई थी।

15. लोकमान्‍य – बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक अथवा लोकमान्य तिलक , मूल नाम केशव गंगाधर तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी , शिक्षक , समाज सुधारक , वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे । ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए ; ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें ” भारतीय अशान्ति के पिता कहते थे। उन्हें, लोकमान्य ” का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ , जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत ( उनके नायक के रूप में ) लोकमान्य तिलक जी ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे,

भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे । उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा ” स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच ” ( स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है , और मैं उसे लेकर ही रहूँगा ) बहुत प्रसिद्ध हुआ । उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं से एक क़रीबी सन्धि बनाई , जिनमें बिपिन चन्द्र पाल , लाला लाजपत राय , अरविन्द घोष और वी , ओ चिदम्बरम पिल्लै शामिल थे।

16. लोकनायक – जय प्रकाश नारायण

जयप्रकाश नारायण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। उन्हें 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। इन्दिरा गांधी को पदच्युत करने के लिये उन्होने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ नामक आन्दोलन चलाया। वे समाज – सेवक थे , जिन्हें ‘ लोकनायक ‘ के नाम से भी जाना जाता है । 1998 में उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मनित किया गया । इसके अतिरिक्त उन्हें समाजसेवा के लिए 1975 में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था । पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है । दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल ‘ लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल ‘ भी उनके नाम पर है।

17. जननायक – कर्पुरी ठाकुर

जननायक कर्पूरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक , राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लोकप्रियता के कारण उन्हें “जन – नायक” कहा जाता था । कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया , जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है , में नाई जाति में हुआ था।

जननायक जी के पिताजी का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था । इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा नाई का काम करते थे । भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उन्होंने 27 महीने जेल में बिताए थे । वह 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे ।

18. राजश्री – पुरूषोत्तम दास टंडन

पुरुषोत्तम दास टंडन इलाहाबाद , उत्तर प्रदेश , भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें भारत के विभाजन के विरोध के साथ – साथ हिंदी के लिए भारत की राजभाषा का दर्जा प्राप्त करने के प्रयासों के लिए व्यापक रूप से याद किया जाता है । उन्हें प्रथागत रूप से ” राजर्षि” की उपाधि दी जाती थी ( व्युत्पत्ति : राजा + ऋषि = शाही संत ) । उन्हें “यूपी गांधी ” के नाम से जाना जाता था । 1961 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ” भारत रत्न “से सम्मानित किया गया।

19. गुरूदेव – रवीन्‍द्र नाथ टैगोर

रबीन्द्रनाथ ठाकुर कवि , रबीन्द्रनाथ टैगोर साहित्यकार , तत्वज्ञानी , गीतकार एवं संगीतकार भी है , विश्वविख्यात कवि , साहित्यकार , दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं । उन्हें ” गुरुदेव ” के नाम से भी जाना जाता है । बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे । वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं।

वे एकमात्र कवि हैं , जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र – गान ‘ जन गण मन ‘ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘ आमार सोनार बांङ्ला ‘ गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा गांधी जी को ” महात्मा ” की उपाधि दिए जाने के बाद , गांधी जी ने टैगोर को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ” गुरुदेव ” की उपाधि दी । वैचारिक दृष्टि से भी टैगोर एक महान गुरु थे, क्योंकि उन्होंने हमेशा निरंकुश शिक्षा की वकालत की थी।

20. गुरूजी – एम.एस.गोवलकर

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक तथा विचारक थे । इनके अनुयायी इन्हें प्रायः ‘ गुरूजी ‘ के ही नाम से अधिक जानते हैं । हिन्दुत्व की विचारधारा का प्रवर्तन करने वालों उनका नाम प्रमुख है । वे संघ के कुछ आरम्भिक नेताओं में से एक हैं।

उनका जन्म फाल्गुन मास की एकादशी विक्रमी संवत् 1963 तदनुसार 19 फ़रवरी 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था । वे अपने माता – पिता की चौथी संतान थे । उनके पिता का नाम श्री सदाशिव राव उपाख्य ‘ भाऊ जी ‘ तथा माता का श्रीमती लक्ष्मीबाई उपाख्य ‘ ताई ‘ था । उनका बचपन में नाम ‘माधव ‘ रखा गया पर परिवार में वे मधु के नाम से ही पुकारे जाते थे । पिता सदाशिव राव प्रारम्भ में डाक – तार विभाग में कार्यरत थे परन्तु बाद में उनकी नियुक्ति शिक्षा विभाग में 1908 में अध्यापक पद पर हो गयी ।

21. देश रत्‍न, अजातशत्रु – डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद

डॉ राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे, और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था । राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने भारत के पहले मंत्रिमंडल में 1946 एवं 1947 में कृषि और खाद्यमंत्री का दायित्व भी निभाया था। सम्मान से उन्हें प्रायः ‘राजेन्द्र बाबू’ कहकर पुकारा जाता है।

स्वतंत्रता आदोलन के दौरान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका पदार्पण वक़ील के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करते ही हो गया था । चम्पारण में गान्धीजी ने एक तथ्य अन्वेषण समूह भेजे जाते समय उनसे अपने स्वयं सेवकों के साथ आने का अनुरोध किया था। राजेन्द्र बाबू महात्मा गाँधी की निष्ठा, समर्पण एवं साहस से बहुत प्रभावित हुए, और 1928 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पदत्याग कर दिया।

गाँधीजी ने जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील की थी तो उन्होंने अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद , जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे, उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में दाखिल करवाया था। उन्होंने ‘सर्चलाईट’ और ‘देश’ जैसी पत्रिकाओं में इस विषय पर बहुत से लेख लिखे थे। और इन अखबारों के लिए अक्सर वे धन जुटाने का काम भी करते थे। 1914 में बिहार और बंगाल मे आई बाढ़ में उन्होंने काफी बढ़चढ़ कर सेवा कार्य किया था। बिहार के 1934 के भूकंप के समय राजेन्द्र बाबू कारावास में थे। जेल से दो वर्ष में छूटने के पश्चात वे भूकम्प पीड़ितों के लिए धन जुटाने में तन – मन से जुट गये और उन्होंने वायसराय के जुटाये धन से कहीं अधिक अपने व्यक्तिगत प्रयासों से जमा किया। सिंध और क्वेटा के भूकम्प के समय भी उन्होंने कई राहत – शिविरों का इंतजाम अपने हाथों मे लिया था।

“भारत रत्न” सन 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें भारत रत्न की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया। यह उस भूमिपुत्र के लिये कृतज्ञता का प्रतीक था जिसने अपनी आत्मा की आवाज़ सुनकर आधी शताब्दी तक अपनी मातृभूमि की सेवा की थी।

22. महामना – मदन मोहन मालवीय

मदन नाहन मालप स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ महान राजनेता, शिक्षाविद, और एक सफल सांसद थे। मदन मोहन मालवीय को महामना ‘एक सम्मान  के नाम से भी जाना जाता है। वे देश के पहले और और आखरी व्यक्ति थे, जिन्हें महामना की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उन्होंने देश को स्वतंत्र करने के लिए हर संभव कार्य किए, पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधारक कार्य तथा भारत माँ की सेवा में अपना सर्वस्व जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया। . महात्मा गाँधी, मालवीय जी को अपना बड़ा भाई मानते थे। उन्होंने मदन मोहन मालवीय जी को भारत निर्माता की संज्ञा दी। जवाहर लाल नेहरू ने उनको एक ‘महान आत्मा कहा जिन्होंने आधुनिक भारतीय राष्ट्रीयता की नींव रखी थी।

मदन मोहन मालवीय को ” महामना की उपाधि ” महात्मा गांधी ने दी थी ।

23. नेताजी – सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चन्द्र बोस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी एवम महान स्वतंत्रता सेनानी भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से सम्बोधित करते हैं।

24. चाचा, पंडित जी – जवाहर लाल नेहरू

जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने 1947 में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर 1964 तक अपने निधन तक, भारत का शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र राज्य – एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र के वास्तुकार माने जाते हैं। कश्मीरी पण्डित समुदाय के साथ उनके मूल की वजह से वे ‘पण्डित नेहरू’ भी बुलाए जाते थे, जबकि भारतीय बच्चे उन्हें ‘ चाचा नेहरू ‘ के रूप में जानते हैं।

वे भारत में लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहे। भारत में, उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्हें वर्ष 1955 में “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।

25. राजाजी, सी.आर – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जिसे राजाजी या सीआर के नाम से भी जाना जाता है, जिन्हें मुथरिनार “राजाजी” (राजाजी, विद्वान एमेरिटस) के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय राजनेता, लेखक, वकील और स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे। राजगोपालाचारी भारत के अंतिम गवर्नर – जनरल थे, क्योंकि भारत 1950 में एक गणतंत्र बन गया था। वह पहले भारतीय मूल के गवर्नर – जनरल भी थे, क्योंकि इस पद के सभी पिछले धारक ब्रिटिश नागरिक थे।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता, मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रीमियर के रूप में भी कार्य किया, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, भारतीय संघ के गृह मामलों के मंत्री और मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री। राजगोपालाचारी ने स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की और भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न के पहले प्राप्तकर्ताओं में से एक थे। उन्होंने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का कड़ा विरोध किया और विश्व शांति और निरस्त्रीकरण के प्रस्तावक थे। अपने जीवनकाल के दौरान, उन्होंने ‘मैंगो ऑफ सलेम’ उपनाम भी हासिल किया।

सम्मान भारतीय राजनीति के” चाणक्य “कहे जाने वाले राजा जी को 1954 में ” भारत रत्न “से सम्मानित किया गया। भारत रत्न पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे।

26. गौरेया – मेजर जनरल राजिंदर सिंह

राजिंदर सिंह एक भारतीय सेना प्रमुख कृपया उद्धरण जोड़ जनरल और द्वितीय लोकसभा ( भारतीय संसद के निचले सदन ) के सदस्य थे । सेना में उनका उपनाम ‘ स्पैरो ‘ पड़ा था । उन्होंने भारतीय सेना की विभिन्न इकाइयों में 3 अक्टूबर 1932 से 31 जनवरी 1938 तक कार्य किया। बाद में वे भारतीय सैन्य अकादमी , देहरादून में शामिल हुए और भारतीय सेना 1 फरवरी 1938 को अपरेटेड लिस्ट में शामिल हुए । अगले साल उन्हें, द किंग्स रेजिमेंट (लिवरपूल), जो एक ब्रिटिश सेना रेजिमेंट थी, उत्तर पश्चिम सीमा पर तैनात किया गया।

24 फरवरी 1 9 3 9 को उन्हें भारतीय सेना की 7 वीं लाइट कैविलरी में शामिल किया गया । 30 अप्रैल 1939 को वे पदोन्नत हो कर लेफ्टिनेंट बने और उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपनी सेवाए दी । उन्होंने 1947 में भारत के विभाजन पर भारतीय सेना का विकल्प चुना और 19 47 के भारत – पाकिस्तानी युद्ध के दौरान पहली बार उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े सैन्य सम्मान , दो महावीर चक्रों से सम्मानित किया गया । उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए और झेंगार की लड़ाई को जीतने के लिए उन्हें ये सम्मान मिला । और बाद में 19 65 भारत – पाकिस्तान युद्ध में वीरता को प्रदर्शित करने के लिए ये सम्मान मिला । 1 9 65 के युद्ध के दौरान वह पहली बख़्तरबंद डिवीजन के जनरल अफसर इन कमांड , जीओसी , थे ।

मेजर जनरल राजिंदर सिंह एमवीसी उपनाम उत्पन्न होने वाली मर गए निष्ठा राजिंदर सिंह गौरैया मेजर जनरल राजिंदर सिंह , एक भारतीय सेना अधिकारी और भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा के दो बार सदस्य थे । उन्हें ‘ स्पैरो ‘ उपनाम दिया गया था ।

27. युवा तुर्क – चंद्र शेखर :

भारतीय राजनीति में ‘ युवा तुर्क ‘ के नाम से विख्यात पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को उनके बेलौस विचारों और साहस तथा अडिग विश्वास के लिए याद किया जाएगा। चंद्रशेखर का जन्म 17 अप्रैल 1927 को उत्तरप्रदेश के बलिया जिले में इब्राहिम पट्टी गाँव के एक किसान परिवार में हुआ , दस नवंबर 1990 से 21 जून 1991 के बीच 11 वें प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व करने वाले चंद्रशेखर की बचपन से ही राजनीति में गहरी रुचि थी । छात्र राजनीति के दौर से ही उनके भीतर तेजतर्रार आदर्शवाद और क्रांतिकारी तेवर विद्यमान थे ।

वे आचार्य नरेंद्र देव से बहुत करीब से जुड़े थे , और सालभर के भीतर ही बलिया की जिला प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सचिव चुने गए । इसके पश्चात चंद्रशेखर ने 1955-56 के दौरान उत्तरप्रदेश प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव का पद भार संभाला चंद्रशेखर को 1962 में उत्तरप्रदेश से राज्यसभा के लिए चुना गया । बाद में उन्होंने 1965 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सहायता ली और 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव चुने गए तुर्किस्तान का निवासी , मुसलमान ( जैसे – तुर्क नवयुवक ) |

28. ताऊ – चौधरी देवी लाल

चौधरी देवी लाल जो कि हरियाणा में ” ताऊ देवी लाल ” के नाम से भी प्रसिद्ध हैं , हरियाणा के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे जो कि 19 अक्टूबर 1989 से 21 जून 1991 तक भारत के उप – प्रधानमंत्री रहे। वे दो बार ( 21 जून 1977 से 28 जून 1979 , तथा 17 जुलाई 1987 से 2 दिसम्बर 1989 ) हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे । उनकी समाधि – संघर्ष घाट दिल्ली में है ।

29. शहीद ए आजम – भगत सिंह:

भगत सिंह एक करिश्माई भारतीय क्रांतिकारी थे, उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा की एक बड़े पैमाने पर प्रतीकात्मक बमबारी और जेल में भूख हड़ताल में भाग लिया, जिसने भारतीय स्वामित्व वाले समाचार पत्रों में सहानुभूतिपूर्ण कवरेज के आधार पर उन्हें पंजाब क्षेत्र में एक घरेलू नाम में बदल दिया , और 23 साल की उम्र में उत्तरी भारत में एक शहीद और लोक नायक के रूप में उनकी फांसी के बाद । बोल्शेविज़्म से उधार विचार और अराजकतावाद , उन्होंने 1930 के दशक में भारत में बढ़ते उग्रवाद का विद्युतीकरण किया , और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अहिंसक लेकिन अंततः भारत की स्वतंत्रता के लिए सफल अभियान के भीतर तत्काल आत्मनिरीक्षण को प्रेरित किया।

1923 में, वह लाहौर में नेशनल कॉलेज में शामिल हो गए , जिसकी स्थापना दो साल पहले महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के जवाब में लाला लाजपत राय द्वारा की गई थी, जिसमें भारतीय छात्रों से ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा सब्सिडी वाले स्कूलों और कॉलेजों को छोड़ने का आग्रह किया गया था। भगत सिंह को जॉन सॉन्डर्स और चन्नन सिंह की हत्या का दोषी ठहराया गया था, और मार्च 1931 में 23 वर्ष की आयु में उन्हें फांसी दे दी गई थी।

उनकी मृत्यु के बाद वे एक लोकप्रिय लोक नायक बन गए। जवाहरलाल नेहरू ने उनके बारे में लिखा “भगत सिंह अपने आतंकवाद के कृत्य के कारण लोकप्रिय नहीं हुए, बल्कि इसलिए कि वे लाला लाजपत राय के सम्मान को, और उनके माध्यम से राष्ट्र के लिए, एक प्रतीक बन गए। अधिनियम को भुला दिया गया, प्रतीक बना रहा, और कुछ महीनों के भीतर पंजाब के प्रत्येक शहर और गांव, और कुछ हद तक उत्तर भारत के बाकी हिस्सों में, उनके नाम के साथ गूंज उठा। हालांकि सिंह के उपनिवेश – विरोधी क्रांतिकारी भी साहसी कृत्यों में उनकी हिंसक मौतें हुईं, कुछ को लोकप्रिय कला और साहित्य में सिंह के रूप में देखा गया, जैसा कि सिंह ने किया था, जिन्हें कभी – कभी संदर्भित किया जाता है। शहीद – ए – आज़म (उर्दू और पंजाबी में “महान शहीद “) के रूप में एक प्रतीक बन गए।

30. भारत की कोकिला – सरोजिनी नायडू :

सरोजिनी नायडू सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं , और उन्होंने भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । वह एक महान वक्ता , समानता के योद्धा और आधुनिक भारत की कवयित्री भी थीं । सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में एक बंगाली परिवार में हुआ था। सरोजिनी नायडू को “भारत कोकिला” कहा जाता है। एक कवि के रूप में नायडू के काम ने उन्हें उनकी कविता के रंग, कल्पना और गीतात्मक गुणवत्ता के कारण महात्मा गांधी द्वारा, भारत कोकिला या भारत कोकिला नाम दिया।
सरोजिनी

नायडू ने गांधीजी के अनेक सत्याग्रहों में भाग लिया और ‘ भारत छोड़ो ‘ आंदोलन में वे जेल भी गईं । 1925 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष बनीं । वे उत्तरप्रदेश की गवर्नर बनने वाली पहली महिला थीं । वे ‘ भारत कोकिला ‘ के नाम से जानी गईं ।

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31. लेडी विद द लैम्‍प – फ्लोरेंस :

फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल को आधुनिक नर्सिग आन्दोलन का जन्मदाता माना जाता है। दया व सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल द लेडी विद द लैंप (दीपक वाली महिला) के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका जन्म एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था। लेकिन उच्च कुल में जन्मी फ्लोरेंस ने सेवा का मार्ग चुना। 1845 में परिवार के तमाम विरोधों व क्रोध के पश्चात भी उन्होंने अभावग्रस्त लोगों की सेवा का व्रत लिया। दिसंबर 1844 में उन्होंने चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने बनाने का कार्यक्रम आरंभ किया था। बाद में रोम के प्रखर राजनेता सिडनी हर्बर्ट से उनकी मित्रता हुई।

फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा । अक्टूबर 1854 में उन्होंने 38 स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा । इस समय किए गए उनके सेवा कार्यों के लिए ही उन्होंने ” लेडी विद द लैंप की उपाधि ” से सम्मानित किया गया। जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती। फ्लोरेंस ने सेंट थॉमस अस्पताल में एक नाइटिंगेल प्रक्षिक्षण विद्यालय की स्थापना की, इसी बीच उन्होंने नोट्स ऑन नर्सिंग पुस्तक लिखी।

32. स्‍वर कोकिला – लता मंगेशकर :

लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थीं, जिनका छः दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है । हालाँकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर – फ़िल्मी गाने गाये हैं, लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायिका के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है।

लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ – साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं । टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था । उनकी महान गायकी और सुरमय आवाज के दीवाने पूरी दुनिया मे हैं। प्यार से सब उन्हें ‘ लता दीदी ‘ कहकर पुकारते हैं।

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने ही लता मंगेशकर को ” स्वर कोकिला “की उपाधि दी थी , ऐ मेरे वतन के लोगों, गाना गाने के बाद नेहरू इतना भावुक हो गए कि उन्होंने लता दीदी को ” स्वर कोकिला की उपाधि ” दे दी !

33. उडनपरी – पी.टी.उषा :

भारत की की इस शानदार एथलीट को लोग पी .टी . उषा के नाम से जानते हैं , भारतीय ट्रैक ऍण्ड फ़ील्ड की रानी माने जानी वाली उषा को लोग ” पय्योली एक्स्प्रेस” भी कहते हैं . उन्हें ये नाम रनिंग ट्रैक पर अपनी तेज गति के चलते दिया गया था । आइये जाने पीटी उषा की शानदार उपलब्धियों के बारे में जिनके चलते इन्हें उड़नपरी भी कहा जाता। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं । उन्हें ” पय्योली एक्स्प्रेस ” नामक उपनाम दिया गया था ।

34. मदर (माँ) – मदर टेरेसा :

मदर टेरेसा जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा कलकत्ता की ” संत टेरेसा ” के नाम से नवाज़ा गया है ,मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं , जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से “भारतीय नागरिकता ” ले ली थी । इन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की। 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की इन्होंने मदद की और साथ ही मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया ।

मदर टेरेसा का फुल नाम दुनिया उन्हें मदर टेरेसा के नाम से जानती है, लेकिन वास्तविक में उनका नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था। उन्होंने भारत के दीन – दुखियों की सेवा की थी, कुष्ठ रोगियों और अनाथों की सेवा करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी उनकी इन्हीं काम के चलते “नोबेल शांति पुरस्कार ” से सम्मानित किया जा चुका है।

भारत में गरीबों के लिए काम करके पहचान बनाने वाली रोमन कैथोलिक नन मदर टेरेसा को आज वेटिकन पोप फ्रांसिस ने संत की उपाधि दी। मदर टेरेसा के निधन के 19 साल बाद यह उपाधि दी गयी है। वेटिकन के सेंट पीटर्स स्क्वेयर में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में लगभग एक लाख लोगों की मौजूदगी में पोप फ्रांसिस ने ” मदर टेरेसा ” को इस उपाधि से नवाजा

35. विश्‍व कवि, कवि गुरू – रवीन्‍द्र नाथ टैगोर :

” जन – गण – मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता ” राष्ट्र – गीत के निर्माता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जीवन भर पद – दलित मानवता को ऊँचा उठाने के लिए मानव को मानव बन कर रहने की प्रेरणा देने के लिए संघर्ष किया। वे जानते थे क्रान्ति तोपों और बन्दूकों से नहीं, विचार परिवर्तन से होती है। भावनाएं न बदलें तो परिस्थितियों में स्थायी हेर – फेर नहीं हो सकता। फिर यदि विचार बदल जायें तो बिना दमन या दबाव के भी सब कुछ बदल सकता है। उनने कुरूप परिस्थितियों को सुन्दर बनाने के लिए एक सच्चे कलाकार की तरह साधना की। कला को कला के लिए सीमित नहीं रखा जा सकता। उसे सत्यं, शिवं, सुंदरं की सेवा के लिए प्रयुक्त किया जाना चाहिए। इस तथ्य को उन्होंने मूर्तमान करने के लिए जो तपस्या की उसे चिर – काल तक भुलाया न जा सकेगा।

रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्व – कवि माने जाते हैं। उनकी कविताएं मानवता का प्रतिनिधित्व करती हैं, उनकी कला में मानवता की उत्कृष्टता उभर कर आती है। कलाकार विश्व मानव की सुसज्जा में कितना उत्तरदायित्व उठा सकता है, इसका अनुपम उदाहरण उन्होंने अपने सारे जीवन को काव्यमय बनाकर प्रस्तुत किया ।

36. सरदार – सरदार वल्लभ भाई पटेल :

वल्लभभाई जो सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे, एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारत के पहले उप – प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र में अपने एकीकरण का मार्गदर्शन किया। भारत और अन्य जगहों पर , उन्हें अक्सर हिंदी , उर्दू और फ़ारसी में सरदार कहा जाता था, जिसका अर्थ है “प्रमुख” उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत – पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।

बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया।

इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘ सरदार ‘ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसंबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष , हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

37. तोता – ए – हिंद – अमीर खुसरो :

अमीर खुसरो को तोता – ए – हिंद की उपाधि निजामुद्दीन औलिया ने दी थी। उन्होंने स्वयं कहा है- मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना चाहते हो तो हिंदवी में पूछो। अमीर खुसरो का वास्तविक नाम अबुल हसन था। इनके पिता अमीर सैफुद्दीन महमूद (सैफे शम्सी) लाचीन निवासी तुर्क थे और वे सुल्तान शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (राज्यकाल 1210-1239 ई .) और उसके उत्तराधिकारियों के समय उच्च पदों पर नियुक्त रहे। अमीर खुसरो के नाना, सुलतान बलबन के राज्य के एक उच्च पदाधिकारी एमादुल्मुल्क थे, जो मूलतः हिंदू थे, अतः अमीर खुसरो ने कहा है कि मेरी मातृभाषा हिंदी है।

1564 ई . में खुसरो के पिता एक युद्ध में मारे गए और अमीर खुसरो का लालन – पालन उनके नाना के संरक्षण में हुआ। संगीत के क्षेत्र में खुसरो का नाम भुलाया नहीं जा सकता। ये एक उच्चकोटि के कलाकार तथा गायन – वादन में निपुण थे । ये एक सफल कवि भी थे। इनकी प्रतिभा बहुमुखी थी । कम ही व्यक्ति ऐसे होंगे जो इस प्रकार विभिन्न कलाओं में समान रूप से कुशल होंगे। वह एक अच्छे राजनीतिज्ञ, राजकवि , राजगायक तथा साहित्यकार थे।

38. लाल, बाल, पाल – लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल :

बाल पाल (लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, और बिपिन चंद्र पाल) 1906 से 1918 तक, 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश भारत में मुखर राष्ट्रवादियों की एक तिकड़ी थे। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन की वकालत की, जिसमें बहिष्कार शामिल था। 1905 में शुरू हुए बंगाल में विभाजन विरोधी आंदोलन के दौरान 1907 में सभी आयातित वस्तुओं और भारतीय निर्मित वस्तुओं का उपयोग। उदस्वदेशी आंदोलन के दौरान लाला लाजपत राय का एक प्रसिद्ध संवाद था।

उन्नीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में कुछ भारतीय बुद्धिजीवियों में एक क्रांतिकारी संवेदनशीलता का उदय हुआ। यह स्थिति 1905 में स्वदेशी आंदोलन के साथ राष्ट्रीय अखिल भारतीय परिदृश्य पर फूट पड़ी इस शब्द को आमतौर पर “आत्मनिर्भरता” के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। लाल बाल पाल ने बंगाल विभाजन के खिलाफ देश भर में भारतीयों को लामबंद किया, और बंगाल में शुरू हुए ब्रिटिश सामानों के प्रदर्शन, हड़ताल और बहिष्कार जल्द ही राज के खिलाफ व्यापक विरोध में अन्य क्षेत्रों में फैल गए।

अपने प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी और सक्रिय राजनीति से बिपिन चंद्र पाल और अरबिंदो घोष के सेवानिवृत्त होने के साथ राष्ट्रवादी आंदोलन धीरे – धीरे फीका पड़ गया। जबकि लाला लाजपत राय घायल हो गए , पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट के फैसले के कारण पुलिसकर्मियों को उनके आदेश के तहत लाठी ( डंडे ) चार्ज करने का आदेश देने के कारण राय एक भीड़ में थे, और व्यक्तिगत रूप से राय पर हमला किया था, 17 नवंबर 1928 को लाठीचार्ज में लगी चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल को सम्मिलित रूप से “लाल – बाल – पाल ” के नाम से जाना जाता था। भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में 1905 से 1981 तक की अवधि में वे गरम राष्ट्रवादी विचारों के पक्षधर और प्रतीक बने रहे । वे स्वदेशी के पक्षधर थे और सभी आयातित वस्तुओं के बहिष्कार के समर्थक थे।

1905 के बंग भंग आन्दोलन में उन्होने जमकर भाग लिया। लाल – बाल – पाल की त्रिमूर्ति ने पूरे भारत में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध लोगों को आन्दोलित किया। बंगाल में शुरू हुआ धरना प्रदर्शन, हड़ताल, और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार देश के अन्य भागों में भी फैल गया। ये तीन नेता जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता संग्राम की दिशा ही बदल दी।

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39. बिहार विभूति – डाँ. अनुराग नारायण सिंह :

डॉ अनुग्रह नारायण सिंह एक भारतीय राजनेता और बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री (1946-1957) थे। अनुग्रह बाबू (1887-1957) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक तथा राजनीतिज्ञ रहे हैं। उन्होंने महात्मा गांधी एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के साथ चंपारण सत्याग्रह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। वे आधुनिक बिहार के निर्माताओं में से एक थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें बिहार विभूति के रूप में जाना जाता था। उनका सौभ्य, स्निग्ध, शीतल, परोपकारी, शख़्सियत बिहार के जन गण मन पर अधिकार किए हुए था, वे देश के स्वाधीनता संग्राम के महान नायकों में एक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पद चिह्नों पर चलने वाले उनके प्रिय अनुयायी थे ल।

” अनुग्रह नारायण सिंह ” यहां पुनर्निर्देश करता है। उत्तर प्रदेश के राजनेता के अनुग्रह नारायण सिन्हा जिन्हें “बिहार विभूति ” के नाम से जाना जाता , प्यार से अनुग्रह बाबू कहलाते हैं !

40. बाबूजी – जगजीवन राम :

जगजीवन राम भारतीय राजनीतिज्ञ भारत जिन्हें सहपूर्ण रूप से “बाबूजी” भी कहा जाता था, एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा भारत के प्रथम दलित उप – प्रधानमंत्री एवं राजनेता थे।

बाबू जगजीवन राम के जीवन के कई पहलू हैं । उनमें से ही एक है भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में उनका अमूल्य योगदान। 28 साल की उम्र में ही 1936 में उन्हें बिहार विधान परिषद् का सदस्य नामांकित कर दिया गया था। जब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत 1937 में चुनाव हुए तो बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध एमएलए चुने गए। अंग्रेज़ बिहार में अपनी पिट्टू सरकार बनाने के प्रयास में थे। उनकी कोशिश थी कि जगजीवन राम को लालच देकर अपने साथ मिला लिया जाए।

उन्हे मत्री पद और पैसे का लालच दिया गया, लेकिन जगजीवन राम ने अंग्रेज़ों का साथ देने से साफ इनकार कर दिया। उसके बाद ही बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसमें वह मत्री बने। साल भर के अंदर ही अंग्रेज़ों के गैरजिम्मेदार रुख के कारण महात्मा गांधी की सलाह पर कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे थे। पद का लालच उन्हें छू तक नहीं गया था। बाद में वह महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में जेल गए।

41. भारत का नेपोलियन – समुद्र गुप्‍त :

भारत का नेपोलियन समुद्र गुप्‍त कहा जाता गुप्त वंश के समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। इतिहास कार एवी स्मिथ ने उन्हें अपने महान सैन्य विजय के कारण बुलाया, जो उनके दरबारी और कवि हरिसेना द्वारा लिखित प्रयाग प्रशस्ति से जाना जाता है, जो उन्हें सौ लड़ाइयों के नायक के रूप में भी वर्णित करता है। लेकिन कुछ प्रमुख भारतीय इतिहास कार स्मिथ की आलोचना करते हैं, और महसूस करते हैं, कि समुद्रगुप्त नेपोलियन की तुलना में कहीं अधिक महान योद्धा था, क्योंकि समुद्रगुप्त ने कभी कोई लड़ाई नहीं हारी।

समुद्रगुप्त के पिता गुप्तवंशीय सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम और माता लिच्छिवि कुमारी श्रीकुमरी देवी थी। चंद्रगुप्त ने अपने अनेक पुत्रों में से समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी चुना और अपने जीवनकाल में ही समुद्रगुप्त को शासनभार सौंप दिया था। प्रजाजनों को इससे विशेष हर्ष हुआ था किंतु समुद्रगुप्त के अन्य भाई इससे रुष्ट हो गए थे और राज्य में ग्रहयुद्ध छिड़ गया। इसका वर्णन प्रयाग में अशोक मौर्य के स्तंभ पर विशद रूप में खुदा हुआ है।

पहले इसने आर्यावर्त के तीन राजाओं – अहिच्छव का राजा अच्युत, पद्मावती का भारशिववंशी राजा नागसेन और राज कोटकुलज – को विजित कर अपने अधीन किया, और बड़े समारोह के साथ पुष्पपुर में प्रवेश किया। इसके बद उसने दक्षिण की यात्रा की और क्रम से कोशल, महाकांतर, भौराल पिष्टपुर का महेंद्रगिरि (मद्रास प्रांत का वर्तमान पीठापुराम् ), कौटूर, ऐरंडपल्ल, कांची, अवमुक्त, वेंगी, पाल्लक, देवराष्ट्र और कोस्थलपुर बारह राज्यों पर विजय प्राप्त की।

42. भारत का शेक्‍सपियर – महाकवि कलिदास

भारत का शेक्सपियर उपनाम से संस्कृत के महाकवि कालिदास को जाना जाता है। शेक्सपियर उपनाम इंग्लैंड में जन्मे इंग्लिश कवि विलियम शेक्सपियर से प्रेरित है। महाकवि कलिदास महा कवियों में से एक है, कवि माने जाते हैं। महाकवि कलिदास जिन्होन कई रचना की है, भारत में उनका बहुत योगदन रहा है।

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43. भारत का मैकियावली – चाण्‍क्‍य (कौटिल्‍य) :

भारत का मैकियावेली चाणक्य को कहा जाता है। निकोलो मेकियावेली इटली का एक राजनीतिक, संगीत , राजनैतिक दार्शनिक, कवि एवं नाटककार था। वह फ्लोरेंस पब्लिक का कर्मचारी था। मैकियावैली को आधुनिक राजनीति विज्ञान के प्रमुख संस्थापकों में से एक है। मैकियावेली के नीतियों की व्यावहारिकता को देखते हुए कई प्रोफेसर, आलोचक मैकियावेली को यूरोप का “चाणक्य” भी कहते हैं। हालांकि ये बहस का एक अलग मुद्दा है। लेकिन यूरोप में मैकियावेली का राजनीतिक सिद्धांत काफी लोकप्रिय हुआ। उनका सिद्धांत राजनीति शास्त्र में मेकियावेलियनिस्म से प्रसिद्ध हुआ।

मैकियावेली का मतलब सुनेंरोकेंमैकियावेली आधुनिक राजनीति विज्ञान के प्रमुख संस्थापकों के में से एक माने जाते हैं। वे एक कूटनीतिज्ञ, राजनीतिक दार्शनिक, संगीतज्ञ, कवि और नाटककार थे। सबसे बड़ी बात कि वे फ्लोरिडा गणराज्य के नौकरशाह थे।मैकियावेली अपने साधारणतया प्रत्येक दार्शनिक और राजनीतिज्ञ के दर्शन और नीतियों पर उसके देश काल की पारस्थतियों का प्रभाव पड़ता है। मैकियावली पर अपने समकालीन राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं नैतिक वातावरण की छाप सबसे सुस्पष्ट रूप से अंकित है। इसलिए डनिंग ने विशेष रूप से उसे अपने युग का शिशु कहा है।

44. कश्‍मीर का अकबर – जेनुल आब्‍दीन :

जैनुल अबादीन अलीशाह का भाई और कश्मीर का सुल्तान था। सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का भाव रखने व अपने अच्छे कार्यों के कारण ही उसे कश्मीर का अकबर कहा जाता है। अपने शासन के दौरान इसने हिन्दुओं को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की थी। शासकों में से एक हैं जिन्होंने लगभग 50 वर्षों तक शासन किया। वह अपने विषयों के कल्याण के लिए कई कदम भी देखता है। उनकी उदार धार्मिक नीति थी, उन्होंने साहित्य, कला और वास्तुकला को बढ़ावा दिया जिसके कारण उन्हें कश्मीर का अकबर ‘ कहा गया

45. गुजरात के पिता – रवि शंकर महाराज :

रविशंकर व्यास, जिन्हें रविशंकर महाराज के नाम से जाना जाता है, गुजरात के एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी थे। भारत सरकार ने 1984 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। सामाजिक कार्य के लिए रविशंकर महाराज पुरस्कार, ₹ 1 लाख, उनके सम्मान में गुजरात सरकार के सामाजिक न्याय विभाग द्वारा स्थापित किया गया है।

तो ये था भारत के प्रमुख व्यक्ति के उपनाम, जिनसे आप रूबरू हुए है।

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