सहारा से पैसा क्यों नही मिल रहा ? सहारा ग्राहकों को पैसा क्यों नही दे रहा ?

सहारा इंडिया परिवार दिन ब दिन मुश्किल हालात की ओर बढ़ रहा है। एजेंटों और निवेशकों का दबाव बढ़ता जा रहा है। ये अपना पैसा मांग रहे हैं। वैसे उस वक्त से लेकर आजतक सहारा के निवेशकों एवं कार्यकर्ताओं ने सहारा इंडिया पर भरोसा कायम रखा है। तो आइए जानते है कि सहारा से पैसा क्यों नही मिल रहा ? सहारा ग्राहकों को पैसा क्यों नही दे रहा ? सहारा सेबी विवाद क्या हैै ? निवेशकों के पैसा वापिस न मिलने पर सहारा ने क्या कहा ?

सहारा इंडिया परिवार की पूरी जानकारी

सहारा ग्रुप के प्रमुख , निवेशकों और कर्मचारियों को परिवार का सदस्य और पूरे समूह को सहारा परिवार कहते हैं सहारा का व्यासाय पूरे देश में फैला हुआ है । सहारा के ग्राहकों और निवेशकों की संख्या पूरे देश में 9 करोड़ से भी अधिक है । समूह की कुल संपत्ति लगभग 2,59,000 करोड़ रुपये की है । साथ ही ब्लॉक से लेकर राज्य स्तर पर 5,500 से अधिक कार्यालय हैं जिनके माध्यम से पूरे देश में 12 लाख वेतनभोगी कर्मचारी , कार्यकर्ता जुड़े हैं । यह आंकड़े बताते हैं कि सहारा समूह पर लगे आरोपों के बाद उसकी आर्थिक स्थिति में जो बदलाव आये हैं उससे करोड़ो लोग प्रभावित हुए हैं ।

सहारा का बिजनेस फाइनेंस , इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड हाउसिंग , मीडिया एंड एंटरटेनमेंट , कंज्यूमर रिटेल वेंचर , मैन्युफैक्चरिंग और आईटी सेक्टर में फैला हुआ हैं. सहारा ने अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में दो होटल भी खरीदे . खरीदे गए दोनों ही होटल न्यूयॉर्क प्लाजा और ड्रीम न्यूयॉर्क दुनिया के नामी होटलों में शामिल हैं . सहाराश्री के पास मुंबई के एंबी वैली में हजारों एकड़ जमीन का डेवलपमेंट राइट , मुंबई के वर्मोवा में 106 एकड़ की जमीन , लखनऊ में 191 एकड़ जमीन , देश के 10 अलग – अलग शहरों में 764 एकड़ जमीन है लेकिन फिर भी सहारा से निवेशकों का पैसा क्यों नही निकल रहा है? तो आइए जानते है कि सहारा से पैसा क्यों नही मिल रहा ? सहारा ग्राहकों को पैसा क्यों नही दे रहा ?

सहारा ग्रुप के प्रमुख : श्री सुब्रत राय सहारा जी

सहारा सेबी विवाद क्या है ?

सेबी के एक गलत और तथ्यहीन आरोपों के कारण 4 अप्रैल 2014 को निवेशकों से गलत तरीके से धन जुटाने के एक मामले में शीर्ष अदालत की अवमानना के आरोप में श्री सुब्रत रॉय जी को जेल जाना पड़ा था , हालांकि बाद में उन्हें पेरोल पर जामनत मिली और फिलहाल वे और सहारा समूह न्यायिक प्रक्रिया झेल रहे हैं ।

जब 2009 में सहारा ग्रुप की एक कंपनी के शेयर मार्केट में जाने की इच्छा से मामला शुरू होता है . शेयर मार्केट में जाने से पहले SEBI से अनुमति लेना होता है . ऐसे में सहारा प्राइम सिटी नाम की कंपनी ने SEBI को IPO लाने के लिए DRHP भेजा। यानी मार्केट से पैसा उगाहने के लिए अपना बायोडाटा भेजा। सेबी कंपनी का बायोडाटा जांच रही थी . इसी दौरान सहारा की दो कंपनियां- सहारा इंडिया रियल इस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड कटघरे में आ गईं . गड़बड़ी सामने आते ही सेबी ने सहारा के नए OFCD जारी करने पर रोक लगा दी . लोगों के पैसे 15 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया।

सहारा इस आदेश के विरुद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट गया और सेबी पर केस कर दिया। 2010 में कोर्ट ने सेबी के आदेश पर रोक लगा दी। लेकिन 4 महीने बाद सेबी को सही पाया और सहारा को भुगतान करने को कहा . सहारा फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया। यहां से उसे सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल जाने को कहा गया। क्योंकि ट्रिब्यूनल कंपनियों के मामलों को सुलझाती है। यहां भी सहारा को राहत नहीं मिली और सेबी के आदेश को सही करार दिया। सहारा ने हार नहीं मानी और फिर  मामला सुप्रीम कोर्ट में गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सेबी के रुख का समर्थन किया। सहारा से कहा कि उसकी दो कंपनियों ने लाखों छोटे निवेशकों से ओएफसीडी ( वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर्स ) के जरिए करीब 24,000 करोड़ रु . की जो रकम जमा की है , उसे लौटा दिया जाए। कोर्ट के आदेश के बाद सहारा ने निवेशकों के कागजों से भरे 127 ट्रक सेबी के दफ्तर भेज दिए। इसके बाद सहारा और सेबी के बीच तनातनी बढ़ती गई . पैसा वापस करने का तीन महीने का समय गुजर गया। सहारा पैसा नहीं दे पाया। सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए तीन किश्तों में पैसे लौटाने को कहा।

लेकिन अभी तक सहारा समूह के द्वारा ब्याज सहित करीब 22,000 करोड़ रुपये की राशि सहारा- सेबी खाते में जमा की गई है । यह राशि उसकी दो समूह कंपनियों के बॉन्डधारकों को लौटाने के लिए जमा की गई है। और  इसी को लेकर सहारा लगातार विज्ञापन दे रहा है।

निवेशकों के पैसा वापिस न मिलने पर सहारा ने क्या कहा ?

सहारा समूह ने उस पर लगाई गई रोक के बारे में बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक सहकारी समितियों सहित समूह की अथवा उसके संयुक्त उद्यमों से जुड़ी किसी भी संपत्ति की बिक्री अथवा उसे गिरवी पर रखने से जो भी धन प्राप्त होगा उसे सहारा- सेबी खाते में जमा कराना होगा । समूह ने कहा है कि हम एक रुपया भी अपने संगठनात्मक कार्य के लिए खर्च नहीं कर सकते हैं , यहां तक कि अपने निवेशकों को भुगतान करने के लिए भी धन का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं ।

समूह ने कहा है भुगतान में कुछ देरी हुई है इसकी वजह बताते हुए समूह ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले आठ साल तक उसके भुगतान पर रोक लगा रखी थी जबकि ब्याज सहित करीब 22,000 करोड़ रुपये की राशि सहारा- सेबी खाते में जमा की गई है । यह राशि उसकी दो समूह कंपनियों के बॉन्डधारकों को लौटाने के लिए जमा की गई है । सहारा ने एक बयान जारी कर कहा है कि पिछले आठ साल में बार बार प्रयास किए जाने के बावजूद सेबी केवल 106.10 करोड़ रुपये का ही भुगतान बॉन्डधारकों को कर पाया है ।

सहारा से पैसा क्यों नही मिल रहा

तीन गुना परिसंपत्तियों के बावजूद सहारा से पैसा क्यों नही मिल रहा पर सहारा का क्या कहना है ?

सहारा की परिसंपत्तियों उसकी कुल देनदारियों की तुलना में तीन गुना ज़्यादा हैं । अब बात यह आती है कि सहारा के पास जब इतनी परिसंपत्तियों है तो सहारा पैसा क्यों नही दे रहा? सहारा से पैसा क्यों नही मिल रहा? उसे बेच कर संकट से बाहर क्यों नहीं आता। इस समय हम ऐसे मोड़ पर हैं जहाँ सब कुछ हमारी पहुँच के भीतर है लेकिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध की अड़चन के कारण पहुंच से बाहर भी है । यदि इस समय हमें भवन निर्माण का व्यवसाय करने की थोड़ी सी छूट मिली होती तो सब कुछ कब का ठीक हो गया होता ।

दरअसल , पूरे हिंदुस्तान में हमारी हज़ारों एकड़ जमीन सैकड़ों भूखंडों के रूप में बिखरी पड़ी है लेकिन ये सारे भूखंड बड़े क्षेत्रफल वाले यानी 100-200-300 एकड़ के हैं । अकेली ऐम्बी वैली का क्षेत्रफल 5000 एकड़ का है । अब कठिनाई यह है कि बड़े भूखंडों के खरीदार हिंदुस्तान में नहीं हैं । क्योंकि भू – बाजार ( Real Estate ) में मंदी है । ऐसी सूरत में जो एक – दो खरीदार मिलते भी हैं तो वे एक भूखंड को उसके वास्तविक मूल्य के चौथाई या उससे भी कम दाम में लेना चाहते हैं

माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत इस तरह का कम मूल्य का सौदा करना हमारे लिए संभव नहीं है क्योंकि हमें सरकारी सर्किल रेट के 90 प्रतिशत के नीचे बेचने की इजाजत नहीं है । बड़े भूखंड पर यदि टाउनशिप ( कॉलोनी ) विकसित करने की बात सोचें तो दो परिस्थितियों आयेंगी । पहले कि भूखंड का आंतरिक विकास व इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे – सड़क या अन्य सुविधाएं निर्मित करने हेतु फंड का अभाव , दूसरा यदि हम आवास डेवलपमेंट करने हेतु आवंटियों से बतौर एडवांस बुकिंग एमाउंट ) लेते हैं तो इससे जो पैसा आयेगा वह इस अजीब विषम परिस्थिति में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सहारा – सेबी एकाउंट में जमा कराना पड़ेगा।

ऐसे में जमीने तो हैं लेकिन उनका विकास कर व्यवसाय नहीं किया जा सकता है । जो प्रोजेक्ट चल रहे थे आज वो भी रुक गये हैं , क्योंकि धन का प्रवाह बंद हो गया है खुशी की बात यह खुशी की बात है कि दो सम्मानित विदेशी निवेशक संस्थाएं , काफी बड़ी रकम लेकर हमारे साथ रियल एस्टेट एवं सिटी विकास के व्यवसाय में आ रही हैं । माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसे करारों पर दस्तखत हो चुके हैं जिससे इसी वर्ष 2020 के अंदर सहारा की परेशानियाँ सुलझेंगी ।

सहारा सेबी विवाद को लेकर वित्तीय संस्थान होने के कारण सहारा इंडिया परिवार समूह आर्थिक नुकसान अवश्य उठा रहा है , लेकिन यहां यह बताते चलें कि यह वही संस्था है जिसने लातूर और भुज में आए प्राकृतिक आपदा के वक्त देशवासियों के समक्ष एक नजीर पेश किया था । इतना ही नहीं कारगिल युद्ध के बाद सहारा समूह ने कारगिल युद्ध के दौरान मारे गए 300 वीर जवानों के आश्रितों का ताउम्र जीवन निर्वहन करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था।

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सेबी क्या है ?

SEBI का पूरा नाम सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया है। हिंदी में प्रतिभूति तथा विनिमय बोर्ड कहते है। इसका काम शेयर मार्केट में गड़बड़ियों को रोकना . कंपनियों से नियमों का पालन कराना। निवेशकों ( पैसा लगाने वालों ) के हितों का खयाल रखना है।

आईपीओ  क्या है ? ( Initial Public Offering )

इस प्रक्रिया के जरिए कोई कंपनी पहली बार पैसा जुटाने के लिए अपनी कुछ हिस्सेदारी जनता को बेचती है . इसके जरिए कोई निजी कंपनी सार्वजनिक कंपनी बन जाती है।

डीआरएचपी क्या है ? ( Draft Red Herring Prospectus )

यह एक बायोडाटा होता है। इसमें शेयर मार्केट से पैसा उठाने वाली कंपनी की पूरी जानकारी होती है . जैसे- कंपनी का नाम , पता , कितने पैसे है , वह क्या काम करती है इत्यादि।

ओएफसीडी क्या है ? ( वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर्स )

जनता से पैसे उधार लेने का एक तरीका है, जिसमें बदले में ब्याज चुकाया जाता है। साथ ही इसके जरिए निवेशक कंपनी के हिस्सेदार भी बन सकते हैं। OFCD के कुछ नियम भी हैं। अगर 50 से कम लोगों को OFCD जारी होता है, तो कंपनी रजिस्ट्रार से अनुमति लेनी होती है . 50 से ज्यादा लोगों को OFCD देने के लिए सेबी से पूछना पड़ता है।

 

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