संविधान के स्रोत | भारतीय संविधान किन किन देशों से लिया गया है?
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  • Post last modified:August 11, 2022

संविधान के स्रोत | भारतीय संविधान किन किन देशों से लिया गया है?

दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान का भारत मे जब निर्माण किया गया तो अलग अलग विचारों को कई सोर्स से लिये गया था। इसके साथ ही कई दूसरे देशों के संविधान से भी प्रेरित था। तो आइए देखते है जब भारत मे संविधान को बनाया गया तो कहां कहाँ से सूचनाएं लिए गए थे? भारत के संविधान के स्रोत क्या है?

संविधान के स्रोत

आज भारत देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है, यहाँ हर किसी को सामान अधिकार, सामान दृष्टि से देखा जाता है, सबके लिए एक ही कानून है और भारत में सब कुछ सामन्य तरीके से चलाया जाता हैं, और ये सब भारत के महान संविधान के वजह से मुमकिन है।

पहली बार संविधान की माँग सन 1895 में बाल गंगाधर तिलक ने उठाई थी। अन्तिम बार 1938 में नेहरू जी ने संविधान सभा बनाने निर्णय का लिया संविधान की मूल भावना है कानून आधारित शासन जो किसी की मनमर्जी से नहीं वरन् नियम – कानूनों के आधार पर चले।

भारतीय संविधान सभा गठन

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

कैबिनेट मिशन मार्च, 1946 में भारत आया था । इस मिशन ने अपनी रिपोर्ट में संविधान सभा के गठन का एक सूत्र प्रस्तुत किया था, जिसके आधार पर संविधान सभा निर्वाचित होनी थी। इसमें प्रांतों का प्रतिनिधित्व जनसंख्या के आधार पर होना था । इसके तहत मोटे तौर पर प्रति दस लाख व्यक्तियों के ऊपर एक प्रतिनिधि के निर्वाचन की व्यवस्था प्रस्तावित थी ।

भारत के संविधान को बनने में पूरे 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का विशाल समय लगा, क्योंकि संविधान सभा एक मजबूत संविधान बनाना चाहती थी जिसमे कोई फेर बदल न हो सके और गहन अध्यन के बाद और कई देशों के संविधानों को अध्ययन करने और उनके कुछ कुछ भाग भारत के संविधान में जोड़ने के बाद संविधान बन कर तैयार हुआ। डॉ. भीम राव अंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है। संविधान बनाने के लिए सबसे ज्यादा स्रोत में अधिनियम 1935 सबसे ज्यादा है।

संविधान का स्रोत का क्या अर्थ है?

संविधान का स्त्रोत से मतलब है, जहा से संविधान को शक्ति मिलेगी, जो संविधान को सर्वोपरि बनाएगा। भारतीय संविधान में बहुत सी अच्छी अच्छी चीजे दूसरे स्त्रोतों से ली गयी है, और इनमें आन्तरिक एव बाह्य स्त्रोत दोनों सम्मलित है। जब ब्रिटिश शासन भारत पर राज कर रहा था तब बहुत सारे अधिनियम पारित किये गए थे। जिससे भारत की शासन व्यवस्था को चलाया जाता था, और इन्ही अधिनियमो से ली गयी चीजों को ही आंतरिक स्रोत कहा जाता है।

भारतीय संविधान किन किन देशों से लिया गया है? संविधान के स्रोत

संविधान के स्रोत | भारतीय संविधान किन किन देशों से लिया गया है?

संविधान के मूल स्रोत

1935 का भारत सरकार अधिनियम

भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव ‘भारतीय शासन अधिनियम: 1935 का है। भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं, जो 1935 ई० के अधिनियम से या तो शब्दश: लिए गए हैं या फिर उनमें बहुत थोड़ा परिवर्तन किया गया ह।

मुख्यतः भारत अधिनियम 1935 से बहुत सारी चीजे भारत के संविधान में जोड़ी गयी है जैसे, न्यायपालिका के सम्बन्ध में और आपात के सम्बन्ध में, यही नहीं ये अधिनियम भारतीय संविधान का सबसे बड़ा स्त्रोत भी है। इसी से सबसे ज्यादा चीजें भारत के संविधान में जोड़ी गयी है। अर्थात भारत के संविधान के सबसे बड़ा स्रोत भारत अधिनियम 1935 ही है।

उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध के बाद से भारतीय लोगों ने अपने देश की सरकार में लगातार बड़ी भूमिका की मांग की। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश युद्ध प्रयासों के लिए भारतीयों का योगदान करने का मतलब था कि ब्रिटिश राजनीतिक प्रतिष्ठान के अधिक रूढ़िवादी तत्वों में संवैधानिक परिवर्तन की आवश्यकता महसूस करना और जिसके परिणामस्वरूप भारत सरकार का 1919 अधिनियम पारित हुआ।

इस अधिनियम में सरकार ने एक नव प्रणाली की शुरूआत की जिसे प्रांतीय द्विशासन, के रूप में जाना जाता था, यानी, कुछ क्षेत्रों (जैसे शिक्षा) को प्रांतीय विधायिका के लिए जिम्मेदार मंत्रियों के हाथों में रखा गया जबकि अन्य (जैसे सार्वजनिक व्यवस्था और वित्त) को ब्रिटिश-नियुक्त प्रांतीय गवर्नर के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के हाथ में बनाए रखा गया।

2. ब्रिटेन

भारत के संविधान के स्रोत में अधिनियम 1935 के बाद विदेशी स्रोतों में सबसे ज्यादा ब्रिटेन से लिया गया है। जिनमे से कुछ इस प्रकार है।

A) संसदीय शासन प्रणाली

लोकतान्त्रिक शासन की वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका और विधायिकता मे घनिष्ट सम्बंध होता है क्योकि वास्तविक कार्यपालिका का निर्माण विधायिका से होता है। संसदात्मक शासन प्रणाली विलय के सिद्धांत पर कार्य करती है क्योकि जो व्यक्ति विधायिका का सदस्य होने के कारण नियम बनाता है वही व्यक्ति कार्यपालिका का सदस्य बन कर नियमो को किर्यांवित करता है।

B) विधि का शासन

भारतीय संविधान में घोषित किया गया है कि प्रत्येक नागरिक के लिए एक ही कानून होगा जो समान रूप से लागू होगा। जन्म, जाति इत्यादि कारणों से किसी को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होगा ( अनुच्छेद 14 )। किसी राज्य में यदि किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त है तथा अन्यान्य लोग इससे वंचित हैं, तो वहाँ विधि का शासन नहीं कहा जा सकता। भारत में प्रत्येक व्यक्ति पर, चाहे वह राजा हो या निर्धन, देश का साधारण कानून समान रूप से लागू होता है और सभी को साधारण न्यायालय में समान रूप से न्याय मिलता है।

C) एकल नागरिकता

भारतीय संविधान संघीय है और इसने दोहरी राजपद्धति (केंद्र एवं राज्य) को अपनाया है, लेकिन इसमें केवल एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई है अर्थात् भारतीय नागरिकता। यहां राज्यों के लिए कोई पृथक नागरिकता की व्यवस्था नहीं है। अन्य संघीय राज्यों, जैसे की व्यवस्था को अपनाया गया है। अमेरिका एवं स्विट्जरलैंड में दोहरी नागरिकता व अमेरिका में प्रत्येक व्यक्ति न केवल अमेरिका का नागरिक है, बल्कि उस राज्य विशेष का भी नागरिक है जहां वह रहता है। इस तरह उसे दोहरी नागरिकता प्राप्त है।

यह व्यवस्था भेदभाव की समस्या पैदा कर सकती है। जैसा कि राज्य अपने नागरिकों के प्रति भेदभाव बरत सकता है। यह भेदभाव मताधिकार, सार्वजनिक पदों, व्यवसाय आदि को लेकर हो सकता है। ऐसी समस्या को दूर करने के लिए ही भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया। भारत में सभी नागरिकों को, चाहे उनका जन्म कहीं और निवास कहीं और हो, पूरे देश में समान नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं।

D) सर्वाधिक मत के आधार पर चुनाव में जीत का फैसला

सरल बहुतमत प्रणाली में जिस व्यक्ति को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं वही चुन लिया जाता है। इसलिए इसे ‘सर्वाधिक मतप्राप्त व्यक्ति की विजय’ (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट) कहा जाता है। यह मतप्रणाली सबसे प्राचीन है। ब्रिटेन में तेरहवीं शताब्दी से ही यह प्रणाली प्रचलित रही है। राष्ट्रमंडल के देशों और अमेरिका में मतदान की यही सर्वसामान्य प्रणाली है। भारत में लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनावों में इसी प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।

यह प्रणाली सामान्यत: एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र प्रणाली से संबद्ध होती है। इस प्रणाली की आलोचना में तीन बातें कही जाती हैं। पहली यह कि इसके अंतर्गत सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार निर्वाचित हो जाता है, भले ही निर्वाचक मंडल के काफी बड़े समुदाय ने उसके विरुद्ध मत दिए हों। अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा निर्वाचित होने पर भी वह विरुद्ध मत रखने वाले बहुसंख्यक समुदाय का भी प्रतिनिधि बन जाता है।

E) सरकार का संसदीय स्वरूप

संसदीय प्रणाली लोकतान्त्रिक शासन की वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका और विधायिकता मे घनिष्ट सम्बंध होता है क्योकि वास्तविक कार्यपालिका का निर्माण विधायिका से होता है । संसदात्मक शासन प्रणाली विलय के सिद्धांत पर कार्य करती है क्योकि जो व्यक्ति विधायिका का सदस्य होने के कारण नियम बनाता है वही व्यक्ति कार्यपालिका का सदस्य बन कर नियमो को किर्यांवित करता है

संसदात्मक शासन प्रणाली विधायिकता के प्रति उत्तरदायी होती है। इस प्रणाली में राज्य का मुखिया तथा सरकार का मुखिया अलग-अलग व्यक्ति होते हैं। कार्यपालिका ही प्रमुख शासक होता है। भारत में संसदीय शासन प्रणाली है।

F) कानून के शासन का विचार

कानून का शासन राजनीतिक दर्शन है कि किसी देश, राज्य या समुदाय के भीतर सभी नागरिक और संस्थान समान कानूनों के प्रति जवाबदेह होते हैं, जिसमें सांसद और नेता भी शामिल हैं। कानून के शासन का तात्पर्य है कि प्रत्येक व्यक्ति कानून के अधीन है, जिसमें कानून निर्माता, कानून प्रवर्तन अधिकारी और न्यायाधीश शामिल हैं।

G) विधायिका में अध्यक्ष का पद और उनकी भूमिका

भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के लोकतंत्र को मज़बूत बनाने और शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिये केंद्रीय स्तर पर जहाँ संसद की व्यवस्था की, वहीं राज्यों में विधानसभा के गठन का प्रस्ताव किया। इसके साथ ही लोकसभा के संचालन और गरिमा बनाए रखने के लिये लोकसभा अध्यक्ष और राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष के पद का प्रावधान किया। राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही और उसकी गतिविधियों के संचालन के लिये पूरी तरह जवाबदेह होता है।

विधानसभा अध्यक्ष से यह अपेक्षित होता है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा। विधानसभा अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचित होना और उसका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होने वाला स्वरूप समाज की उस राजनीतिक जागरूकता का प्रतीक है जो लोकतंत्रीय व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला हैं। विधायिका का काम कानून बनाना है, कार्यपालिका कानूनों को लागू करती है और न्यायपालिका कानून की व्याख्या करती है। इन तीनों को लोकतंत्र का आधार-स्तंभ माना जाता है।

H) कानून निर्माण की विधि

भारतीय संविधान में घोषि किया गया है कि प्रत्येक नागरिक के लिए एक ही कानून होगा जो समान रूप से लागू होगा। जन्म, जाति इत्यादि कारणों से किसी को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होगा (अनुच्छेद 14)। किसी राज्य में यदि किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त है तथा अन्यान्य लोग इससे वंचित हैं, तो वहाँ विधि का शासन नहीं कहा जा सकता।

3. अमेरीका

संविधान के विदेशी स्रोत में अमेरिका के मूल अधिकार बहुत महत्वपूर्ण है।

A) मूल अधिकार या मौलिक अधिकार

मूल अधिकार (अनु 12-35), संविधान द्वारा प्रदत्त ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है इन अधिकारों पर राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता तथा इन्हें न्यायालय द्वारा प्रवर्तित भी कराया जा सकता है। भारत में इसे अमेरिकी संविधान से अपनाया गया 1931 में कांग्रेस के करांची अधिवेशन में वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में मूल अधिकारों की घोषणा की गई। मूल अधिकारों को न्यायालय द्वारा मूलभूत ढांचा माना गया है। वर्तमान में संविधान द्वारा नागरिकों को निम्न 6 प्रकार के मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं।

  1. समानता का अधिकार – अनु 14-18
  2. स्वतंत्रता का अधिकार – अनु 19-22
  3. शोषण के विरूद्ध अधिकार – अनु 23-24
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – अनु 25-28
  5. शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार – अनु 29-30
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार – अनु 32

B) न्यायिक पुनरावलोकन

न्यायिक पुनरावलोकन उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके अन्तर्गत कार्यपालिका के कार्यों (तथा कभी-कभी विधायिका के कार्यों) की न्यायपालिका द्वारा पुनरीक्षा (review) का प्रावधान हो। दूसरे शब्दों में, न्यायिक पुनरावलोकन से तात्पर्य न्यायालय की उस शक्ति से है जिस शक्ति के बल पर वह विधायिका द्वारा बनाये कानूनों, कार्यपालिका द्वारा जारी किये गये आदेशों, तथा प्रशासन द्वारा किये गये कार्यों की जांच करती है कि वह मूल ढांचें के अनुरूप हैं या नहीं। मूल ढांचे के प्रतिकूल होने पर न्यायालय उसे अवैध घोषित करती है।

न्यायिक पुनरावलोकन की उत्पति सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका से मानी जाती है किन्तु पिनाँक एवं स्मिथ ने इसकी उत्पति ब्रिटेन से मानी है। 1803 मे अमेरिका के मुख्य न्यायधीश मार्शन ने मार्बरी बनाम मेडिसन नामक विख्यात वाद मे प्रथम बार न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति की प्रस्थापना की थी। भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन सिद्धान्त का स्पष्ट उल्लेख नहीं हुआ है, परन्तु इसका आधार है- अनु॰ 13 (2), अनु॰ 32, 226, 131, 243 और न्यायधीशों द्वारा संविधान के संरक्षण की शपथ।

C) संविधान की सर्वोच्चता

भारत का संविधान सर्वोच्च है। क्योंकि सरकार के सभी अंग कार्यपालिका विधायिका एवं न्यायपालिका इसी से अपनी शक्तियां प्राप्त करते हैं। ब्रिटेन में संसद की सर्वोच्चता स्थापित की गई है। संसद द्वारा बनाए गई विधि को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। अमेरिकी संविधान में न्यायपालिका सर्वोच्च वह संसद द्वारा बनाई गई विधि को संविधान के अनुरूप न होने पर इसमें धनिक घोषित कर सकती है। किंतु भारत में संविधान को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया गया है। भारत में शक्ति के स्रोत के रूप में संविधान सर्वोच्च है।

D) स्वतंत्र न्यायपालिका

भारतीय संविधान में सरकार के तीनों अंगों के मध्य शक्तियों का पृथक्करण किया गया है। इसके तहत नागरिकों के अधिकारों का विधिवत संरक्षण सुनिश्चित करने तथा शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए इन तीनों अंगों के मध्य पर्याप्त नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था की गयी है। निम्नलिखित उपायों द्वारा भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित की गई है:

  • नियुक्ति की व्यवस्था
  • नियत सेवा-शर्ते
  • कार्यकाल की सुरक्षा
  • न्यायपालिका की अवमानना हेतु दण्ड देने की शक्ति
  • अन्य प्रावधान

4. जर्मनी – आपातकाल का सिद्धांत

भारत में आपातकाल का सिध्दांत जर्मनी के संविधान से लिया गया है। यह संविधान के भाग 18 में है। इसके अनुसार जब आंतरिक अथवा बाह्य कारणों से देश की सुरक्षा को खतरा हो तो राष्ट्रपति पूरा देश अपने हाथ में ले सकता है।

5. फ्रांस – गणत्रंतात्मक शासन व्यवस्था

भारतीय संविधान में गणतंत्रात्मक और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता, बंधुता के आदर्श का सिद्धांत फ्रांस से लिया गया है। भारतीय संविधान में इन तीनों को लोकतंत्र की आत्मा के तौर पर परिभाषित किया गया है। इनके बिना किसी स्वतंत्रता की कप्लना नहीं की जा सकती।

6. कनाडा

राज्यों में शक्ति का विभाजन

भारत का संविधान एक परिसंघ संविधान है जिसके अंतर्गत संघ और राज्यों के लिए अलग-अलग व्यवस्था दी गई है। परिसंघ संविधान के लिए सबसे आवश्यक बात यह है कि संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा निश्चित होना चाहिए जिससे दोनों के बीच टकराव की स्थिति का जन्म नहीं हो।

संघात्‍मक विशेषताएं अवशिष्‍ट शक्तियां केंद्र के पास

भारतीय संविधान में अवशिष्ट अधिकार का विचार कनाडा के संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 248 के अनुसार, संसद के पास कानून बनाने की विशेष शक्ति है जो उन मामलों से संबंधित है जिन्हें समवर्ती सूची और राज्य सूची में शामिल नहीं किया गया है। यह अधिकारों अवशिष्ट अधिकार हैं।

7. आयरलैंड –

नीति निदेशक तत्व

आयरलैण्ड के संविधान से लिया गया नीति निदेशक सिद्धांत का अर्थ है, ऐसे सिद्धांत जिन्हें राज्य अपनी नीतियों तथा कानून को बनाते समय ध्यान में रखे राज्य के नीति – निदेशक सिद्धांतों को भारतीय संविधान में शामिल किए जाने का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक प्रजातंत्र को स्थापित करना है, कल्याणकारी राज्य की संकल्पना का समावेश भारतीय संविधान के राज्य नीति के निदेशक तत्वों में है।

राज्यसभा में सदस्यों का मनोनयन

भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 80 राज्यसभा के गठन का प्रावधान करता है। राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है, परंतु वर्तमान में यह संख्या 245 है। इनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से संबंधित क्षेत्रों से मनोनीत किया जाता है।

राष्ट्रपति का निर्वाचक मण्डल

भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अनुच्छेद 55 के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है। राष्ट्रपति को भारत के संसद के दोनो सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं (विधान सभाओं) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है।

निर्वाचक मण्डल या इलेक्टोरल कॉलेज मतदारों का समूह होता हैं जिन्हें किसी विशिष्ट पद के लिए उम्मीदवार का चुनाव करने हेतु चुना जाता हैं।

8. ऑस्ट्रेलिया

प्रस्तावना की भाषा

भारतीय संविधान में प्रस्तावना का विचार अमेरिका के संविधान से लिया गया है। लेकिन प्रस्तावना की भाषा को ऑस्ट्रेलिया संविधान से लिया गया है। प्रस्तावना की शुरुआत ‘हम भारत के लोग’ से शुरू होती है और ’26 नवंबर 1949 अंगीकृत’ पर समाप्त होती है।

समवर्ती सूची का प्रावधान

समवर्ती सूची अथवा तीसरी-सूची(सातवीं अनुसूची) भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में दिये गये 52 विषय (हालांकि अन्तिम विषय को 47वाँ स्थान दिया गया है) की सूची है। इसमें राज्य सरकार और केन्द्र सरकार दोनों के साझा अधिकारों को वर्णित किया गया है। समवर्ती सूची का प्रावधान ऑस्ट्रेलिया कि संविधान से लिया गया है।

केंद्र एवं राज्य के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन

एक संघात्मक संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन देता है तथा प्रत्येक सरकार संविधान द्वारा सीमा में ही कार्य करती है पर इसका यह अर्थ नहीं है कि उनका एक दूसरे से कोई संबंध नहीं होता है क्योंकि दोनों सरकारें एक ही नागरिक पर प्रशासन करती है और उनके कल्याण के लिए कार्यों को संपादित करती है।

9. दक्षिणअफ्रीका – संविधान संशोधन की प्रक्रिया

भारतीय संविधान संशोधन की प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका से ली गई हैं। इस प्रक्रिया का विवरण संविधान के लेख 368, भाग XX में दिया गया है। संविधान के अधिकांश उपबन्धों में संशोधन के समय संसद में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। विशेष या विशिष्ट बहुमत से तात्पर्य यह है कि सदन की कुल सदस्य संख्या का साधारण बहुमत तथा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत। विशेष बहुमत की आवश्यता संसद के दोनों सदनों में होती है।

10. रूस – मूल कर्तव्य

सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर ही संविधान के 42वें संशोधन -1976 ई० के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया। मौलिक कर्त्तव्यों को रूस के संविधान से लिया गया है। इसे भाग 4(क) में अनुच्छेद 51(क) के तहत रखा गया। जो इस प्रकार है :

  1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें।
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे.
  3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
  4. देश की रक्षा करे.
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे.
  6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे.
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे.
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे.
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे.
  10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे.
  11. माता-पिता या संरक्षक द्वार 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन).

11. जापान – विधी द्वारा स्थापित प्रक्रिया, अनुच्छेद 21 की शब्दावली

भारतीय संविधान में ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ (Procedure established by Law) को जापान के संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

This Post Has One Comment

  1. Ankit Kumar

    Thanks

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Amit Yadav

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