भय क्यो होता है भय से कैसे मुक्त होंय
भय क्या है ? क्या यह केवल मन का भ्रम है या इसका कोई अस्तित्व भी है ? भय से ग्रस्त कौन रहता है ? कैसे उत्पन्न होता है भय और क्यों ? भय से कैसे मुक्त होंय ? क्या इससे छुटकारा सम्भव है।आप स्वयं जानें और हर प्रकार के भय से मुक्त होकर लें जीवन का भरपूर आनंद ।
भय क्या है ?
उत्पन्न संकट का उचित रूप से सामना न कर पाना या हानि की आशंका होना मन मे नकारात्मक भवों का उत्पन्न होना भय कहलाता है ।
भय वह कर है, जिसे अंत:करण अपराधी को देता है। जैसे पके हुए फलों को गिरने के अतिरिक्त दूसरा कोई भय नहीं है उसी प्रकार पैदा हुए मनुष्य को मृत्यु के सिवा अन्यत्र भय नहीं होना चाहिए। जो यही सोचकर भयभीत रहता है कि कहीं हार न जाए , वह निश्चित रूप से हार जाता है । इसलिए हमेशा सकारात्मक सोंच रखना चाहिए।
भय और बैर से मुक्ति पाना हो तो अहिंसा या प्रेम का मार्ग अपनाना होगा , इसके अतिरिक्त दूसरा कोई मार्ग हो ही नहीं सकता। भय से अधिक भयानक और कुछ भी नहीं है इसलिए हमेशा मन को ये समझा के रखना चाहिए कि हे मेरे प्राण ! जैसे वायु और आकाश न भय को प्राप्त होते हैं और न क्षीण होते हैं , वैसे ही तू भी न भय को प्राप्त हो और न क्षीण हो ।
भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराईयाँ उत्पन्न होती हैं । भूल से भी दूसरों के सर्वनाश का विचार न करो, क्योंकि न्याय उसके विनाश की युक्ति सोचता है, जो दूसरों के साथ बुराई करना चाहता है । स्वभाव में जब भय घुल जाए तब कायरता का आरम्भ हो जाता है। मृत्यु से भय खाना कायरता है क्योंकि जीवन का रहस्य तो मृत्यु में ही छिपा है ।
मुर्ख मनुष्य भय से पहले ही डर जाता है, कायर भय के समय ही डरता है और साहसी भय के बाद डरता है । भय दूरदर्शिता की जननी है । यदि तुम डरते हो तो किससे ? यदि तुम ईश्वर से डरते हो तो मूर्ख हो , यदि तुम मनुष्य से डरते हो तो कायर हो , यदि तुम पंचभूतों से डरते हो तो उनका सामना करो । यदि तुम अपने आपसे डरते हो तो अपने आपको पहचानो और कहो कि मैं ही ब्रह्म हूँ । क्योंकि जिससे प्रायः हम डरते हैं , कालांतर में उसी से घृणा करते हैं।
विपत्ति में हार तभी होती है , जब तक मनुष्य उससे डरता है । इसलिए हमेशा डरते रहने से एक बार खतरे का सामना कर डालना अच्छा है । भय ही पतन और पाप का निश्चित कारण है । जो भविष्य का भय नहीं करता वही वर्तमान का आनन्द ले सकता है । भय मुक्त जीवन ही मानव मस्तिष्क की अव्यक्त अभिलाषा हैं।
भय के बिना प्रीति नहीं होती । अपमान का डर कानून के डर से कम क्रियाशील नहीं होता । जिसे हम जमीर कहते हैं वह अक्सर कांस्टेबल का संभ्रात भय मात्र ही होता है । भय से पैदा हुईं कुप्रवृत्तियाँ पुरुषार्थ को खा जाती हैं ।
जन साधारण की दृष्टि में सब धनी व्यक्ति ऊँचे दिखाई देते हैं । लोग उनसे ईर्ष्या करते हैं कि वे धनी शक्तिशाली , सम्मानित , उदारणीय हैं । किन्तु वे धनी हर घड़ी काँपते रहते हैं। उन्हें जो समझा जाता है वस्तुत : वे ऐसे हैं नहीं । वे जिस मनुष्य को अपने मनुष्यत्व का भान है वह ईश्वर से भयभीत हैं कि कहीं उनकी कलई न खुल जाए ।
इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी कि हम सभी सदा एक दूसरे से डरे रहते हैं । भीरू को भय से जितनी पीड़ा होती है उतनी सच्चे साहसी साहस से बढ़कर होता हैं। जिज्ञासा ही भय पर विजय पाने में समर्थ होता हैं। ब्रह्म के स्वरूप का प्रेम जिन्होंने पा लिया है , उन्हें फिर किसी काल में भी भय प्राप्त नहीं होता।
अपराध करने के बाद भय उत्पन्न होता है और यही उसका दण्ड है। तो दोस्तो भय क्या है, भय कैसे उत्पन्न होता है, भय से कैसे मुक्त होंय पोस्ट को अपने दोस्तो के साथ सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करे।