भारत में राज्यपाल से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी
क्या आप जानते है भारत में राज्यपाल कंहा रहता है? उनकी सैलरी कितनी है? उनका काम क्या है? उनको नियुक्त कौन करता है? उनका कार्यकाल कितने वर्षों का होता है? उनका अधिकार क्या क्या है? अगर नही जानते है तो आइये देखते है राज्यपाल की नियुक्ति, उनके शक्तियां, उनके कार्यकाल इत्यादि के बारे में विस्तार से।
कौन होता है भारत में राज्यपाल
भारत में राज्यपाल किसी भी राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। वह मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है परंतु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्रिपरिषद की तुलना में बहुत सुरक्षित है। वह राष्ट्रपति के समान असहाय नहीं है। राष्ट्रपति के पास मात्र विवेकाधीन शक्ति ही है जिसके अलावा वह सदैव प्रभाव का ही प्रयोग करता है किंतु संविधान राज्यपाल को प्रभाव तथा शक्ति दोनों देता है। उसका पद जितना शोभात्मक है, उतना ही कार्यात्मक भी है।
भारत में राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं। इनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केन्द्र में राष्ट्रपति की होती है। केन्द्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल होते हैं। 7 वे संशोधन 1956 के तहत एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यो के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है। संविधान बनाते समय राज्यपाल का पद कनाडा से लिया गया है।
राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है?
भारत के संविधान में राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति अनुच्छेद 155 के तहत दी गई है। अनुच्छेद 153 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। एक व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। भारत में किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति को राज्यपाल के रूप में नियुक्ति किया जाता है, जिससे वह स्थानीय राजनीति से मुक्त रहे राज्यपाल की नियुक्ति के लिए आवश्यक है, कि राष्ट्रपति राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श ले, जिससे राज्य में संवैधानिक व्यवस्था बनी रहे।
राज्यपाल को शपथ कौन दिलाता है?
जिस प्रकार भारत में भारत के राष्ट्रपति भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष शपत ग्रहण करता है, ठीक उसी तरह राज्य में राज्य के हाई कोर्ट का न्यायाधीश यानी राज्य के उच्च न्यायालय का सबसे बड़ा न्यायाधीश यानी मुख्य न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल को शपथ दिलाता है।
राज्यपाल का कार्यकाल
भारत में राज्यपाल का कार्यकाल सामान्य रूप से 5 वर्ष का होता है। इसके पूर्व वह अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को दे सकता है। लेकिन इसे पहले समाप्त किया जा सकता है। यदि भारत के प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्तगी की जाए तब। क्योंकि बिना वैध कारण के राज्यपालों को बर्खास्त करने की अनुमति नहीं है। हालाँकि, राष्ट्रपति का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे राज्यपाल को बर्खास्त करे, जिसके कृत्यों को अदालतों ने असंवैधानिक और दुर्भावनापूर्ण करार दिया हो।
राज्यपाल का वेतन और पेंशन
भारत में राज्यपाल का वेतन राज्य की संचित निधि पर भारित होता है। भारत में राज्यपाल को 3 लाख 50 हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। यह भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद किसी भी सरकारी पद पर आसीन व्यक्ति को दिया जाने वाला सबसे अधिक वेतन है। इसके अलावा राज्यपालों को कई तरह के सरकारी भत्ते और सुविधाएं भी मुहैया कराई जाती हैं।
राज्यपाल को सैलरी के अलावा इलाज की सुविधा, निवास की सुविधा, यात्रा की सुविधा, फोन कॉल का बिल और बिजली का बिल जैसी कई विशेष सुविधाएं मिलती है। गवर्नर देश के किसी भी राज्य की यात्रा सरकारी भत्ते से कर सकता है। इसके लिए एक निश्चित सरकारी राशि भी आवंटित की जाती है। 1982 के राजपाल ( अनुमोदन भत्ते और विशेषाधिकार ) अधिनियम के अनुसार 5 साल की कार्यकाल अवधि के दौरान उनकी सुविधाओं में कोई कटौती नहीं की जा सकती है।
इन सब के अलावा राज्यपाल को पेंशन की सुविधा भी दी जाती है। संविधान के अनुसार कार्यकाल खत्म होने के बाद भारत में राज्यपाल को एक निश्चित पेंशन प्रदान की जाती है। प्रत्येक राज्य के गवर्नर को एक निश्चित पेंशन के साथ ही सचिवालय भत्ता और जीवन सुरक्षा के लिए मुफ्त इलाज प्रदान किया जाता है।
भारत का राज्यपाल कंहा रहता है?
भारत के राष्ट्रपति भवन की तरह प्रत्येक राज्य का अपना राजभवन होता है। जिसमें भारत के अलग अलग राज्यों के राज्यपाल उस राज्य के राजभवन में अपने परिवार के साथ निवास करते हैं। इस शानदार भवन में सभी तरह की सुविधा होती है। राज्यपाल का कार्यकाल पूरा हो जाने पर उन्हें यह राजभवन खाली करना होता है।
राज्यपाल की योग्यता
भारत मे राज्यपाल बनने के लिए अनुच्छेद 157 के अनुसार राज्यपाल पद पर नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताओं का होना अनिवार्य है –
- वह भारत का नागरिक हो,
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
- राज्य सरकार या केन्द्र सरकार या इन राज्यों के नियंत्रण के अधीन किसी सार्वजनिक उपक्रम में लाभ के पद पर न हो,
- वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो।
- वह पागल या दिवालिया घोषित न किया जा चुका हो।
राज्यपाल की शक्तियां
- अनु. 166[2] के अंर्तगत यदि कोई प्रशन उठता है कि राज्यपाल की शक्ति विवेकाधीन है या नहीं तो उसी का निर्णय अंतिम माना जाता है।
- अनु 166[3] राज्यपाल इन शक्तियों का प्रयोग उन नियमों के निर्माण हेतु कर सकता है जिनसे राज्यकार्यों को सुगमता पूर्वक संचालन हो साथ ही वह मंत्रियों में कार्य विभाजन भी कर सकता है।
- अनु. 200 के अधीन राज्यपाल अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग राज्य विधायिका द्वारा पारित बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकने में कर सकता है।
- अनु 356 के अधीन राज्यपाल राष्ट्रपति को राज्य के प्रशासन को अधिग्रहित करने हेतु निमंत्रण दे सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकता हो।
1. कार्यकारी शक्तियाँ
- राज्य में सभी कार्यपालिका संबंधी कार्य राज्यपाल के नाम से होते हैं।
- वह राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख होने के नाते अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए राज्यपाल मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद से परामर्श एवं सहायता लेता है।
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा मुख्यमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करता है।
- अन्य नियुक्तियाँ – महाधिवक्ता कुलपति, लोकायुक्त राज्य लोकसेवा आयोग अध्यक्ष व सदस्य राज्य वित्त आयोग एवं राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष उच्च न्यायालय को छोड़कर न्यायाधीशों की नियुक्ति आदि।
- राज्य के विश्वविद्यालयों का पदेन कुलाधिपति होता है।
2. विधायी शक्तियाँ
- राज्यपाल राज्य विधान सभा का एक अभिन्न अंग है, सभी विधेयक पर इसकी स्वीकृति आवश्यक है। राज्यों में सदनों का अधिवेशन बुलाना सत्रावसान।
- राज्य की विधान सभा को अथवा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को सम्बोधित करना।
- मंत्रिपरिषद के परामर्श पर विधान सभा को भंग कर सकता है।
- विधानसभा में एक एंग्लो इंडियन सदस्य का मनोनयन (यदि पहले से कोई निर्वाचित न हो तो)
- जिन राज्यों में विधान परिषद है वहाँ का राज्यपाल विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या के 1/6 सदस्यों को मनोनीत करता है।
भारत के राज्यों में किसी भी विधेयक को कानून बनने के लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है। इस संबंध में राज्यपाल के पास निम्न विकल्प हैं कि वह विधेयक को –
- (क) स्वीकृति प्रदान करे ऐसा होने पर विधेयक कानून बन जाता
- (ख) पुनर्विचार के लिए विधान सभा को वापस भेजे यदि सदन इस विधेयक को संशोधित करके या मूल रूप से पारित कर राज्यपाल के पास भेज दे तो वह स्वीकृति देने से मना नहीं कर सकता।
- (ग) राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है।
- (घ) विधेयक को स्वीकृति न देकर अपने पास रखना इस स्थिति में विधेयक कानून नहीं बन पाता।
3. अध्यादेश जारी करने की शक्तियां
अनु 213 के अनुसार यदि राज्य विधायिका का अधिवेशन न चल रहा हो, तो राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है किंतु इस प्रकार के अध्यादेश को विधान मण्डल की अगली सभा प्रारम्भ होने के 6 सप्ताह के अंदर स्वीकृति मिलना आवश्यक है अन्यथा अध्यादेश प्रभावी नहीं रहता।
4. वित्तीय शक्तियां
राज्यपाल की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी धन विधेयक एवं कुछ वित्त विधेयक राज्य विधान सभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। राज्य का वार्षिक बजट तथा अनुपूरक बजट राज्यपाल के नाम से ही विधान सभा में प्रस्तुत होता है। राज्य की आकस्मिक निधि पर राज्यपाल का नियंत्रण होता है।
5. क्षमादान की शक्ति
अनु. 161 के अनुसार राज्यपाल को उस विषय संबंधी जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए, किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा उसका प्रविलंबन विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन परिहार या लघुकरण की शक्ति प्राप्त है। किन्तु राज्यपाल को ऐसे किसी मामले में क्षमादान की शक्ति नहीं है जिसमें मृत्युदंड दिया गया हो। राज्यपाल को सेना न्यायालय के दण्ड के संबंध में भी क्षमादान का अधिकार नहीं है।
6. विशेष विवेकाधीन शक्ति
पंरपरा के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली पाक्षिक रिपोर्ट के सम्बन्ध में निर्णय ले सकता है कुछ राज्यों के राज्यपालों को विशेष उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना होता है विशेष उत्तरदायित्व का अर्थ है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद से सलाह तो ले किंतु इसे मानने हेतु वह बाध्य ना हो और ना ही उसे सलाह लेने की जरूरत पड़ती हो। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में राज्यपाल मंत्रिपरिषद के परामर्श के बिना भी कार्य करता है। इन शक्तियों को स्वविवेक की शक्तिया भी कहते हैं, जैसे –
- राज्यपाल के विचार में यदि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो चुका हो तो वह उसकी सूचना राष्ट्रपति को देकर राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकता है।
- राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है।
- किसी दल या गठबंधन को बहुमत न मिलने पर मुख्यमंत्री की नियुक्ति में स्वविवेक का प्रयोग।
राज्यपाल सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
- राज्यपाल का कार्यकाल कितना होता है 5 वर्ष
- राज्य सरकार को भंग कौन कर सकता है राज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति
- किसी राज्य की कार्यपालिका की शक्ति किसमें निहित होती है – राज्यपाल में
- राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है – राष्ट्रपति
- किस व्यक्ति को हटाने का प्रावधान संविधान में नहीं है – राज्यपाल को
- राज्यपाल का वेतन-भत्ता किस कोष से आता है – राज्य की संचित निधि द्वारा
- राज्य सरकार का संवैधानिक प्रमुख कौन होता है – राज्यपाल
- राज्यपाल अपना त्यागपत्र किसे देता है – राष्ट्रपति को
- राष्ट्रपति शासन में राज्य का संचालन कौन करता है – राज्यपाल
- कौन व्यक्ति राष्ट्रपति की इच्छानुसार अपने पद पर बना रहता है – राज्यपाल
- राज्यपाल पद हेतु न्यूनतम आयु कितनी होती है – 35 वर्ष
- राज्यपाल विधानसभा में कितने आंग्ल-भारतीयों की नियुक्ति कर सकता है – एक
- भारत की पहली महिला राज्यपाल कौन थी – सरोजनी नायडू
- राज्यपाल सोने के पिंजरे में निवास करने वाली चिड़िया के समान है ये शब्द किसके हैं – सरोजनी नायडू
- किसकी अनुमति के बिना राज्य की विधानसभा में कोई धन विधेयक पास नहीं होता है – राज्यपाल
- राज्यपाल द्वारा जारी किया गया अध्यादेश किसके द्वारा मंजूर किया जाता है – विधानमंडल द्वारा
- राज्य सरकार को कौन भंग कर सकता है – राज्यपाल
- राज्यपाल की मुख्य भूमिका क्या है – केंद्र व राय के मध्य की कड़ी
- किसी राज्य के राज्यपाल को शपथ ग्रहण कौन कराता है – उस राज्य का मुख्य न्यायाधीश
- किस राज्य में राष्ट्रपति शासन के अलावा राज्यपाल शासन भी लागू किया जा सकता था – जम्मू-कश्मीर
- भारत के किस राज्य में प्रथम महिला राज्यपाल बनीं – उत्तर प्रदेश
- जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुसार राज्य में अधिकतम कितने समय के लिए राज्यपाल शासन लगाया जा सकता था – 6 माह
- जम्मू-कश्मीर का ‘सदर-ए-रियासत’ पद नाम बदलकर कब राज्यपाल कर दिया गया था – 1965 में
- राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति कौन करता है – राज्यपाल।