ज्योतिर्लिंग कंहा कंहा है? 12 ज्योतिर्लिंग कौन कौन से है देखे पूरी जानकारी

12 ज्योतिर्लिंग कंहा कंहा है? और कैसे बना देखे पूरी जानकारी

पुराणों में कहा गया है कि जब तक महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन नहीं कर लेते तब तक आपका आध्यात्मिक जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। हिंदू मान्यता के अनुसार ज्योतिर्लिंग कोई सामान्य शिवलिंग नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि 12 जगहों पर भोलेनाथ ने खुद दर्शन दिए थे, तब जाकर वहां ये ज्योतिर्लिंग उत्पन्न हुए। इसलिए ये जानना भी जरूरी है कि वो 12 ज्योतिर्लिंग कंहा कंहा है? तो आइए देखते है कि वो 12 ज्योतिर्लिंग कंहा कंहा है?

ज्योतिर्लिंग किसे कहते है?

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

ज्योतिर्लिंग वे स्थान कहलाते हैं जहाँ पर भगवान शिव स्वयम प्रकट हुए थे एवं ज्योति रूप में स्थापित हैं। ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक प्रकाश’ शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया । इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे ।

हजारों पिंडों में से प्रमुख 12 पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया। लेकिन कुछ ऐसे भी ज्योतिर्लिंग हैं जिनका निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया है। शिव पुराण और नंदी उपपुराण में, शिव ने कहा , “मैं हमेशा हर जगह मौजूद हूं लेकिन विशेष रूप से 12 रूपों और स्थानों में ज्योतिर्लिंग के रूप में”। इन्हीं 12 पवित्र स्थानों में से एक है। आगे हम विस्तार से जानेंगे कि ज्योर्तिलिंग कंहा  कंहा है और कौन कौन से है।

भारत के प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग कंहा कंहा है? जंहा भगवान भोलेनाथ साक्षात प्रकट हुए थे। देखे पूरी लिस्ट

12 ज्योतिर्लिंगों की पूरी लिस्ट
क्र. ज्योतिर्लिंग स्थान राज्य
1 सोमनाथ प्रभास पाटन, सौराष्ट्र गुजरात
2 मल्लिकार्जुन कुर्नूल आंध्रप्रदेश
3 महाकालेश्वर उज्जैन मध्यप्रदेश
4 ओंकारेश्वर ओंकारेश्वर मध्यप्रदेश
5 केदारनाथ केदारनाथ उत्तराखंड
6 भीमाशंकर भीमाशंकर महाराष्ट्र
7 काशीविश्वनाथ वाराणसी उत्तरप्रदेश
8 त्रयंबकेश्वर त्रयम्बकेश्वर, नासिक के पास महाराष्ट्र
9 वैद्यनाथ देवघर झारखंड
10 नागेश्वर द्वारका गुजरात
11 रामेश्वर रामेश्वरम तमिलनाडु
12 घृष्णेश्वर औरंगाबाद महाराष्ट्र

12 ज्योतिर्लिंग कंहा कंहा है? देखे पूरी जानकारी

1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग – गुजरात

प्राचीन भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों पर आधारित शोध से पता चलता है कि पहला ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के बारह आदि ज्योतिर्लिंगों में प्रथम हैं। भारत के  पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित यह मंदिर अनादि काल से लाखों हिंदुओं के लिए प्रेरणा का एक बारहमासी स्रोत है। यह मंदिर भारत के पवित्र मंदिरों में से एक है जो भगवान शिव की पूजा स्थली के लिए प्रसिद्ध है । इस जगह की आध्यात्मिक गौरव के कारण , दुनिया भर के दर्शनार्थी और आगंतुक यहां आते हैं।

मुस्लिम और पुर्तगाली आक्रमणकारियों द्वारा लंबे समय तक हिंदू इतिहास के दौरान इस मंदिर को कई बार नष्ट कर दिया गया था। लेकिन तमाम विनाशकारी हरकतों के बावजूद, यह स्थान अभी भी गुजरात के सबसे लोकप्रिय पर्यटन तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर को मूल रूप से चालुक्य शैली की वास्तुकला में बनाया गया था और साल 1951 में पूरा किया गया था। यह मंदिर तीन प्रमुख भागों में विभाजित है । इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है । इसके शिखर पर स्थित कलश का भार लगभग दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था ।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत , श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से बताई गई है । चंद्रमा का एक नाम सोम भी है , उन्होंने भगवान् शिव को ही अपना नाथ – स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी । अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंदपुराणम , श्रीमद्भागवत गीता , शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है । वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।

 

ज्योतिर्लिंग कंहा कंहा है 12 ज्योतिर्लिंग कौन कौन से है देखे पूरी जानकारी12

सोमनाथ मंदिर के प्रमुख उत्सव

  • श्रावण मास शिवरात्रि
  • गोलोकधाम उत्सव
  • कार्तिक पूर्णिमा मेला
  • सोमनाथ स्थापना दिवस

 

सोमनाथ मंदिर कैसे बना? सोमनाथ ज्योतिर्लिंग बनने की कथा।

प्राचीन भारतीय परंपराएं अपने ससुर दक्ष प्रजापति के श्राप से चंद्र देव की रिहाई के साथ सोमनाथ के घनिष्ठ संबंध को बनाए रखती हैं। चंद्रमा का विवाह दक्ष की सत्ताईस पुत्रियों से हुआ था। हालाँकि, उन्होंने रोहिणी का पक्ष लिया और अन्य रानियों की उपेक्षा की । पीड़ित दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया और चंद्रमा ने प्रकाश की शक्ति खो दी।

जगतपिता ब्रह्मा की सलाह से , चंद्रमा प्रभास तीर्थ पर पहुंचे और भगवान शिव की पूजा की। चंद्रमा की महान तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें अंधेरे के अभिशाप से मुक्त किया। पौराणिक परंपराओं का कहना है कि चंद्रमा ने एक स्वर्ण मंदिर बनाया था, उसके बाद रावण द्वारा एक चांदी का मंदिर बनाया गया था, माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने चंदन के साथ सोमनाथ मंदिर का निर्माण किया था।

सोमनाथ मंदिर से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग जाने से पहले इन बातों पर जरूर ध्यान दे। जब भी आप सोमनाथ मंदिर जाए तो इन बातों का आपको जानकारी नही होने से कुछ परेशानी हो सकता है इसलिए नीचे दिए गए बातों पर जरूर ध्यान दे..

  • मंदिर दर्शन का समय सुबह 7:30 बजे से 11:30 बजे तक और दोपहर 12:30 बजे से शाम 06:30 बजे तक मंदिर बंद होने का समय 08:00 रात में है।
  • मंदिर में प्रवेश करने से पहले आपको अपने जूते उतारने होंगे। क्लोक रूम के पास शू हाउस उपलब्ध है और यह सेवा नि : शुल्क है।
  • सभी इलेक्ट्रॉनिक / इलेक्ट्रिक उपकरण , गैजेट सख्त वर्जित हैं ( जैसे मोबाइल , कैमरा , लैपटॉप , टैबलेट , कैलकुलेटर , आदि ) । इन सभी को क्लोक रूम में उपलब्ध लॉकर में रखा जा सकता है।
  • मिनी स्कर्ट और अपमानजनक पोशाक की अनुमति नहीं है इसलिए पहनावे पर विशेष ध्यान देंवे।
  • मंदिर के आसपास धूम्रपान की अनुमति नहीं है।
  • फोटोग्राफी सख्त वर्जित है।
  • शारीरिक रूप से विकलांग / वरिष्ठ नागरिकों के लिए मंदिर के मुख्य द्वार पर व्हील चेयर / गोल्फ कार्ट उपलब्ध हैं । और मंदिर परिसर के अंदर लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध है ।
  • तीर्थ दर्शन बस सुविधा मामूली शुल्क पर उपलब्ध है जो तीर्थयात्रियों को आस-पास के मंदिरों में ले जाती है । मंदिर के मुख्य द्वार से बस निकलती है और इसका समय सुबह 08:30 बजे और दोपहर 03:30 बजे है।
  • हवन यज्ञ करने के लिए यज्ञ शाला उपलब्ध है। यज्ञ शाला की बुकिंग के लिए श्री सोमनाथ ट्रस्ट के प्रबंधन से संपर्क कर सकते है।

2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग – आंध्रप्रदेश

दक्षिण का कैलाश कहे जाने वाला आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर नल्ला-मल्ला नामक घने जंगलों के बीच स्थित श्री मल्लिकार्जुन 12 ज्योतिर्लिंग में से दूसरा ज्योतिर्लिंग है। अनेक धर्मग्रन्थों में इस स्थान की महिमा बतायी गई है। महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इस मन्दिर का भलीभाँति सर्वेक्षण करने के बाद पुरातत्त्ववेत्ताओं ने ऐसा अनुमान किया है कि इसका निर्माणकार्य लगभग दो हज़ार वर्ष प्राचीन है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कैसे बना ? मल्लिकार्जुन मंदिर बनने के पीछे की कथा।

शिव पुराण की कथा के मुताबिक जब भगवान गणेश जी और कार्तिकेय पहले विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे। तो भगवान शिव ने कहा जो पहले पृथ्वी का चक्कर लगाएगा, उसी का विवाह पहले होगा। गणपति ने अपनी सुझ – बुझ के साथ अपने माता-पिता के ही चक्कर लगा लिए , लेकिन जब कार्तिकेय पूरी पृथ्वी के चक्कर लगाने के बाद लौटा तो श्री गणेश जी का विवाह और उन्हें पुत्र लाभ का समाचार सुनकर कार्तिकेय नाराज़ होकर क्रौंच पर्वत पर चले लगे।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को समझा-बुझाकर बुलाने हेतु देवर्षि नारद को क्रौंचपर्वत पर भेजा, किन्तु वे वापस नहीं आये, तो माता पार्वती पुत्र स्नेह में क्रौंच पर्वत पर पहुँच गईं । जब कार्तिकेय को क्रौंच पर्वत पर अपने माता – पिता के आगमन की सूचना मिल गई तो वे वहाँ से तीन योजन दूर चले गए। तब भगवान शिव उस क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये तभी से वे ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए। ‘मल्लिका’ माता पार्वती का नाम है, जबकि ‘अर्जुन’ भगवान शंकर को कहा जाता है । इस प्रकार सम्मिलित रूप से ‘मल्लिकार्जुन’ नाम का ज्योतिर्लिंग संसार में प्रसिद्ध हुआ।

दूसरी कथा के अनुसार

एक बार जब कौंच पर्वत के समीप चन्द्रगुप्त राजा राजकन्या एक संकट में उलझ गई थी । उस विपत्ति से बचने के लिए वह भागकर उसी पर्वत में पहुंच गई । वह कन्या ग्वालों के साथ रहती थी। उस कन्या के पास एक काली गाय थी, जिसकी सेवा वह स्वयं करती थी । वह गाय छिपकर प्रतिदिन एक जगह अपना दूध निकाल देती थी। इस बात का पता लगाने जब वह कन्या गाय के समीप पहुँची, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा , क्योंकि वहाँ उसे एक शिवलिंग था। आगे चलकर उस राजकुमारी ने उस शिवलिंग के ऊपर एक सुन्दर सा मन्दिर बनवा दिया । वही प्राचीन शिवलिंग आज ‘ मल्लिकार्जुन ‘ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध है।

3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – मध्यप्रदेश

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है। शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ उज्जैन शहर अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है । उज्जैन को भगवान महाकाल की नगरी कहते हैं । शिव पुराण के अनुसार उज्जैन में बाबा महाकाल का मंदिर काफी प्राचीन है । इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पालन करता नंद जी की 8 पीढ़ी पूर्व हुई थी ।

महाकाल मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर से कर्क रेखा गुजरी है। इसी वजह से इसे धरती का नाभि स्थल भी माना जाता है। उज्जैन भारतीय समय की गणना के लिए केंद्रीय बिंदु हुआ करता था और महाकाल को उज्जैन का विशिष्ट पीठासीन देवता माना जाता था। महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण दक्षिणामूर्ति मानी जाती है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर में पाया जाता है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कुछ खास जानकारी

महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है । गर्भगृह के पश्चिम , उत्तर और पूर्व में गणेश , पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं । दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है । तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है । महाशिवरात्रि के दिन , मंदिर के पास विशाल मेला लगता है , और रात में पूजा होती है।

महाकाल का भस्म से आरती क्यों किया जाता है?

भगवान शिव जितने सरल हैं उतने ही रहस्यमयी भी हैं । उनका रहन – सहन , खान – पान , पहनावा वेश – भूषा अन्य देवताओं से एकदम अलग है। यहां शिव जी के अघोरी रुप को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। जिस तरह साधू और संतों के शरीर में भस्म लिपटी रहती है उसी तरह यहां पर भगवान शिव के शिवलिंग पर चिता की ताजी भस्म से आरती की जाती है और इसी से उनका श्रृंगार भी होता है। यह आरती बेहद अलग ढंग से की जाती है । इस आरती को प्रात:काल के वक्त 4 बजे किया जाता है । यह आरती चिता की ताजी राख से होती है । हालाकि कुछ कारणों से अब इस आरती को चिता की राख नहीं किया जा रहा हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग बनने के पीछे धार्मिक कथा, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे बना?

धार्मिक कथाओं के अनुसार अवंतिका अर्थात उज्जैन शिव जी को बहुत पसंद है। एकबार जब अवंतिका नगरी में दूषण नाम का राक्षस ने अवंतिका नगरी में आतंक मचा रखा था । वह राक्षस उज्जैन के सभी वासियों को परेशान करने लगा था। उस राक्षस के आतंक से बचने के लिए एक ब्राह्मण ने भगवान शिव की अर्चना की। ब्राह्मण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव धरती चीर कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और उस राक्षस का वध करके उज्जैन की रक्षा की और भगवान शिव वही महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।

4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – मध्यप्रदेश

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में चौथा श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से 77 किमी की दूरी पर है। जो नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित है। कहा जाता हैं कि भगवान शिव प्रतिदिन तीनो लोकों में भ्रमण के पश्चात यहाँ आकर विश्राम करते हैं। इसलिए यहाँ प्रतिदिन भगवान शिव की विशेष शयन व्यवस्था एवं आरती की जाती है। तथा इसके साथ ही शयन दर्शन होते हैं।

नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले लेकिन जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। इसलिए एक बार ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग की दर्शन अवश्य करना चाहिए।

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी

हर सोमवार को भगवान ओंकारेश्वर की तीन मुखों वाली मूर्ति एक सुन्दर पालकी में विराजित कर डोल नगाड़ों के साथ पुजारियों एवं भक्तों द्वारा जुलुस निकाला जाता है, जिसे डोला या पालकी कहते है। इस दौरान सर्वप्रथम नटी तट पर जाते एवं पूजन अर्चन किया जाता है। तत्पश्चात नगर के विभिन्न भागों में भ्रमण किया जाता है। यह जुलुस सोमवार सवारी के नाम जाना जाता है। पवित्र श्रावण मास में में यह बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

ओम्कारेश्वर में कुल 68 तीर्थ है। यहाँ 33 कोटि देवता विराजमान है। दिव्य रूप में यहाँ पर 108 प्रभावशाली शिवलिंग है। 84 योजन का विस्तार करने वाली माँ नर्मदा का विराट स्वरुप है। मंदिर में एक विशाल सभा मंडप है जो की लगभग 14 फुट ऊँचा है एवं 60 विशालकाय खम्बों पर आधारित है। मंदिर कुल मिला कर 4 मजिलों वाला है एवं सभी पर अलग अलग देवता स्थापित हैं।

ओंकारेश्वर नगर ओंकारेश्वर को ओमकार जी भी कहा जाता है। ओमकार शब्द कि उत्पत्ति गाम में हुई है . जिसका उच्चारण हर प्रार्थना के पहले किया जाता है . ओंकारेश्वर नगर तीन पुरियों में विभक्त है जिसमे दक्षिणी तट पर भगवान ब्रम्हा का एक मंदिर है जिसे ब्रह्मपुरी कहते है दूसरा विष्णुपुरी जंहा पर भगवान विष्णु का मंदिर है और तीसरा शिवपुरी यहाँ भगवान ओंकारेश्वर का मन्दिर है।

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े कथा, ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे बना ?

पुराणों के अनुसार विंध्याचल पर्वत ने भगवान शिव की पार्थिव लिंग रूप में पूजन व तपस्या की थी एवं भगवान शिव प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं प्रणव लिंग के रूप में अवतरित हुए। यह भी कहा जाता है की देवताओं की प्रार्थना के पश्चात शिवलिंग दो भागों में विभक्त हो गया एवं एक भाग ओम्कारेश्वर एवं दूसरा भाग ममलेश्वर कहा गया और ऐसा भी कहा जाता है की ज्योति लिंग ओम्कारेश्वर में एवं पार्थिव लिंग अमरेश्वर/ममलेश्वर में स्थित है। अन्य कथानुसार इक्ष्वाका दश के राजा मान्धाता ने यहाँ कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया एवं यहाँ प्रकट हुए, तभी से भगवान ओंकारेश्वर के रूप में विराजमान हैं।

5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग – उत्तराखंड

उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ का मंदिर 11750 फुट की ऊंचाई पर हिमालय पर्वत की गोद में स्थित एक भव्य और विशाल मंदिर है। इतनी ऊंचाई पर प्राचीन काल में यान्त्रिक साधनों के अभाव में ऐसे दुर्गम स्थल पर उन विशाल पत्थरों को लाकर कैसे स्थापित किया गया होगा ? इसकी कल्पना आज भी नहीं की जा सकती है। इसकी मान्यता सभी ज्योतिर्लिंगों में सबसे ज्यादा है। यहां भगवान शिवलिंग की पूजा विग्रह रूप में की जाती है जो बैल की पीठ जैसे त्रिकोणाकार रूप में है। केदारनाथ मन्दिर की ऊँचाई 80 फुट है।

यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। केदारनाथ का कपाट हर साल अक्टूबर-नवंबर में सर्दियों के समय में बंद कर दिए जाते हैं, जो अगले साल फिर अप्रैल-मई में भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का रहस्य पांडवों से जुड़ा हुआ है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव के वंश ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया। यह भव्य मन्दिर पाण्डवों की शिव भक्ति , उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा उनके बाहुबल का जीता जागता प्रमाण है।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

मन्दिर की पूजा प्रातःकाल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है । तत्पश्चात धूप – दीप जलाकर आरती उतारी जाती है । इस समय यात्री गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं।केदारनाथ मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है ।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की कथा, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का निर्माण कैसे हुआ?

पंचकेदार की कथा के अनुसार, पांडवों के महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद चाहिए थे। भगवान शिव के दर्शन के लिए पांडव काशी की तरफ गए। लेकिन वंहा भोलेनाथ जी उन्हें नहीं मिले। फिर पांडव उन्हें ढूंढते हुए हिमालय पहुंच गए। लेकिन भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। ऐसे में वो अंतध्यान होकर केदार में बस गए । लेकिन पांडवों ने भी शंकर जी का पीछा केदार तक किया।

पांडवों के पहुंचने के बाद भगवान शंकर ने बैल का रूप ले लिया और बाकी पशुओं के साथ शामिल हो गए। इस पर पांडवों को कुछ शक हुआ। इसलिए भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया। फिर अपने पैरों को दो पहाड़ों के बीच में फैला लिया। सभी गाय-बैल उनके नीचे से निकल गए लेकिन भगवान शिव जी बैल के रूप में उनके नीचे से निकलने को तैयार नहीं थे।

फिर भी पूरी ताकत के साथ बैल पर झपटे लेकिन बैल यानी भोलेनाथ भूमि में अंतध्यान होने लगे । फिर भीम ने बैल की पीठ का त्रिकोण हिस्सा पकड़ लिया । इससे भगवान शंकर बेहद प्रसन्न हुए क्योंकि पांडवों में भक्ती और दृढ़ संकल्प साफ नजर आ रहा था । इसके बाद शिवजी ने पांडवों को दर्शन देकर पाप से मुक्त किया । तब से शंकर जी बैल की पीठ की आकृति – पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है , पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है ।

6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग – महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर दूरी पर सह्याद्रि पर्वत पर स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंग में खासी महत्वपूर्ण है। भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग की स्थापना कुंभकर्ण के पुत्र भीम की वजह से हुई है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को भगवान के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा है, जिसके कारण इस मंदिर को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। यही से भीमा नदी निकलती है जो कृष्णा नदी में जाकर मिल जाती है। पुराणों में भी इसका वर्णन भी मिलता है।

भीमशंकर मंदिर का निर्माण कई प्रकार के पत्थरों से किया गया है । यह मंदिर नागर शैली में बना हुआ है। यंही पर माता पार्वती का मंदिर भी है। जिसे कमलजा मंदिर कहा जाता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर देवी ने राक्षस त्रिपुरासुर से युद्ध किया था। युद्ध के बाद ब्रह्माजी ने देवी पार्वती की कमल के फूलों से पूजा की थी। मंदिर के पास ही कई कुंड भी हैं। यहां मोक्ष कुंड, सर्वतीर्थ कुंड , ज्ञान कुंड और कुषारण्य कुंड नाम के कुंड हैं।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के स्थापित होने की कथा, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग कैसे बना?

शिवपुराण में कहा गया है कि त्रेता युग में रावण का भाई कुंभकर्ण कर्कटी नाम की एक महिला पर मोहित हो गया और उससे विवाह कर लिया। विवाह के बाद कुंभकर्ण लंका लौट आया, लेकिन कर्कटी अपने क्षेत्र में ही रुक गई थी। कुछ समय बाद कर्कटी ने एक पुत्र को जन्म दिया। इसका नाम भीम रखा गया। जब भगवान श्रीराम ने कुंभकर्ण का वध कर दिया तो कर्कटी ने अपने पुत्र को देवताओं के छल से दूर रखने का निर्णय किया और वहां से दूर चली गई। अपनी पिता की मृत्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी। बाद में अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह भगवान राम का वध करने के लिए व्याकुल हो गया ।

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया। वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया। उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी – देवता भी भयभीत रहने लगे। धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी । युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारंभ कर दिया। उसने सभी तरह के पूजा पाठ बंद करवा दिए। इससे परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए।

भगवान शिव ने सभी को कहा कि वे इसका उपाय निकालेंगे । भगवान शिव ने राक्षस भीम से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। लड़ाई में भगवान शिव ने दुष्ट राक्षस को राख कर दिया और इस तरह अत्याचार की कहानी का अंत हुआ। भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में विराजित हो। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में आज भी यहां विराजित हैं। इस स्थान पर भीम से युद्ध करने की वजह से इस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमाशंकर पड़ गया।

7. काशीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – उत्तरप्रदेश

मंदिरों का शहर कहे जाने वाले भारत की धार्मिक राजधानी, भगवान शिव की नगरी, उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। काशीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को विश्वनाथ या विश्वेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड के शासक। वाराणसी शहर को काशी भी कहा जाता है। इसलिए मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है।

यह भी कहा जाता है कि काशी नगरी देवादिदेव महादेव की त्रिशूल पर बसी है। धर्मग्रन्थों और पुराणों में जिसे मोक्ष की नगरी कहा गया है। मान्यता है कि अगर कोई भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाता है तो उसे जन्म – जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। बाबा का आशीर्वाद अपने भक्तों के लिए मोक्ष का द्वार खोल देता है।

काशीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए , जिन्होने सारे संसार की रचना की। यहिपर सन्त एकनाथजीने वारकरी सम्प्रदायका महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पुरा किया। मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है । महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।

काशीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास

भगवान शिव का यह मंदिर हिंदूओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है। जिसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था।

ऐसी मान्यता है कि एक भक्त को भगवान शिव ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि गंगा स्नान के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे और जब वो उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर उन्हें स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी और तभी से भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ विराजमान हैं।

नए विश्वनाथ मंदिर की स्थापना की कहानी जुड़ी है पंडित मदन मोहल मालवीय जी से, कहते हैं एक बार मालवीय जी ने बाबा विश्वनाथ की उपासना की, तभी शाम के समय उन्हें एक विशालकाय मूर्ति के दर्शन हुए, जिसने उन्हें बाबा विश्वनाथ की स्थापना का आदेश दिया। मालवीय जी ने उस आदेश को भोले बाबा की आज्ञा समझकर मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। लेकिन बीमारी के चलते वो इसे पूरा न करा सके तब मालवीय जी की मंशा जानकर उद्योगपति युगल किशोर बिरला ने इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया।

8. त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग – महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के नासिक शहर से 28 किलोमीटर दूर गौतमी (गोदावरी) नदी के तट पर स्थित काले पत्थर से बना त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग देखने मे बेहद सुंदर नज़र आते है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे छोटे लिंग है, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव देवों का प्रतीक माना जाता हैं, और यही यंहा की खास विशेषता है। कि इस ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं।

इस मंदिर में पहुँचने से पहले यात्री कुशावर्त कुंड में नहाते हैं। यहां सोमवार के दिन भगवान त्र्यंबकेश्वर की पालकी निकाली जाती है। यहां गाय को हरा चारा खिलाने का बेहद चलन है। मंदिर के आसपास की खुबसूरती देखनेे लायक है। यही पास में ही ब्रह्म गिरि नामक पर्वत है जंहा से गोदावरी नदी निकलती है। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद ‘रामकुण्ड’ और ‘लक्ष्मनकुण्ड’ मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।

त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव (1740-1760) ने एक पुराने मंदिर के स्थान पर करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ । कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे , जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी ।

त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े कथा, त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे बना?

प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी । अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव से मां गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। तभी से दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ। गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के विनती के कारण भगवान शिव ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया । तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक अर्थात तीन नेत्रों वाले कहा जाने लगा ।

कहा जाता हैं कि ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार – बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया । उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। शिवरात्रि और सावन सोमवार के भक्तो का भीड़ लगा रहता है।

9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग – झाड़खंड

देवताओं का घर कहे जाने वाला देवघर झाड़खंड के सबसे पवित्र तीर्थ स्थान है। जंहा वैधनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ धाम या बाबाधाम भी कहते हैं। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । इस कारण इस लिंग को ” कामना लिंग ” भी कहा जाता हैं। यहां पर सावन के महीने में विशेष पूजा होती है। यहां पंचशूलच अर्थात पांच शुलो वाला त्रिशूल को स्पर्श करने को बहुत ही शुभ माना जाता है।

बाबा धाम की एक खासियत यह है कि यहां मंदिर के शीर्ष पट त्रिशुल नहीं बल्कि पंचशूल लगा हुआ है । इस पंचशूल को सुरक्षा कवज की संज्ञा दी जाती है । ऐसी मान्यता है कि यहां आने से भक्तों के सारे कष्ट दूट होते हैं । इस पंचशूल को शिवरात्रि के दिन उतारा जाता है और उसकी विशेष पूजा होती है। सावन महीने में यह पूरा क्षेत्र शिवभक्तों से भर जाता है।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़े कथा, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग कैसे बना?

जब एक बार रावण ने शिवजी की प्रसन्न करने के लिये हिमालय पर घोर तप किया और शिवलिंग पर एक-एक करके अपने नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर भी काटने को ही था कि भगवान शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये। और उससे वरदान माँगने को कहा । लंकापति रावण ने लंका में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी । शिवजी ने अनुमति तो दे दी , लेकिन उसे चेतावनी भी दीया कि यदि मार्ग में इसे पृथ्वी पर कंही रखोगे तो वहीं स्थापित हो जाएगा।

फिर रावण शिवलिंग लेकर चलने लगा लेकिन रास्ते में उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। तो उसने रास्ते में एक बैजनाथ नाम के व्यक्ति को शिवलिंग कुछ देर अपने हाथ पर रखने के लिए दिया। फिर रावण निवृत्त होने के लिए चला गया। लेकिन शिवलिंग भारी होने के कारण बैजनाथ ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया। भूमि पर रखते ही शिवलिंग वहीं पर स्थापित हो गए। रावण ने बहुत कोशिश की लेकिन शिवलिंग को हिला भी नहीं सका। अंत में रावण निराश होकर शिवलिंग पर अपना अंगूठा गड़ाकर लंका के लिए प्रस्थान कर गया।

इस स्थान से रावण के जाने के बाद ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने कई देवताओं के साथ यहां पहुंचे और शिवलिंग की पूजा – अर्चना की। शिवजी का दर्शन होने के बाद देवताओं ने शिवलिंग की इसी स्थान पर स्थापना कर दीया। तब से वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग वंहा स्थापित है।

10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – गुजरात

नागों का ईश्वर कहे जाने वाला नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारिका पूरी से 17 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह मंदिर विष और विष से संबंधित रोगों से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है। रुद्र संहिता में इसे दारुकावने नागेशं कहा गया है। अगर किसी व्यक्ति को अभिषेक करवाना होता है तो केवल पुरुष को धोती पहन कर प्रवेश कर सकता है। मात्र दर्शन के लिये पुरुष व महिला भारतीय पोशाक में गर्भगृह मे%8

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