यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल भारत की विश्व धरोहर स्थल,

यूनेस्को की विरासत सूची में हमारे देश के कई ऐतिहासिक इमारत और पार्क शामिल हैं । दुनिया भर के 332 अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठनों के साथ यूनेस्को के संबंध हैं। भारत 1946 से यूनेस्को का सदस्य देश है। यूनेस्को मुख्यतः शिक्षा, प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक एवं मानव विज्ञान, संस्कृति एवं सूचना व संचार के जरिये अपनी गतिविधियां संचालित करता है और वैश्विक धरोहर की इमारतों और पार्कों के संरक्षण में भी सहयोग करता है। तो आइए देखते हैं। कि यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल भारत की विश्व धरोहर स्थल कौन कौन से हैं..

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जिसका उद्देश्य शिक्षा, कला, विज्ञान और संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से विश्व शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना है। इसकी मुख्यालय पेरिस में हैं। यूनेस्को के 193 सदस्य देश हैं और 11 सहयोगी सदस्य देश और दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं। इसके कुछ सदस्य स्वतंत्र देश भी नहीं हैं ।

यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल भारतीय धरोहर स्थल

यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल भारतीय धरोहर स्थल

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

1. ताजमहल – उत्तर प्रदेश, 1983

आगरा में यमुना नदी के दक्षिण तट पर एक सफेद संगमरमर का मकबरा है। इसे 1632 में मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा अपनी पसंदीदा पत्नी मुमताज महल की मकबरे के लिए शुरू किया गया था। ताजमहल को 1983 में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल के रूप में नामित किया गया था। भारत में मुस्लिम कला का गहना और दुनिया की विरासत की सार्वभौमिक प्रशंसनीय कृतियों में से एक। ताजमहल सालाना 7-8 मिलियन आगंतुकों को आकर्षित करता है।

2. आगरा का किला – उत्तर प्रदेश, 1983

आगरा किला भारत में आगरा शहर में एक ऐतिहासिक किला है। ताजमहल के बगीचों के पास 16 वीं शताब्दी का महत्वपूर्ण मुगल स्मारक है जिसे आगरा के लाल किले के रूप में जाना जाता है। लाल बलुआ पत्थर का यह शक्तिशाली किला, इसकी 2.5 किमी लंबी बाड़े की दीवारों के भीतर, मुगल शासकों का शाही शहर है। यह 1638 तक मुगल राजवंश के सम्राटों का मुख्य निवास था, जब राजधानी आगरा से दिल्ली चली गई थी। आगरा किला एक यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। जिसे 1983 में शामिल किया गया।

3. अजंता की गुफाएं – महाराष्ट्र, 1983

सह्याद्रि की पहाड़ियों पर स्थित 30 गुफाओं की खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा सन् 1819 में की गई थी। वे यहाँ शिकार करने आए थे, तभी उन्हें कतारबद्ध 29 गुफाओं की एक श्रृंखला नज़र आई और इस तरह ये गुफाएँ प्रसिद्ध हो गई। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएँ अत्यन्त ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्त्व की है। इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात् तक के बौद्ध धर्म का चित्रण किया गया है। अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। यूनेस्को द्वारा 1983 से विश्व विरासत स्थल घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्वीरें और शिल्पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्कृष्ट नमूने माने गए हैं।

4. एलोरा की गुफाएं – महाराष्ट्र 1983

एलोरा एक पुरातात्विक स्थल है, जो भारत में औरंगाबाद, महाराष्ट्र से 30 किमी. की दूरी पर स्थित है। इन्हें राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था। अपनी स्मारक गुफाओं के लिए प्रसिद्ध, एलोरा 1983 से युनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व धरोहर स्थल है।

5. कोणार्क का सूर्य मंदिर – ओडिशा 1984

कोणार्क सूर्य मन्दिर भारत में ओड़िशा राज्य में जगन्नाथ पुरी से 35 किमी. उत्तर – पूर्व में कोणार्क नामक शहर में प्रतिष्ठित है। यह भारतवर्ष के चुनिन्दा सूर्य मन्दिरों में से एक है। 1984 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। इस मन्दिर की भावनाओ को यंहा के पत्थरों पर किये गए उत्कृष्ट नकासी ही बता देता है। मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्वी कोने में सूर्य देव की पत्नी माया देवी को समर्पित एक मंदिर है। यहां नव ग्रहों वाला अर्थात् : सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, जूपिटर, शुक्र, शनि, राहू और केतू को समर्पित मंदिर भी है। पर्यटक मंदिर के समीपवर्ती समुद्र तट पर आराम कर सकते हैं।

6. महाबलिपुरम् का स्मारक समूह – तमिलनाडू, 1984

महाबलीपुरम, दक्षिण-पूर्व भारत की पल्लव सभ्यता का उत्कृष्ट साक्ष्य है यह मंदिर शिव पंथ के मुख्य केन्द्रों में एक है। इसके रथ, मण्डप, खुली हवा में विशाल आराम स्थल शिव संस्कृति के प्रमुख केन्द्रों में से एक है। महाबलीपुरम की मूर्तियों का प्रभाव , विशेष रूप से उनके प्रतिरूपण की कोमलता और सुनम्यता की बदौलत व्यापक है। पत्थरों को काटकर बनाए गए रथ, अर्जुन की तपस्या, गोवर्धनधारी और महिषासुरमर्दिनी की गुफाएं, और जल-शयन पेरूमल मंदिर, अधिकांश स्मारक नरसिंह वर्मन मामल्ला की अवधि की विशेषता है। 1984 में महाबलीपुरम के इस पूरे स्मारक समूहों को यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल किया गया।

7. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान – असोम, 1985

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का 430 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हाथी-घास घास के मैदानों, दलदली लैगून और घने जंगलों के साथ छिड़का हुआ है, जो 2200 से अधिक भारतीय एक-सींग वाले गैंडों का घर है, उनका लगभग 2/3 भाग। कुल विश्व जनसंख्या। मैरी कर्जन की सिफारिश पर 1908 में बनाया गया, यह पार्क पूर्वी हिमालयी जैव विविधता हॉटस्पॉट – गोलाघाट और नागांव जिले के किनारे पर स्थित है। वर्ष 1985 में, पार्क को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था।

8. मानस वन्य जीव अभयारण्य – असोम, 1985

9. केवला देव राष्ट्रीय उद्यान – राजस्थान, 1985

10. पुराने गोवा के चर्च व मठ – गोवा, 1986

पुराना गोवा भारत के गोवा राज्य के उत्तर गोवा ज़िले की तिस्वाड़ी (इल्हास) तालुका में मांडवी नदी के दक्षिणी तट पर स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह 16 वीं शताब्दी से 18 वीं शताब्दी तक पुर्तगाली भारत की राजधानी थी। 18 वीं शताब्दी में प्लेग के फैलने के कारण पुर्तगाली उपनिवेशी सरकार को राजधानी बदलनी पड़ी। वर्तमान में यह एक युनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

11. मुगल सिटी, फतेहपुर सिकरी – उत्तर प्रदेश, 1986

आगरा से 35 किलोमीटर दूर है फतेहपुर सीकरी। कभी यह मुगलिया सल्तनत की राजधानी हुआ करती थी। यह पहाड़ियों के बीच बसा सुंदर मुगलिया शहर है। फतेहपुर सीकरी मुगलिया सल्तनत के वैभव, ताकत और सांस्कृतिक शैलियों से प्रभावित हैं। पूरा परिसर लाल पत्थरों से बनाया गया है, फतेहपुर सीकरी का सीधा संबंध सम्राट अकबर से था, जिन्होंने भारतीय इतिहास में एक छाप छोड़ी। ताजमहल के करीब होने के कारण यह जगह लंबे समय तक उपेक्षित सरीखी भी रही। इसे 1986 में युनेस्को के विश्व विरासत में शामिल किया गया था।

12. हम्पी स्मारक समूह – कर्नाटक, 1986

हम्पी नगर, विजयनगर साम्राज्य की लुप्त सभ्यता का अनोखा प्रमाण है जो कृष्ण देव राय (1509-30) के शासनकाल में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा था। यह एक प्रकार की संरचना का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है जो दक्षिण भारत के साम्राज्यों को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दृश्य को दर्शाता है। शानदार स्मारकीय अवशेषों, आंशिक रूप से रिक्त और पुनः प्राप्त हम्पी का निर्माण कार्य, आज विश्व के बहुत अनूठे खंडहरों में से एक है। का निर्माण कार्य, आज विश्व के बहुत अनूठे खंडहरों में से एक है। 1986 से इसे यूनेस्को के विश्व विरासत में शामिल किया गया था।

13. खजुराहो मंदिर – मध्यप्रदेश, 1986

खजुराहो के मंदिर नागर शैली के मंदिरों का एक अद्भुत उदाहरण हैं क्योंकि मंदिरों में एक गर्भगृह, एक छोटा आंतरिक कक्ष (अंतराल), एक अनुप्रस्थ भाग (महामण्डप), अतिरिक्त सभागृह (अर्ध मंडप), एक मंडप या बीच का भाग और एक चल मार्ग, जो बड़ी खिड़कियों के साथ है। खजुराहो, अपने सुशोभनीय मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है, इन्हे चंदेला शासकों द्वारा 900 ईस्वी से 1130 ईस्वी के बीच बनाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर 20 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए थे और 12 वीं शताब्दी में यहाँ लगभग 85 मंदिर थे। समय के साथ खजुराहो में मंदिरों की संख्या घटकर आज केवल 20 हो गयी है। इसे यूनेस्को के विश्व विरासत में 1986 से शामिल किया गया हैं।

14. एलीफेंटा की गुफाएं – महाराष्ट्र, 1987

एलीफेंटा की गुफाएँ पश्चिमी भारत में एलिफेंटा द्वीप (जिसे घारपुरी के द्वीप के रूप में जाना जाता है) में स्थित हैं, जिसमें एक संकीर्ण घाटी से अलग दो पहाड़ी हैं। छोटा द्वीप कई प्राचीन पुरातात्विक अवशेषों से युक्त है, जो इसके समृद्ध सांस्कृतिक अतीत के एकमात्र प्रमाण हैं। ये पुरातात्विक अवशेष दूसरी शताब्दी के प्रारंभ के प्रमाण को प्रकट करते हैं। रॉक-कट एलिफेंटा गुफाओं का निर्माण 5 वीं से 6 वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में हुआ था। ओस ऐतिहासिक गुफा को 1987 में यूनेस्को ने अपने विश्व विरासत में शामिल किया।

15. पट्टदकल स्मारक समूह – कर्नाटक, 1987

पत्तदकल स्मारक परिसर भारत के कर्नाटक राज्य में एक पत्तदकल नामक कस्बे में स्थित है। यह अपने पुरातात्विक महत्व के कारण प्रसिद्ध है। चालुक्य वंश के राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहाँ कई मंदिर बनवाए। पत्तदकल को स्थापत्यकला का विश्वविद्यालय कहा जाता है। यहाँ कुल दस मंदिर हैं, जिनमें एक जैन धर्मशाला भी शामिल है। इन्हें घेरे हुए बहुत से चैत्य, पूजा स्थल एवं कई अपूर्ण आधारशिलाएं हैं। यहाँ चार मंदिर द्रविड़ शैली के हैं, चार नागर शैली के हैं एवं पापनाथ मंदिर मिश्रित शैली का है। पत्तदकल को 1987 में युनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था।

16. सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान – प. बंगाल, 1987

17. वृहदेश्वर मंदिर तंजावुर – तमिलनाडू, 1987

बृहदीश्वर मन्दिर या राजराजेश्वरम् तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है जो 11 वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे पेरुवुटैयार कोविल भी कहते हैं। यह मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट निर्मित है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने 1987 विश्व विरासत में शामिल किया है।

18. नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान – उत्तराखंड, 1988

19. सांची का बौद्ध स्मारक – मध्यप्रदेश, 1989

साँची भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन ज़िले में साँची नगर के पास एक पहाड़ी पर स्थित एक छोटा सा गांव है। यहाँ कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई. पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। यहाँ छोटे-बड़े अनेकों स्तूप हैं, जिनमें स्तूप संख्या 2 सबसे बड़ा है। चारों ओर की हरियाली अद्भुत है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी बने हैं। स्तूप संख्या 1 के पास कई लघु स्तूप भी हैं, उन्ही के समीप एक गुप्त कालीन पाषाण स्तंभ भी है। सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट अशोक महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था। बाद में इस सांची के में स्तूप को सम्राट अग्निमित्र शुंग जीर्णोद्धार करके और बड़ा और विशाल बना दिया। ये स्मारक 1989 से यूनेस्को के विश्व विरासत में शामिल है।

20. हुमायूँ का मकबरा – दिल्ली, 1993

हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला प्रेरित मकबरा स्मारक हैं। जो नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार 1562 में बना इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा था। 1993 में इस इमारत समूह को युनेस्को के द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया।

21. दार्जिलिंग हिमालयन रेल – पश्चिम बंगाल, 1999

दार्जिलिंग हिमालयी रेल, जिसे टॉय ट्रेन के नाम से भी जाना जाता है जो भारत के राज्य पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच चलने वाली एक छोटी लाइन की रेलवे प्रणाली है। इसका निर्माण 1879 और 1881 के बीच किया गया था और इसकी कुल लंबाई 78 किलोमीटर है। भारत का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन के बीच चलने वाली दैनिक पर्यटन गाड़ियों का परिचालन पुराने ब्रिटिश निर्मित बी श्रेणी के भाप इंजन, डीएचआर 778 द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इस रेलवे का मुख्यालय कुर्सियांग शहर में है। इस रेलवे को यूनेस्को के द्वारा नीलगिरि पर्वतीय रेल और कालका शिमला रेलवे के साथ भारत की पर्वतीय रेल के रूप में विश्व विरासत स्थल के रूप में शामिल किया गया है।

22. महाबोधी मंदिर, गया – बिहार, 2002

महाबोधि विहार या महाबोधि मन्दिर, बोध गया स्थित प्रसिद्ध बौद्ध विहार है। इस विहार में गौतम बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति पदमासन की मुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्थापित है जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस विहार के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। यूनेस्को के द्वारा 2002 से इसे विश्व धरोहर घोषित किया है।

23. भीमबेटका की गुफाएँ – मध्य प्रदेश, 2003

भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न
भीमबेटका भारत के राज्य मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदि- मानव द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है एवं इसी से इसका नाम भीमबेटका पड़ा
जुलाई 2003 में यूनेस्को के द्वारा इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया।

24. गंगई कोड़ा चोलपुरम् मन्दिर – तमिलनाडु, 2004

गंगैकोण्ड चोलपुरम्, तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले में स्थित एक स्थान है। प्राचीन काल में यह एक प्रख्यात नगर था। गंगैकोंडचोलपुरम नगर चोल राजाओं के शासन काल में बहुत उन्नत और समृद्ध था। गंगैकोंडचोलपुरम पर राजेन्द्र चोल ने 1025 ई. में मन्दिर बनवाया। मन्दिर का शिखर भूमि से 150 फुट ऊँचा है। मन्दिर की शैली तंजौर मन्दिर की शैली के ही समान है। अंतर मुख्यतः अधिक विस्तृत अलंकरण का है। इसका मण्डप कम ऊँचा है, किन्तु इसमें 150 स्तम्भ हैं। इस मन्दिर में मार्दव, सौन्दर्य और विलास अधिक है। 2004 से इसे यूनेस्को के द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया हैं।

25. एरावतेश्वर मन्दिर – तमिलनाडु, 2004

ऐरावतेश्वर मंदिर, द्रविड़ वास्तुकला का एक हिंदू मंदिर है जो दक्षिणी भारत के तमिलनाडु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है। 12 वीं सदी में राजराजा चोल द्वितीय द्वारा निर्मित यह मंदिर नयनमारों से जुड़ी किंवदंतियों के साथ-साथ शैववाद के भक्ति आंदोलन संतों के साथ-साथ हिंदू धर्म की वैष्णववाद और शक्तिवाद परंपराओं को भी श्रद्धापूर्वक प्रदर्शित करता है। पत्थर के मंदिर में एक रथ संरचना शामिल है, और इसमें प्रमुख वैदिक और पौराणिक देवता जैसे इंद्र, अग्नि, वरुण, वायु, ब्रह्मा, सूर्य, विष्णु, सप्तमत्रिक, दुर्गा, सरस्वती, श्री देवी (लक्ष्मी), गंगा, यमुना, सुब्रह्मण्य, गणेश शामिल हैं। 2004 से यूनेस्को के द्वारा इस पूरे मंदिर परिक्षेत्र को विश्व विरासत में शामिल किया गया है।

26. छत्रपति शिवाजी टर्मिनल – महाराष्ट्र, 2004

भारत के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, जिसे पहले विक्टोरिया टर्मिनस कहा जाता था, जो भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई का एक ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन है, ये भारत के मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। यह स्टेशन ताजमहल के बाद भारत का सर्वाधिक छायाचित्रित स्मारक है। इस स्टेशन की अभिकल्पना फ्रेडरिक विलियम स्टीवन्स, वास्तु सलाहकार 1887-1897, ने 16.14 लाख रुपयों की राशि पर की थी।

इस इमारत में विक्टोरियाई इतालवी गोथिक शैली एवं परंपरागत भारतीय स्थापत्यकला का संगम झलकता है। यह स्टेशन अपनी उन्नत संरचना व तकनीकी विशेषताओं के साथ, उन्नीसवीं शताब्दी के रेलवे स्थापत्यकला आश्चर्यों के उदाहरण के रूप में खड़ा है। 2 जुलाई 2004 को इस स्टेशन को युनेस्को की विश्व धरोहर समिति द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया ।

27. नीलगिरि माउंटेन रेलवे – तमिलनाडु, 2005

नीलगिरि पर्वतीय रेल भारत के राज्य तमिलनाडु में स्थित एक रेल प्रणाली है, जिसे 1908 में ब्रिटिश राज के दौरान बनाया गया था। शुरूआत में इसका संचालन मद्रास रेलवे द्वारा किया जाता था। इस रेलवे का परिचालन आज भी भाप इंजनों द्वारा किया जाता हैं। इस रेलवे लाइन पर चलने वाले 50 गाड़ियां 80 साल से अधिक समय के इंजनों का उपयोग करती हैं। लेकिन इस लाइन पर चलने वाले ट्रेन स्टीम लोकोमोटिव या टॉय ट्रेन है जो बच्चों से लेकर तक बड़ो तक सभी के बीच काफी लोकप्रिय है। जुलाई 2005 में यूनेस्को ने नीलगिरि पर्वतीय रेल को दार्जिलिंग हिमालयी रेल के विश्व धरोहर स्थल के एक विस्तार के रूप में मान्यता दी थी।

28. फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान – उत्तराखंड, 2005

हिमाच्छादित पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ यह क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, हिमालय में सबसे बेहतरीन वन्य क्षेत्रों में से एक है। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था, इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1938 में वैली ऑफ फ्लॉवर्स नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी। 2005 से यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया हैं।

29. दिल्ली का लाल किला – दिल्ली, 2007

राजधानी दिल्ली में स्थित भारतीय और मुगल वास्तुशैली से बने इस भव्य ऐतिहासिक कलाकृति का निर्माण पांचवे मुगल शासक शाहजहां के द्वारा 1638 ईसवी में करवाया था। यह शानदार किला दिल्ली के केन्द्र में यमुना नदी के तट पर स्थित है, जो कि में तीनों तरफ से यमुना नदीं से घिरा हुआ है, जिसके अद्भुत सौंदर्य और आर्कषण को देखते ही बनता है। किले को लाल किला, इसकी दीवारों के लाल-लाल रंग के कारण कहा जाता है। मुगल काल में बना यह ऐतिहासक स्मारक अपनी सुंदरता और भव्यता के कारण 2007 से विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल है और भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।

30. कालका शिमला रेलवे -हिमाचल प्रदेश, 2008

अपने रमणीक दृश्यों के लिए मशहूर कालका-शिमला रेलवे, उत्तर भारत में एक 2 फीट 6 इंच (762 मिमी.) छोटी लाइन (नैरो गेज) रेलवे है जो कालका से शिमला तक के पहाड़ी मार्ग से होकर गुजरती है। ब्रिटिश राज के दौरान इस रेलवे का निर्माण भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को शेष भारतीय रेल प्रणाली से जोड़ने के लिए 1898 और 1903 के बीच हर्बर्ट सेप्टिमस हैरिंगटन के निर्देशन में किया गया था। कालका-शिमला रेलमार्ग में 103 सुरंगें और 869 पुल बने हुए हैं । इस मार्ग पर 919 घुमाव आते हैं, जिनमें से सबसे तीखे मोड़ पर ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है। यूनेस्को के द्वारा 24 जुलाई 2008 को इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया।

31. सिमलीपाल अभ्यारण्य – ओडिशा, 2009

32. नोकरेक अभ्यारण्य – मेघालय, 2009

33. भितरकनिका उद्यान – ओडिशा, 2010

34. जयपुर का जंतर-मन्तर – राजस्थान, 2010

जयपुर का जन्तर मन्तर सवाई जयसिंह द्वारा 1724 से 1734 के बीच निर्मित एक खगोलीय वेधशाला है। इस वेधशाला में 14 प्रमुख यन्त्र हैं जो समय मापने, ग्रहण की भविष्यवाणी करने, किसी तारे की गति एवं स्थिति जानने, सौर मण्डल के ग्रहों के दिक्पात जानने आदि में सहायक हैं। इन यन्त्रों को देखने से पता चलता है कि भारत के लोगों को गणित एवं खगोलिकी के जटिल संकल्पनाओं का इतना गहन ज्ञान था।

यूनेस्को ने 1 अगस्त 2010 को जंतर-मंतर को विश्व धरोहर सूची में शामिल की थी, इस सम्मान की पीछे जो मुख्य कारण गिनाए गए थे, उनमें सबसे बड़ा कारण यह था कि इतने वर्ष गुजर जाने के बावजूद इस वेधशाला के सभी प्राचीन यन्त्र आज भी ठीक अवस्था में हैं, जिनके माध्यम से मौसम, स्थानीय समय, ग्रह नक्षत्रों और ग्रहण अदि खगोलीय परिघटनाओं की एकदम सटीक गणना आज भी की जा सकती है।

35. पश्चिम घाट, 2012

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत श्रृंखला को पश्चिमी घाट या सह्याद्रि कहते हैं। यह पर्वतीय श्रृंखला उत्तर से दक्षिण की तरफ 1600 किलोमीटर लम्बी है। विश्व में जैविकीय विवधता के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है और इस दृष्टि से विश्व में इसका 8 वां स्थान है। यह गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्त हो जाती है। इन पहाड़ियों का कुल क्षेत्र 160,000 वर्ग किलोमीटर है इसकी औसत उंचाई लगभग 1200 मीटर है। इस क्षेत्र में फूलों की पांच हजार से ज्यादा प्रजातियां, 139 स्तनपायी प्रजातियां, 508 चिड़ियों की प्रजातियां और 179 उभयचर प्रजातियां पाई जाती हैं।

पश्चिमी घाट में कम से कम 84 उभयचर प्रजातियां और 16 चिडियों की प्रजातियां और सात स्तनपायी और 1600 फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जो विश्व में और कहीं नहीं हैं। पश्चिमी घाट में सरकार द्वारा घोषित कई संरक्षित क्षेत्र हैं। इनमें दो जैव संरक्षित क्षेत्र और 13 राष्ट्रीय उद्यान हैं। पश्चिमी घाट में स्थित नीलागिरी बायोस्फियर रिजर्व का क्षेत्र 5500 वर्ग किलोमीटर है, जहां सदा हरे-भरे रहने वाले और मैदानी पेड़ों के वन मौजूद हैं। केरल का साइलेंट वैली राष्ट्रीय पार्क, पश्चिमी घाट का हिस्सा है। यह भारत का ऐसा अंतिम उष्णकटिबंधीय हरित वन है, जंहा अभी तक किसी मनुष्य ने कदम नही रखा हैं।

36. आमेर का किला – राजस्थान, 2013

आमेर का किला 967 ईस्वी से जयपुर में स्थित एक ऐतिहासिक किला है, आमेर नगरी और वहाँ के मंदिर तथा किले राजपूती कला का अद्वितीय उदाहरण है । यहाँ का प्रसिद्ध दुर्ग आज भी ऐतिहासिक फिल्मों के निर्माताओं को शूटिंग के लिए आमंत्रित करता है। यहाँ की दीवारों पर कलात्मक चित्र बनाए गए थे और कहते हैं कि उन महान कारीगरों की कला से मुगल बादशाह जहांगीर इतना नाराज़ हो गया कि उसने इन चित्रों पर प्लास्टर करवा दिया। ये चित्र धीरे-धीरे प्लास्टर उखड़ने से अब दिखाई देने लगे हैं आमेर में ही है चालीस खम्बों वाला वह शीश महल, जहाँ माचिस की तीली जलाने पर सारे महल में दीपावलियाँ आलोकित हो उठती है। 2013 में इसे यूनेस्को ने अपने विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया।

37. रणथंभोर किला – राजस्थान, 2013

रणथंभोर किला राजस्थान में रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच बना है। किले के तीनो और पहाड़ों में प्राकृतिक खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है। इस किले का निर्माण राजा सज्जन वीर सिंह नागिल ने करवाया था। यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति ने 21 जून 2013 को रणथंभोर को विश्व धरोहर घोषित किया गया।

38. कुंभलगढ़ किला – राजस्थान, 2013

कुम्भलगढ़ किला राजस्थान के राजसमन्द ज़िले में स्थित एक दुर्ग है। इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन 13 मई 1459 को कराया था। इस किले को ‘ अजयगढ ‘ कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना दुष्कर कार्य था। इसके चारों ओर एक बडी दीवार बनी हुई है जो चीन की दीवार के बाद विश्व कि दूसरी सबसे बडी दीवार है। इस किले की दीवारे लगभग 36 किमी लम्बी है।2013 में यूनेस्को ने अपने विश्व धरोहर की सूची में सम्मिलित किया था।

39. सोनार किला – राजस्थान, 2013

जैसलमेर के सोनार किला चूना पत्थर और बलुआ पत्थर से बने 865 साल पुराना किला है। जैसलमेर किले को जैसलमेर की शान के रूप में माना जाता है और यह शहर के केन्द्र में स्थित है। यह सोनार किला या स्वर्ण किले के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह पीले बलुआ पत्थर का किला सूर्यास्त के समय सोने की तरह चमकता है। 2013 में ये यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल देश के एकमात्र जीवित किले है।

40. चित्तौड़गढ़ किला – राजस्थान, 2013

चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे विशाल किला है। जो राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है। चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी थी। यके किला इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है। चित्तौड़ के किला को राजस्थान का गौरव एवं राजस्थान के सभी किलो का सिरमौर भी कहते हैं। चित्तौड़ के किला को 21 जून, 2013 में युनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।

41. गागरोन किला – राजस्थान, 2013

गागरोन का दुर्ग दक्षिण-राजस्थान के सबसे प्राचीन व विकट किलो में से एक गागरोन किला हैं। गागरोन दुर्ग भारतीय राज्य राजस्थान के झालावाड़ जिले में काली सिंध नदी और आहु नदी के संगम पर स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण सातवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक चला था। डोड राजा बीजलदेव ने 12 वीं सदी में निर्माण कार्य करवाया था। सीधी खड़ी चट्टानों पर ये किला आज भी बिना नींव के सधा हुआ खड़ा है। किले में तीन परकोटे है जबकि राजस्थान के अन्य किलो में दो ही परकोटे होते हैं। 21 जून, 2013 को राजस्थान के 5 दुर्गों को युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया जिसमें से गागरों दुर्ग भी एक है।

42. रानी का वाव – गुजरात, 2014

रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण में स्थित प्रसिद्ध बावड़ी ( सीढ़ीदार कुआँ ) है। यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा तथा 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का अनूठा वाव है। 44 वाव के खंभे सोलंकी वंश और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाते हैं। वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं। इसे 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया।

43. ग्रेट हिमालय राष्ट्रीय उद्यान – हिमाचल प्रदेश, 2014

महान हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है। 1984 में बनाए गए इस पार्क को 1999 में राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया था। यह पार्क अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इसमें 25 से अधिक प्रकार के वन, 800 प्रकार के पौधे और 180 से अधिक पक्षी प्रजातियों का वास है। हिमालय के भूरे भालू के क्षेत्र वाला यह नेशनल पार्क कुल्लू जिले में 620 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है विश्व विरासत समिति ने ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र को विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया है।

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