स्वतंत्रता सेनानी और उनके योगदान | स्वतंत्रता सेनानियों के महान कार्य

स्वतंत्रता सेनानी और उनके योगदान | स्वतंत्रता सेनानियों के महान कार्य Contributions of Freedom Fighters

किसी भी स्वतंत्रता आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान बहुत महत्वपूर्ण होता है। आज हम आजादी का सांस ले रहे है इसका सबसे बड़ा कारण देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान और उनके महान कार्य ही है। आज इस आर्टिकल में हम बात करेंगे ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी के द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए उनके योगदान और महान कार्यो के बारे में। तो चलिये देखते है विस्तार से।

स्वतंत्रता सेनानी कौन है?

स्वतंत्रता सेनानी, वह व्यक्ति होता है जो किसी स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करता है। जिनके योगदान से वो आंदोलन अपनी मुकाम तक पहुंच पाता है। हमारे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी बहुत से वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने योगदान दिया और नतीजन भारत अंग्रेजों के गुलाम से आजद हो गया।

भारत के स्वतंत्रता सेनानी और उनके योगदान

अंग्रेजों के विरुद्ध भारतियों को एकजुट करने का कार्य कुछ महान क्रान्तिकारियों ने किया जिन्हें हम आज भी और उनके द्वारा किये गये अविस्मरणीय कार्यों के लिये याद करते है। उन स्वतंत्रता सेनानियों के कारण ही आज हमारा देश भारत आजाद हुआ और हम सब आज एक आजाद देश के नागरिक हो गए।

यह हमारे लिए एक बहुत ही गर्व का विषय रहा है, क्योंकि इन स्वतंत्रता सेनानियों की वजह से देश के लिए किए गए त्याग, बलिदान और उनका जो देश की आजादी में योगदान रहा, उन सबसे देश मे एक अलग ही क्रांति की लहर सी दौड गयी है। 1857 का विद्रोह एक तरह से भारत का प्रथम स्वतंत्रता विद्रोह था, जिसने अंग्रेजों को अंदर तक डरा दिया। इन बहादुर देश भक्त वीरों की ऐसी प्रयासों की वजह से ही देश में आजादी का बीज बोया था।

स्वतंत्रता सेनानियों के महान कार्य

देश प्रेम से प्रेरित भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के महान कार्यों से प्रेरणा लेते रहने के लिये ऐसे ही कुछ महान स्वतंत्रता सेनानियों की महान कार्य के बारे में नीचे जान सकते है।

स्वतंत्रता सेनानी और उनके योगदान | स्वतंत्रता सेनानियों के महान कार्य

बाल गंगाधर तिलक :

1856 में पैदा हुए एक उल्लेखनीय स्वतंत्रता सेनानी थे। ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है अपने उद्धरण के लिए प्रसिद्ध, उन्होंने कई विद्रोही समाचार पत्र प्रकाशित किए और ब्रिटिश शासन की अवहेलना करने के लिए स्कूलों का निर्माण किया। वह लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल के साथ लाल – बाल – पाल के तीसरे सदस्य थे।

दादाभाई नौरोजी :

स्वतंत्रता संग्राम में दादाभाई नौरोजी का भी योगदान था। दादाभाई नौरोजी ने 1878 के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट के खिलाफ आंदोलन शुरू किया जिसे ब्रिटिश राज द्वारा पेश किया गया था। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘पॉवर्टी एंड अन – ब्रिटिश रूल इन इंडिया’ के माध्यम से अंग्रेजों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण को उजागर किया। उन्होंने नौकरशाही के भारतीयकरण और हाउस ऑफ कॉमन्स में भारतीयों के प्रतिनिधित्व की भी मांग की।

महात्मा गांधी :

सबसे पहले गान्धी जी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना आरम्भ किया। 1915 में उनकी भारत वापसी हुई।[23] उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, श्रमिकों और नगरीय श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया।

1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में दरिद्रता से मुक्ति दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था।

गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये लवण कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से विशेष विख्याति प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें कारागृह में भी रहना पड़ा।

भगत सिंह :

भगत सिंह भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।

चंद्रशेखर आजाद :

1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये।

इसके पश्चात् सन् 1928 में ‘बिस्मिल’ के साथ 8 प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।

सुखदेव :

इनका पूरा नाम सुखदेव थापर था। सुखदेव थापर ने लाला लाजपत राय का बदला लिया था। इन्होने भगत सिंह को मार्ग दर्शन दिखाया था, और इन्होने ही लाला लाजपत राय जी से मिलकर चंद्रशेखर आजाद जी को मिलने कि इच्छा जाहिर कि थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था। इनके बलिदान को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

शिवराम हरि राजगुरु :

शिवराम हरी राजगुरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी।

राम प्रसाद बिस्मिल :

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें 30 वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे।

रानी लक्ष्मीबाई :

रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रान्ति की द्वितीय शहीद वीरांगना थीं। उन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। बताया जाता है कि सिर पर तलवार के वार से शहीद हुई थी।

तात्या टोपे :

तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन 1857 के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।

बहादुर शाह ज़फर :

भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह, और उर्दू के जानेे-माने शायर थे। उन्होंने 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा ( म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई ।

मंगल पांडे :

मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। मंगल पांडे द्वारा गाय की चर्बी मिले कारतूस को मुँह से काटने से मना कर दिया था,फलस्वरूप उन्हे गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई।

नेता जी सुभाष चंद्र बोस :

भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिंद का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से सम्बोधित करते हैं।

ऐसे ही अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के कारण ही आज हमारा देश भारत आजाद हुआ।

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