छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गुफा | छत्तीसगढ़ की प्रमुख गुफाएं
भारत के बीच मे बसे छत्तीसगढ़ जंगलों, पहाड़ो और नदियों का प्रदेश हैं। इन पहाड़ो और जंगलों में ऐसे ऐसे गुफाएं है जो बहुत ही प्राचीन हैं। यंहा के गुफाएं उतने ही पुराने है जितना आदिमानव, क्योंकि यंहा के बहुत से गुफाओं में आदिमानव के अंश पाए गए है। तो आइए देखते है पर्यावरण के खूबसूरत से सजे छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गुफा कौन कौन से है और ये कंहा कंहा है?
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गुफाओं की पूरी जानकारी
कुटुमसर गुफा – कांगेर घाटी, बस्तर
बस्तर जिले में स्थित कुटुमसर गुफा भू-गर्भित गुफा है यह कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में है। इस गुफा के खोजकर्ता प्रो. शंकर तिवारी है। यह भारत की सबसे गहरी गुफा है जो 60 से 120 फिट गहरी है। इसकी लंबाई 4500 फिट है। अमेरिका स्थित विश्व की सर्वाधिक लंबी गुफा कार्ल्सवॉर ऑफ केव से इसकी तुलना की जाती है। कुटुमसर गुफा में स्टेलेग्माईट और स्टेलेक्टाईट से निर्मित आकृतियाँ दर्शनीय है।
इसके अलावा यहां रंग बिरंगी एवं अंधी मछलियों का निवास है। कोटमसर गुफा पर्यावरणीय पर्यटन में रुचि रखने वाले लोगों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। यह कोलेब नदी की एक सहायक नदी केगर नदी के किनारे स्थित केंजर चूना पत्थर बेल्ट पर गठित एक चूना पत्थर गुफा है। कोटसर गुफा को शुरू में गोपांसर गुफा नाम दिया गया था, लेकिन वर्तमान नाम कोटसर अधिक लोकप्रिय हो गया क्योंकि गुफा ‘कोटसर’ नामक गांव के पास स्थित है।
कैलाश गुफा – बगीचा, जशपुर
कैलाश गुफा को राट गुफा के नाम से भी जाना जाता है। यह जशपुर जिला के अंतर्गत बगीचा तहसील मुख्यालय से लगभग 27 कि.मी. की दुरी पर स्थित है। कैलाश गुफा का निर्माण पहाड़ियों को काटकर बडी ही खूबसूरती के साथ किया गया है। बगीचा के संत गहिरा गुरु जी ने पहाड़ी चट्टानों को तलाश कर गुफा बनवाई है। बगीचा के संत गहिरा गुरु जी ने पहाड़ी चट्टानों को तलाश कर इस गुफा को बनवाई है। इस गुफा की सबसे बड़ी खास बात यह है की इस गुफा के अन्दर सालभर पानी की धारा बहती रहती है जबकि गुफा के ऊपर कोई भी पानी श्रोत नही है। गुफा के पास मीठे पानी की जलधारा है। यंहा महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है।
कैलाश गुफा – कांगेर घाटी, बस्तर
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गुफा और पर्यटन स्थल कैलाश गुफा बस्तर के सबसे पुराना गुफा में से एक है। बस्तर घने जंगलों, सर्पिन घाटियों, नदियों के साथ एक रहस्यमय भूमि है। कैंगेर वैली नेशनल पार्क में तीन असाधारण गुफाएं हैं, कैलाश गुफा इस क्षेत्र की सबसे पुरानी गुफा है। इस गुफा की खोज 22 मार्च 1993 में की गयी। बस्तर के भूमिगत गुफाओं में कैलाश गुफा में सबसे शुरुआती चूना पत्थर के गठन हैं जो बहुत आकर्षक हैं। इस गुफा की ज्ञात लंबाई 1000 और 120 फीट की गहराई है। मानसून के दौरान, कैलाश गुफा बंद हो जाती है और हर साल 16 अक्टूबर से 15 जून तक फिर से खोल दी जाती है।
रामगिरि / रामगढ़ की गुफाएँ – सरगुजा
रामगिरि छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में लक्ष्मणपुर से 12 मील की दूरी पर स्थित एक पहाड़ी है, जिसे रामगढ़ कहा जाता है। इस पहाड़ी की गुफ़ाओं में अनेक भित्तिचित्र प्राप्त हुए हैं। एक गुफ़ा में ब्राह्मी अभिलेख भी मिला है, जिससे इसका निर्माण काल डॉ. ब्लाख के मत से तीसरी शती ई. पू. जान पड़ता है। रामगिरि में सीताबेंगा तथा जोगीमारा नामक और दो गुफाएँ भी हैं। देवदासी सुतनुका के प्रेमी काशी के देवदीन नामक रुपदक्ष कलाकार ने अपने प्रेम को रामगिरी पर्वत की नाट्यशाला में अंकित किया है। माना जाता है कि इन्हीं पहाड़ियों पर कालिदास ने मेघदूत की रचना की थी। यह पहाड़ी महाकवि कालिदास के यक्ष की विरह स्थली कही जाती है। कालिदास रचित मेघदूत में रामगिरि का उल्लेख है।
सीताबेंगरा गुफा – रामगढ़, सरगुजा
विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला रामगिरि की सीताबेंगरा गुफा में निर्मित है। तीन कमरों वाली देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला है। गैलरीनुमा काट कर बनाई गई है। यह 44.5 फीट लम्बी एवं 15 फीट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेशद्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फीट है, जो भीतर जाकर 14 फीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों में छेद किया गया है। गुफा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीढ़ियां बनाई गई हैं। त्रेतायुग में बनवास के दौरान राम, लक्ष्मण, सीता यहाँ रुके थे जिससे इस गुफा का नाम सीताबेंगरा पड़ा।
इसका गौरव इसलिए भी अधिक है क्योंकि कालिदास की विख्यात रचना मेघदूतम ने यहीं आकार लिया था। इसलिए ही इस जगह हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है। देश में संभवतः यह अकेला स्थान है, जहां हर साल बादलों की पूजा करने का रिवाज है। इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले – काले मेघ उमड़ आते हैं। मेघदूतम में उल्लेख है कि यहां अप्सराएं नृत्य किया करती थीं।
जोगीमारा गुफा – रामगढ़, सरगुजा
जोगीमारा गुफ़ाएँ छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों और प्रमुख गुफाओं में से एक हैं। ये गुफ़ाएँ अम्बिकापुर से 50 किलोमीटर की दूरी पर रामगढ़ स्थान में स्थित है। यहीं पर सीताबेंगरा, लक्ष्मण झूला के चिह्न भी अवस्थित हैं। ये शैलकृत गुफ़ाएँ हैं, जिनमें 300 ई. पू. के कुछ रंगीन भित्तिचित्र विद्यमान हैं। इसमें बने यक्ष, किन्नर एवं देवी देवताओं के चित्र अजन्ता गुफाओं के समकालीन है इन गुफाओं में पाली भाषा में शिलालेख भी खुदे हैं।
ऐसा माना जाता है कि जोगीमारा के भित्तिचित्र भारत के प्राचीनतम भित्तिचित्रों में से हैं। ऐसा माना जाता है कि देवदासी सुतनुका ने इन भित्तिचित्रों का निर्माण करवाया था। चित्रों की विषयवस्तु चित्रों में भवनों, पशुओं और मनुष्यों की आकृतियों का आलेखन किया गया है। एक चित्र में नृत्यांगना बैठी हुई स्थिति में चित्रित है और गायकों तथा नर्तकों के खुण्ड के घेरे में है। इन गुफ़ाओं का सर्वप्रथम अध्ययन असित कुमार हलधर एवं समरेन्द्रनाथ गुप्ता ने 1914 में किया था।
कबरा गुफा – भद्रपाली पहाड़, रायगढ़
कबरा गुफा रायगढ़ जिले में स्थित है यहाँ पूर्वपाषाण कालौन मानव द्वारा रंगीन चित्रकारी की गई है। छत्तीसगढ़ में प्राचीनतम मानव निवास के प्रमाण रायगढ़ के कबरा पहाड़ से प्राप्त हुए हैं। रायगढ़ जिला उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व तक उड़िसा राज्य की सरहद से लगा हुआ है। प्राचीनकाल में में यहां की गुफाओं में मौसम की मार और जंगली जानवरों से बचने के लिए आदिमानव रहते थे।
कबरा पहाड़ के शैलाश्रय पुरातात्विक स्थल है। कबरा शैलाश्रय के चित्र भी गहरे लाल खड़िया, गेरू रंग से अंकित है। इसमें कछुआ, अश्व व हिरणों की आकृतियां है। इसी शैलाश्रय में जिले का अब तक का ज्ञात वन्य पशु जंगली भैसा का विशालतम शैलचित्र है। इन चित्रों से उस काल के आदिमानवों की प्रागैतिहासिक काल की स्थिति और उनके समाज का पता चलता है।
सिंघनपुर की गुफाएँ – भूपदेवपुर, रायगढ़
रायगढ़ जिले में स्थित, रायगढ़ और खरसिया के बीच भूपदेवपुर स्टेशन के पास प्रागैतिहासिक काल की गुफाएँ हैं। यहाँ से पाषाणकालीन अवशेष तथा छत्तीसगढ़ में प्राचीनतम मानव निवास के प्रमाण तथा शैलचित्र प्राप्त हुए हैं। यह गुफा लगभग 30 हजार साल पुराना है, इनकी खोज एंडरसन द्वारा 1910 में की गई थी। ये छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गुफा और पर्यटन स्थल है।
इंडिया पेंटिग्स 1918 में तथा इन्साइक्लोपिडिया ब्रिटेनिका के 13 वें अंक में रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के शैलचित्रों का प्रकाशन पहली बार हुआ था। यहां प्राप्त प्रागैतिहासिक कालीन तीन गुफाएं लगभग 300 मीटर लंबी तथा 7 फुट उंची है। इस गुफा के के बाहय दीवारों पर पशु एवं मानव की आकृतियां बनी हुई है, शिकार के दृश्य भी बने हुए हैं। देश में अब तक प्राप्त शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक मानव तथा नृत्यसांगना की चित्र केवल सिंघनपुर के शैलआश्रयों में प्राप्त है।
अमर गुफा – खरसिया, रायगढ़
रायगढ़ जिले के खरसिया के समीप स्थित अमरगुफा में पशु आकृतियाँ, मानवाकृतियाँ, आखेट दृश्य का अंकन है। यह छत्तीसगढ़ के इस क्षेत्र का बहुत लोकप्रिय और प्रसिद्ध गुफा और पर्यटन स्थल भी है।
आरा पहाड़ की गुफाएँ
अंबिकापुर से रामानुजगंज सड़क पर आरजपुर में स्थित पहाड़ी शृंखला में बड़ी – बड़ी प्राकृतिक गुफायें में विद्यमान है। यह खूबसूरत जगह छत्तीसगढ़ के इस क्षेत्र का बहुत प्रसिद्ध गुफा और पर्यटन स्थल है। इस गुफा को देखने हजारों लोग जाते है।