भारत में संवैधानिक विकास कैसे शुरू हुआ? संविधान कैसे बना?

भारत में संवैधानिक विकास कैसे शुरू हुआ?

भारत में संवैधानिक विकास की शुरुआत ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1600 ई. से माना जा सकता है। क्योंकि भारत मे इसी समय से संवैधानिक विकास होना शुरू हुआ था। अब आइये देखते है विस्तृत जानकारी के साथ भारत में संवैधानिक विकास किस प्रकार हुआ?

संवैधानिक विकास क्या है?

जिन कानून और नियमों को ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में शासन व्यवस्था संचालित करने के लिए बनाया गया जो आगे चलकर भारतीय परिपेक्ष संविधान निर्माण के काम आए, संवैधानिक विकास कहलाता है।

भारत में संवैधानिक विकास की शुरुआत कैसे हुई देखे स्टेप बाई स्टेप पूरी जानकारी

भारत में कंपनी के अधीन संवैधानिक विकास

भारत में संवैधानिक विकास | Constitutional Development in India

रेग्युलेटिंग एक्ट – 1773

इसके द्वारा पहली बार कंपनी की गतिविधियों पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्रण लागू किया गया। कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना सर एलीजा इम्पे प्रथम मुख्य न्यायाधीश थे।

पिट्स इंडिया एक्ट – 1784

भारत के मामलों के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा बोर्ड आफ कंट्रोल की स्थापना की गयी। भारत सरकार का संचालन गवर्नर जनरल और उसकी तीन सदस्यीय काउंसिल को दिया गया।

चार्टर एक्ट – 1813

भारतीय व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार समाप्त हो गया। चाय का व्यापार एवं चीन के साथ व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार बना रहा। कंपनी की आमदनी से प्रतिवर्ष 1 लाख रू. शिक्षा पर खर्च करने का पहली बार प्रावधान।

चार्टर एक्ट – 1833

चाय व्यापार और चीन के साथ व्यापार पर एकाधिकार भी समाप्त कर दिया गया। बंगाल का गवर्नर जनरल भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया। गवर्नर जनरल इन काउंसिल को पूरे भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया। कानून निर्माण हेतु बैठक में सहायता के लिए काउंसिल में एक विधि सदस्य की नियुक्ति का प्रावधान किया गया।

चार्टर एक्ट – 1853

संसदीय पद्धति का आरंभ हुआ, भारत के लिए समरूप कानून बनाने एवं कानूनों के संग्रह के लिए विधि आयोग बना फलतः निम्न संहिता बने

  • Civil Procedure Code ( 1859 )
  • Indian Penal Code ( 1860 )
  • Criminal Procedure Code ( 1861 )

डायरेक्टरों से असैनिक सेवाओं में भर्ती के अधिकार छीन लिए गए, सिविल सेवाओं हेतु खुली प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से भर्ती का प्रावधान किया गया।

1857 के विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया। 1858 के एक्ट के द्वारा बोर्ड ऑफ कंट्रोल और कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर भारत – सचिव का नया पद बनाया गया।

भारत सरकार अधिनियम 1858

शासन का अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी से लेकर ब्रिटिश सम्राट को दे दिया, ब्रिटेन में भारत संबंधी मामलों को देखने के लिए भारत सचिव का पद बनाया गया, लंदन में इंडिया – काउंसिल का गठन, भारत में गवर्नर जनरल को वायसराय कहा गया।

भारतीय परिषद अधिनियम 1861

गवर्नर जनरल की विधायी परिषद (इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल) संपूर्ण भारत के लिए कानून बना सकती थी, गवर्नर जनरल आवश्यकता पड़ने पर अध्यादेश जारी कर सकता था ( छह माह की अवधि के लिए )।

भारतीय परिषद अधिनियम 1892

इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल में सदस्य संख्या वृद्धि परिषदों को बजट पर चर्चा करने का अधिकार, परिषद को प्रश्न पूछने का अधिकार।

भारतीय परिषद अधिनियम 1909 (मार्ले मिण्टो सुधार)

  • इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल एवं प्रांतीय विधानसभाओं में सदस्यों की संख्या बढ़ायी गई,
  • गवर्नर जनरल की कौंसिल एवं भारत सचिव की कौंसिल में भारतीयों की नियुक्ति,
  • साम्प्रदायिक निर्वाचन की व्यवस्था- मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था की गई,
  • फूट डालो और राज करो की नीति का अनुपालन,
  • अप्रत्यक्ष चुनाव

भारत सरकार अधिनियम 1919 (मांट-फोर्ड सुधार)

  • इंडिया कौंसिल में 3 भारतीयों को स्थान
  • गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में 3 भारतीय
  • केन्द्र में द्विसदनीय विधायिका की व्यवस्था – केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा का गठन- 145 सदस्य राज्य सभा का गठन- 60 सदस्य दोनों सदनों में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत,
  • विषयों का केंद्र सूची एवं राज्य सूची में विभाजन,
  • प्रांतों में द्वैध शासन की व्यवस्था प्रांतीय सूची को दो भागों में बांटा गया- आरक्षित एवं हस्तातंरित
  • प्रत्यक्ष चुनाव
  • महिलाओं को मताधिकार का प्रावधान
  • सांप्रदायिक निर्वाचन मण्डल का विस्तार- मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, एंग्लो इंडियन हेतु,
  • उत्तरदायी शासन की दिशा में पहला ठोस कदम,
  • लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान, 1926 में नियमित लोक सेवा आयोग सर रोस बार्कर की अध्यक्षता में गठित हुआ।

भारत सरकार अधिनियम 1935

  • इंडिया कौंसिल समाप्त
  • अखिल भारतीय संघ की स्थापना ब्रिटिश प्रांतों व देशी रियासतों को मिलाकर
  • संघ में द्विसदनीय व्यवस्था – संघीय सभा (निचला सदन), राज्य सभा (उच्च सदन)
  • संघ में द्वैध शासन व्यवस्था- आंशिक उत्तरदायी सरकार
  • विषयों का संघीय, प्रांतीय एवं समवर्ती सूची में विभाजन, अवशिष्ट शक्ति संघ में गवर्नर जनरल के अधीन,
  • प्रांतीय स्वायत्तता प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली समाप्त, मंत्रीमण्डल विधायिका के प्रति उत्तरदायी
  • गवर्नर को वीटो का अधिकार
  • साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति कायम
  • संघीय न्यायालय की स्थापना
  • संघ लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान, जिससे संघीय लोक सेवा आयोग ( Federal Public Service Commission ) का गठन हुआ।

1935 के अधिनियम के तहत 1937 में चुनाव जिसमें कांग्रेस ने भाग लेकर भारी सफलता पायी।

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