सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद सूची | सुप्रीम कोर्ट से संबंधित अनुच्छेद

सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद सूची | सुप्रीम कोर्ट से संबंधित अनुच्छेद

कानूनी और न्यायिक न्यायशास्त्र के क्षेत्र में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने लिए एक ठोस प्रतिष्ठा स्थापित की है। अदालत ने आश्चर्यजनक रूप से काम किया है। लेकिन क्या आप जानते है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय गठन संविधान के किस अनुच्छेद से संबंधित है? अगर आप भी जानना चाहतेहै तो बने रहिये हमारे इस पोस्ट के अंत तक।

भारत का सर्वोच्च न्यायालय 28 जनवरी, 1950 को स्थापित किया गया था। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान अपनाया गया था। साथ ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई, जिसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को बुलाई गई थी। संविधान के भाग V में अनुच्छेद 124 से 147 भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता, अधिकार, प्रक्रियाओं और सर्वोच्च न्यायालय के अन्य पहलू से संबंधित है।

सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद सूची

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद सूची | सुप्रीम कोर्ट से संबंधित अनुच्छेद

अनुच्छेद 124 – सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और संविधान

अनुच्छेद 124 के अनुसार भारत में सर्वोच्च न्यायालय का गठन भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 28 जनवरी, 1950 हुई थी। 28 जनवरी, 1950 को संसद भवन के चेंबर ऑफ प्रिसेस में पहली बार सर्वोच्च न्यायालय की बेंच बैठी थी। इससे पहले फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया देश की सबसे बड़ी न्यायिक संस्था थी। सर्वोच्च न्यायालय का गठन भारत के संविधान उच्चतम न्यायालय के लिए एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य की न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई थी किन्तु संविधान के अनुसार आवश्यकता नुसार संख्या पद् परिवर्तन का अधिकार संसद को दिया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय में 1985 के अधिनियम के अनुसार मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश होंगे। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति मुख्यन्यायाधीश से परामर्श लेता है। मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त राष्ट्रपति की स्वीकृति से मुख्य न्यायाधीश अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है। यदि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश का पद रिक्त हो तो कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी चुन सकता है।

अनुच्छेद 125 – जजों का वेतन आदि

भारतीय संविधान अनुच्छेद 125 के अनुसार, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार, अवकाश और पेंशन समय – समय पर संसद द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। वित्तीय आपातकाल के अतिरिक्त नियुक्ति के बाद इनमें कटौती नहीं की जा सकती है।

अनुच्छेद 126 – कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 126 के अनुसार, राष्ट्रपति भारत के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकता है। कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति जब भारत के मुख्य न्यायमूर्ति का पद रिक्त है या जब मुख्य न्यायमूर्ति, अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा एक न्यायाधीश, जिसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।

अनुच्छेद 127 – तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 127 के अनुसार, तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रावधान है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श और राष्ट्रपति की पूर्ण सहमति के बाद ही ऐसा कर सकता है। तदर्थ न्यायाधीश का यह दायित्व है, कि वह अपने अन्य दायित्वों की तुलना में सर्वोच्च न्यायालय की बैठकों में भाग लेने को अधिक वरीयता दे। जिस न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता है, उसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के योग्य होना चाहिये।

अनुच्छेद 128 – सर्वोच्च न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 128 के अनुसार, सेवानिवृत्त न्यायाधीश – भारत का मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ( जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के योग्य है ) से अनुरोध कर सकता है, कि वह अस्थायी अवधि के लिये सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करे। ऐसा न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित भत्ते प्राप्त करने के योग्य होता है। वह सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की तरह न्यायनिर्णयन, शक्तियों एवं विशेषाधिकारों को प्राप्त करेगा किंतु वह उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नहीं माना जाएगा।

अनुच्छेद 129 – सर्वोच्च न्यायालय रिकॉर्ड की अदालत हो

भारतीय संविधान में अनुच्छेद -129 के अनुसार, उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होगा। उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी।

अनुच्छेद 130 – सुप्रीम कोर्ट की सीट

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 130 के अनुसार, संविधान दिल्ली को सर्वोच्च न्यायालय का स्थान घोषित करता है। यह मुख्य न्यायाधीश को अन्य किसी स्थान अथवा एक से अधिक स्थानों को सर्वोच्च न्यायालय के स्थान के रूप में नियुक्त करने का में अधिकार प्रदान करता है।

अनुच्छेद 131 – सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिका

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 131 के अनुसार, एक संघीय न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों के बीच विवादों का फैसला करता है। यह सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिका है। केंद्रीय कानूनों की संवैधानिक वैधता (निरस्त) के रूप में सवालों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का विशेष अधिकार क्षेत्र है।

अनुच्छेद 132 – कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपील में सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 132 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय मुख्य रूप से अपील हेतु अदालत है, और निचली अदालतों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है। इसको एक विस्तृत अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है। जिसे चार शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • संवैधानिक मामलों में अपील
  • दीवानी मामलों में अपील
  • आपराधिक मामलों में अपील
  • विशेष अनुमति द्वारा अपील

अनुच्छेद 133 – सिविल मामलों के संबंध में उच्च न्यायालयों से अपील में सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार

भारतीय संविधान में अनुच्छेद -133 के अनुसार, दीवानी मामले में उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। जब उच्च न्यायालय प्रमाणित कर दें कि उस मामले का संबंध सार्वजनिक महत्त्व के किसी सारगर्भित कानूनी प्रश्न से है। इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में तब तक नहीं होगी जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे।

अनुच्छेद 134 ए – सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए प्रमाण पत्र

न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी निर्णय या किए गए आदेश का जिन शर्तों के अधीन रहते हुए पुनर्विलोकन किया जा सकेगा उनके बारे में और ऐसे पुनर्विलोकन के लिए प्रक्रिया के बारे में, जिसके अतंर्गत वह समय भी है जिसके भीतर ऐसे पुनर्विलोकन के लिए आवेदन उस न्यायालय में ग्रहण किए जाने हैं, जमानत मंजूर करने के बारे में नियम, कार्यवाहियों को रोकने के बारे में नियम।

अनुच्छेद 135 – सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौजूदा कानून के तहत संघीय कानून के क्षेत्राधिकार और शक्तियां

भारत के संविधान अनुच्छेद 135 के अनुसार विद्यमान विधि के अधीन फेडरल न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों के बीच विवादों का फैसला करता है। यह सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिका है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौजूदा कानून के तहत संघीय कानून के क्षेत्राधिकार और शक्तियां है।

अनुच्छेद 136 – सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपील करने के लिए विशेष अवकाश

भारत के संविधान अनुच्छेद 136 के अनुसार सशस्त्र बलों से संबंधित या किसी भी कानून के तहत गठित किसी भी अदालत या न्यायाधिकरण द्वारा पारित या बनाए गए किसी भी निर्णय, निर्धारण, वाक्य या आदेश पर यह SLP लागू नहीं होगा। SLP के किसी भी मामले में सर्वोच्च न्यायालय को अपने विवेक से ही निर्णय लेना होगा कि उस विशेष आज्ञा के अनुरोध को स्वीकार करना है या खारिज़ करना है।

अनुच्छेद 137 – सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णयों या आदेशों की समीक्षा

भारतीय संविधान अनुच्छेद 137 सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने तथा सुधारने की शक्ति देता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाँच करने एवं उन्हें प्रमाणित करने के उपरांत ही राष्ट्रपति द्वारा संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को पदच्युत किया जा सकता है।

अनुच्छेद 138 – सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि

यदि संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अधिकारिता और शक्तियों के प्रयोग का उपबंध करती है, तो उच्चतम न्यायालय को किसी विषय के संबंध में ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियाँ होंगी जो भारत सरकार और किसी राज्य की सरकार विशेष करार द्वारा प्रदान करे। उच्चतम न्यायालय को संघ सूची के विषयों में से किसी के संबंध में ऐसी अधिकारिता अतिरिक्त और शक्तियाँ होंगी जो संसद विधि द्वारा प्रदान करे।

अनुच्छेद 139 – कुछ रिट्स जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ऑफ पॉवर पर कन्वेंशन

यदि उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐसा करना समीचीन समझता है, तो वह किसी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित किसी मामले अपील या अन्य कार्यवाही का अंतरण किसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा।

अनुच्छेद 139 ए – कुछ मामलों का स्थानांतरण

कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त किया जाना संसद विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 139 के अनुसार, अनुच्छेद 32 के खंड के विषयों पर उच्चतम न्यायालय को रिट जारी करने की शक्ति प्राप्त है।

अनुच्छेद 140 – सर्वोच्च न्यायालय की सहायक शक्तियाँ

भारत के संविधान अनुच्छेद 140 के अनुसार, उच्चतम न्यायालय सहायक शक्तियां का प्रावधान है। अनुच्छेद 140 उच्चतम न्यायालय को आनुषंगिक शक्तियां। संसद् विधि द्वारा, उच्चतम न्यायालय को ऐसी अनुपूरक शक्तियां प्रदान करने के लिए उपबंध कर सकेगी जो इस संविधान के उपबंधों में से किसी से असंगत न हों और जो उस न्यायालय को इस संविधान द्वारा या इसके अधीन प्रदत्त अधिकारिता का अधिक प्रभावी रूप से प्रयोग करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हों।

अनुच्छेद 141 – सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून सभी अदालतों पर बाध्यकारी है

संविधान के अनुच्छेद 141 उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होना उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होगी। संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत उच्चतम न्यायालय का निर्णय देश का कानून माना जाता है।

अनुच्छेद 142 – सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और आदेशों की प्रवर्तन और खोज आदि के आदेश।

संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत सर्वोच्च न्यायालय को संपूर्ण भारत के लिये ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है, जो किसी भी व्यक्ति की मौजूदगी, किसी दस्तावेज़ अथवा स्वयं की अवमानना की जाँच और दंड को सुरक्षित करते हैं। संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का गवाहों की तरह भविष्य में इस्तेमाल करना जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि होता।

अनुच्छेद 143 – सुप्रीम कोर्ट से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार, जब कभी राष्ट्रपति को ऐसा लगे कि विधि या तथ्य से संबंधित कोई ऐसा प्रश्न उठा है अथवा उठने की संभावना है, जो सार्वजनिक महत्त्व का है अथवा जिसकी प्रकृति ऐसी है, कि उस पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श लेना उचित होगा तो राष्ट्रपति उस प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख परामर्श हेतु भेज सकता है। सर्वोच्च न्यायालय उसकी सुनवाई कर उस पर अपना परामर्श राष्ट्रपति को भेज सकता है।

अनुच्छेद 144 ए – कानूनों की संवैधानिक वैधता से संबंधित सवालों के निपटान के लिए विशेष प्रावधान (निरस्त)

संविधान के अनुच्छेद 144 में, कानूनों की संवैधानिक वैधता से संबंधित सवालों के निपटान के लिए विशेष प्रावधान (निरस्त) का प्रावधान है। संविधान के अनुच्छेद 144 के अनुसार, कानूनों की संवैधानिक वैधता से संबंधित सवालों के निपटान के लिए विशेष प्रावधान (निरस्त) हैं। अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि होता।

अनुच्छेद 145 – अदालत के नियम, आदि।

संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय – समय पर, राष्ट्रपति के अनुमोदन से न्यायालय की पद्धति और प्रक्रिया के, साधारणतया, विनियमन के लिए नियम बना सकेगा।

अनुच्छेद 146 – अधिकारी और नौकर और सर्वोच्च न्यायालय का खर्च

उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत उस न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन हैं। भारत की संचित निधि पर भारित होंगे और उस न्यायालय द्वारा ली गई फीसें और अन्य धनराशियां उस निधि का भाग होंगी। अनुच्छेद 146 में, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों और कर्मचारियों का खर्च का प्रावधान है।

अनुच्छेद 147 – व्याख्या

अनुच्छेद 147 में, सुप्रीम कोर्ट के विधि बारे में व्याख्या का प्रावधान है। निर्वचन इस अध्याय में और भाग 6 के अध्याय 5 में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत भारत शासन अधिनियम, 1935 के अथवा किसी सपरिषद आदेश या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देश हैं।

1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत स्थापित भारत के संघीय न्यायालय का स्थान लिया। भारत का सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा करने के अधिकार के साथ सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय भी है।

भारत में सुप्रीम कोर्ट का स्थान

संविधान दिल्ली को सर्वोच्च न्यायालय के स्थान के रूप में नामित करता है। केवल राष्ट्रपति की सहमति से ही वह इस संबंध में निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। हालाँकि यह भारत के मुख्य न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय की बैठक के रूप में किसी अन्य स्थान या स्थान को चुनने की शक्ति भी देता है।

सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे नियम स्थापित करने से पहले राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है । जो न्यायालय के सामान्य अभ्यास और प्रक्रिया को नियंत्रित करेंगे। अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लाए गए संवैधानिक मामलों या संदर्भों पर कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ फैसला करती है । पांच या अधिक न्यायाधीशों की बेंच को ” संवैधानिक पीठ” कहा जाता है।

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