विधेयक क्या है? विधेयक कंहा और कैसे बनाया जाता है?

विधेयक क्या है? विधेयक कंहा और कैसे बनाया जाता है?

कोई भी कानून बनाने से पहले विधेयक बनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है कि विधेयक क्या है? ये कितने प्रकार के होते है इसे कौन पारित करता है? इसे कंहा पेश किया जाता है? अगर नही जानते तो बने रहिए हमारे साथ और अंत तक पढ़े, विधेयक क्या है? विधेयक कंहा और कैसे बनाया जाता है?

विधेयक क्या है?

बिल या विधेयक एक प्रस्ताव होता है जिसे विधि का स्वरूप देना होता है। विधेयक किसी विधायी प्रस्ताव का ऐसा प्रारूप होता है जिसे अधिनियम बनने से पहले कई प्रक्रमों से गुजरना पड़ता है।

विधेयक क्या है
लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए श्रीमती निर्मला सीतारमण जी (वर्तमान में वित्त मंत्री भारत सरकार) ईमेज सोर्स : लोकसभा टीवी

विधेयक कितने प्रकार के होते है?

भारत में, विधेयकों की दो श्रेणियाँ होती हैं जिसमें सार्वजनिक तथा असार्वजनिक विधेयक शामिल है। इसके अतिरिक्त यदि कोई विधेयक सरकार द्वारा भेजा जाता है तो उसे सरकारी विधेयक कहते हैं। सरकारी विधेयक दो प्रकार के होते हैं। सामान्य सार्वजनिक विधेयक तथा धन विधेयक। पर जब संसद का कोई साधारण सदस्य सार्वजनिक विधेयक प्रस्तुत करता है तब इसे प्राइवट सदस्य का सार्वजनिक विधेयक कहते हैं। सार्वजनिक तथा असार्वजनिक विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया में अंतर होता है।

विधेयक पास कैसे होता है?

किसी सामान्य विधेयक को पारित करने के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का केवल साधारण बहुमत आवश्यक होता है। किन्तु संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक के लिए सभा की समस्त सदस्य संख्या के बहुमत तथा प्रत्येक सभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई से अन्यून बहुमत की आवश्यकता होती है।

विधेयक कैसे बनता है?

प्रत्येक विधेयक को कानून बनने से पहले प्रत्येक सदन में अलग-अलग पांच स्थितियों से गुजरना पड़ता है और उसके तीन वाचन होते हैं। पाँचों स्थितियाँ इस प्रकार हैं पहला वाचन, दूसरा वाचन, प्रवर समिति की स्थिति, प्रतिवेदन काल तथा तीसरा वाचन। जब दोनों सदनों में इन पाँचों स्थितियों से विधेयक गुजर कर बहुमत से प्रत्येक सदन में पारित हो जाता है।

बिल कौन पास करता हैं?

जब दोनों सदनों में ऊपर बताये गए पाँचों स्थितियों से विधेयक गुजर कर बहुमत से प्रत्येक सदन में पारित हो जाता है, तब विधेयक सर्वोच्च कार्यपालिका के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। सर्वोच्च कार्यपालिका की अनुमति के बिना कोई विधेयक कानून नहीं बन सकता।

कोई भी विधेयक कानून कब बनता है?

विधेयक संविधि का ही प्रारूप होता है और कोई भी विधेयक, तब तक कानून नहीं बन सकता है जब तक उसे संसद की दोनों सभाओं की स्वीकृति तथा राष्ट्रपति की अनुमति नहीं मिल जाती। कानून बनाने की प्रक्रिया संसद की दोनों सभाओं में से किसी भी सभा में विधेयक के पुरःस्थापित किए जाने से आरंभ होती है। सर्वोच्च कार्यपालिका की अनुमति के बिना कोई विधेयक कानून नहीं बन सकता। इसलिए किसी भी विधेयक को विधि में परिणत होने के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि वह दोनों सभाओं द्वारा स्वीकृत हो।

धन विधेयक क्या है?

ऐसे वित्त विधेयक जिन्हें लोकसभा अध्यक्ष द्वारा धन विधेयक घोषित किया गया हो धन विधेयक होते हैं। इनमें कर ॠण (ब्याज, मूलधन), संचित निधि पर भारित व्यय आदि संबंधी विषय हो सकते हैं, कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं इसका निर्णय लोक सभा अध्यक्ष द्वारा होता है। इसे भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही लाया जा सकता है,

धन विधेयक कैसे पारित होता है?

धन विधेयक केवल लोक सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है इसे राज्य सभा में प्रस्तुत नही किया जाता है। धन विधेयक पर राज्य सभा की शक्ति सीमित होती है जैसे – स्वीकृत, संशोधन हेतु परामर्श इत्यादि। लेकिन इसे लोकसभा पूर्णत या अंशतः स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। राज्यसभा को किसी भी विधेयक को अधिकतम 14 दिन रोकने का अधिकार रखता है।

वित्त विधेयक क्या है?

साधारण शब्दो मे कहा जाए तो वित्त विधेयक, उस विधेयक को कहते हैं जो वित्तीय मामलों जैसे राजस्व या व्यय से संबंधित होते है। इसमें आगामी वित्तीय वर्ष में किसी नए प्रकार के कर लगाने या कर में संशोधन आदि से संबंधित विषय शामिल होते हैं। वित्त विधेयक में उन सभी विधेयकों को शामिल किया जाता है, जो प्रत्यक्ष रूप से वित्त से संबंधित मामलों से संबंधित होते हैं, जैसे- सरकार के व्यय अथवा सरकार राजस्व से संबंधित व्यय। सामान्यतः यह कहा जाता है कि प्रत्येक धन विधेयक वित्त विधेयक होता है, किंतु प्रत्येक वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता वित्त विधेयक पारित किया जाता है?

वित्त विधेयक कैसे पारित होता है?

वित्त विधेयक, जो कि सरकार द्वारा प्रस्तावित कराधान उपायों से संबंधित है, को बजट पेश किए जाने के तुरन्त बाद पुरःस्थापित किया जाता है। इसके साथ एक ज्ञापन प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें विधेयक के उपबंधों और देश के वित्त पर इनके प्रभावों को स्पष्ट किया जाता है।

धन विधेयक संबंधी वित्त विधेयकों पर राष्ट्रपति की पूर्वानुमति आवश्यक है और संचित निधि पर भार डालने वाले विधेयकों से संबंधित वित्त विधेयकों पर भी राष्ट्रपति की पूर्वानुमति आवश्यक है। किन्तु इसके अतिरिक्त अन्य वित्त विधेयकों पर राष्ट्रपति की पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है तथा प्रक्रिया भी सामान्य विधेयक जैसी होती है धन विधेयक के अतिरिक्त अन्य वित्त विधेयक में राज्यसभा मतदान कर सकती है।

सामान्य विधेयक और धन विधेयक में क्या अंतर है?

  • सामान्य विधयेक संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पुरःस्थापित किया जा सकता है, जबकि धन विधेयक केवल लोक सभा में ही पुरःस्थापित किया जा सकता है, राज्य सभा में नहीं।
  • हमेशा सामान्य विधयेक की स्थिति में लोक सभा व राज्य सभा के प्राधिकार एक समान हैं, जबकि धन विधेयक की स्थिति में लोक सभा का प्राधिकार अधिक होता है।
  • सामान्य विधयेक को पुनः स्थापित करने से पूर्व राष्ट्रपति की सिफारिश नहीं लेनी पड़ती, जबकि धन विधेयक को पुरस्थापित करने से पूर्व राष्ट्रपति की सिफारिश लेनी पड़ती है।
  • सामान्य विधयेक पर दोनों सदनों में गतिरोध होने पर संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा गतिरोध दूर किया जाता है पर धन विधेयक पर संयुक्त बैठक नहीं हो सकती लोक सभा का निर्णय राज्यसभा पर अधिभावी होता है ।

धन विधेयक और वित्त विधेयक में क्या अंतर है?

  • प्रत्येक धन विधयेक वित्त विधेयक होता है जबकि प्रत्येक वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता है।
  • धन विधेयक के पुरस्थापित होने से पहले राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक होती है जबकि संचित निधि पर भार डालने वाले विधेयकों को छोड़कर अन्य वित्त विधेयक के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक नहीं होती है।
  • धन विधेयक को लोकसभा में ही पुर स्थापित किया जा सकता है जबकि वित्त विधेयक को नही।
  • अनुच्छेद 110 के खण्ड (1) के उपखंड (क) से (छ) तक के विषय धन विधेयक की श्रेणी में आते हैं जबकि वित्त विधेयक इन विषयों के साथ – साथ अन्य विषयों से भी संबंधित हो सकता है।
  • धन विधेयक पर लोक सभा का प्राधिकार राज्य सभा पर अधिभावी होता है जबकि अन्य वित्त विधेयकों पर सामान्य विधेयक की भांति संसद के दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत आवश्यक है।
  • धन विधेयक राज्य सभा में पारित न भी हो तो उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता जबकि अन्य वित्त विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होता है।
  • राष्ट्रपति धन विधयेक को पुनःविचार के लिये लौटा नहीं सकते जबकि अन्य वित्त विधेयक को राष्ट्रपति पुनः विचार के लिये लौटा सकते हैं।
  • धन विधयेक पर दोनों सदनों में गतिरोध होने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता जबकि अन्य वित्त विधेयक में दोनों सदनों में गतिरोध होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है।

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