भारत में यूरोपीय कंपनी के आगमन कैसे हुआ?

भारत में युरोपीय कंपनी का आगमन कैसे हुआ?

भारत में यूरोपीय कंपनी की आगमन पुर्व समय से ही होते आ रहा हैं। प्राचीन काल से ही भारत मे कई फ्रांसीसी, पुर्तगाली, अंग्रेज आकर अपना व्यापार चलाते थे, और उन्ही दिनो से भारत में यूरोपीय कंपनीयो का आगमन हुआ।

भारत में यूरोपीय कंपनियों में सबसे पहले पुर्तगाली समुद्री मार्ग से भारत आये, और फिर अंग्रेज, डच, फ्रांसीसी इत्यादि भी समुद्री मार्ग से आकर कुछ इलाको मे अपना व्यापार आरम्भ कार दिये। इस तरह भारत मे यूरोपीय कंपनियों का आगमन हुआ।

भारत में आने वाले यूरोपीय कंपनी की सूची

  • पुर्तगाली – 1498 ई.
  • अंग्रेज – 1600 ई.
  • डच – 1602 ई.
  • डैनिस – 1616 ई.
  • फ्रांसीसी – 1664 ई.
  • स्वीडिश – 1731 ई.

भारत में यूरोपीय कंपनी का आगमन किस प्रकार हुआ? आइये देखते है विस्तार से।

  1. भारत में आने वाले यूरोपीय कंपनी की सूची

पुर्तगाली – 1498 ई.

भारत में सर्वप्रथम 17 मई 1498 मे समुंदर के रास्ते से पुर्तगाली नाविक वस्को डी गामा आया था। यही से भारत में यूरोपीय कंपनी का आगमन शुरू हुआ।  वस्को डी गामा भारत मे समुद्री मार्ग से पश्चिमी तट पर कलिकट नामक स्थान पर आया। समुद्री मार्ग की खोज कर्ता भी पुर्तगालिया है। उस समय का हिन्दू शासक जमोरिन था।

जमोरिन ने पुर्तगालीयों की अच्छे से स्वागत की और उन्हे व्यापार करने के लिये सुविधाये प्रदान कराये। इस तरह से वस्को डी गामा व्यापर के लिये सक्षम हो गये और उन्होने केप ऑफ़ गुड होप के रास्ते भारत तक समुद्री मार्ग की खोज की। इसलिए समुद्री मार्ग की खोज का श्रेय पुर्तगालियों को ही दिया गया।

भारत मे पुर्तगाली गवर्नर

1505 ई. मे फ्रांसीसको डी अल्मिडा पुर्तगाली को भारत पुर्तगाली क्षेत्रो के लिये गवर्नर बनाकर भेजा गया था, लेकिन हिन्द महासागर के तट पर स्थित पुर्तगालियो के लिये वह नियंत्रण नही कर पाया और वह असफल रह गय। जिसके कारण 1509 ई.मे वापस पुर्तगाल भेज दिया गया।

1905 ई.मे अलफांसो डी अल्बुकर्क को अगला पुर्तगाली गवर्नर के लिये चुना गया और भारत भेजा
अलफांसो डी अल्बुकर्क को पुर्तगालियो के लिये सही संस्थापक मना गया। अलफांसो डी अल्बुकर्क का मानना था की पुर्तगाली व्यपारी अगर भारतीयों से शादी कर ले तो जनसंख्या मे वृद्धि होगी। उतनी जरूरते बढ़ेगी और उतनी ही अच्छी व्यापर चलेगा। इस तरह अलफांसो डी अल्बुकर्क ने गोवा और फारस मे होरमुज द्वीप मे अपना अधिपत्य जमाया।

गोवा पर पुर्तगालियों का कब्जा

1510 ई.मे पुर्तगालियों ने गोवा को बिजपुर से छीन लिया था। उस समय बिजपुर का शासक युसुफ आलिद्शह था। पुर्तगालियो की ई. 1530 मे भारत की गोवा राजधानी थी। पुर्तगालियो का यही मुख्यालय था सारे गवर्नर मामलो की फैसले इसी मुख्याल मे होती थी। 1560 ई.मे मार्टिन अलफांसो डीसुजा को गवर्नर बनाकर भारत भेजा गया। उन्होने वहा के रहने वाले लोगो को और मछुआरों को ईसाई धर्म को अपनाने के लिये प्रेरित किया, उन्के साथ ईसाई संत फ्रांसिस्को जेवियर भी भारत आया था।

पुर्तगालियो की देन

  • भारत मे पुर्तगालो ने काफी खेती की जिसमे उन्होने काली मिर्च,लाल मिर्च व तम्बाकू को लिया।
  • भारत मे लोगो के लिये जहाज निमार्ण का भी शुरूआत इन्होने ही किया।
  • प्रिंटिंग प्रेस का भी श्रेय पुर्तगालियों को जाता है।
  • पहली बार सन 1556 ई . मे इसकी स्थापना हुआ।
  • बंगाल मे पुर्तगालियों द्वारा पहली फैक्ट्री की हुगली में स्थापना हुई।

1793 ई.मे यूरोपीय पुर्तगालियों ने पांडिचेरी पर अपना आधिप्य जमाया। लेकिन 17 वी शताब्दी मे डच के आने से पुर्तगालियो की अधिकार खत्म हो गये।

अंग्रेज – 1600 ई.

भारत में दूसरा यूरोपीय कंपनी और सबसे शक्तिशाली व्यापारी अंग्रेज ही थे, अंग्रेजो ने भारत में रह कर भारतीयो पर अधिकार जमाया और व्यापर करने मे भी अंग्रेज आगे हुआ करते थे। भारत मे सबसे पहले आने वाले सन 1599 ई.मे जौन मिलडेंहौल थे। उसके बाद सन 1600 मे इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ आई। उन्होने भारत मे 15 वर्षो तक ब्रिटिश कम्पनी का अधिकार पत्र प्राप्त की।

भारत मे अंग्रेजों की व्यपार की शुरुआत

भारत मे अपना व्यापार बढ़ाने के लिये हॉकिंनस ने सुरत मे रहने की सोची। हॉकिंनस भारत में 1608 ई. में मुगल शासक जहांगीर के दरबार में इंग्लैण्ड के राजदूत बनकर आया था और उन्होने जहांगीर को भेट स्वरूप दस्ताने और बग्धी दिया। जिससे जहांगीर प्रसन्न हो कर हॉकिंनस को इंग्लिश खां की उपाधि दे दी।

1613 ई. मे जहांगीर ने अंग्रेजो को सुरत मे स्थाई व्यापारी को कोठी बना कर रहने की आज्ञा दी।
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1613 ई. मे सुरत मे पहला कारखाना खुला। इनका पहला कोठी 1611 ई .मे
मुस्सलीपतनम मे खुला।

भारत मे अंग्रेजी शासन की शुरुआत

23 जुन 1757 ई. को भारत में प्लासी युद्ध मे यूरोपीय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब सिरजूदौला के बिच हुआ। प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार कार लिया था। इसके बाद 22अक्टूबर 1764 मे ब्रिटिस ईस्ट इंडिया कम्पनी और मुगल नवाबो के बिच युद्ध हुआ। इसमे अंग्रेजो का नेतृत्व मेजर हेक्टर मुनरो ने किया। इससे बकसर मे युद्ध हुआ जिसमे अंग्रेजो की ही जीत हुई और भारत के पास गुलामी के अलवा कुछ शेष नही बचा।

राजनीती शासन सब कुछ युद्ध मे छिन लिया गया।
अंग्रेजो बहुत सी संधिया की समझोते किये युद्ध लड़े जिसमे सिर्फ अंग्रेजों की ही जीत हुई। हमारे भारत का राजतंत्र स्वतंत्रता पूरी तरह से नष्ट हो गई। 1947 में स्वतंत्रता आंदोलन की समाप्ति के साथ अंग्रेज भारत से चले गए।

डच – 1602 ई.

भारत में यूरोपीय कंपनी डच 1596 ई.मे आये, डच हालैंड के रहने वे थे। इन्होने भारत में 1602 मे एक यूरोपीय कंपनी, डच ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थपना किया। डचो के द्वारा भारत में पहला संयुक्त पूंजी यूरोपीय कंपनी की स्थपना हुई और इन्ही लोगो ने बंगाल के चिन्सर मे भी एक कारखाना स्थापित किया। डचो ने गुजरात, कोरोमंड़ल, बंगाल और ओडीसा जैसे कई जगहो पर व्यापर कोठिया खोली जिसमे पहली कोठी मुसिपटनम मे और दुसरी पुलिकट मे थी।

डचों का व्यापार

भारत में आए यूरोपीय कंपनी डच का मुख्य उद्देश्य था कि दक्षिण – पुर्व एसिया के टापुओं पर व्यापार करे और इसमे एकमात्र मार्ग भारत ही बस था। डचो ने पुर्तगालियों को हराकर कोची मे फ़ोर्ट विलियम्स का निमार्ण किया था। 17वी शताब्दी मे डचो का व्यपारिक शक्तियां चरम पर थी। डच लोग भारत से सुति वस्र, अफीम, रेशम और मसालो आदी वस्तुओ क निर्यात करते थे।

1759 ई .मे अंग्रेजो और डचो की बिच बेदरा का युद्ध हुआ जिसमे डचो की हर हो गई। वे बुरी तरीके से हार चुके थे। इसके बाद वे भारत मे नही रह पाये। अंग्रेज़ों के आगे डचो की शक्तियों का कोई असर नही हुआ और भारत में आए एक और यूरोपीय कंपनी डच चले गए।

डैनिस – 1616 ई.

ईस्ट इंडिया कंपनी के बाद भारत में सन 1616 मे यूरोपीय कंपनी डेनिस आया। 1618 डच व्यापारी और उपनिवेश प्रशासक मर्सेलिस डी बोशौवार ने भारत मे डेनिस हस्तक्षेप के लिये प्रेरणा प्रदान की। डेनिस ईस्ट इंडिया कंपनी को डेनमार्क और एशिया के बिच होने वाले व्यापर पर 12वर्षो के लिए एकाधिकार प्रदान किये। डेनिस की पहली फैक्ट्री 1620 ई मे तन्जौर और उसके बाद सन 1676 ई.मे बंगाल के सिरापुर और श्रीरामपुर मे फैक्ट्री खुली, सिरापुर डेनिस कंपनी की लेखाजोखा रखती थी।

भारत मे डेनिसो का व्यापार

डेनिस की दो चार्टर्ड कम्पनिय थी। जिसमे पहला डेनिस ईस्ट इंडिया कंपनी और दूसरा स्वीडन ईस्ट इंडिया कम्पनी। दोनो कंपनियां मिलकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी से चाय का आयत करती थी और अधिक से अधिक को ब्रिटेन मे निर्यात करती थी।

डेनिस को भारत आकर सफलता प्राप्त नही हुई उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर पड़ गई उनको भारत मे रहने की जगह तो मिली लेकिन पैसो की भुखमरी थी। मजबुरी मे आकर अंग्रेजो को सन 1845 ई.मे अपनी बस्ती तक बेचनी पडी। इनको व्यापारिक ज्ञान अधिक नही थी ये धर्म का प्रचार मे अपना कीमती समय खो दिया करते थे और व्यापर मे समय कम यह भी कारण था इनकी व्यपार नही चलने का।

फ्रांसीसी – 1664 ई.

फ्रांसीसी सन 1664 ई.मे लुई-14 के शासनकाल मे कल्बर्ट द्वारा फ़्रैंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की। सन 1667 मे फ्रेंच इण्डिया कंपनी एक अन्य अभियान भारत भेजी। जो सन 1668 मे सुरत पहुच कर पहली करखाना खोली, और सन 1668 ई. मे भी इन्होने औरंगजेब आज्ञा लेकर सतर मे पहली फैक्ट्री खोला। और दुसरी फैक्ट्री के लिये सन 1669ई. मे गोलकुंडा के सुल्तान की आज्ञा से मुस्सलिपटनम मे स्थापित किया।

फ्रंसिसियो द्वारा पुडुचेरी का स्थापना

फ्रांसिसी मार्टिन ने 1673 ई.मे बलिकोंडापूरम के सूबेदार की सहमती लेकर छोटा सा गांव मे पण्डिचेरी का नीव रखा। 1674 मे फ्रंस्वा मार्टिन ने पांडिचेरी का निर्माण शुरु करा दिया और एक छोटा सा गांव मे मछली पकड़ने से उस बन्दरगाह को शहर मे बदल दिया।

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1723 मे यनम, 1725 मे मलाबार तट पर माहे ओर 1739 मे कराईकल पर अधिकार कर लिया। फ्रांसीसी भारत मे भारतीय शहरो मे बनाये रखा कई सहायक व्यापार स्टेशन शमील थे।

1742 ई.मे फ्रांसीसी गवर्नर और अंग्रेजो के बिच युद्ध हुआ फ्रांसिसी गवर्नर डुप्ले आपन शक्ती बढ़ाने के और भारतीय राज्यो पर कब्जा इस युद्ध का कारण बना इसके फलस्वरूप इनके बिच तीन बर युद्ध हुआ इस युद्घ का नाम कर्नाटक युद्ध रखा गया। 1774 ई.मे बंगाल के सूबेदार शाईस्तखाना ने चन्द्र्नगर ने कोठी बनने के लिये अनुमती प्राप्त कार लिया।

स्वीडिश – 1731 ई.

स्वीडिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1731 मे गोथेंबर्ग मे चीन और सुदूर पुर्व द्वारा व्यपार करने के लिये किया गया था। इनसे गोथेनबर्ग को पूर्वी उत्पादो मे व्यापर का केंद्र बना दिया। इनके व्यपार की मुख्य वस्तुए थी – चाय, रेशम, चीनी मिट्टी के बर्तन कीमती पत्थर, फनिचर,और विलासिता के समान थे।

स्वीडन की इनमे नये तरीके दिखाई उन्होने चीनी संस्कृति प्रभाव मे वृद्धि देखा और व्यापर मे अधिक लाये और जडे वाली सब्जियां स्वीडन के प्रत्येक घरो मे दिखने लगे।

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