फूलों की घाटी कहाँ है? फूलो की घाटी की रोचक बातें
केवल फूल के नाम से ही मन मे प्रसन्नता आ जाता है और फूल को देखकर चेहरे पर मुस्कान आ जाता है। तो सोंचिये अगर आप फूलों की वादियों को देखेंगे तो कैसा लगेगा। जहां चारो तरफ रंग-बिरंगे महकते हुए फूल हो तो। ऐसे ही एक फूलों की घाटी भारत मे है। जहां आप जायेंगे तो वापसी आने का मन नही करेगा। तो चलिए देखते है वो फूलो की घाटी कहाँ है? उस घाटी तक कैसे पहुंच सकते है?
फूलों की घाटी जन्म पिंडर से हुआ है जिसे पिंडर घाटी भी कहते हैं। पिंड का अर्थ हिम और घाटी का अर्थ पहाड़ों का क्षेत्र जहां महादेव भगवान शिव का निवास होता है जो मुख्य रूप से चमोली जिले के पिंडर घाटी का ही क्षेत्र में स्थित है। और देवी देवताओं का निवास स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि है कि रामायण काल में हनुमान जी संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पधारे थे।
फूलो की घाटी किसे कहते है?
किसी दो पहाड़ो के बीच के हिस्से को घाटी कहते है और जब उस घाटी में अनेक प्रकार के पौधों पर रंगबिरंगे फूल खिलते है और खुशबू से पूरे क्षेत्र को महकाता तो वह फूलो की घाटी कहलाती है।
फूलो की घाटी कहाँ है?
फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक फूलों की घाटी का नाम है, जिसे अंग्रेजी में Valley of Flowers कहते है। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में है। valley of flowers के नाम से मशहूर खूबसूरत फूलों की घाटी स्थित है। फूलों की इस खूबसूरत घाटी को भारत के एक राष्ट्रीय उद्यान के रूप में संरक्षित किया गया है। यह फूलो की घाटी विश्व संगठन, यूनेस्को द्वारा सन् 1982 में घोषित विश्व धरोहर स्थल नन्दा देवी अभयारण्य, नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग है। इसे हिमालय क्षेत्र पिंडर घाटी अथवा पिंडर वैली के नाम से भी जाना जाता है।
फूलो की घाटी किस राज्य में स्थित हैं?
हिमालय की गोद में बरसो छुपे रहे एक ऐसे खुबसूरत स्थल जिसके भारत में होने के बावजूद किसी को पता नही था। फूलों की घाटी भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है
कितनी बड़ी है फूलो की घाटी?
87 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई खूबसूरत और खुशबूदार फूलों से भरा हुआ समुद्र तल से 12,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित फूलो की घाटी का क्षेत्रफल 87.5 वर्ग किमी है। घाटी की लंबाई पांच किमी और चौड़ाई दो किमी है।
फूलो की घाटी की खोज किसने की?
फूलों की घाटी की खोज इंग्लैंड के पर्वतारोही फ्रेंक स्मिथ ने वर्ष 1933 में की थी। इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1938 में वैली ऑफ फ्लॉवर्स नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी।
फूलो की घाटी का पता कब और कैसे चला?
फूलों की घाटी का सन् 1931 में पता चला। जब दून स्कूल के वनस्पति शास्त के प्राध्यापक रिचर्ड होल्सवर्थ ने अपने कुछ साथियो के साथ की थी। जब वह अपने साथियो के साथ किसी रिसर्च से वापस आ रहे थे तो रास्ता भटकने के कारण वह इस स्थान पर पहुंच गए। उनके साथी फ्रैंक स्मिथ को यह जगह बहुत भा गयी। उसके बाद भी फ्रैंक स्माइथ इस स्थान पर कई बार आएं और इस स्थान को (Valley of Flowers) फूलों की घाटी नाम दिया। तथा बाद में फ्रैंक स्मिथ ने इस घाटी पर एक पुस्तक भी लिखी और तब से यह घाटी पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गई। हजारो देशी विदेशी पर्यटक यहा भ्रमण करने आने लगे।
फूलो की घाटी में कितने प्रकार के फूल पाए जाते है?
हिमाच्छादित पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की 500 से अधिक रंग-बिरंगे फूलों की प्रजातियों से सजा हुआ फूलों की घाटी, बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया।
फूलो की घाटी में कौन कौन से फूल पाए जाते है?
फूलों की घाटी में पाए जाने वाले फूलो में प्रमुख है- एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं।
फूलो की घाटी में फूल कब खिलते है?
15 जुलाई से 15 अगस्त तक यह फूल इस पूरी घाटी में रंगोली की तरह सजे रहते है। फूलों की घाटी जुलाई से सितंबर माह तक गुलजार रहती है। खास बात यह है कि फूलो की घाटी हर दो सप्ताह में अपना रंग भी बदलती है। कभी लाल तो कभी पीले फूलों के खिलने से घाटी में प्रकृति रंग बदल कर पर्यटकों को आकर्षित करती है।
फूलो की घाटी कब जाएं?
फूलों के इस स्वर्ग को देखने के लिए 15 जून से 15 सितंबर तक जाया जा सकता है। ये समय यहां जाने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
फूलो की घाटी कैसे जाएं?
फूलों की घाटी जाने के लिए जोशीमठ से 19 किलोमीटर दूर गोविंद घाट पहुंचना पडता है। गोविंद घाट से फूलो की घाटी की दूरी 13 किलोमीटर है जो पैदल तय करनी पडती है। यही मार्ग गुरूद्वारा श्री हेमकुंट साहिब भी जाता है। आगे जाकर दोनो के मार्ग अलग अलग हो जाते है।
फूलो की घाटी से जुड़े कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियां
- भारत का सबसे बड़ा | भारत में सबसे ऊंचा | भारत में सबसे लंबा
- विश्व का सबसे बड़ा | विश्व का सबसे लंबा | विश्व का सबसे ऊंचा
फूलो की घाटी किसकी रचना है?
फ्रैंक स्मिथ ने अपनी पुस्तक वैली ऑफ फ्लावर के माध्यम से इस फूलो की घाटी को विश्व में प्रसिद्धि दिलाई थी। फ्रैंक स्मिथ ने फूलो की घाटी में लगभग 2,000 या 2,500 से अधिक फूलो की किस्मों की खोज की थी।
फूलो की घाटी को कब विश्व धरोहर घोषित किया गया?
फूलों की घाटी को वर्ष 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया। उत्तराखंड हिमालय में स्थित नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलो की घाटी सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित हैं।
फूलो की घाटी में कौन सी नदी बहती है
पुष्पावती नदी फूलों की इस घाटी के बीचों-बीच बहती है और इस घाटी की खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं।
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फूलो की घाटी का क्या क्या नाम है?
फूलों की घाटी को गंधमादन, बैकुंठ, पुष्पावली, पुष्परसा, फ्रैंक स्मिथ घाटी आदि नाम से जाना जाता है। स्कंद पुराण के केदारखंड में फूलो की घाटी को नंदनकानन कहा गया है।
कौन सा शहर फूलो का शहर कहा जाता है?
नीदरलैंड में एक शहर है, जिसे फूलो का शहर कहते हैं। यह एमस्टर्डम से एक घंटे की दूरी पर पड़ता है, जिसका नाम है लिस्सी, जिसे क्योकेनहोप कहते हैं। यहां जहां तक नजर दौड़ाओ, फूल ही फूल दिखेंगे। करीब 80 एकड़ में फैला है फूलों का शहर।