मृत्यु के बाद क्या होता है? इंसान के मौत के बाद क्या होता है?
ये तो आप भी जानते है कि जो इस धरती पर जन्म लिया है उसे एक दिन मरना ही है। इस सत्य को सभी जानते है। लेकिन क्या आप जानते है कि मृत्यु के बाद क्या होता है? इंसान के मौत के बाद क्या होता है? अगर नही जानते इस पोस्ट को अंत तक पढ़े फिर आपको भी समझ मे आ जायेगा, कि आखिर मृत्यु के बाद होता क्या है?
न तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो। यह शरीर पांच तत्वों से बना है- अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा। इस धरती पर मनुष्य का जीवन जितना सत्य है, तो उतना ही मनुष्य का मरना भी सत्य है। जिसे कोई चाह कर भी टाल नहीं सकता है।
मृत्यु के बाद क्या होता हैं?
एक न एक दिन तो सबको मरना है यह बात सभी जानते है। मरने के बाद हमारा शरीर अलग – अलग प्रक्रिया से काम करता है। इंसान के मरने के एक घंटा बाद शरीर ठंडा पड़ जाता है, और तीन से चार घंटे में मास्पेसिया पूरी तरह से ढीली पड़ जाती है। जिसके बाद शरीर में सड़ने की प्रकिरिया शुरू होने लगती है। मृत शरीर को जलाया या दफनाया जाता है। आत्मा शरीर से बाहर निकल जाते है और शरीर फिर उन्ही पांच तत्वों में मिल जाता है जिससे बना है।
धार्मिक मान्यताओ के अनुसार मृत्यु का कोई प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। यह अविनाशी आत्मा सदा से है और सदा रहेगा। शरीर की मृत्यु को हम लोग अपनी मृत्यु मानते हैं,और यही कारण है कि हम सत्य को ठीक से समझ नही पाते।
हिन्दू धर्म के अनुसार मरने के बाद क्या होता है?
हिंदू दर्शन के अनुसार, मृत्यु के बाद मात्र यह भौतिक शरीर या देह ही नष्ट होती है, जबकि सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मांतरों तक आत्मा के साथ संयुक्त रहता है। यह सूक्ष्म शरीर ही जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ संस्कारों का वाहक होता है। संस्कार अर्थात हमने जो भी अच्छे और बुरे कर्म किए हैं वे सभी और हमारी आदतें।
इस धर्म मे किसी की मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर को जलाया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का शरीर 5 तत्वों आग, पानी, हवा, आकाश और धरती से मिलकर बना होता है। अगर किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो शरीर से आत्मा बाहर निकल जाती है क्योंकि हिन्दू धर्म के अनुसार आत्मा अजर अमर रहती है। जिसके वजह से वापस उन्हीं पांच तत्वों में मिलना होता है। यही वजह है कि जिस व्यक्ति की मौत हो जाती है, तो सबसे पहले उसके शरीर को गंगाजल से स्नान कराया जाता है। उसके बाद उसको अग्नि दी जाती है और फिर शरीर की राख को गंगा में विसर्जित किया जाता है।
शास्त्रों की अनुसार
जब किसी की मृत्यु होती है, तो आत्मा एक अलग रूप में पुनर्जन्म लेती है। मानना है कि भौतिक शरीर मर जाता है, उनकी आत्मा बनी रहती है और तब तक रीसायकल करती रहती है जब तक कि वह अपने वास्तविक स्वरूप पर स्थिर न हो जाए। हम में से बहुत से लोगों ने कई बार अपने बड़े बुजुर्गों से कहते सुना है, कि मृत्यु के बाद मनुष्य शरीर की आत्मा 13 दिनों तक अपने घर में रहती है। जब 13 वें दिन 13 वीं की जाती है तो उस दिन मृतक के नाम का पिंडदान किया जाता है। अर्थात मृत्यु के बाद मृतक के नाम का जो पिंडदान किया जाता है। उसी से ही आत्मा को मृत लोक से यमलोक तक यात्रा करने का बल मिलता है।
पुराणों के अनुसार
जो भी व्यक्ति अच्छे कर्म करता है उसके प्राण हरने देवदूत आते हैं और उसे स्वर्ग ले जाते हैं। जबकि जो मनुष्य जीवन भर बूरे कर्म करता है। उसके प्राण हरने यमदूत आते हैं और उसे नर्क में ले जाते हैं। जहां पर यमराज उसके पापों के आधार पर उन्हें सजा देते हैं। गरूड़ पुराण के अनुसार वह आत्मा अंधकारमय मार्ग से यमलोक में प्रवेश करती है। गरूड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 हजार योजन दूर है। यमलोक का रास्ता 86 हजार योजन है। उस मार्ग पर प्रेत प्रतिदिन दो सौ योजन चलता है। इस प्रकार वह लगभग 47 दिन लगातार चलकर यमलोक पहुंचता है।
गीता के अनुसार मृत्यु के बाद क्या होता है?
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं – हाँ पा जीव आत्मा। मृत्यु के बाद क्या होता है देखो, जब किसी की मृत्यु होती है तो असल में ये जो बाहर का अस्थूल शरीर है केवल यही मरता है। इस अस्थूल शरीर के अंदर जो सूक्ष्म शरीर है वो नहीं मरता। वो सूक्ष्म शरीर आत्मा के प्रकाश को अपने साथ लिए मृत्युलोक से निकलकर दूसरे लोकों को चला जाता है।
इस्लाम धर्म के अनुसार मरने के बाद होता है?
इस्लाम कुरान हमें यकीन दिलाता है कि मौत के बाद भी जिंदगी है और एक फैसले का दिन तय है। जिसे कयामत का दिन भी कहा जा सकता है। इस दिन हर एक शख्स के अच्छे और बुरे काम देखा जाता है, जो भी शख्स नेक काम इस दुनिया मे किया होगा उसे जन्नत में डाल दिया जाएगा। जो सख्स बुरे काम किया होगा, उसको जहन्नुम मे फेक दिया जाएगा।
ईसाई धर्म के अनुसार मारने के बाद क्या होता है?
ईसाई मृत्यु से परे जीवन में विश्वास करते हैं। उनका मानना है कि जब शरीर मर जाता है और दफन या जला दिया जाता है, तब भी आत्मा जीवित रहती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका मानना है कि यीशु को सूली पर चढ़ाए जाने के तीन दिन बाद, वह मृतकों में से जी उठा। उन्होंने मनुष्य के रूप में जन्म लेकर और फिर क्रूस पर मरकर इस नए मृत्यु के बाद के जीवन को सभी के लिए संभव बनाया।
ईसाइयों का मानना है कि सूली पर चढ़ाए जाने के तीन दिन बाद भगवान ने यीशु को मृतकों में से जीवित किया और वह अपने अनुयायियों के सामने एक बार फिर प्रकट हुए। इसका अर्थ यह है कि यीशु की मृत्यु और बलिदान ने पाप और मृत्यु पर विजय प्राप्त की। जो लोग मसीह में विश्वास करते हैं और सद्गुणी जीवन व्यतीत करते हैं, उन्हें स्वर्ग में अनन्त जीवन दिया जाएगा, हालाँकि शारीरिक मृत्यु अभी भी होगी। कई ईसाई मानते हैं कि जब वे मरेंगे, तो उन्हें भगवान की उपस्थिति में ले जाया जाएगा और उन कार्यों के लिए इलाज किया जाएगा जो उन्होंने अपने जीवनकाल में किए या नहीं किए।
मरने के बाद आत्मा कहाँ जाती है?
जब व्यक्ति के शरीर से आत्मा निकलती है उसे कुछ समय तक पता ही नहीं होता है कि वह शरीर से अलग है। वह उसी प्रकार व्यवहार करती है जैसे शरीर में रहते हुए उसका व्यहार था। शरीर से निकलकर खड़ी आत्मा अपने सगे-संबंधियों को पुकारती है लेकिन उसकी आवाज कोई सुन नहीं पाता है। इससे आत्मा को बेचैनी और छटपटाहट होने लगती है। आत्मा परेशान होकर सभी लोगों से कुछ कहना चाहती है पर उसकी आवाज बस उस तक ही गूंजकर रह जाती है क्योंकि वह भौतिक नहीं अभौतिक ध्वनि होती है और मनुष्य केवल भौतिक चीजों को ही महसूस कर सकता है।
वर्षों तक शरीर में रहने से जो सांसारिक माया का आवरण आत्मा पर पड़ा होता है उससे मोहवश आत्मा दुखी होकर कभी अपने मृत शरीर को तो कभी अपने संबंधियों को देखकर उनसे बात करना चाहती है लेकिन उसका प्रयास विफल होता है। शरीर के मृत हो जाने पर आत्मा अपने परिजनों को रोते बिलखते देखकर दुखी होती है और खुद भी दुख से व्यकुल होकर रोती है लेकिन उसके वश में कुछ नहीं होता वह लाचार होकर सबकुछ देखने और अपने जीवन काल में किए कर्मों को याद करके दुखी होती है।
आत्मा कोशिश करती है कि वह फिर से शरीर में प्रवेश कर जाए लेकिन यम के दूत उसे शरीर में प्रवेश नहीं करने देते। धीरे-धीरे व्यक्ति की आत्मा यह स्वीकर करने लगती है कि अब जाने का वक्त हो गया है। मोह का बंधन कमजोर होने लगता है और वह मृत्यु लोक विदा होने के लिए तैयार हो जाती है। यहां आत्मा अपने कर्मों और इच्छाओं के अनुसार कुछ समय तक विश्राम करती है। कुछ आत्माएं जल्दी शरीर धारण कर लेती हैं तो कुछ लंबे समय तक विश्राम के बाद अपनी इच्छा के अनुसार नया शरीर धारण करती है।
मृत्यु के बाद मनुष्य के साथ क्या क्या जाती हैं?
अध्यात्म के अनुसार मृत्यु के पश्चात मानव शरीर के साथ ये पांच चीजे जाती है :
- कामना – यदि मृत्यु के समय हमारे मन मे किसी वस्तु विशेष के प्रति कोई आसक्ति शेष रह जाती है, कोई इच्छा अधूरी रह जाती है,कोई अपूर्ण कामना रह जाती है तो मरणोपरांत भी वही कामना उस जीवात्मा के साथ जाती है।
- वासना – वासना कामना की ही साथी है। वासना का अर्थ केवल शारिरिक भोग से नही अपितु इस संसार मे भोगे हुए हर उस सुख से है जो उस जीवात्मा को आनन्दित करता है। फिर वो घर हो, पैसा हो, गाड़ी हो, रूतबा हो, या शौर्य। मृत्यु के बाद भी ये अधूरी वासनाएं मनुष्य के साथ ही जाती हैं और मोक्ष प्राप्ति में बाधक होती है।
- कर्म – मृत्यु के बाद हमारे द्वारा किये गए कर्म चाहे वो सुकर्म हो अथवा कुकर्म हमारे साथ ही जाता है। मरणोपरांत जीवात्मा अपने द्वारा कि ये गए कर्मो की पूँजी भी साथ ले जाता है। जिस के हिसाब किताब द्वारा उस जीवात्मा का यानी हमारा अगला जन्म निर्धारित किया जाता है।
- कर्ज़ – यदि मनुष्य ने आपने जीवन मे कभी भी किसी प्रकार का ऋण लिया हो तो उस ऋण को यथासम्भव उतार देना चाहिए ताकि मरणोपरांत इस लोक से उस ऋण को उसलोक में अपने साथ न ले जाना पड़े।
- पूण्य – हमारे द्वारा किये गए दान-दक्षिणा व परमार्थ के कार्य ही हमारे पुण्यों की पूंजी होती है इसलिए हमें समय-समय पर अपने सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा एवं परमार्थ और परोपकार आवश्य ही करने चाहिए।
क्या मृत्यु के बाद जीवन है?
जब कोई मर जाता है, तो हम कहते हैं, यह व्यक्ति नहीं रहा। लेकिन वास्तव में वह सत्य नहीं है। वह व्यक्ति अब वैसा नहीं है जैसा आप उन्हें जानते हैं, लेकिन वे अभी भी बहुत मौजूद हैं। भौतिक शरीर अलग हो जाएगा, लेकिन कर्म की ताकत के आधार पर मानसिक और प्राणिक शरीर चलते रहते हैं। दूसरा गर्भ खोजने के लिए, इस कर्म संरचना की तीव्रता कम होनी चाहिए। यदि कर्म संरचना कमजोर हो गई है, तो वह बहुत आसानी से दूसरा शरीर ढूंढ लेता है।
जब कोई इस जीवन के लिए अपने आवंटित कर्म को पूरा कर लेता है, तो वह उसी तरह मर जाएगा – बिना बीमारी, दुर्घटना या चोट के। उस व्यक्ति को कुछ ही घंटों में दूसरा शरीर मिल सकता है। अगर कोई अपना जीवन पूरा कर लेता है और शांति से मर जाता है, तो उसे इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं है।
अगर कर्म संरचना बहुत तीव्र, अधूरी है, तो उसे इसे खत्म करना होगा। अब उसे दूसरा शरीर खोजने के लिए और अधिक समय चाहिए, वो इधर उधर भटकते रहता हैं, जिसे आप भूत कहते हैं। आपके चारों ओर ऐसे असंख्य प्राणी हैं, चाहे आप इसे जानते हों या नहीं, लेकिन आप उनमें से अधिकांश को महसूस नहीं करेंगे क्योंकि उनके कर्म नष्ट हो गए हैं। इससे पहले कि वे दूसरा शरीर खोजें, वे और अधिक प्रतीक्षा करतें हैं।
मृत्यु से जुड़े कुछ और सवाल जवाब
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मनुष्य मरने के बाद कितने दिन में जन्म लेता है?
वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक अगर 100 लोगों की मृत्यु होती है तो उनमें से 85 लोगों का पुर्नजन्म 35 से 40 दिनों के भीतर हो जाता है।
मरने के बाद दूसरा जन्म कब होता है?
पुराणों के अनुसार मरने के 3 दिन में व्यक्ति दूसरा शरीर धारण कर लेता है इसीलिए तीजा मनाते हैं। कुछ आत्माएं 10 और कुछ 13 दिन में दूसरा शरीर धारण कर लेती हैं इसीलिए 10वां और 13वां मनाते हैं। कुछ सवा माह में अर्थात लगभग 37 से 40 दिनों में।
शरीर में आत्मा कहाँ निवास करती है?
कठोपनिषद मानता है कि आत्मा का निवास मूलतः मस्तिष्क में है। योग की भाषा में मस्तिष्क का यह हिस्सा सहस्रार चक्र या ब्रह्मरंध्र कहलाता है। कुछ पश्चिमी वैज्ञानिक भी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आत्मा मस्तिष्क के भीतर एक विशिष्ट प्रकार की तंत्रिकाओं में निवास करता है।
लोग मर क्यों जाते हैं?
आराम भरी जीवनशैली के कारण इंसानी शरीर मांसपेशियां विकसित करने की जगह जरूरत से ज्यादा वसा जमा करने लगता है। वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि ऊर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है। ऐसे में शरीर के भीतर हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और ये बीमारियों को जन्म देते हैं। वहीं प्राकृतिक मौत शरीर के शट डाउन की प्रक्रिया है।