सामाजिक जागरूकता | सामाजिक विकास | Social Awareness

सामाजिक जागरूकता

हम सभी एक समाज मे रहते हैं, इसलिए समाज के प्रति जागरूकता होना अनिवार्य हैं, अन्यथा सामाजिक विकास में समस्याएं आने लगेंगे। इसलिए ये जानना जरूरी हैं कि आखिर ये सामाजिक जागरूकता क्या होती है? सामाजिक चेतना के विकास को प्रभावित करने वाले तत्व, बाधक, उपाय कौन कौन से है। तो चलिए देखते हैं विस्तार से।

जागरूकता से क्या तात्पर्य है?

इस आर्टिकल की प्रमुख बातें

जागरूकता किसी चीज के प्रति सचेत होने की अवस्था है। अधिक विशेष रूप से, यह सीधे तौर पर जानने और समझने, महसूस करने या घटनाओं के बारे में जानने की क्षमता है।

सामाजिक जागरूकता की परिभाषा क्या है?

एक सचेत प्रयास करने के माध्यम से सामाजिक स्थितियों के लिए उचित रूप से प्रतिक्रिया करने की क्षमता है।

सामाजिक जागरूकता से आप क्या समझते हैं?

सामाजिक चेतना जब एक विशेष आदर्श से प्रभावित होती है और लोगों में उस आदर्श के कारण एक नवजागरण पैदा होता है, तभी सामाजिक जागरूकता संभव है। यह बात कई तत्वों पर निर्भर करती है। सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, एक महान व्यक्तित्व का नेतृत्व। इसके लिए जरूरत है एक महान व आदर्शवान व्यक्तित्व की।

सामाजिक जागरूकता का महत्व क्या है?

सामाजिक जागरूकता, या समाजीकरण, सकारात्मक संबंध बनाने और जिम्मेदार निर्णय लेने के लिए बच्चों के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कौशल है। रिश्तों और संचार कौशल में सुधार के अलावा, हमारे अपने भावनात्मक कल्याण के लिए सामाजिक जागरूकता भी महत्वपूर्ण है।

सामाजिक विकास या चेतना

मानव समाज सदैव गतिशील व परिवर्तित रहता है। यह परिवर्तन समाज की चेतना या विकास का प्रतीक होती है। समाज मनुष्य के स्वभाव का ही एक विकसित रूप है। मनुष्य स्वभाव से ही एक सामाजिक प्राणी है, और वह अकेला नहीं रह सकता। बचपन से ही व्यक्ति समाज के किसी न किसी अंग का सदस्य होता है। प्रारंभ में उसका संबंध परिवार तक सीमित रहता है। जैसे – जैसे वह बड़ा होता जाता है, उसके कार्यक्षेत्र व संबंधों में वृद्धि होती जाती है।

सामाजिक विकास का अर्थ क्या है?

प्रो. हाँब के अनुसार समाज का विकास किसी वस्तु की मात्रा, व्यक्तियों की कार्यक्षमता, स्वतंत्रता, एवं सेवाभावना व परस्पर सहयोग, नैतिकता, शिक्षा तथा लोकतंत्र प्रणाली पर निर्भर करता है।

प्रो. गिडिंग्ज के शब्दों में समाज रूचि एवं उपयोगिता के किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सामूहिक रूप से प्रयत्न में लगे व्यक्तियों की चेतना को सामाजिक जागृति कहते हैं।

सामाजिक चेतना के विकास को प्रभावित करने वाले तत्व:

मानव की तर्क शक्ति

मानव, आंरभ में प्राकृतिक जीवन – यापन करता है। अपनी सुरक्षा व्यवस्था एवं प्रगति हेतु विचार एवं तर्क के आधार पर प्रयत्नशील होना पड़ता है। इस प्रकार उसके सभी कार्य तर्क से प्रभावित होने लगता है। इस प्रकार सामाजिक चेतना के क्रमिक विकास अपेक्ष में तर्कशक्ति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

भौगोलिक परिस्थितियाँ

मनुष्य को दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करना पड़ता है। जिन वस्तुओं का उत्पादन, समाज एक निश्चित भूखंड में नहीं कर सकता, उन वस्तुओं को उसे देश के अन्य राज्यों या दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है। बदले में उसे अपने क्षेत्र में जीवन की आवश्यकताओं से अधिक उत्पन्न वस्तुओं को देना पड़ता है। इस प्रकार सामाजिक मनुष्यों के जीवन में विविध वस्तुओं के उत्पादन, क्रय – विक्रय और उनके एक स्थान से दूसरे स्थान पर वहन एवं आयात – निर्यात करने का महत्वपूर्ण स्थान है।

प्रकृति की देन और उनका उपयोग

प्रकृति को “मनुष्य की जननी “कहा गया है। प्राचीन काल में मनुष्य का जीवन पर्याप्त रूप से प्रकृति से परिचालित था। धीरे – धीरे मानव बुद्धि और प्रकृति के बीच द्वन्द्व की प्रतिक्रिया से मानव समाज का वर्तमान रूप सामने आया। आज का मनुष्य भी प्रकृति का अनुगामी है, पर वह आज बहुत तर्कशील हो गया है। उसके विचार विज्ञान से प्रभावित है, अतः वह आज प्रकृति प्रदत्त सुविधाओं का भलीभांति उपयोग कर समाज में योजनाबद्ध सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर है।

श्रमविभाजन :

श्रमविभाजन का अभिप्राय किसी वस्तु की उत्पादन की क्रियाओं को कई खंडों व उपखंडों में विभक्त करना तथा उपखंडों को विशेष व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह को उनकी रूचि व योग्यता के अनुसार सुपुर्द कर देना होता है, और श्रम विभाजन का ही यह फल है कि हम एक दिन में मनचाही वस्तुओं को विश्व के किसी भी कोने से प्राप्त करने में समर्थ हुए हैं।

धर्म, जाति और कुटुंब

मानव समाज के विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों में धर्म, जाति व कुटुंब प्रमुख तत्व रहे हैं। कुटुंब मानव समाज की आधारशिला एवं प्रथम पाठशाला है। धर्म व जाति की एकता ने मानव समाज की संगठित संस्थाओं में स्फूर्ति प्रदान की और धर्म – विशेष एवं जाति विशेष के व्यक्तियों के बीच शादी – विवाह, जन्म – मरण और सुख – दुख में सहयोग में वृद्धि किया है।

सामाजिक विकास के बाधक तत्व

लिंग भेदभाव भी सामाजिक विकास में बाधक है। स्त्री – पुरूषों में असमानता का व्यवहार से सामाजिक विकास अवरूद्ध हो जाता है। धार्मिक रूढ़ियों ने उसके अधिकारों से वंचित किया जिसमें सामाजिक विकास अवरूद्ध हो गया। भारत की जनता का 50 प्रतिशत भाग महिलाओं का होने पर भी उचित कानून न होने से स्त्रियों की दशा में आशानुरूप सुधार नहीं हुआ।

संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार जाति, लिंग, धर्म के भेदभाव की मनाही है। राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक क्षेत्र में मदर टेरेसा, राजनीतिक क्षेत्र में इंदिरा गांधी, द्रोपदी मुर्मू, न्यायिक क्षेत्र में श्रीमती फातिमा बी, खेलक्षेत्र में सानिया मिर्जा, पी.टी. उषा, पुलिस सेवा में श्रीमती किरण बेदी, पर्वतारोहण में बच्छेंद्रीपाल प्रेरणा स्त्रोत हैं।

आज महिलाएँ दोहरी भूमिका, घरेलू व कामकाजी निभाने के बाद भी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है। सामाजिक रूप से आज भी स्त्री ही स्त्री की शोषणकर्ता बनी है। दहेज प्रथा के कारण जलाकर मारना, उस पर अकल्पनीय अत्याचार आज भी जारी है।

सामाजिक चेतना के उपाय :

सामाजिक चेतना हेतु निम्न उपाय आवश्यक है।

  • सरकार ऐसे कानून बनाये जो समस्याओं पर नियंत्रण कर सके। सभी कमजोर व पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ने के अवसर दिये जाएँ।
  • शिक्षा का प्रचार – प्रसार हो विशेषाधिकार समाप्त हो।
  • विज्ञान प्रचार – प्रसार के माध्यमों से साम्प्रदायिक सहयोग सद्भावना / संवैधानिक जाग्रति एवं सामाजिक चेतना का प्रयास किया जाए।
  • सभी सामाजिक संगठन अपने तरीकों से सामाजिक चेतना व सद्भाव की पृष्ठभूमि तैयार करें।
  • इस दिशा में सरकार द्वारा बनाये गये कानूनों का प्रचार – प्रसार समीक्षा व संशोधन सदैव होता रहे। जो साम्प्रदायिक सहयोग, सद्भावना व भाईचारा बढ़ाए।
  • नागरिक अपने संवैधानिक कर्तव्यों का कड़ाई से पालन करें। जैसे, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान आदि।

इस प्रकार से सामाजिक चेतना हेतू काम किए जा सकते हैं।

सामाजिक विकास में शिक्षा का क्या योगदान है?

शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली वह सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान, एवं कला – कौशल में वृद्धि तथा व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। इसके द्वारा व्यक्ति एवं समाज दोनों निरन्तर विकास करते है।

सामाजिक विकास के उद्देश्य क्या है?

सामाजिक संरचना के उन विभिन्न पहलुओं और सामाजिक कारकों का अध्ययन है जो समाज के नीव विकास में बाधा उत्पन्न करते है। इसका उद्देश्य किसी समुदाय के समक्ष उस आर्दश प्रारूप को भी प्रस्तुत करना है जो उस समुदाय के लोगों को विकास की ओर अग्रसर कर सके।

सामाजिक विकास के 3 पहलू क्या हैं?

सामाजिक विकास के कुछ प्रमुख संकेतक इस प्रकार हैं:

  • सामाजिक पहलू
  • सांस्कृतिक पहलू
  • राजनीतिक पहलू

सामाजिक जागरूकता से संबंधित कुछ और महत्वपूर्ण सवालों के जवाब

सामाजिक जागरूकता क्या है? सामाजिक विकास क्या है?

सामाजिकता का अर्थ क्या है?

सामाजिकता का शाब्दिक अर्थ समाज हित में कार्य करना होता है। जब किसी समाज के द्वारा समाज की उन्नति के लिए नियम कानून बनाए जाते हैं और समाज के सभी प्रतिष्ठित लोग उन सभी नियमों को मानकर समाज हित में कार्य करते हैं तब समाज के अंदर मजबूत नीति बनती है।

सामाजिक का अर्थ क्या होगा?

समाज से संबंध रखने वाला समाज संबंधी यासमाज के संपर्क से होने वाला।

सामाजिक जीवन क्या है?

जीवन कठिन परिभाषा की एक धारणा है। हम कह सकते हैं कि यह अस्तित्व के बारे में है, एक जैविक होने की गतिविधि या जन्म लेने, विकसित होने, प्रजनन और मरने की क्षमता है। दूसरी ओर, सामाजिक वह है जो समाज से जुड़ा हुआ है। उन व्यक्तियों का समुदाय जो साझा संस्कृति या हितों को साझा करते हैं।

समाज की आवश्यकता क्यों होती है?

शरीर को सुदृढ़ व स्वस्थ बनाने के लिए प्रत्येक अंग का कार्यरत व क्रियाशील होना बहुत जरूरी है, ठीक यही स्थिति समाज के लिए आवश्यक है। समाज को समुचित स्थिति में रखने के लिए प्रत्येक मनुष्य में अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए क्रियाशीलता अपेक्षित होती है।

समाज कैसे बनता है?

समाजशास्त्रियों ने समाज को सामाजिक संबंधों का जाल माना है। वास्‍तव में अनेक परिवारों के आपसी संबंधों से समाज का निर्माण होता है मनुष्‍य सामाजिक प्राणी है अत: वह परिवार एवं समाज दोनों से जुड़कर रहता है !

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