यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है? यूसीसी क्यों जरूरी है इसके लागू होने से क्या होगा?
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यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है? यूसीसी क्यों जरूरी है इसके लागू होने से क्या होगा?

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लंबे वक्त से चर्चा में बना रहा है। इसका मतलब नागरिकों के लिए समान कानून तैयार करने और उसे कार्यान्वित करने से है, जिसमें कोई धार्मिक आधार ना हो। फिलहाल देश में पर्सनल लॉ भी मौजूद हैं जिसमें शादी, तलाक, गोद लेने, गुजारा भत्ता पर अलग-अलग नियम हैं।

UCC का मतलब क्या है?

UCC अर्थात यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब एक देश, एक कानून यानी देश में रहने वाले सभी नागरिकों (हर धर्म, जाति, लिंग के लोग) के लिए एक कानून होना। अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे तमाम विषयों में नागरिकों के लिए एक से कानून होंगे।

कॉमन सिविल कोड का मतलब क्या होता है?

यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून। अभी होता ये है कि हर धर्म का अपना अलग कानून है और वो उसी हिसाब से चलता है। हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों से जुड़ी बातें हैं। मुस्लिमों का अलग पर्सनल लॉ है और ईसाइयों को अपना पर्सनल लॉ हैं। जब कॉमन सिविल कोड लागू होगा तो ये सभी धर्मों का अलग अलग कानून खत्म हो जाएगा और एक देश एक कानून चलेगा।

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यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से क्या होगा?

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का लागू होने से भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा। शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।

यूसीसी क्यों जरूरी है?

धर्मनिरपेक्षता प्रस्तावना में निहित उद्देश्य है, एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र को धार्मिक प्रथाओं पर आधारित विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून की आवश्यकता है। यदि यूसीसी अधिनियमित होता है, तो सभी व्यक्तिगत कानून अस्तित्व में नहीं रहेंगे। यह मौजूदा कानूनों में लैंगिक भेदभाव को दूर करेगा।

यूसीसी का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित अंबेडकर द्वारा परिकल्पित कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है, साथ ही एकता के माध्यम से राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ावा देना है। यूनिफॉर्म सिविल कोड विवाह समारोहों, विरासत, उत्तराधिकार, गोद लेने के आसपास के जटिल कानूनों को सरल बनाएगी, जिससे वे सभी के लिए एक हो जाएंगे। तब एक ही नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होगा चाहे उनकी आस्था कुछ भी हो। इस लिए यूसीसी कानून जरूरी है।

यूसीसी क्यों महत्वपूर्ण है?

समान नागरिक संहिता अर्थात यूसीसी समाज के सभी वर्गों के साथ, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, राष्ट्रीय नागरिक संहिता के अनुसार समान व्यवहार किया जाएगा, जो सभी पर समान रूप से लागू होगा। यूसीसी इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसके लागू होने से एक देश एक कानून होगा।

भारत में जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून और मैरिज एक्ट हैं। इसके कारण सामाजिक ढ़ांचा बिगड़ा हुआ है। यही कारण है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग उठती रही है जो सभी जाति, धर्म, वर्ग और संप्रदाय को एक ही सिस्टम में लेकर आए। एक कारण यह भी है कि अलग-अलग कानूनों के कारण न्यायिक प्रणाली पर भी असर पड़ता है। वर्तमान समय में लोग शादी, तलाक आदि मुद्दों के निपटारे के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड ही जाते हैं।

इसका एक खास उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित अम्बेडकर द्वारा परिकल्पित कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है, साथ ही एकता के माध्यम से राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ावा देना है। जब यह कोड बनाया जाएगा तो यह उन कानूनों को सरल बनाने का काम करेगा जो वर्तमान में धार्मिक मान्यताओं जैसे हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून और अन्य के आधार पर अलग-अलग हैं।

यूसीसी लागू करने की बात कब सामने आई

देश में ब्रिटिश सरकार ने 1835 में समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा को लेकर एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की बात कही गई थीं। हालांकि उस रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के पर्सनल लॉ को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई थी।

हालांकि जब व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों की संख्या बढ़ने लगी तो सरकार को 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बी.एन. राव समिति गठित कर दी। इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित एवं संहिताबद्ध करने के लिए 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को अपना लिया गया। हालांकि मुस्लिम, इसाई और पारसियों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून लागू रहे।

शाह बानो केस (1985)

जब शाह बानो नाम की 73 वर्षीय महिला को उसके पति ने तीन बार तलाक (तीन बार मैं तुम्हें तलाक देता हूं कहकर) तलाक दे दिया और गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया। उसने अदालतों का दरवाजा खटखटाया और जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया। इसके चलते उसके पति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करते हुए कहा कि उसने इस्लामी कानून के तहत अपने सभी दायित्वों को पूरा किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में अखिल भारतीय आपराधिक संहिता के पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण प्रावधान (धारा 125) के तहत उनके पक्ष में फैसला सुनाया, जो धर्म की परवाह किए बिना सभी नागरिकों पर लागू होता था। इसके अलावा, इसने सिफारिश की कि एक समान नागरिक संहिता स्थापित की जाए।

इस ऐतिहासिक फैसले के बाद देशभर में चर्चाएं, बैठकें और आंदोलन हुए। दबाव में तत्कालीन सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला (तलाक पर सुरक्षा का अधिकार) अधिनियम (एमडब्ल्यूए) पारित किया, जिसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 को मुस्लिम महिलाओं पर लागू नहीं किया।

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर फिर से चर्चा तेज हो गई है, दरअसल 22वें विधि आयोग ने UCC पर जनता से एक महीने में राय मांगी है। आयोग द्वारा जारी आधिकारिक ईमेल आइडी membersecretary-lci@gov.in पर धार्मिक संगठन या व्यक्ति अपने सुझाव भेज सकते हैं। आयोग ने सात साल पहले यानी 2016 में भी जनता से राय ली थी. मार्च 2018 में उसने अपनी रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें गया कहा था कि फिलहाल समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड की जरूरत देश को नहीं है।

क्या भारतीय संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र है?

संविधान के भाग IV, अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। हालाँकि, संविधान का अनुच्छेद 37 स्वयं यह स्पष्ट करता है कि डीपीएसपी किसी भी अदालत द्वारा लागू नहीं किया जाएगा। फिर भी, वे देश के शासन में मौलिक हैं। इससे पता चलता है कि यद्यपि हमारा संविधान स्वयं मानता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को किसी न किसी रूप में लागू किया जाना चाहिए, लेकिन वह इस कार्यान्वयन को अनिवार्य नहीं बनाता है।

अनुच्छेद 44 क्या है?

अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से मेल खाता है जिसमें कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए पूरे भारत में एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) प्रदान करने का प्रयास करेगा। संविधान के प्रारूपण के दौरान, जवाहरलाल नेहरू और डॉ. बीआर अंबेडकर जैसे प्रमुख नेताओं ने समान नागरिक संहिता पर जोर दिया। हालाँकि, उन्होंने मुख्य रूप से धार्मिक कट्टरपंथियों के विरोध और उस समय जनता के बीच जागरूकता की कमी के कारण यूसीसी को राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (डीपीएसपी, अनुच्छेद 44) में शामिल किया।

भारत में यूसीसी लागू करने में क्यों दिक्कत हो रहा है?

समान नागरिक संहिता की संवैधानिकता को विभिन्न धार्मिक समूहों द्वारा चुनौती दी गई है, जिनका तर्क है कि यह उनके धर्म का पालन करने और अपने व्यक्तिगत कानूनों का पालन करने के उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 25 प्रत्येक धार्मिक समूह को अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।

भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड क्यों नहीं है?

आजादी के बाद संविधान सभा और संसद इस तरह के समान नागरिक संहिता को वांछनीय मानते थे, वे इसे किसी भी धार्मिक समुदाय पर संघर्ष और असुरक्षा के समय में लागू नहीं करना चाहते थे। उन्होंने इसे संविधान के एक निर्देशक सिद्धांत के रूप में छोड़ दिया, उम्मीद है कि समय सही होने पर इसे लागू किया जाएगा।

भारत के कौनसे राज्य में यूसीसी लागू हैं?

भारत में केवल गोवा राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। भारतीय संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है। साथ ही संसद ने कानून बनाकर गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार दिया था। यह सिविल कोड आज भी गोवा में लागू है। इसको गोवा सिविल कोड के नाम से भी जाना जाता है। गोवा में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समेत सभी धर्म और जातियों के लिए एक फैमिली लॉ है। यानी शादी, तलाक और उत्तराधिकार के कानून हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सभी के लिए एक समान हैं।

गोवा में किसी मुस्लिम को तीन बार बोलकर अपनी पत्नी को तलाक देने का हक नहीं हैं। इसके अलावा शादी तभी कानूनी तौर पर मान्य होगी, जब उसका रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा। अगर गोवा में एक बार शादी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है, तो तलाक सिर्फ कोर्ट से ही मिलता है। गोवा में संपत्ति पर पति और पत्नी का समान अधिकार है। हिंदू, मुस्लिम और ईसाई के लिए अलग-अलग कानून नहीं है। गोवा को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्म के लिए अलग-अलग नियम हैं। गोवा में ये भी नियम है कि पैरेंट्स को अपनी कम से कम आधी संपत्ति का मालिक अपने बच्चों को बनाना होगा, जिसमें बेटियां भी शामिल हैं।

गोवा में मुसलमानों को चार शादी करने का अधिकार नहीं है, लेकिन हिंदू पुरुष को दो शादी करने की छूट है। हालांकि इसके लिए कुछ कानूनी प्रावधान भी हैं। अगर हिंदू शख्स की पत्नी 21 साल की उम्र तक बच्चे पैदा नहीं कर पाती है या 30 साल की उम्र तक लड़का पैदा नहीं करती है तो उसका पति दूसरी शादी कर सकता है। वैसे गोवा के सीएम प्रमोद सावंत बता चुके हैं कि साल 1910 के बाद से इस नियम का फायदा किसी भी हिंदू को नहीं मिला है।

क्या दुनिया के किसी और देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है?

दुनियाभर में इस्राइल, जापान, फ्रांस और रूस में समान नागरिक संहिता या कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून हैं। यूरोपीय देशों और अमेरिका के पास एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है जो सभी व्यक्तियों पर लागू होता है चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

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Amit Yadav

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