भलाई के सही मायने क्या है? क्यों करना चाहिए भलाई? भलाई का अर्थ क्या है?
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भलाई के सही मायने

आपने ये कहावत तो सुना ही होगा कि कर ‘भला, हो भला ‘ कुछ लोग इसे कोरी कहावत मानते हैं किन्तु यह शाश्वत सत्य है । जिन्हें शंका हो वे आजमा कर देख सकते हैं । स्वार्थवश किया गया कार्य भलाई नहीं। इस पोस्ट में आप जानेंगे कि भलाई के सही मायने क्या है। तो आइए देखते है कि भलाई के सही मायने क्या है? क्यों करना चाहिए भलाई? भलाई का अर्थ क्या है? क्या दुसरो की भलाई करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है?

भलाई का अर्थ क्या है ?

आसान भाषा मे समझे तो भलाई का मतलब होता है जब हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं उनके लिए कुछ अच्छा काम करते हैं। उनकी भावनाओं को समझ कर उनकी तकलीफ को समझ कर दूर करते है। तो हम कह सकते है कि यही भलाई है। इन्ही क्रियाओं का मतलब भलाई होता है।

भारतीय संस्कृति का मूल आधार ही दूसरों की भलाई है । इंसान को मुश्किल से मानव जीवन मिला है और मानव को बुद्धि इसलिए मिली है कि वह दूसरों की भलाई के बारे में विचार कर सके। किसी का बुरा करने का विचार भी मन में न लाएं। जब भी मन मे कुछ विचार करे तो एक बार दुसरो के बारे में भी सोंचे की क्या ऐसा करने से किसी को कुछ तकलीफ तो नही होगा।

प्रकृति ने मनुष्य की भलाई के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया । महापुरुषों ने देश और समाज की भलाई के लिए अपना घर – परिवार का त्याग कर दिया । इसलिए यह कहा जा सकता है कि दया , प्रेम , अनुराग , करुणा व सहानुभूति की जड़ भलाई की भावना में ही है। इसलिए भलाई का कार्य करते जाओ , इसका फल भी अवश्य मिलेगा। भलाई ही सबसे बड़ा धर्म है।

बुरे आदमी के साथ भी भलाई ही करनी चाहिए । रोटी का एक टुकड़ा डालकर कुत्ते का मुँह बंद कर देना चाहिए। जैसे एक छोटे से दीप का प्रकाश बहुत दूर तक फैलता है, उसी तरह इस पूरी दुनिया में भलाई बहुत दूर तक चमकता है। भले बनकर तुम दूसरों की भलाई का कारण बन जाते हो।

जो भलाई करने का सदा प्रयत्न करता है , वह मनुष्य और परमेश्वर दोनों की कृपा प्राप्त करता है । पर जो बुराई की तलाश में रहता है , उसको बुराई ही मिलती है। जो दूसरों की भलाई करता है वह अपनी भलाई स्वयं कर लेता है ।

भगवान् तुम्हारे पदक , डिग्री या सर्टिफिकेट्स से नहीं जाँचेगा, अपितु उन जख्मों के निशानों से जाँचेगा , जो तुम्हारे शरीर पर भलाई के लिए बने है। क्योंकि मनुष्य जब इस संसार से जाता है तो भलाई या बुराई ही साथ ले जाता है। मानव की भलाई करने के अतिरिक्त और अन्य किसी कर्म द्वारा मनुष्य ईश्वर के इतने निकट नहीं पहुंच सकता।

जिसमें उपकार वृत्ति नहीं , वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। भली बातें कड़वी होती हैं, किन्तु उनके कड़वेपन का स्वागत करना चाहिए । क्योंकि उनमें भलाई निवास करती है। जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है, आदरणीयों का सम्मान करता है और ईश्वर के समीप रहता है। जो मनुष्य जगत की जितनी भलाई करेगा उसको ईश्वर की व्यवस्था से उतना ही सुख प्राप्त होगा।

भलाई का मार्ग भय से पूर्ण है, परन्तु परिणाम अत्युत्तम है। जो सबके साथ भलाई करता है , वह सबको भला होना सिखा देता है। पुष्प की सुगन्ध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती है। परन्तु मानव के सद्गुण की महक सब तरफ फैल जाती है। इसलिए भलाई जितनी अधिक की जाती है उतनी ही अधिक फैलती है। इसलिए हमेशा भलाई करने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

जिनके हृदय में सदैव परोपकार की भावना रहती है उसकी आपदाएँ समाप्त हो जाती हैं और पग – पग पर धन की प्राप्ति होती है। वह भावना जो कभी शान्त न होकर उत्तेजना के रथ पर सवार रहे, उसमें जुते घोड़े ईर्ष्या के होते हैं। भलाई रह जाती है, इसके अतिरिक्त सब वस्तुएँ नष्ट हो जाती हैं । इसलिए आदमी को चाहिए कि बुराई के बजाय भलाई का रास्ता अपनाए । भलाई करने वाले लोग लोक व परलोक दोनों में ही सुख से रहते हैं ।

भलाई करने के बाद यह अहसास होना कि ‘भला किया’ तब समझ लीजिए कि वो बुरा करने की तैयारी हुआ करती है। भलाई करना मानव का शानदार कर्त्तव्य है। जो दूसरों की भलाई करना चाहता है, उसने अपना भला तो कर ही लिया। इसलिए हमारे भाव मे भी दूसरों की भलाई के बारे में होना चाहिए।

भलाई के सही मायने क्या है? क्यों करना चाहिए भलाई? भलाई का अर्थ क्या है?

 

दया के सम्मुख जैसे दुष्टता का नाश हो जाता है , वैसे ही प्रेम और उदार सहानुभूति के सम्मुख पुरे मनोविकारों का नाश हो जाता है। दुर्जनों के साथ भलाई करना सज्जनों के साथ बुराई करने के समान है। भलाई बुराई का अभाव नहीं वरन् उस पर विजय है। जो मनुष्य भलाई बदले में बुराई करता है, उसके घर में बुराई सदैव निवास करती है। जो मनुष्य जगत की जितनी भलाई करेगा, उसको ईश्वर की व्यवस्था में उतना ही सुख प्राप्त होगा।

भौतिक सुखों के पीछे भागने के कारण आज मनुष्य भलाई जैसे शब्दों से भी दूर हो रहा है । इसलिए इसके महत्व समझना जरूरी है। सच्चा मनुष्य वह है जो बुराई का बदला भलाई से दे। ऐसा कभी न सोंचे की सामने वाला भलाई करेगा तभी मैं भी भलाई करूँगा। हमेशा समभाव रखे। क्योंकि ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जिस घर में पति – पत्नी एक – दूसरे के प्रति समभाव नहीं रखते , वहीं दरिद्रता का निवास है। वहाँ उन दोनों का जीवन निष्फल है। इसलिए हमेशा दूसरों से उम्मीद किये बिना भलाई करे।

दोस्तो उम्मीद है कि हमारा पोस्ट “भलाई के सही मायने क्या है? क्यों करना चाहिए भलाई? भलाई का अर्थ क्या है?” आपको अच्छा लगा हो। अगर आप भी दूसरों की भलाई करना चाहते है तो अपने दोस्तों के साथ इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करे।

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Amit Yadav

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